thailand language name in hindi थाईलैंड की भाषा क्या है | थाईलैण्ड में लोग कौनसी भाषा बोलते है ?
थाइलैंड देश में “थाई भाषा” बोली जाती है |
प्रस्तावना
थाईलैण्ड का साम्राज्य इन्डोचाइना (वियतनाम, कम्बोडिया और लाओस) प्रायद्वीप के मध्य स्थित है। इसके उत्तर और उत्तर-पूर्व की सीमा पर लाओस है। इसके पूर्व में कंबोडिया में पश्चिम और उत्तर पश्चिम में बर्मा और दक्षिण में । मलेशिया है। 1939 तक इस देश को सियाम के नाम से जाना जाता था। थाईलैण्ड का क्षेत्र 51,430 वर्ग मीटर है। जो कि फ्रांस से थोड़ा-सा ज्यादा है। यह देश भौगोलिक दृष्टिकोण से चार भागों में विभक्त है:
उत्तर – उत्तर-पूर्व केन्द्र वेसिंग तथा दक्षिणी प्रायद्वीप ।
प्रत्येक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था उसके उपलब्ध स्रोतों के आधार पर विकसित हुई है। 1969 के प्राक्कलन के अनुसार थाईलैण्ड की जनसंख्या 340 लाख से भी अधिक थी। थाईलैण्ड एक विभिन्नतापूर्ण समाज वाला राष्ट्र है। जिसमें लगभग 30 उपराष्ट्रीयताएं सम्मिलित हैं। इसमें थाई (सियामीस) और लाओस लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्यां का योगदान करते है।
थाई भाषा की उत्पत्ति चीनी और तिब्बती भाषाओं के समूह से हुई है। यह थाईलैंड की राष्ट्रभाषा है । राष्ट्र के जीवन में बौद्ध धर्म ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसको संपूर्ण जनसंख्या कालगभग 90 प्रतिशत मानता है। यही सरकारी धर्म भी है। थाईलैण्ड ने कभी भी औपनिवेशिक शासन का अनुभव नहीं किया है। फलस्वरूप वह प्राचीन पद्धति पर आधारित नागरिक व सैन्य संबंधों की पद्धतियों का अनुसरण नहीं करता है। 1932 के सैन्य विद्रोह के बाद राजतंत्र का सेना ने थाई राजनीति में अपनी प्रमुखता स्थापित की। युक्ति संगत भागीदारी के आधार पर इसने अपने प्रभाव को प्रमुख सरकारी संस्थाओं पर बढ़ाया इसे पारंपरिक नेतृत्व के द्वारा आपात स्थिति में प्रदान की गयी । प्रीदीफनो मियांग एकमात्र नागरिक नेता थे जिसको कि कुछ जनसमर्थन प्राप्त था और जिन्होंने सैन्य विद्रोह में (1932 के) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उनको कम्युनिस्ट माना गया और प्रबुद्ध सैनिक वर्ग ने थाई रणनीति में जड़ जमाने की अनुमति नहीं दी। दूसरे नागरिक नेताओं में उस तरह की करिश्माई शक्ति नहीं थी। इसलिए सेना को देश की राजनीति में प्रवेश करना पड़ा। लेकिन सैन्य नेतृत्व उन नियमों के प्रतिपादन में जो कि संस्थाओं को विकसित करने में परिवर्तन कर सके, असफल रहा। परिणामस्वरूप पिछले 60 सालों में सैनिक शासकों ने जो कि सैन्य विद्रोह तथा प्रति विद्रोह द्वारा सत्ता प्राप्त की थी, थाई राजनीतिक प्रणाली को अति अस्थिर बना-दिया। इस बीच नागरिक सरकार स्थापित करने तथा जनतांत्रिक संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के प्रयास किए गए। किन्तु वे सैन्य विद्रोह और राजनीतिक दांव-पेंच के कारण राजा का सम्मान, राष्ट्र और धर्म की मर्यादा को सुरक्षित रखने में असमर्थ रहे। ये तीनों थाई राजनीति के भावनात्मक पहलू थे। बाद की घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि समय समय पर सैन्य विद्रोह थाईलैण्ड की प्राचीन काल की राजनीति के हिस्से रहे हैं, किन्तु उनका आधुनिक समय में कोई स्थान नहीं है। बैंकाक में विकास करता हुआ मध्यमवर्ग विशेष रूप से इस बात पर बल देता है कि वे अपना भविष्य खुद बनायेंगे । “मोबाइल फोन माब’’ मध्यमवर्गीय प्रदर्शनकारी ‘‘रेलबो कोबिशन‘‘ में विभिन्न स्तर पर सम्मिलित हुए और इस बात पर विशेष रूप से बल दिया कि उनकी राजनीति अंतिम रूप से सेना के अत्यधिक हस्तक्षेप से स्वतंत्र होनी चाहिए। जबकि चुआन लीकपाई की थाईलैण्ड के प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति के साथ राष्ट्रीय चुनाव का होना इस बात का प्रतीक है कि जनतांत्रिक ताकतों की विजय हुई । यह जीत मुश्किल से एक नये राजनैतिक काल का उदय समझी जा सकती है । यद्यपि जनतांत्रिक ताकतों के समर्थन जिनमें ‘‘चुआन की की डेमोक्रेटिक पार्टी‘‘, ‘‘न्यू एसपीरेशद पार्टी‘‘ (एन ए पी), “पलंग धर्मा पार्टी‘‘ और ‘‘सालिडेरिटी‘‘ सम्मिलित थी, ने चुनाव जीता किन्तु बहुत क्षीण अंतर 5 सीट से ही। जिनके परिणामस्वरूप यह कम बहुमत वाली कमजोर सरकार अपनी सरकार को स्थिरता प्रदान करने के लिए अनिच्छा से सेना समर्थक “सोशल एक्शन पार्टी‘‘ (एस ए पी) को शासन में भागीदारी दी। थाईलैण्ड राजनैतिक अस्थिरता का सामना करने के लिए बाध्य था। जिसका मुख्य कारण साझा सरकार में तालमेल का अभाव, कटुता और लाभ के संघर्ष थे। क्योंकि संयुक्त सरकार के भागीदार अपना जनाधार बढ़ाना चाहते थे। राजनैतिक भ्रष्टाचार एक दूसरी समस्या थी जिससे कि चुआन सरकार कमजोर बनी और इसने अल्पकालिक व्यक्तिगत और सामूहिक स्वार्थ को पनपाया। नयी सरकार के सेना से संबंध भी काफी मायने रखते हैं। 1991 में चटीचायी चुनहावेन प्रशासन का विप्लव द्वारा अंत हुआ। इसके पीछे प्रमुख कारण था सरकार वसेना के बीच आपसी विश्वास की कमी । इस बदले हुए वातावरण में सैनिक प्रतिक्रिया ने जनता में व्याप्त प्रजातांत्रिक जागरूकता को कमजोर किया। मई, 1992 में सेना ने जनतंत्र समर्थक प्रदर्शनों का दमन किया जिसने जनता में जागरूकता बढ़ाने का काम किया। बहुत से थाइयों ने, विशेषकर शहरी मध्यम वर्ग ने अब इस बात की मांग की कि जनता से संबंध रखने वाली सही मायने में जनप्रतिनिधि सरकार बननी चाहिए न कि सेना की एक छोटी-सी टुकड़ी की जिसे सेना का एक छोटा-सा अभिजात्य वर्ग नियंत्रित करता हो। हाल के वर्षों में आर्थिक स्थिति के नाटकीय परिवर्तनों ने गैर-नौकरशाही । ताकतों को मजबूत बनाया जिसमें व्यापारिक वर्ग संचार माध्यम व अन्य व्यावसायिक समूह सम्मिलित हैं। ये प्रभावशाली समूह एक चुनी हुई, सक्षम और ईमानदार सरकार चाहते थे जिससे कि अर्थव्यवस्था को सही दिशा में आगे बढ़ाया जा सके। 1978-1991 के मध्य थाईलैण्ड ने कम्बोडियाई विद्रोहियों को सामरिक समर्थन दिया जिससे बाध्य होकर वियतनाम को कम्बोडिया से हटना पड़ा।
थाईलैण्ड भूगोल और लोग
थाईलैण्ड जिसको पहले सिआम के नाम से जाना जाता था सामरिक दृष्टि से दक्षिण पूर्व एशिया के प्रमुख स्थल के मध्य में स्थित है। इसका क्षेत्रफल 513,115 कि.मी. है। इसके सामरिक महत्व के कारण ही जापान ने सर्वप्रथम इस पर नियंत्रण किया फिर शेष दक्षिण-पूर्व एशिया की तरफ बढ़ा । वास्तव में (1942-45) के दौरान जापान ने थाईलैण्ड को एक कमानीदार पट्टीकी भांति बर्मा, जावा, मलाया व सिंगापुर पर आक्रमण के लिए प्रयोग किया । फिर यह अपनी स्थिति के महत्व के कारण ‘‘दक्षिण पूर्व एशिया संधि संगठन‘‘ का मुख्यालय बना। थाईलैण्ड के उडोन थानी, नाखोन फानोम, उबोन नाखोन रचसिना, ताखिल और उ टपाओ का वायुसेना के आधार के रूप में तथा सत्ताहिप का जल सेना के आधार के रूप में अमेरिका ने इस क्षेत्र में साम्यवाद को रोकने के लिए प्रयुक्त किया। थाईलैण्ड ने एक बार पुनः अपनी सामरिक भूमिका का प्रयोग (1978-91) वियतनाम को कंबोडिया में ठहरने से रोकने में किया। थाईलैण्ड ने कम्बोडियाई विद्रोहियों को समर्थन दिया तथा वियतनाम को कम्बोडिया से हटाने में एक महत्वपूर्ण कारण सिद्ध हुआ।