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द्विसमलम्बाक्ष , विषमलम्बाक्ष , घनीय क्रिस्टल तंत्र , षट्कोणीय , एकनताक्ष , त्रिसमनताक्ष (त्रिकोणी) , त्रिनताक्ष
क्रिस्टल जालक (crystal lattice in hindi) : क्रिस्टलीय ठोस में अवयवी कणों के त्रिविमिय विन्यास में नियमित रूप से व्यवस्थित होने से जिस संरचना का निर्माण होता है उसे क्रिस्टल जालक कहते है।
क्रिस्टल जालक में अवयवी कणों को छोटे छोटे बिन्दुओ द्वारा दर्शाया जाता है इन्हें जालक बिंदु कहते है।
इन जालक बिन्दुओ को सीधी रेखाओ से मिलाने पर क्रिस्टल जालक का निर्माण होता है।
क्रिस्टल जालक की सबसे छोटी इकाई एकक कोष्टिका होती है।
एकक कोष्ठिका / मात्रक कोष्टिका
वह छोटी से छोटी इकाई जिसकी बार बार पुनरावर्ती होने से क्रिस्टल जालक का निर्माण होता है , एकक कोष्ठिका कहलाती है।
एकक कोष्ठिका में तीनो अक्षीय भुजाओ को a , b और c से दर्शाते है , ये भुजाएँ एक दुसरे के लम्बवत हो भी सकती है और नही भी।
एकक कोष्ठिका में तीनों अक्षीय कोणों को α , β और γ से दर्शाते है।
α कोण = b व c के मध्य कोण।
β कोण = a तथा c के मध्य कोण
γ कोण = a और b के मध्य का कोण
इस प्रकार एकक कोष्ठिका के छ: पैरामीटर है –
तीन अक्षीय कोण = α , β और γ
तीन अक्षीय भुजाये = a , b और c
एकक कोष्ठिका के प्रकार
इसके निम्न प्रकार है –
1. आद्य एकक कोष्ठिका (simple unit cell) : इस प्रकार की एकक कोष्ठिका में केवल कोनों पर अवयवी कण उपस्थित होते है।
अत: जालक बिंदु 8 होते है जैसा चित्र में दर्शाया गया है –
2. केन्द्रित एकक कोष्ठिका : इस प्रकार की एकक कोष्ठिका में कोने पर अवयवी कणों के अतिरिक्त अन्य स्थान पर भी अवयवी कण उपस्थित होते है , यह तीन प्रकार की होती है –
(i) काय केन्द्रित या अंत: केंद्रित एकक कोष्ठिका (body centred unit cell) : इस प्रकार की एकक कोष्ठिका में कोने पर अवयवी कणों के अतिरिक्त एक अवयवी कण कोष्ठिका के केंद्र में उपस्थित होता है।
जालक बिंदु = 8 + 1 = 9
(ii) फलक केन्द्रित एकक कोष्ठिका (face centred unit cell) : इस प्रकार की एकक कोष्ठिका में कोनों पर अवयवी कणों के अतिरिक्त प्रत्येक फलक के केंद्र में अवयवी कण उपस्थित होते है।
जालक बिंदु = 8 + 6 = 14
(iii) आधार केन्द्रित या अन्त्य केंद्रित एकक कोष्ठिका (End centred unit cell) : इस प्रकार की एकक कोष्ठिका में कोनो पर अवयवी कणों के अतिरिक्त विपरीत फलको के केंद्र पर भी अवयवी कण उपस्थित होता है।
जालक बिंदु = 8 + 2 = 10
क्रिस्टल तंत्र के प्रकार
क्रिस्टल तन्त्र सात प्रकार के होते है –
1. घनीय
2. द्विसमलम्बाक्ष (tetragonal in hindi)
3. विषमलम्बाक्ष
4. षट्कोणीय
5. एकनताक्ष
6. त्रिसमनताक्ष (त्रिकोणी)
7. त्रिनताक्ष
इन क्रिस्टल तंत्रों मर विभिन्न प्रकार की एकक कोष्ठिकाएं बनती है , इस आधार पर कुल 14 प्रकार के क्रिस्टल जालकों का निर्माण होता है , इन क्रिस्टल जालको की संरचनाएं ब्रेवे नामक वैज्ञानिक ने बताई इसलिए इन्हें ब्रेवे जालक भी कहते है .
यह क्रिस्टल तंत्र निम्न प्रकार है –
1. घनीय :
एकक कोष्ठिका के प्रकार : आद्य , अन्त केन्द्रित , फलक केन्द्रित
अक्षीय भुजाएँ : a = b = c
अक्षीय कोण = α = β = γ = 90 डिग्री
उदाहरण : NaCl , KCl , ZnS , Cu आदि।
2. द्विसमलम्बाक्ष
एकक कोष्ठिका के प्रकार : आद्य , अंतकेन्द्रित
अक्षीय भुजाएँ : a = b ≠ c
अक्षीय कोण = α = β = γ = 90 डिग्री
3. विषमलम्बाक्ष
अक्षीय कोण = α = β = γ = 90 डिग्री
अक्षीय कोण = α = β = 90 डिग्री
γ = 120 डिग्री
उदाहरण : ग्रेफाईट , ZnO , Cds आदि।
5. एकनताक्ष
अक्षीय कोण = α = γ = 90 डिग्री
β ≠ 90 डिग्री
उदाहरण : एकनताक्ष , गंधक , Na2SO4.10H2O आदि
6. त्रिसमनताक्ष (त्रिकोणी)
अक्षीय भुजाएँ : a = b = c
अक्षीय कोण = α = β = γ ≠ 90 डिग्री
उदाहरण : केल्साईट , सिनेबाट आदि।
7. त्रिनताक्ष
अक्षीय भुजाएँ : a ≠ b ≠ c
अक्षीय कोण = α ≠ β ≠ γ ≠ 90 डिग्री
उदाहरण : K2Cr2O7 , H3BO3 , SH2O , CuSO4 आदि।
सर्वाधिक सममित क्रिस्टल तंत्र = घनीय
सर्वाधिक असममित क्रिस्टल तन्त्र = त्रिनताक्ष
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