हिंदी माध्यम नोट्स
तत्वबोधिनी सभा की स्थापना किसने की थी , संस्थापक कौन थे , tattvabodhini sabha was established by in hindi
tattvabodhini sabha was established by in hindi तत्वबोधिनी सभा की स्थापना किसने की थी , संस्थापक कौन थे ?
प्रश्न: तत्वबोधिनी सभा
उत्तर: देवेन्द्र नाथ टैगोर द्वारा 1839 में ब्रह्म समाज की एक शाखा के रूप में तत्व बोधिनी सभा की स्थापना की। जिसका आचार्य केशवचन्द्र सेन को नियुक्त किया। सेन ने इसकी शाखाएं बंगाल से बाहर उत्तर प्रदेश, पंजाब, मद्रास में स्थापित की। 1865 में टैगोर ने केशवचन्द्र सेन को आचार्य पद से हुआ दिया।
भाषा एवं साहित्य
कश्मीरी
कश्मीरी साहित्य का इतिहास कम-से-कम 2,500 वर्ष प्राचीन है। पतंजलि, महाभाष्य के लेखक जिन्होंने पाणिनी के व्याकरण पर टिप्पणी की, और द्रिधबाला, आयुर्वेद पर चरक संहिता का संशोधन किया, इसी क्षेत्र से पैदा हुए। दसवीं शताब्दी के आसपास कश्मीरी भाषा ने स्वयं को अपभ्रंश परिवार से अलग कर लिया। प्रारंभ में कश्मीरी कविता संस्कृत की शैव रचनाओं का विस्तार मात्र थी, जैसे अभिनवगुप्त का तंत्रसार। बौद्ध एवं वैष्णव धर्म का प्रभाव भी 14वीं सदी के कश्मीर साहित्य पर पड़ा। लाल देद, 14वीं शताब्दी की अग्रणी कश्मीरी कवयित्री थीं। मध्य एशिया से आए इस्लाम ने भी अपना प्रभाव डाला। इस्लाम और हिंदू प्रभावों के मेल से नंद ऋषि ने कविताएं लिखीं। आज भी इन्हें कश्मीर में बड़ी श्र)ा से याद किया जाता है। कश्मीरी भाषा के प्रयोग की शुरुआत कवि लालेश्वरी या लाल देद (14वीं शताब्दी) के साथ हुई। नुंदा रेशी ने प्रभावशाली कविताओं का लेखन किया। हब्बा खातून (16वीं शताब्दी), रूपा भवानी (1621-1721), अरनिमल (1800 ईस्वी), महमूद गामी (1765-1855), रसूल मीर (1870 ईस्वी), परमानंद (1791-1864), मकबूल शाह क्रलावरी (1820-1976) अन्य कवियों में शामिल हैं। शम्स फाकिर, वहाब खार, सोच क्राल, समद मीर, और अहद जरगार जैसे सूफी कवियों का आवश्यक रूप से उल्लेख किया जागा चाहिए। कश्मीरी पर फारसी और उर्दू का प्रभाव इस्लामी सम्पर्क के बाद चिन्हित हो गया। एक अलग किस्म के गीत लाड़ी-शाह की रचना उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में की गई।
कश्मीरी साहित्य का आधुनिक काल 20वीं शताब्दी के प्रारंभ से शुरू हुआ। महजुर ने पश्चिमी विचार एवं साहित्य तथा उत्तर भारत की अन्य आधुनिक भाषाओं में हुए विकास को समेटते हुए रचनाएं कीं। अब्दुल अहद आजाद, दयाराम गंजू, जिंदा कौल, गुलाम हसन बेग ‘आरिफ’ आधुनिक युग के कुछ प्रसिद्ध कवि हैं। 1950 के दशक के दौरान, बड़ी संख्या में सुशिक्षित युवा कश्मीरी लेखक के रूप में स्थापित हुए, जिन्होंने कविता एवं पद्यांश दोनों में लिखना प्रारंभ किया और आधुनिक कश्मीरी साहित्य को समृद्ध किया। इनमें प्रमुख नाम हैं दीनांथ नदीम, रहमान राही, गुलाम नबी फिराक, अली मुहम्मद शाहबाज, मुश्ताक कश्मीरी, अमीन कामिल, अली मोहम्मद लोन, अख्तर मोहियुद्दीन, सोमनाथ जुत्शी, मुजफ्फर आजिम, और सर्वानंद कौल ‘प्रेमी’। बाद के लेखकों में हरिकृष्ण कौल, मजरूह राशिद, रतनलाल शांत, हृदय कौल भारती, रफीक राज, तारिक शहराज, शफी शौक, गजीर जहांगीर,एमएच जाफर,शहनाज राशिद,शबीर अहमद शाबिर निसार आजम, जावेद अनवर,शबीर मगामी और मोती लाल केमू ने ख्याति प्राप्त की। आधुनिक कवियों गुलाम अहमद महजूर, अब्दुल अहद आजाद और जिंदा कौल प्रमुख हैं।
जम्मू-कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी द्वारा प्रकाशित सिराजा; कश्मीर विश्वविद्यालय के कश्मीरी विभाग द्वारा प्रकाशित अगहर; नेब अंतरराष्ट्रीय कश्मीरी पत्रिका, वाख; और कोशुर समाचार अग्रणी प्रकाशन हैं जो समकालीन कश्मीरी साहित्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
कश्मीरी लिपि मुद्रण की दृष्टि से कठिन मानी जाती है। यही वजह है कि इस भाषा की रचनाओं का संसार सीमित है।
कोंकणी
कोंकणी साहित्य की प्राचीन मौलिक धरोहर का अधिकांश भाग नष्ट हो चुका है। भाषा की दृष्टि से यह मराठी और हिंदी के करीब है तथा देवनागरी इसकी लिपि है। 16वीं शताब्दी में कृष्णदास शर्मा द्वारा मराठी से किया गया महाभारत और रामायण की कहानियों का अनुवाद रोमन लिपि में मौजूद है।
17वीं शताब्दी में बहुत-सारा ईसाई साहित्य कोंकणी में लिखा गया। लेखकों में प्रमुख हैं फादर जोआचिम दे मिरांडा, जिन्होंने सबसे लम्बी कोंकणी सूक्ति लिखी, रिगलो जेसु मोलांटम और डोना बरेटो, जिन्होंने पेपिएंस जेराथिनी लिखी।
20वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ आधुनिक युग शेनाॅय गोएम्बब, बी.बोरकर (पैमजोनम), एमण्सरदेसाई (उपन्यासकार एवं कवि), रेगिनाल्डो फर्नांडिस और वी.जे.पी. सकथाना (दोनों उपन्यासकार) की कृतियों का युग रहा।
मैथिली
मैथिली भाषा, भारत के पूर्वी क्षेत्र और नेपाल के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में बोली जागे वाली, अवहथ्या, मैथिली अपभ्रंश, से उत्पन्न हुई जबकि मैथिली अपभ्रंश का उद्गम अवधी अपभ्रंश से हुआ। परम्परागत रूप से मैथिली भाषा मैथिली लिपि (इसे तिरहुता, मिथिलक्षर भी कहा जाता है) और कैथी लिपि में लिखी गई।
मिथिला के शिक्षितों एवं बौद्धिक वर्गें ने अपने साहित्यिक कार्य के लिए संस्कृत का प्रयोग किया और मैथिली आम जन की भाषा थी। वर्णरत्नाकर मैथिली में किया गया प्रथम कार्य था जिसे 1324 के लगभग ज्योतिरिश्वर ठाकुर ने किया। यह किसी भी उत्तरी भारतीय भाषा में पाया जागे वाला प्रथम गद्य नमूना है।
प्रारंभिक मैथिली साहित्य (700-1350 ईस्वी) में श्लोक, गीत और दोहा शामिल थे। श्रपद (700-780 ईस्वी), चंद्ररमानी दात्ता जिनकी मिथिला भाषा रामायण और महाभारत पूरी तरह से मिथिलक्षर लिपि में लिखी पाई गई। उमापति एवं शंकरदातान प्रमुख साहित्यिक व्यक्तित्व थे।
मध्य मैथिली साहित्य (1350-1830 ईस्वी) में थिएटर मंचन की कृतियों का प्रभुत्व रहा। प्रमुख मैथिली लेखकों में विद्यापति, श्रीमंत शंकरदेव, गोविंददास, विष्णुपुरी, कामसनारायण, महेश ठाकुर, कर्ण जयनंद, कान्हा रामदास, नंदीपति, लालकवि, मानाबौद्धा, साहेब रामदास, बुद्धिलाल और रत्नपानी हैं। मैथिली के उल्लेखनीय एवं बेहद प्रसिद्ध साहित्यिक व्यक्तित्व कवि विद्यापति (1350-1450) हैं, जिन्होंने मैथिली में लेखन की प्रथा प्रारंभ की। उन्होंने मैथिली में हजारों अमर गीतों का सृजन किया जिनका विषय राधा-कृष्ण की प्रेम गाथा, शिव एवं पार्वती का घरेलू जीवन और मोरांग के श्रमिकों एवं उनके परिवारों की दयनीय दशा का चित्रण था। इसके अतिरिक्त उन्होंने संस्कृत में कई लेख लिखे।
मैथिली में कई भक्ति गीत वैष्णव संतों द्वारा लिखे गए। उमापति उपाध्याय ने परिजातहरण नामक नाटक मैथिली में लिखा। पेशेवर नाटक मंडलियों, अधिकतर दलित वग्र से आते हैं जिन्हें किर्तनीया के तौर पर जागा जाता है, ने समारोहों एवं राजा के दरबारों में इस नाटक का मंचन करना प्रारंभ कर दिया। लोचन (1575-1660 ईस्वी) ने रागतरंगिणी लिखा, जो मिथिला में व्याप्त राग, ताल एवं गीतों का वर्णन करने वाला संगीत के विज्ञान पर एक महत्वपूर्ण लेख है।
16वीं-17वीं शताब्दियों में, मैथिली बेहद प्रसिद्ध हो गई। माला वंश की मातृभाषा मैथिली थी, जो व्यापक रूप से पूरे नेपाल में फैल गई। इस दौरान तकरीबन 70 मैथिली नाटकों का सृजन किया गया।
औपनिवेशिक काल के दौरान मैथिली के प्रयोग ने बेहद कम विकास किया, क्योंकि जमींदारी राज का भाषा के प्रति बेहद बेपरवाह गजरिया था। मैथिली भाषा के प्रयोग को हालांकि, एमण्एमण् परमेश्वर मिश्रा, चंदा झा, मुंशी रघुनंदनदास और अन्य लोगों का प्रोत्साहन एवं सहयोग प्राप्त हुआ।
आधुनिक युग में मैथिली का विकास विभिन्न पत्रिकाओं एवं जर्नल्स के कारण हुआ। मैथिली हिटा साधना (1905), मिथिला मोड (1906), और मिथिला मिहिर (1908) के प्रकाशन ने लेखकों को प्रोत्साहित किया। 1910 में प्रथम सामाजिक संगठन मैथिल महासभा ने मिथिला एवं मैथिली के विकास के लिए कार्य करना प्रारंभ किया। इसने मैथिली को प्रादेशिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए अभियान शुरू किया। कलकत्ता विश्वविद्यालय ने 1917 में मैथिली को मान्यता प्रदान की और अन्य विश्वविद्यालयों ने इसका अनुसरण किया। बाबू भोलादास ने मैथिली व्याकरण लिखा, और गद्यकुसुमंजलि और मैथिली जर्नल का संपादन किया।
वर्ष 1965 में, साहित्य अकादमी द्वारा आधिकारिक रूप से मैथिली को स्वीकार किया गया( वर्ष 2003 में मैथिली को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में एक मुख्य भारतीय भाषा के रूप में मान्यता प्रदान की गई। अब मैथिली भारत की 22 भारतीय भाषाओं में से एक है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…