हिंदी माध्यम नोट्स
नेहरू मास्टर तारा समझौता master tara and nehru agreement in hindi PACT मास्टर तारा सिंह
master tara and nehru agreement in hindi PACT मास्टर तारा सिंह ?
नेहरू-मास्टर तारा समझौता
इस फॉर्मूले के बाद जवाहरलाल नेहरू और मास्टर तारा सिंह के बीच एक समझौता हुआ। इस समझौते के अनुसार अकाली दल कांग्रेस में शामिल हो गया। अकाली दल की कार्य समिति ने 30 सितंबर 1956 को घोषणा कीः ‘‘दल पंथियों के शैक्षिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक हितों की रक्षा और उनकी उन्नति पर ध्यान देगा।‘‘ मगर ग्रह फार्मूला भी शहरी पंजाबी हिंदुओं की उम्मीदों में खरा नहीं उतरा, बल्कि उन्हें लगा कि इससे उनकी शक्ति, उनका सत्ताधिकार कम हो गया है। पंजाबी हिंदुओं ने गुरुमुखी लिपि में पंजाबी हिंदुओं को पंजाबी की शिक्षा देने का विरोध किया। हालांकि उनका हिंदी बचाओ आंदोलन दिसंबर 1957 तक ठंडा पड़ गया था लेकिन पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने इसके परिणामों को भांप लिया। इसलिए उन्होंने 15 सितंबर 1958 को क्षेत्रीय फार्मूले को लागू ही नहीं किया। सो, मास्टर तारा सिंह ने पंजाबी सूबे की मांग दुबारा उठाई। उधर, बंबई के महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों में विभाजन ने इस मांग पर वैधता की मुहर लगा दी।
अभ्यास 3
नेहरू और मास्टर तारा समझौता संतोषजनक क्यों नहीं था? अपने सहपाठियों के साथ इस पर चर्चा करें और जो निष्कर्ष निकले उन्हें अपनी नोटबक में लिख लें।
बंबई के विभाजन के बाद पंजाब ही एक अकेला द्विभाषी राज्य बच गया था। इस नए समर्थन से उत्साहित होकर अकाली दल ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का चुनाव ‘पंजाबी सूबे‘ के मुद्दे पर लड़ा। इस चुनाव में उसने 139 सीटों में 132 सीटें जीतीं। 22 मई, 1960 को अमृतसर में एक पंजाबी सूबा बुलाया गया जिसमें एक अलग पंजाबी भाषी राज्य की मांग की गई। इस मांग को अब स्वतंत्र पार्टी, संयुक्त समाजवादी पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, सैफुद्दीन किचलू और पंडित सुंदर लाल जैसे सभी स्वतंत्रता. सेनानियों ने समर्थन दिया। फिर मई 1960 में अलग पंजाबी राज्य के लिए एक आंदोलन छेड़ दिया गया। मास्टर तारां सिंह की गिरफ्तारी के बाद अकाली दल के उपाध्यक्ष फतेह सिंह ने नेतृत्व संभाल लिया। उन्होंने दावे से कहा कि वे एक पंजाबी भाषी राज्य चाहते हैं। सिखों में ज्यादातर हिंदू हैं या नहीं यह उनकी प्राथमिकता नहीं। इसके फलस्वरूप राजनीतिक समीकरण बदल गए। साम्यवादी अकालियों की मांग का समर्थन करने लगे। इधर, कांग्रेस ने ग्रामीण सिखों में अपना जनाधार बढ़ा लिया था, उधर, जनसंघ भी शहरी हिंदुओं और शहरी सिखों के छोटे तबके में लोकप्रिय हो गया।
बॉक्स 12.06
पॉल ब्रास जैसे राजनीतिशास्त्री के अनुसार पंजाब में अभिजात वर्ग के उदय की प्रक्रिया ने ही पंजाब राज्य के आंदोलन को गति दी। इस दौर में अकाली दल में विभाजन भी हुआ। भारतीय राष्ट्र राज्य की सीमाओं के अंदर गठन पर मास्टर तारा सिंह और संत फतेह सिंह का नजरिया सही सिद्ध हुआ। 1962 में चीन के आक्रमण कर देने पर संत फतेह सिंह ने आंदोलन को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया। मगर 1964 में कैरों और पंडित नेहरू की मृत्यु हो जाने के बाद आंदोलन फिर से उभरा। लाल बहादुर शास्त्री की सरकार ने पंजाबी सूबे की मांग का विरोध करना जारी रखा। शास्त्री सरकार से वार्ता असफल हो जाने के बाद संत फतेह सिंह ने 16 अगस्त 1965 को अकाल तख्त से घोषणा की कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं की गई तो वे 10 सितंबर से आमरण अनशन करेंगे। उन्होंने इस मुद्दे को यह कहकर भावनात्मक बनाया कि अगर वह इस अनशन में 15 दिन तक जीवित रह गए तो वे पंद्रहवें दिन आत्मदाह कर लेंगे। मगर 5 सितंबर 1965 को भारत और पाक युद्ध छिड़ गया जिसमें सिखों ने अपने शौर्य और वीरता का एक बार फिर परिचय दिया।
भारत-पाक में युद्ध विराम होने के बाद केन्द्र सरकार ने पंजाबी सूबे की मांग पर विचार करने के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी गठित की। वाई.बी. चहाण, श्रीमती इंदिरा गांधी और महावीर त्यागी इस कमेटी के सदस्य नियुक्त किए गए। इस कमेटी की सहायता के लिए लोकसभा के अध्यक्ष सरदार हकम सिंह की अध्यक्षता में एक 22 सदस्यीय संसदीय समिति भी बनाई गई। जनवरी 1966 में शास्त्री की मृत्यु के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी ने कांग्रेस पार्टी की कार्य समिति की 9 मार्च 1966 को एक बैठक बुलाई। इस बैठक में एक प्रस्ताव पास हुआ जिसमें सरकार से एक पृथक पंजाबी भाषी राज्य बनाने का निवेदन किया गया था। इसके बाद 18 मार्च 1966 में संसदीय समिति ने भी इसी तर्ज पर प्रस्ताव पास किया। इन घटनाओं के बाद केन्द्र सरकार ने संसद में पंजाब राज्य के पुनर्गठन के लिए एक विधेयक रखा और न्यामूर्मि जे.सी. शाह की अध्यक्षता में पंजाब सीमा निर्धारण आयोग गठित किया। इस आयोग के अन्य सदस्य सुनिल दत्त और एम.एम. फिलिप थे। आखिरकार पहली नवंबर 1966 को राज्य को पंजाब और हरियाणा में विभाजित कर दिया गया। नवगठित राज्य में पूर्ववर्ती पंजाब राज्य का 41 प्रतिशत भाग और 55 प्रतिशत जनसंख्या थी। अब इसमें बहुसंख्य जनसंख्या सिख थी। भारत सरकार ने चंडीगढ़ को केन्द्रशासित बनाकर उसके साथ-साथ भाखड़ा और ब्यास बांध परियोजनाओं पर अपना नियंत्रण बनाए रखा। बहरहाल, अकाली नेतृत्व की अधिकांश आपत्तियां दूर हो गईं और अब ग्यारह जिलों में आठ में सिख बहुसंख्यक थे।
मगर भाषायी जातीयता के आधार पर पंजाब के पुनर्गठन से कई समस्याएं अनसुलझी रह गईं। जैसे, इस प्रक्रिया में कई पंजाबी भाषी क्षेत्र छुट गए। इसके अलावा इसने चंडीगढ़, नदियों के पानी के बंटवारे अबोहर और फजिलका जैसे विवादों को जन्म दिया जिनके चलते 1980 के बाद कई विकराल समस्याएं उठ खड़ी हुईं जो अभी तक नहीं सुलझ पाई हैं। पंजाब के उदाहरण से हम यहां यह कह सकते हैं कि भारत में भाषायी जातीयता को धार्मिक, जाति और अन्य जातीयताओं के पूरक के रूप में प्रयोग किया गया है। इसने पुनर्गठन के एकनिष्ठ सिद्धांत के रूप में यहां कभी कार्य नहीं किया है।
भारत में अन्य भाषायी जातीयता आंदोलन
सुरेन्द्र गोपाल के अनुसार दसवीं सदी तक भारत में बुनियादी राष्ट्रीयताएं विकसित हो चुकी थीं । जैसेः असमी, ओड़िया, आंध्रा, पंजाबी, गुजराती, मराठा, बंगाली, कन्नडिगा, तमिल, मलयाली इत्यादि । वे कहते हैं कि ये राष्ट्रीयताएं उत्तर में यमुना-गंगा दोआब और मध्य भारत में बसी थीं। ये राष्ट्रीयताएं अपने प्रादेशिक राज्यक्षेत्रों के अनुरूप शक्तिशाली भाषाई-जातीय समूह के रूप में उभरी। गंगा-यमुना दोआब को आर्यावर्त कहा जाता था, जहां में बृज, अवधि, भोजपुरी, मैथिली और छत्तीसगढ़ी भाषाएं विकसित हुईं। राजनीतिक दृष्टि से आर्यावर्त का हमेशा महत्वपूर्ण स्थान रहा। मगर इसने एक शक्तिशाली जातीय-भाषाई पहचान का स्वरूप कभी धारण नहीं किया। भाषा आंदोलन सिर नहीं उठा पाया क्योंकि स्थानीय भाषाओं को शाही संरक्षण नहीं मिला। कबीर, मलिक मोहम्मद जायसी, विद्यापति तुलसी और सूरदास जैसे संतों ने सूफी-संत परंपरा बना कर स्थानीय भाषाओं को जीवंत बनाए रखा। जातीय-भाषाई राष्ट्रीयताएं मुगल सम्राट के शासनकाल में फूली-फलीं। अकबर ने अपने साम्राज्य की सीमाएं अजमेर, लाहौर, गुजरात, बिहार, बंगाल इत्यादि प्रांतों में बढ़ाई। इस काल में राजपूत और जाट जातीय-भाषाई समूहों ने अपनी पहचान बनाई। उधर, शिवाजी के नेतृत्व में मराठा पहचान भारतीय प्रायद्वीप में मुगलों के आक्रमण के प्रत्युत्तर में विकसित हुई। इसी प्रकार कन्नड़ और तेलुगु पहचान बीजापुर और गोलकुंड राज्यों के अधिग्रहण के समय उभरी। पंजाब, बंगाल और मैसूर में शक्तिशाली जाती-भाषाई राष्ट्रीयताएं 18वीं सदी के अंत में विकसित हुई। मुख्यतःइसी कारण से ब्रिटिशकालीन भारत में दो सबसे शक्तिशाली आंदोलन बंगाल और पंजाब में हए। ये दोनों आंदोलनों के मूल में क्षेत्रीय आकांक्षाएं थीं। व्यापक स्वीकृति और वैधता पाने के लिए इन आंदोलनों ने राष्ट्रीय व स्वदेशी जामा पहना। पंजाबी जाटों को अंग्रेजों से लड़ने के लिए प्रेरित करने के लिए “पगड़ी संभालो जट्टा‘‘ जैसा नारा भाषाई एकात्मत्ता का प्रतीक था। इस भाषाई-जातीय एकात्मता ने हिंदू-मुस्लिम और सिखों को अपने आंचल में समेट लिया। पंजाबी राष्ट्रीयता के चलते ही अमेरिका में गदर पार्टी जैसा शक्तिशाली संगठन बना। इस काल में एक पृथक पंजाबी राष्ट्र राज्य की मांग कुछ समय तक उठी। इसी दौर में यूनियनिस्ट पार्टी ने ब्रिटिश सरकार की सहायता से पंजाब में अपनी सरकार बनाई। सिख जातीयता ने अपनी पहचान अकाली दल के नेतृत्व में बनाई। उधर, मुस्लिम जातीयता का विकास उर्दू के माध्यम से हुआ, जिसे धार्मिक और राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने के लिए संपर्क भाषा के रूप में प्रयोग किया गया।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…