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तमाशा लोक नृत्य कहाँ का लोक नाट्यकला है ? तमाशा लोकनाट्य की शुरुआत क्या है Tamasha in hindi
Tamasha in hindi तमाशा लोक नृत्य कहाँ का लोक नाट्यकला है ? तमाशा लोकनाट्य की शुरुआत क्या है ?
तमाशा
हास्य-रस तथा कामोत्तेजक सामग्रियों के लिए प्रसिद्ध, तमाशा महाराष्ट्र क्षेत्र की एक लोक नाट्यकला है। इसकी अनोखी विशेषता महिला अभिनेत्रियों की उपस्थिति है जो पुरुषों की भूमिकाएं भी निभाती हैं। तमाशा प्रस्तुतियों में, सामान्यतः, लावणी गीतों का समावेश होता है।
विल्लू पटू
‘विल्लू-पटू‘ गीत का अर्थ है-धनुर्गीत। यह दक्षिण में लोकप्रिय संगीत नाटयकला का एक रूप है. जिसमें रामायण की कहानियों को धनुष के आकार के एक वाद्य-यंत्र की सहायता से वर्णित किया जाता हैं।
दक्षिण भारत की नाट्यकला
जब उत्तर भारत में संस्कृत शास्त्रीय नाट्यकला का अवसान 8वीं शताब्दी में आरम्भ हो गया, तो दक्षिण भारत मे इसकी लोकप्रियता बढ़ती गयी। दक्षिण भारत की नाट्यकला परम्परा की विशेषता नृत्य पर बल दिया जाना है जबकि उत्तर में संगीत पर बल दिया जाता है। दक्षिण भारत की कुछ लोकप्रिय नाट्यकलाएं निम्नलिखित हैं:
यक्षगान
यह आन्ध्र प्रदेश तथा कर्नाटक में आज तक अस्तित्वमान कदाचित प्राचीनतम नाट्यकला परम्परा है। इसका उद्भव विजयनगर साम्राज्य के राजदरबार में हुआ तथा इसे जक्कुला वारू नामक विशिष्ट समुदाय द्वारा प्रस्तुत किया जाता था।
मूलतः यह एकल कलाकार द्वारा अभिनीत तथा व्यापक रूप से वर्णनात्मक एक नृत्य-नाटिका थी। बाद की विधाओं में और भी रूपांतर होते गए तथा यह एक विशिष्ट नृत्य-नाटिका बन गयी। यक्षगान की कुछ लोकप्रिय विधाओं में महाराष्ट्र में ललिता, गुजरात में भवाई तथा नेपाल में गन्धर्व गान सम्मिलित हैं।
लोकप्रिय यक्षगान नाटक
ओबेय्या मंत्री रचित गरुड़चालम, सृनिद्धा रचित कृष्ण-हीरामणि तथा रुद्र कवि रचित सुग्रीव विजयम।
बुर्रा कथा
बुर्रा कथा आन्ध्र प्रदेश की एक अन्य लोकप्रिय नृत्य-नाट्य परम्परा है। इसका नाम प्रस्तुति के दौरान व्यापक रूप से प्रयुक्त एक ताल वाद्य बुर्रा के नाम पर रखा गया है। इसकी प्रस्तुति में एक मुख्य कलाकार या कथा वाचक तथा दो वन्था या सह-कलाकार होते हैं जो लय प्रदान करते हैं तथा सह-गान में भाग लेते हैं।
पगाती वेशालू
यह तेलंगाना क्षेत्र तथा आंध्र प्रदेश में लोकप्रिय लोक परम्परा है। यह, मुख्यतः, वेशम (छद्म रूप) नामक एक मुख्य चरित्र तथा अन्य सह-चरित्रों के इर्द-गिर्द बुना गया एक भूमिका अभिनीत नाटक होता है।
बयलता
यह स्थानीय देवी-देवता की आराधना के दौरान प्रस्तुत की जाने वाली कर्नाटक की एक मुक्ताकाश नाट्यकला परम्परा है। बयलता के, सामान्यतः, पांच प्रकार होते है – दसारत, सन्नाता, डोड्डाटा, पारिजात तथा यक्षगान हैं। कहानियां राधा-कृष्ण के प्रेम पर आधारित होती हैं। पारिजात तथा यक्षगान का वर्णन एकल सूत्रधार द्वारा किया जाता है, जबकि अन्य तीन विधाओं को सहगान के रूप में तीन-चार व्यक्तियों के द्वारा एक विदूषक की सहायता से प्रस्तुत किया जाता है।
ताल-मड्डाले
ताल एक प्रकार का करताल तथा मड्डाले एक प्रकार का ढोल होता है। इसे, सामान्यतः, यक्षगान का पूर्वानुगामी समझा जाता है। यह नाटक बैठी हुई अवस्था में तथा बिना किसी पोशाक, नृत्य तथा अभिनय के प्रस्तुत किया जाता है। इसमें कथा वर्णन एक भागवत के द्वारा किया जाता है जिसे अर्थधारियों के एक समूह का सहयोग मिलता है।
थेय्यम
थेय्यम कर्नाटक की आनुष्ठानिक भूत नाट्यकलाएँ हैं। इसे मृत पूर्वजों की आत्माओं के सम्मान में स्थानीय में प्रस्तुत किया जाता है। ग्राम थेय्यम को ओट्टा कोलम के नाम से भी जाना जाता है, जिसकी परम्परा का ईसा पूर्व 500वीं शताब्दी के संगम साहित्य में भी है।
कृष्णा अट्टम
यह 17वीं शताब्दी के मध्य में उत्पन्न कर्नाटक की एक रंगारंग नृत्य-नाट्य परम्परा है। कृष्ण-गीथी के कृतियों पर आधारित यह आठ दिनों तक चलने वाला एक आनंदोत्सव है। इसमें लगातार आठ रातों तक श्री कृष्ण की जीत लीला के वर्णन की प्रस्तुति होती है।
कुरुवांजी
लगभग 300 वर्ष पूर्व उत्पन्न, कुरुवांजी की मुख्य विशेषता तमिल कविता तथा गीत हैं। प्रथम कुरुवांजी की रचना थिरुकुटराजप्पा कवियार के द्वारा की गयी थी। आधारभूत केन्द्रीय भाव प्रेम-दग्ध नायिका के इर्द-गिर्द घूमते हैं। कुरुवांजी का शाब्दिक अर्थ है- ‘भविष्य-वक्ता‘ जो नायिका के भाग्य की भविष्यवाणी करता है। कुरुवांजी को एक नृत्य-गाथागीत के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, इसकी मुख्य नृत्य विधा भरतनाट्यम होती है।
अभ्यास प्रश्न – प्रारंभिक परीक्षा
1. निम्नलिखित में से कौन-सा सुमेलित नहीं है?
(a) मृच्छकटिकम् – शूद्रक (b) मालवकाग्निमित्रम् – कालिदास
(c) मुद्राराक्षस – विशाखदत्त (d) रत्नावली – अश्वघोष
2. शास्त्रीय संस्कृत नाट्यकला के संबंध में निम्नलिखित पर विचार कीजिए?
(i) वे सदैव सुखांत होते थे।
(ii) उनका नायक पुरुष होता था।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से सही है?
(a) केवल (i) (b) केवल (ii)
(c) (i) और (ii) दोनों (d) न तो (i), न ही (ii)
3. निम्नलिखित में से कौन-सा एक संस्कृत नाट्यकला के अवसान का कारण है?
(a) कविता की ओर झुकाव।
(b) धार्मिक क्षेत्र तक ही संस्कृत का सीमित होना।
(c) मुस्लिम शासकों का आगमन।
(d) उपर्युक्त सभी।
4. भारत में नाट्यकला की अब तक प्रचलित सर्वाधिक प्राचीन विधा कौन-सी है?
(a) कोडियट्टम (b) यक्षगान
(c) नौटंकी (d) तमाशा
5. निम्नलिखित में से कौन-सा सुमेलित नहीं है?
(a) अंकिया नट- असम (b) भूत – कर्नाटक
(c) भवई – राजस्थान (d) जात्रा – पश्चिम बंगाल
6. तमाशा निम्नलिखित की लोक नाट्यकला हैः
(a) मध्य प्रेदश (b) उत्तर प्रदेश
(c) जम्मू एवं कश्मीर (d) महाराष्ट्र
7. निम्नलिखित में से किस नाट्यकला का उल्लेख संगम साहित्य में किया गया है?
(a) बुर्रा कथा (b) थेय्यम
(c) बयलता (d) यक्षगान
8. निम्नलिखित में से किस नाट्यकला विधा में पुरुष भूमिकाएँ भी महिलाओं द्वारा निभायी जाती हैं?
(a) तमाशा (b) नौटंकी
(c) थेय्यम (d) स्वांग
उत्तरः
1. ;d) 2. ;c) 3. ;d) 4. ;a)
5. ;c) 6. ;d) 7. ;b) 8. ;a)
पिछले वर्षों के प्रश्न – मुख्य परीक्षा
2011
1. निम्नलिखित पारंपरिक नृत्यकला रूपों में से किसी पाँच पर एक वाक्य लिखिएः
(a) भाण्ड पाथर (b) स्वांग
(c) माच (d) भाओना
(e) मुडियेटु (f) दशावतार
1995, 2005, 2007
2. यक्षगान के संबंध में लिखिए।
1987
3. निम्नलिखित लोक नाट्यकलाएँ कहाँ उत्पन्न हुई?
(a) जात्रा (b) तमाशा
(c) कोडियट्टम (d) भवाई
(e) नौटंकी
1985
4. भारत में नाट्यकला को विकसित करने के क्या प्रयास हुए हैं? इस कला के विकास से संबंधित किन्हीं दो महत्वपूर्ण व्यक्तियों के नाम बताइए।
1982
5. घासीराम कोतवाल – नाटक किसने लिखा?
अभ्यास प्रश्न – मुख्य परीक्षा
1. संस्कृत नाटक प्राचीन काल में पारंपरिक और धार्मिक परंपराओं का एक समामेलन बन गया। व्याख्या कीजिए।
2. संस्कृत नाट्यकला के अवसान के क्या कारण थे?
3. भारत की अब तक प्रचलित प्राचीनतम नाट्यकला पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
4. भारत की किन्हीं पांच परापरागत नाट्यकलाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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