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Categories: sociology

स्वैकरैशनलिटैट और वैर्टरेशनलिटैट क्या है Swaracationalitat and varietationalitat in hindi

Swaracationalitat and varietationalitat in hindi तर्कसंगति के प्रकारः स्वैकरैशनलिटैट और वैर्टरेशनलिटैट
ऊपर दिए गए उपभागों को पढ़ने के बाद आपने यह निष्कर्ष निकाला होगा कि तर्कसंगति केवल आधुनिक पूंजीवादी समाज की विशेषता है। क्या इसका यह मतलब है कि गैर-पूंजीवादी स्वरूप के सामाजिक संगठन अतर्कसंगत हैं। समाजशास्त्र के विद्यार्थी होने के नाते आपको यह मालूम ही है कि समाज का इसके सदस्यों के लिए एक विशेष लक्ष्य और संगतिकरण होता है। हर समाज के विकास के पीछे अपना एक तर्क होता है, इसकी अपनी क्रम व्यवस्था और सामाजिक संबंध की व्यवस्था होती हैं। इस अर्थ में, सभी समाजों की, चाहे वे पूंजीवादी हों या गैर-पूंजीवादी हों, उनकी अपनी तर्कसंगति होती है। कई प्रकार के सामाजिक स्वरूपों और प्रतिमानों का अध्ययन करने के बाद वेबर ने तर्कसंगति के दो विशिष्ट प्रकार प्रस्तुत किए। इनमें पहली स्वैकरैशनलिटैट या लक्ष्य पर आधारित तर्कसंगति है और दूसरी वैटरैशनलिटैट या मूल्य पर आधारित तर्कसंगति।

इनमें पहली आधुनिक, पूंजीवादी समाज की विशेषता है और इसका आधार लक्ष्योन्मुख सामाजिक क्रिया है, जिसके बारे में आपने पहले ही पढ़ा है। स्वैकरैशनलिटैट का संबंध उस तार्किकता से है जो साधन और साध्य/ लक्ष्य पर केंद्रित है। अपने अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तर्क और तार्किक चिंतन आवश्यक है।

इसके विपरीत “वैर्टरैशनलिटैट‘‘ पारम्परिक सामाजिक स्वरूप की विशेषता है। इसमें नैतिक मूल्यों का महत्व है और यह व्यक्ति के मनोवेगों, भावनाओं और विश्वासों को प्रभावित करती है। इसमें व्यक्तिगत क्रियाओं के समाज द्वारा अनुमोदन को महत्वपूर्ण माना जाता है। वेबर के अनुसार परम्परागत समाजों में सामाजिक संगठन के तर्कसंगत तत्व तो थे लेकिन वे इन्हें नैतिक मूल्यों या प्रतिमानों के रूप में स्वीकार करते थे।

चित्र: 17.1 समाज और तर्कसंगति
इस संबंध में चित्र 17.1 समाज और तर्कसंगति देखिये और एक उदाहरण लीजिए। आप परम्परागत (पूर्व पूंजीवाद) समाज में कृषि के बारे में विचार कीजिए। खेत में कब हल चलाया जाए, कब बीज बोया जाए या कब फसल काटी जाए, ये सब बातें मौसम, तापमान या मिट्टी में नमी की मात्रा आदि तर्कसंगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निश्चित की जाती थी। लेकिन इसके साथ ही इन अवसरों और क्रियाओं का नैतिक महत्व भी था। इन अवसरों के लिए उत्सवों और अनुष्ठानों का विधान था। इसके विपरीत आधुनिक कारखाने (पूंजीवाद व्यवस्था) में साधन और लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए वहां के सभी क्रियाकलाप यांत्रिक रूप से उत्पाद में अधिक से अधिक वृद्धि करने के लिए संचालित होते हैं। ऐसा लगता है कि समय के अंतराल के साथ देश-विदेश में उपभोगितावाद के चलते पूंजीवाद व्यवस्था में भी उत्सवों और अनुष्ठानों का प्रवेश हो गया है।

समाज और तर्कसंगति के बिंदु को अधिक आत्मसात् करने के लिये सोचिये और करिए 2 को पूरा करें।
सोचिए और करिए 2
उपभाग 17.3.3 को एक बार फिर ध्यान से पढ़िए। अब आप ऐतिहासिक सामाजिक प्रक्रियाओं की तर्कसंगति का अनुसरण करते हुए अपने समाज की तर्कसंगति के बारे में अपने प्रेक्षण के आधार पर विवरण दीजिए। यदि संभव हो तो अपनी टिप्पणी की तुलना अपर्ने अध्ययन केंद्र के अन्य विद्यार्थियों की टिप्पणियों से कीजिए।

समाजशास्त्रीय शोध में तर्कसंगतिः मूल्य-विमुक्त समाजशास्त्र
यह पहले भी उल्लेख किया जा चुका है कि वेबर के अध्ययन में तर्कसंगति पर दो भिन्न-भिन्न लेकिन परस्पर संबद्ध दृष्टियों से विचार हुआ है, यानी एक तो ऐतिहासिक दृष्टि से तत्कालीन समाज में तर्कसंगतिकरण का आगमन हुआ और दूसरे तर्क का एक प्रमुख पद्धति तथा समाज की जांच की एक पद्धति के रूप में आगमन हुआ।

वेबर समाजशास्त्र के विकास की मुख्य धारा का एक हिस्सा है और समाजशास्त्र के विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदान करने वालों में उसका प्रमुख स्थान है। अन्य समाजशास्त्रियों के समान वेबर ने अपना समय विभिन्न पद्धतियों पर विचार करने और उनका विस्तार करने तथा इन पद्धतियों का वास्तविक उपयोग करने में लगाया और वह स्वयं भी अपने समय के महत्वपूर्ण, साहसी ऐतिहासिक कार्यों में उलझा रहा।

मैक्स वेबर की मूल चिंता का एक विषय था विज्ञान और मानवीय कार्यों के बीच संबंध । उसने समाजशास्त्र को सामाजिक कार्य के व्यापक विज्ञान के रूप में समझा। वेबर की दृष्टि में मानव-जगत की प्रमुख विशेषता तर्कसंगतिकरण है। आधुनिक समाजों की तर्कसंगतिकरण की विशेषता को क्रियाकलापों के रूप में अभिव्यक्त किया गया है जिसमें कार्य अपने लक्ष्य या परिणाम से जुड़े होते हैं। उसने विज्ञान को तार्किकता की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण पक्ष के रूप में भी देखा, जो आज के यूरोपीय समाजों की विशेषता है (आरों 1867ः 1897)। वेबर ने तर्कसंगतिकरण के अंश के रूप में मूल्य-विमुक्त सामाजिक विज्ञान की बात कही जो हमारे समय में भी काफी वाद-विवाद का विषय रहा, चाहे इसका संदर्भ कुछ भिन्न ही क्यों न रहा हो। वेबर विश्व को अधिक तर्कसंगत बनाने के प्रयास से सामाजिक-जांच की तर्कसंगति को अलग करने के मत का दृढ़ समर्थक था। उसके अनुसार समाजशास्त्रियों का व्यक्तिगत मूल्यांकन उनके द्वारा किए गए समाज के अध्ययन के विश्लेषण से अलग रहना चाहिए। वेबर के मूल्य-विमुक्त समाजशास्त्र की मुख्य बातों को संक्षेप में निम्नलिखित प्रकार से बताया जा सकता है।

प) अपने समाज के अध्ययन में समाजशास्त्री की दिलचस्पी मुख्य रूप से मूल्यों के विश्लेषण करने और उसको समझने में होती है, क्योंकि ये समाज के महत्वपूर्ण तत्व हैं। समाजशास्त्री चाहे जिस किसी भी विषय का अध्ययन करे उसे अपने मल्यों को समाज को समझने के मार्ग में रुकावट नहीं बनने देना चाहिए। यह मूल्य-विमुक्त समाजशास्त्र का मूल आधार है।
पप) एक मनुष्य के नाते समाजशास्त्री को मूलतः मूल्यांकन, मूल्यनिर्धारण और अवमूल्यन करना होता है। जहां तक उसका व्यक्तिगत संबंध है उसके लिए मूल्यों के बिना जीना संभव नहीं। जिन मूल्यों के साथ समाजशास्त्र का विकास होता है वे निस्संदेह रूप से वे मूल्य हैं, जिनसे ज्ञान और विज्ञान का विकास होता है, तथा वे निष्पक्ष जांच के योग्य हैं। इस जांच में समाजशास्त्री का मूल्य निर्धारण करने या अवमूल्यन करने का अपना अनुभव ही आधार सामग्री होता है जो समाजशास्त्री के अध्ययन की सार्थकता और प्रासंगिकता को अंतदृष्टि प्रदान करता है।
पपप) मूल्य-विमुक्त सामाजिक विज्ञान के विकास के लिए एक ऐसी संस्था के निर्माण की आवश्यकता है जिसके पास विश्वसनीय और सुनिश्चित जानकारी हो। बाद में यह जानकारी किसी आगे के अध्ययन का आधार भी बन सकती है। यह बात ज्ञान की एक शाखा के रूप में केवल समाजशास्त्र के क्षेत्र के अंतर्गत नहीं है। कोई ज्ञान तभी किसी क्रिया का निर्देशक बन सकता है, जबकि ज्ञान की वह शाखा स्वयं में विश्वसनीय हो।

इस संदर्भ में यहां यह उल्लेख कर देना आवश्यक प्रतीत होता है कि वेबर स्वयं एक प्रख्यात समाजशास्त्री होने के साथ-साथ दो विश्व युद्धों के बीच की अवधि में संकटग्रस्त जर्मनी का एक जाना माना राजनीतिज्ञ भी था। आज वेबर को उसके समाजशास्त्रीय और राजनैतिक क्रियाकलापों के कारण याद किया जाता है। उसने ऐसे समय में तर्क के पक्ष का समर्थन किया, जबकि उसे चारों ओर से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। अतः जब वेबर के मूल्य-विमुक्त समाजशास्त्र के प्रतिपादन के संबंध में विचार किया जाए, तब हमें इस उपर्युक्त तथ्य को भी ध्यान में रखना होगा।

आइए, अब बोध प्रश्न 3 को पूरा करें
बोध प्रश्न 3
प) स्वैकरैशनल समाज का वर्णन लगभग तीन पंक्तियों में कीजिए।
पप) वैर्टरैशनल समाज का वर्णन तीन पंक्तियों में कीजिए।
पपप) मूल्य-विमुक्त समाजशास्त्र का चार पंक्तियों में वर्णन कीजिए।

 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 3

प) स्वैकरैशनल समाज एक पूंजीवादी समाज है। यह समाज साधनों और लक्ष्यों की तार्किकता का प्रतिनिधित्व करता है और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रभावशाली साधन के रूप में तर्क का सहारा लेता है।
पप) वैर्टरैशनल समाज पूंजीवाद से पहले का परंपरागत समाज है। इस समाज का संबंध विशेष रूप से नैतिकता से है जो मनोवेगों, मूल्य-निर्णयों को प्रभावित करती है और व्यक्तिगत क्रियाकलापों के सामाजिक अनुमोदन पर बल देती है।

पपप) समाजशास्त्रियों की दिलचस्पी मुख्य रूप से अपने समाज के अध्ययन तथा मूल्यों के विश्लेषण और उनको समझने में होती है, क्योंकि ये किसी भी समाज के अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व हैं। लेकिन जब समाजशास्त्री किसी विषय का अध्ययन करे तो उसे अपने स्वयं के मूल्यों को अपने अध्ययन में रुकावट नहीं बनने देना चाहिए।

शब्दावली
उन्मुक्त श्रम यह ऐसे मजदूरों का श्रम है, जो ठेके पर काम करते हैं तथा अपना रोजगार, नियोक्ता और रोजगार की शर्ते चुनने के लिए स्वतंत्र होते हैं।
तर्क किसी कार्य या विचार की व्याख्या या औचित्य आदि
परिकल्पना ऐसी परस्पर संबंद्ध अवधारणाओं का कथन जिनकी वैधता की जांच की जा सके
सत्ता संस्थागत विधि द्वारा वैध शक्ति

कुछ उपयोगी पुस्तकें
आरों, रेमों, 1967. मेन करंट्स ऑफ सोशियोलॉजिकल थॉट. वाल्यूम 2, पेंगुइन बुक्सः लंदन
थॉम्पसन, के. एंड जे. टनस्टाल, (सम्पादक) 1971. सोशियोलॉकिल पर्सपैक्टिस. पेंगुइन बुक्सः मिडलसेक्स
व्हिम्स्टर, सैम (सम्पादक) 2004. द एजेंशियल वेबरः ए रीडर रटलजः न्यूयॉर्क

संदर्भ ग्रंथ सूची
(अ)
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बेंडिक्स, आर., 1960. मैक्स वेबरः एन इंटेलेक्चुअल पोट्रेट एंकरः न्यूयार्क
कालबर्ग, स्टीफन 1994. मैक्स वेबर कम्पेरिटिव-हिस्टोरिकल सोशियोलजी. द यूनिवर्सिटी आफ शिकागो प्रेस. शिकागो
कसलर, डर्क 1988. एन इंट्रोडक्शन टु हिज लाइफ एण्ड वर्क, फिलिप्पा हर्ड द्वारा अनुवादित. शिकागो युनीवर्सिटी प्रैसः शिकागो
कोलिन्स, कोबल्ड, इंगलिश डिक्शनरी. कोलिन्स पब्लिशर्सः लंदन
कोजर, एल.ए. 1977. मास्टर्स ऑफ सोशियोलॉजिकल थॉटः आइडियाज इन हिस्टोरिकल एंड सोशल कॉन्टेक्स्ट हरकोर्ट प्रेस जोवानोविचः न्यूयार्क
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टर्नर, स्टीफन (सम्पादन) 2000. द केम्ब्रिज कंपेनियन टु वेबर. केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेसः केम्ब्रिज वेबर, एम, 1948. द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म (ट्रांसलेटेड बाय टॉलकॅट पार्सन्स विद ए फार्वर्ड बाय आर. एच.टॉनि) एलेन एंड अनविनः लंदन
वेबर एम. 1949 मैक्स वेबर ऑन द मैथोडोलॉजी ऑफ सोशल साइंस (ट्रांसलेटेड एंड एडिटिड बाय एडवर्ड शिल्स एंड एच. ए. फिच), फ्री प्रेसः गलैन्को
वेबर एम. 1964. द थ्योरी ऑफ सोशल एंड इकोनॉमिकल आर्गेनाइजेशन (ट्रांसलेटेड एंड एडिटिड बाय ए. एम. हैंडरसन एंड टॉलकॅट पार्सन्स), फ्री प्रेसः गलैन्को
वेबर एम. 1971. आइडियल टाइप्स, इन के. थॉम्पसन एंड जे. टन्सटाल(संपादित) सोशियोलॉजिकल परस्पैक्टिव्स, पेंगुइन बुक्सः मिडिलसेक्स, पृभठ 63-67
व्हिम्स्टर, सैम (सम्पादक) 2004. द एजेंशियल वेबरः ए रीडर रटलजः न्यूयॉर्क
वेब्स्टर. एन., 1985. न्यू वेस्टर डिक्शनरी ऑफ इंगलिश लैंगवेज, डिलेयर पब्लिशिंग कंः यू.एस.ए.

(ब) हिन्दी में उपलब्ध कुछ पुस्तकें
सिंह, आर. जी. समाजशास्त्र की मूल अवधारणाएं. मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमीः भोपाल श्रीवास्तव, सुरेन्द्र कुमार, समाजविज्ञान के मूल विचारक. उत्तर प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमीः लखनऊ

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