JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

surplus production in hindi definition meaning अतिरिक्त उत्पादन बेशी , अधिशेष किसे कहते है परिभाषा

अतिरिक्त उत्पादन बेशी , अधिशेष किसे कहते है परिभाषा क्या है ? surplus production in hindi definition meaning ?

उत्पादन प्रणाली
मार्क्स के अनुसार, सामाजिक इतिहास की अवस्थाएं इस बात से फर्क नहीं होती कि मनुष्य ने क्या उत्पादित किया है, अपितु इससे फर्क होती हैं कि उन्होंने जीवन निर्वाह हेतु भौतिक वस्तुओं का उत्पादन कैसे अथवा किन साधनों द्वारा किया है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि ऐतिहासिक अवस्थाएं भौतिक उत्पादन प्रणाली के मूल सिद्धांत पर आधारित एवं विभेदीकृत होती. हैं। दूसरे शब्दों में भौतिक उत्पादन की क्रमिक प्रणाली इतिहास का आधार है। यह भी कहा जा सकता है कि उत्पादन के सम्बन्ध व शक्तियां उत्पादन प्रणाली के दो पक्ष हैं। समाज की उत्पादक शक्तियां प्रकृति पर मानव के नियंत्रण की मात्रा को दर्शाती हैं। उत्पादक शक्तियां जितनी अधिक विकसित होती हैं, उतना ही प्रकृति पर उनका नियंत्रण अधिक होता है। उत्पादन करने के लिए, समाज के सदस्य परस्पर सुनिश्चित सम्बन्धों में बंध जाते हैं। भौतिक वस्तुओं का उत्पादन कैसे होता है, इसी पर उत्पादन के सम्बन्ध आधारित हैं। इन्हीं सामाजिक सम्बन्धों के अंतर्गत उत्पादन होता है। यह कहा जा सकता है कि इतिहास में किसी भी उत्पादन प्रणाली में उत्पादन की शक्तियां तथा उत्पादन के सम्बन्ध अनिवार्य भाग लेते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि उत्पादन की शक्तियां, उत्पादन के सम्बन्धों को निर्धारित करती हैं व दोनों मिलकर उत्पादन प्रणाली को परिभाषित करते हैं। उत्पादन प्रणाली वे सामान्य आर्थिक संस्थाएं हैं अथवा वे विशिष्ट तरीके हैं जिनके अंतर्गत समाज के सदस्य जीवन निर्वाह के साधनों का उत्पादन व वितरण करते हैं। इस अर्थ में, उत्पादन की क्रमिक प्रणाली इतिहास के व्यवस्थित विवरण के आधारभूत तत्व हैं।

 उत्पादन प्रणाली परिभाषा में निर्णायक तत्त्व : अतिरिक्त उत्पादन
उत्पादन प्रणाली के परिभाषा सम्बन्धी मार्क्सवादी विवाद को अलग करके, यह कहा जा सकता है कि उत्पादन प्रणाली की परिभाषा में निर्णायक तत्व यह है कि अतिरिक्त उत्पादन (surplus production) कैसे होता है तथा उसके उपभोग को किस तरह नियंत्रित किया जाता है (बॉटोमोर 1983ः337)। अतिरिक्त उत्पादन का तात्पर्य यहां उस शेष भाग से है, जो कि आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद बचा रहता है। मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली के अंतर्गत अतिरिक्त उत्पादन लाभ का रूप ग्रहण कर लेता है। अतिरिक्त उत्पादन को श्रमिक वर्ग के शोषण द्वारा उत्पादित किया जाता है तथा इसकी बिक्री श्रमिकों के पारिश्रमिक से ऊंची कीमत पर की जाती है। चूंकि अतिरिक्त उत्पादन समाजों को विकसित होने व बढ़ने के योग्य बनाता है इसलिए इस कारक को उत्पादन प्रणाली की परिभाषा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

 उत्पादन प्रणाली में विशिष्ट उत्पादन संबंध
प्रत्येक उत्पादन प्रणाली में विशिष्ट उत्पादन सम्बन्ध होते हैं। ये सम्बन्ध अकस्मात् अथवा स्वाभाविक ही विकसित नहीं हो जाते । सम्पन्न वर्ग अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इन सम्बन्धों को व्यवस्थित रखता है ताकि वह कामगारों से अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त कर सके। आइए एक उदाहरण लें। सामन्तवाद के अंतर्गत उत्पादन सम्बन्धों में सामन्तों का कृषक मजदूरों पर प्रभुत्व बना रहता है। इस तरह वे कृषकों द्वारा पैदा किए अतिरिक्त उत्पादन को हथिया सकते हैं। परन्तु उपरोक्त उत्पादन सम्बन्ध पूंजीवादी व्यवस्था में असफल रहेंगे। अतरू पूंजीवाद में अलग प्रकार के उत्पादन सम्बन्ध विकसित हो जाते हैं तथा इन में पूंजीपति श्रमिकों से अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

उत्पादन प्रणाली की उत्पादन शक्तियों में बदलाव
यहां पर यह समझना आवश्यक है कि उत्पादन शक्तियां तथा उत्पादन सम्बन्ध निश्चित और स्थायी नहीं होते हैं। किसी भी उत्पादन प्रणाली की उत्पादन शक्तियों में परिवर्तन हो सकता है। प्रत्येक समाज में समय के साथ-साथ तकनीकी प्रगति होती रहती है तथा उत्पादन में वृद्धि होती है। आज के पूंजीवादी राष्ट्र लगभग दो सौ से तीन सौ वर्ष पूर्व पूंजीवाद के उद्भव के समय बहुत भिन्न थे। उत्पादन शक्तियों में परिवर्तन होने से ही उत्पादन सम्बन्धों में परिवर्तन हुए हैं। आज के श्रमिक अथवा कामगारों का शोषण पहले के श्रमिकों के शोषण की तुलना में कम माना जा सकता है तथापि मार्क्सवादियों की मान्यता है कि अब भी श्रमिकों का शोषण जारी है। इस मान्यता का आधार यह है कि आधुनिक श्रमिक नई तकनीक द्वारा अपने पूर्ववर्ती श्रमिकों की तुलना में अधिक उत्पादन करते हैं लेकिन वे उसी के अनुरूप अधिक वेतन नहीं पाते हैं।

बोध प्रश्न 3
निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तरों पर निशान लगाइए।
प) मार्क्स के अनुसार, उत्पादन प्रणाली को निम्न में से क्या कहा जा सकता है?
अ) एक आनुभाविक अवधारणा (concept)
ब) एक मनोवैज्ञानिक प्रघटना (phenomenon)
स) एक प्राणीशास्त्रीय तथ्य (fact)
द) एक आर्थिक परिवृत्य (variable)
इ) एक अमूर्त संयोजन (construct)
पप) निम्न में से किसको सही रूप से उत्पादन प्रणाली कहा जा सकता है?
अ) पशुपालन सम्बन्धी
ब) कृषि सम्बन्धी
स) सामन्तवादी
द) जनजातीय
इ) राष्ट्रीय

बोध प्रश्न 3 उत्तर
प) इ
पप) स

उत्पादन प्रणाली के विभिन्न स्वरूप
किसी भी विशिष्ट समाज में एक नियत बिन्दु पर एक से अधिक उत्पादन प्रणाली प्रचलित हो सकती है। परन्तु समाज के सभी स्वरूपों में उत्पादन का एक निर्धारक प्रकार होता है, जो अन्य सभी को प्रस्थिति एवं प्रभाव प्रदान करता है। मार्क्स द्वारा मानवीय समाजों के अध्ययन के दौरान बताए गए उत्पादन प्रणाली के चार स्वरूपों की यहां चर्चा की जाएगी।

 एशियाटिक उत्पादन प्रणाली
एशियाटिक उत्पादन प्रणाली की अवधारणा उत्पादन के एक विशिष्ट मौलिक तरीके वाली है। यह प्राचीन दास उत्पादन प्रणाली एवं सामन्तवादी उत्पादन प्रणाली से भिन्न है। एशियाटिक उत्पादन प्रणाली आदिम समुदायों की विशेषता है, जिसमें भूमि का स्वामित्व सामुदायिक होता है। ये समुदाय आंशिक रूप से नातेदारी सम्बन्धों पर आधारित होते हैं। इन समुदायों की वास्तविक अथवा काल्पनिक एकता की अभिव्यक्ति राज्य शक्ति करती है और यह राज्य शक्ति आवश्यक आर्थिक संसाधनों के प्रयोग को नियंत्रित करती है तथा समुदाय के उत्पादन व श्रम के कुछ हिस्से का प्रत्यक्ष उपभोग करती है। उत्पादन की यह प्रणाली वर्ग-विहीन समाज से वर्ग आधारित समाजों में परिवर्तन का एक संभाव्य है और शायद इस परिवर्तन का यह प्राचीनतम स्वरूप है। इसमें इस परिवर्तन के विरोधाभास निहित होते हैं। अर्थात् इसमें उत्पादन के सामुदायिक सम्बन्धों के साथ राज्य तथा शोषण करने वाले वर्ग के उभरते स्वरूपों का सम्मिश्रण मिलता है।

मार्क्स ने भारत के इतिहास के बारे में कोई व्यवस्थित प्रस्तुति नहीं दी है। उसने तत्कालीन भारतीय प्रश्नों पर अपने विचार अवश्य दिए। ये प्रश्न वे थे, जिन्होंने जनता का ध्यान आकृष्ट कर रखा था। कभी-कभी उसने अपने सामान्य तर्कों को स्पष्ट करने के लिए भारत की विगत तथा वर्तमान दशाओं से उदाहरण भी लिए। परंतु भारतीय समाज और इतिहास की व्याख्या करने के लिए एशियाटिक उत्पादन प्रणाली की अवधारणा अनुपयुक्त है।
कोष्ठक 7.2ः मार्क्स तथा भारतीय समाज
मार्क्स ने भारतीय समाज का गहन अध्ययन नहीं किया है। उसके अनुसार हिन्दुत्व की विचारधारा एक पुरातन समाज की विचारधारा थी। उसे प्राचीन काल के हिन्दू स्वर्ण-युग के बारे में संदेह थे। मार्क्स के अनुसार भारत में ब्रिटिश शासन भी एशियाटिक शोषण व्यवस्था का विस्तार ही था।

प्राचीन उत्पादन प्रणाली
प्राचीन उत्पादन प्रणाली पूंजीवाद से पूर्व की उत्पादन प्रणालियों में से एक है। इस उत्पादन व्यवस्था का आधार दास प्रथा थी। दास का मालिक से सम्बन्ध दास प्रथा का मूल सार माना जाता है। इस उत्पादन प्रणाली में मालिक का दासों पर स्वामित्व का अधिकार होता है तथा वह दास श्रम द्वारा उत्पादित वस्तुओं का उपभोग करता है।

अपनी चर्चा को कृषि से जुड़ी दासता (देखिए कोष्ठक 7.3) तक सीमित रखते हुए देखें तो हमें पता चलता है कि शोषण इस प्रकार से होता है कि दास मालिक की भूमि पर कार्य करता है तो बदले में उसे निर्वाह मिलता है। दास द्वारा किए गए उत्पादन और उपभोग में जो अंतर होता है वही मालिक का लाभ बन जाता है। परन्तु यह प्रायरू भुला दिया जाता है कि इसके परे दास को अपने स्वयं के जनन से वंचित रखा जाता है। किसी भी समाज में दासता का जनन (reproduction) इस बात पर निर्भर करता है कि उस समाज में नए दास प्राप्त करने की उस समाज की क्या क्षमता है। यहां संचय (accumulation) की दर इस बात पर निर्भर करती है कि कितने लोग दास बने हैं न कि दासों की उत्पादकता पर।

समुदाय के अन्य सदस्यों से दास भिन्न होते हैं क्योंकि उन्हें अपनी सन्तान पैदा करने के अधिकार से वंचित रखा जाता है। समाज में ‘‘विदेशी‘‘ के रूप में उनकी प्रस्थिति स्थायी हो जाती है। ‘‘विदेशी‘‘ से लाभ कमाया जाता है। इस व्यवस्था को सावयवी (organic) तथा निरंतर चलने वाली बनाने के लिए जरूरी है कि दासों के अपने आश्रित न हों। प्रत्येक पीढ़ी में पुराने बूढ़े हुए दासों के स्थान पर नए विदेशियों को दास के रूप में लाने के साधन होने चाहिए। इस शोषण के इन दो स्तरों में एक अनिवार्य और गहन संबंध है। यह है कि एक समुदाय से दूसरे समुदाय में व्यक्ति चुराने का संबंध, और दास वर्ग तथा दासों के मालिक वर्गों के बीच शोषण का संबंध ।

दास प्रथा में श्रमशक्ति की वृद्धि वास्तविक जनांकिकीय शक्तियों से मुक्त होती है। यह प्राकृतिक वृद्धि पर आधारित जनांकिकीय वृद्धि पर निर्भर नहीं करती, अपितु विदेशी व्यक्तियों को पकड़ कर लाने के साधनों पर निर्भर करती है। संचय की संभावना दासों की वृद्धि से होती है, जो कि श्रम की उत्पादकता में वृद्धि से मुक्त होती है। शोषण का यह तरीका समाज को जनांकिकीय हेर-फेर करने की अनुमति देता है। साथ ही साथ जन्म दर में परिवर्तन, आयु में हेर-फेर, तथा जीवन अवधि और विशेषतः सक्रिय जीवन अवधि में हेर-फेर भी इस तरीके से संभव होता है।

किसी भी दास उत्पादन प्रणाली के प्रभुत्व की परख दासों की संख्या में नहीं होती, अपितु उस सीमा में होती है, जिस सीमा तक अभिजन (elite) वर्ग अपनी दौलत पाने के लिए दासों पर निर्भर होते हैं।

कोष्ठक 7.3ः कृषि से जुड़ी दासता मार्क्स ने जिस दासवादी उत्पादन प्रणाली के बारे में बताया है वह रोम साम्राज्य के दौरान इटली में प्रचलित थी। 200 ईस्वी के आसपास इस साम्राज्य में पश्चिमी एशिया, मिस्र से मोरक्को तक सारा उत्तरी अफ्रीका तथा ब्रिटेन सहित यूरोप के अधिकतर भाग शामिल थे। इसका क्षेत्र दस लाख पच्चत्तर हजार वर्ग मील था और जनसंख्या छरू करोड़ के लगभग थी। इतने बड़े साम्राज्य में विभिन्न उत्पादन प्रणालियों वाले समाजों का होना स्वाभाविक था। कृषि के क्षेत्र में दास प्रथा ने इटली में ऐसा स्वरूप धारण कर लिया था जैसा कि पहले कभी नहीं हुआ था। कुछ अन्य नगर राज्यों जैसे ऐथेंस में भी दास प्रथा ही प्रमुख उत्पादन प्रणाली थी। इन राज्यों में शासक वर्ग दास श्रम से सम्पदा अर्जित करता था। रोमन साम्राज्य के पश्चिमी भाग में प्राचीन उत्पादन प्रणाली का स्थान सामन्तवादी उत्पादन प्रणाली ने ले लिया था।

 सामन्तवादी उत्पादन प्रणाली
मार्क्स तथा एंजल्स की प्राथमिक रूप से पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली की परिभाषा में रुचि थी। सामन्तवाद पर उनकी कृतियां दोनों की इस रुचि को दर्शाती हैं। साथ ही साथ उनकी कृतियों में सामन्तवाद से पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। सामंतवादी व्यवस्था में श्रम का प्रचलित रूप क्या था और श्रम के उत्पादकों का उपभोग कैसे किया जाता था इस बारे में भी वे चिंतन कर रहे थे। दोनों ने पाया कि सामंती भूपतिं कृषक मजदूरों का ठीक उसी प्रकार शोषण किया करते थे जिस प्रकार पूंजीपति अपने श्रमिकों अथवा ‘‘सर्वहारा‘‘ को शोषित करते हैं। पूंजीपति अतिरिक्त मूल्य कमाते हैं और सामन्तवादी भूपति अपने भूमिहीन कृषकों से भूमि का किराया वसूलते थे।
सोचिए और करिए 2
क्या यह सही है कि भारत के कुछ भागों के कृषक समाज में सामन्तवादी भूपतियों का प्रभुत्व रहा है? यदि हां तो दो पृष्ठों में विवरण दीजिए कि किस प्रकार सामंतवादी युग में कृषि का अधिकार होते हुए भी किसानों को अपने सम्पति के अधिकार से वंचित रहना पड़ा। क्या किसानों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे अपना श्रम अथवा श्रम के उत्पादों को सामन्तवादी भूपतियों को दें? अपने उत्तर की अपने अध्ययन केन्द्र के अन्य विद्यार्थियों के उत्तरों से तुलना कीजिए।

सामन्तवादी व्यवस्था में भूमिहीन किसान वैधानिक रूप से स्वतंत्र नहीं होने के कारण सम्पति के अधिकार से वंचित थे। हाँ, वे भूमिपति की सम्पति का प्रयोग कर सकते थे। वे अपने श्रम अथवा श्रम के उत्पादों को भूपतियों के हाथ देने को मजबूर थे ताकि परिवार का निर्वाह कर सकें और एक किसान की सरल घरेलू अर्थव्यवस्था को चला सकें।

सामन्तवादी समाज को मार्क्स तथा एंजल्स ने प्राचीन विश्व के दास समाज तथा आधुनिक युग के पूंजीपतियों एवं सर्वहाराओं के मध्य एक कड़ी जोड़ने वाली अवस्था माना। सामन्तवादी व्यवस्था के उद्विकास के कारण विनिमय का विकास हुआ है। इसने पूंजीवादी उत्पादन के सम्बन्धों की नींव डाली, जो कि बाद में सामंतवादी व्यवस्था का मुख्य विरोधाभास बन गये और जिनके कारण सामन्तवादी व्यवस्था का अंत हो गया। इस परिवर्तन की प्रक्रिया ने अनेक किसानों को भूमि से खदेड़कर मेहनतकश मजदूर बनने के लिए मजबूर कर दिया। इस तरह पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली का प्रारंभ हुआ।

पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली
पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में उत्पादन के साधन के रूप में पूंजी महत्वपूर्ण होती है। पूंजी के अनेक स्वरूप हो सकते हैं। यह धन के स्वरूप के रूप में हो सकती है अथवा श्रमशक्ति एवं उत्पादन के लिए कच्चे माल के क्रय के लिए ऋण के रूप में हो सकती है। यह भौतिक मशीनरी को खरीदने के लिए धन अथवा ऋण की आवश्यकता भी हो सकती है। पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में पूंजी के विभिन्न स्वरूपों का निजी स्वामित्व पूंजीपति या बुर्जुआ वर्ग के हाथ में होता है। पूंजीपतियों का स्वामित्व इस प्रकार का होता है कि आम जनता का उस स्वामित्व में कोई हिस्सा नहीं होता। इसे पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली की मुख्य विशेषता माना जा सकता है।

पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली की निम्न विशेषताएं होती हैं (देखिए बॉटोमोर 1983ः64)।

अ) वस्तुएं प्रयोग के लिए नहीं अपितु विक्रय के लिए उत्पादित की जाती हैं।
ब) श्रमशक्ति अथवा उपयोगी कार्य करने की क्षमता को बाजार में बेचा व खरीदा जाता है। किसी विशेष समय अथवा अवधि के लिए (समय दर) अथवा किसी विशिष्ट कार्य के लिए (नग दर) श्रमशक्ति का नगद वेतन के बदले में विनिमय किया जाता है। प्राचीन उत्पादन प्रणाली में श्रमिक अपना श्रम देने के लिए बाध्य होते थे। इसके विपरीत, पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में श्रमिक अपने नियोक्ता से एक अनुबंध (contract) करता है।
स) विनिमय के माध्यम से धन का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में बैंकों तथा वित्तीय माध्यमिक संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
द) उत्पादन प्रक्रिया पूंजीपति अथवा उसके प्रबन्धक द्वारा नियंत्रित होती है।
इ) वित्तीय निर्णय पूंजीपति उद्यमी द्वारा नियंत्रित होते हैं।
फ) पूंजीपति व्यक्तिगत रूप से श्रम एवं वित्त नियंत्रण के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।

उत्पादन प्रणाली के रूप में पूंजीवाद सबसे पहले यूरोप में उभरा। पश्चिमी यूरोप में सामन्तवाद से पूंजीवाद में परिवर्तन के विषय में खंड 1 की इकाई 1 में चर्चा की गई है। आप इस चर्चा को पुनरू पढ़िए ताकि आप व्यापारिक पूंजी की वृद्धि, विदेश में व्यापारिक औपनिवेशिकीकरण का दुबारा स्मरण कर सकें। इस क्रांति में प्रौद्योगिकी की तीव्र वृद्धि हुई और इसके साथ-साथ पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में भी प्रगति हुई। मार्क्स ने पूंजीवाद को एक ऐसी ऐतिहासिक अवस्था माना जिसका स्थान समाजवाद लेगा। आइए, अब इकाई का सारांश पढ़ने से पहले बोध प्रश्न 4 पूरा कर लें।

बोध प्रश्न 4
निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तरों पर निशान लगाइए।
प) किस उत्पादन प्रणाली में भूमि का सामुदायिक स्वामित्व होता है ?
अ) एशियाटिक
ब) प्राचीन
स) सामन्तवादी
द) पूंजीवादी
पप) किस उत्पादन प्रणाली में उत्पादकों (producers) को निजी सम्पति माना जाता है ?
अ) एशियाटिक
ब) प्राचीन
स) सामन्तवादी
द) पूंजीवादी
पपप)किस उत्पादन प्रणाली के अंतर्गत श्रमशक्ति बेची व खरीदी जाती है ?
अ) एशियाटिक
ब) प्राचीन
स) सामन्तवादी
द) पूंजीवादी
पअ) सामन्तवादी उत्पादन प्रणाली में अतिरिक्त (surplus) उत्पादन को किस माध्यम से हड़प लिया जाता है ?
अ) लाभ
ब) किराया
स) सट्टा
द) अतिरिक्त मूल्य
इ) व्यापार

बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 4
प) अ
पप) ब
पपप) द
पअ) ब

 

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now