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सूफीवाद किसे कहते हैं | सूफीवाद की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब विशेषताएं सिद्धांत Sufism in hindi

Sufism in hindi meaning definition सूफीवाद किसे कहते हैं | सूफीवाद की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब विशेषताएं सिद्धांत ?

 सूफीवाद (Sufism)
भक्ति की बुनियादी शिक्षाओं की जाँच कर लेने के बाद तथा यह जान लेने के बाद कि किस तरह से इसने समर्पण अथवा धार्मिक पूजा के लिये एक नये रास्ते का निर्माण किया, अब हम भारतीय उपमहाद्वीप पर इस्लाम धर्म के प्रभाव तथा खासतौर पर इसके द्वारा भक्ति परंपरा पर डाले गये असर पर विचार करने के लिये अग्रसर हो सकते हैं। इस प्रभाव की एक उपशाखा के रूप में हम भारत में सूफी आन्दोलन की भूमिका को पाते हैं।

इस्लाम ने विश्व स्तर का धर्म होने के नाते हिन्दू धर्म में विलुप्त हो जाने के बजाय पूरी ताकत से इसका मुकाबला किया । ऐतिहासिक रूप से, 10वीं शताब्दी की शुरुआत ने भारी आक्रमणों को देखा । वही वह समय था जबकि महमूद गजनवी ने 17 बार भारतीय उपमहाद्वीप पर धावा बोला। 16वीं शताब्दी के आरंभ में, हम सभी जानते हैं कि मुगलों ने भारत पर आक्रमण किया। 17वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में जाकर ही हिन्दुओं ने प्रति-आक्रमण शुरू किया। खासतौर से मराठा-शासक शिवाजी द्वारा किये गये संघर्ष के दौरान ही हिन्दू धर्म की नैतिक शक्ति को बल मिला तथा भक्ति परंपरा, इस्लाम के प्रभाव की एक सहज प्रतिक्रिया के रूप में उभर कर सामने आई। पुनरू दो भिन्न सामाजिक एव सास्कृतिक परंपराओं के बीच संपर्क, अन्योन्यक्रिया तथा संषलेशण खासतौर पर हिन्दुओं व मुसलमानों के सामाजिक रीतिरिवाजों, परंपरा तथा प्रचलनों के स्तर पर हुआ। इसी दौरान हम यह पाते हैं कि सूफीवाद की इस्लामी, रहस्यवादी एवं परमानन्द दायक परंपरा ने भक्ति संतों को अत्यधिक प्रभावित किया। इस प्रभाव की प्रकृति को समझने के लिये, आइये हम संक्षेप में इस बात पर विचार करें कि सूफीवाद क्या था ।

 सूफीवाद क्या है? (What is Sufism?)
शुरू में सूफीवाद मैसोपोटामिया, अरेबिया, ईरान तथा आधुनिक अफगानिस्तान में विकसित हुआ । 8वीं शताब्दी के अंत तक इसने एक औपचारिक स्वरूप ग्रहण कर लिया। शुरू से ही उलेमाओं व रहस्यवादियों के बीच मतभेद उभर आये थे। वे रहस्यवादी धर्म के मर्म तक पहुँचने का दावा करते थे जोकि हृदय पर निर्भर था । सूफी तथा भक्ति परंपराओं की विशेषता यह है कि वे धार्मिक पाठ्यसामग्री व सरकारी सत्ता के प्रति सार्वभौमिकता का भाव रखती हैं, तथा प्रार्थना के बाहरी अनुष्ठान का विरोध करती हैं। सूफी ईश्वर के साथ प्रत्यक्ष रिश्ते का ध्येय लेकर चलते हैं तथा इस तरह उनकी मूल विशेषताओं के अंतर्गत हिन्दूधर्म सहित विभिन्न स्रोतों से उक्तियों को शामिल किया गया है।

रीतू दीवान ने इंगित किया है (‘प्रेम का धर्म‘ द संडे टाइम्स आफ इंडिया, 21 नवम्बर 93) कि 12वीं शताब्दी के मुगल आक्रमण के परिणामस्वरूप अनेक सूफियों ने भारत में शरण ली, खासतौर से मुलतान, पंजाब और सिंध में । महानतम् सूफी रहस्यवादियों में से एक मौलाना जलालुद्दीन रूमी (1207-1273) भारतीय लोक कथाओं से बहुत अधिक प्रभावित हुए थे और उन्होंने कृष्ण की बाँसुरी पर समर्पित एक कविता भी लिखी थी। उन्होंने मौलवी सूफी प्रथा की स्थापना की, जिसमें संगीत व नृत्य आध्यात्मिक विधि-विधान में शामिल थे। राधास्वामी पंथ के संस्थापक सोमी जी महाराज, रूमी से बहुत प्रभावित हुए थे और अक्सर उनकी उक्तियों का हवाला दिया करते थे। गुरु नानक से भी रूमी ने प्रेरणा. ली थी। रूमी तथा बाबा फरीद की रचनाओं (1173-1265) को कबीर की रचनाओं के संथ गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया है।

गुरु नानक को, हिन्दूओं का गुरु तथा मुसलमानों का पीर कहा जाता था । 16वीं शताब्दी का अंत होने तक भक्ति आन्दोलन समूचे उत्तरी भारत में फैल गया और इसके परिणामस्वरूप हिन्दू रहस्यवादियों व सूफियों के सिद्धान्तों ने एक-दूसरे पर काफी प्रभाव डाला। कबीर की निम्नलिखित उक्ति इसे चित्रित करती हैः

मुसलमानों ने शरीयत को स्वीकार किया है
हिन्दू वेद और पुराणों को मानते हैं,
लेकिन मेरे लिये दोनों धर्मों की पुस्तकें व्यर्थ हैं।
(कबीर 1440-1518)

सूफी लोग, धर्म में बाहरी कर्मकांडों के भी विरोधी थे। प्रार्थना तथा उपवास को दान के कार्यों से नीचा मानते थे और जेहाद कोई बाहरी युद्ध नहीं बल्कि मनुष्य की स्वंय अपनी कमजोरियों के विरुद्ध संघर्ष का नाम था। शाह अब्दुल लतीफ तथा सचल सरमस्त जैसे कुछ सूफियों ने जनता का आह्वान किया कि वह ‘‘मुल्लाओं पर हमला‘‘ कर दें।

बंगाल में चैतन्य का प्रभाव जनता में व्यापक स्तरों पर महसूस किया गया, खासतौर से बावल (ठंनस) आन्दोलन पर । मुसलमान बावलों ने सूफी परंपरा को अपनाया तथा हिन्दू बावलों ने वैष्णव धर्म को। ये दोनों परंपराएँ निम्नलिखित उद्धरण में अभिव्यक्त हुईं:

तुम गया, बनारस और वृन्दाबन गये हो
और अनेक नदियों, जंगलों तथा
तीर्थ स्थानों का दौरा कर चुके हो,
लेकिन क्या इन सभी में तुम्हें उसके
दर्शन हुए, जिसके बारे में तुमने सुना था?

रूमी तथा हाफीज (मृत्यु 1389) के सूफी साहित्य ने राजा राममोहन राय, देवेन्द्र नाथ टैगोर तथ रवीन्द्र नाथ टैगोर को प्रभावित किया। हालांकि सूफी साहित्य को लिखे हुए कई वर्षों का समय बीत चुका है, फिर भी उसमें ताजगी बनी हुई है:

क्या एक ईश्वर पीपल के पेड़ में और
दूसरा बबूल के पेड़ में वास करता है?
यदि इस्लाम को अल्लाह ने पैदा किया
तो काफिर को पैदा करने वाला कौन है?
यदि काबा भगवान का घर है
तो मंदिरों में दोष निकालने से क्या लाभ?
मंदिर और मस्जिद दोनों को एक ही
चिराग रोशन करता है।

सूफी भाई दलपत राम 1768-1842)

इस तरह हम देखते हैं कि भक्ति व सूफी आन्दोलनों ने एक दूसरे पर असर डाला था।

सूफीवाद इस्लाम के आध्यात्मिक आयामों को वरीयता देता है। यह दैवीय ज्ञान में विश्वास करता है और इसे पवित्र संपर्क तथा ईश्वर के साथ एकता के व्यक्तिगत अनुभव का स्रोत मानता है। इसके चलते यह अहसास प्रबल होता है कि केवल ईश्वर ही है जिसे पूजा जाना चाहिये। यह सूफीवाद का मूल मंत्र है। यद्यपि रूढ़िवादी इस्लामी मुल्ला यह महसूस करते हैं कि ईश्वर के साथ एकरूप हो जाने की यह इच्छा ही इस्लामी सिद्धान्तों से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। दोनों परस्पर एक दूसरे पर निर्भर हैं। इस रिश्ते को स्पष्ट करने के लिए अखरोट के फल और आचरण की उपमा दी गई हैं। दोनों में से कोई भी शायद एक दूसरे के बिना नहीं रह सकता। एक अन्य उदाहरण यह है कि इस्लामी सिद्धान्त एक वृत की परिधि की तरह है जिसके केन्द्र में अंतिम सत्य (हकीकत) छुपा है। सूफीवाद इस्लामी सिद्धान्त और अंतिम सत्य के बीच सूत्रधार है।

सूफीवाद की व्याख्या निम्नलिखित तीन बुनियादी धार्मिक रुखों के जरिये की जा सकती हैः

प) इस्लाम
पप) ईमान
पपप) इहसान
इस्लामः अल्लाह की मर्जी के सामने समर्पण का रुख है।
ईमानः इस्लाम की शिक्षणों में दृढ़ आस्था का द्योतक है।
इहसानः अल्लाह को इबादत करना है, भले ही उसे देखा न जा सके।

सूफीवाद इस्लाम की आरंभिक अवस्था से इहसान की अंतिम अवस्था तक भक्त की आध्यात्मिक प्रगति।

भारत में इस्लाम के विस्तार के साथ ही इसने अपने आवरण में मठवाद की प्रणाली तथा सामुदायिक जीवन की एक परिभाषित शैली को समेट लिया। रहस्यवादियों को हालांकि किसी भी हालत में एक परिभाषित एवं संगठित जीवन बिताने पर मजबूर नहीं किया जा सका। नवीं शताब्दी तक, ये रहस्यवादी थे जिन्होंने अब अपना संप्रदाय बना लिया था और सामुदायिक जीवन की एक निश्चित शैली को अपना लिया था, खासतौर से बनाई गई एक ऊनी पोषाक पहनने लगे जिसे सूफी कहा जाता है और इस तरह वे सूफी कहलाने लगे। सूफी हालांकि मुसलमान हैं किन्तु वे सर्वेश्वरवादी रहस्यवादी माने जाते हैं । यही रूढ़िवादी इस्लाम से, उनका बुनियादी भेद और हिन्दुओं के भक्ति आन्दोलन से उनकी समानता है।

सूफीयों ने कुरान का अनुसरण किया और अपनी कथनी, करनी तथा अपनाए गए रास्ते के जरिये अपने मकसद को उजागर करने की कोशिश की। इस रास्ते का समान रूप से अनुसरण अक्सर विभिन्न रहस्यवादियों ने भी किया और वे तारिकाह (ज्ंतपुंी) अथवा सूफीवादी कहलाये। दुनिया तथा अपनी निजी संपत्तियों व इच्छाओं को ठुकराते हुए या फिर धैर्य, विनम्रता तथा सेवा भाव अपनाने के जरिये निस्वार्थतता का मार्ग अपनाना, जो कि सीधा खुदा तक ले जाता है, सूफी होने की आवश्यक शर्त थी। सूफीयों के पास उनका एक अनोखा उपाय भी था जिसके जरिये वे ऐसी मानसिक अवस्था प्राप्त कर लेते थे जिसमें वे जाप किया करते थे। वे इसे धिक्र (कीपात) कहा करते थे।

इसकी सबसे सरल अवस्था ईश्वर के विचार में पूरे तौर पर मग्न होकर तथा स्वयं को भुलाकर, बार-बार अल्लाह के नाम को दोहराना है। यदि हम शिक्षाओं की गहन परीक्षा करें तो हम यह देख सकते हैं कि इस तरह से धिक्र का विचार जो सूफी विचारधारा का केन्द्र बिन्दू है, खासतौर से निर्गुण परंपरा के तहत व्यक्ति की मुक्ति के लिये, इष्ट देवता पर ध्यान केन्द्रित करने के भक्ति परंपरा के विचार से कितना मिलता जुलता है। इस तरह सूफीवाद ने मुख्यतः रहस्यवाद का प्रतिपादन किया और इसी पर उन्होंने अपने धार्मिक आन्दोलन की बुनियादी धर्मशास्त्रीय प्रस्थापनाओं को आधारित भी किया। सूफियों द्वारा धार्मिक भावों को तीव्र बनाने के लिये तैयार किया गया एक प्रमुख नुस्खा संगीत तथा गीतों अथवा समा (ैंउं) को सुनने का था। ये गीत लोगों को भाव विभोर बना देने में सक्षम थे। गीतों का विषय प्रेम था, जो कि अक्सर दीवाना हुआ करता था। उन्हें सुनकर स्पष्ट रूप से यह भेद किया जाना कठिन था कि जिस प्रेम की बात की जा रही है वह मानवीय प्रेम है अथवा दैवीय। एक बार फिर वह भक्ति परंपरा में भक्त और ईश्वर के बीच के उस प्रेम से मिलता जुलता है, जिसकी अभिव्यक्ति कृष्ण के लिये गोपियों द्वारा की गई थी।

हम यह पाते हैं कि सूफी को विभिन्न तरीकों से परिभाषित करने के प्रयास किये गये हैं। आमतौर पर यद्यपि इस बात पर सहमति थी कि सूफी में अलौकिक, सामाजिक एवं परोकारवादी गुण मौजूद थे। इसके अलावा सूफी विचारधारा में हम विभिन्न प्रभावों को भी पाते है, जैसे कि मुस्लिम एक कृतिवादी विचार का विकास अथवा ग्रीक तथा भारतीय दर्शनों का प्रभाव । साथ ही हम यहाँ उन राजनीतिक, सामाजिक एवं बौद्धिक अवस्थाओं को भी शामिल कर सकते है जिन्होंने रहस्यवाद के विकास में योगदान किया। सूफी अनुशासन अथवा मुरीद को अपनाने के बारे में बहुत सख्त थे। जैसे-जैसे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई, अनेक सूफी शिक्षकों अथवा शेखों तथा पीरों के रूप में जाने लगे और सूफीवाद के भीतर व्यवस्थाएँ कायम होने लगीं। चार प्रमुख व्यवस्थाएँ जो कि उभर कर आई वे थीः क) कादिरी, ख) सोहरावार्दी, ग) चिश्ती, तथा घ) नक्शबंदी

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