हिंदी माध्यम नोट्स
मताधिकार किसे कहते हैं | मताधिकार की परिभाषा क्या है | Suffrage in hindi आयु मताधिकार किस प्रकार की स्वतंत्रता का रूप है
(Suffrage in hindi) मताधिकार किसे कहते हैं | मताधिकार की परिभाषा क्या है | आयु मताधिकार किस प्रकार की स्वतंत्रता का रूप है सार्वभौमिक मताधिकार किसे कहते हैं भारत में लोकतंत्र में सार्वभौमिक क्यों महत्वपूर्ण है universal suffrage meaning in hindi ?
अधिकार और मताधिकार
संविधान के इन भागों में दिए गए प्रावधानों के अलावा, उसके अन्य खण्ड भी उन प्रावधानों में यहाँ-वहाँ दिए गए हैं जो नागरिकता को दृढ़ता प्रदान करते हैं। औपनिवेशिक, शासन के तहत राजनीतिक अधिकारों के वंचन के लम्बे इतिहास के प्रसंग में चुनावों‘ और ‘मताधिकार‘ से संबंधित प्रावधानं खासतौर पर महत्त्वपूर्ण हैं। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि संविधान ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों में ‘सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार‘ को आधार बनाया। संविधान के अनुच्छेद 326 ने 21 वर्ष की आयु से (1 अप्रैल 1989 से प्रभावी, यह 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1988 द्वारा बदलकर 18 वर्ष कर दी गई) ऊपर सभी नागरिकों को मत देने का अधिकार प्रदान किया। यह बड़ा महत्त्वपूर्ण है कि संविधान ने सम्पत्ति और शिक्षा की कोई कसौटी नहीं रखी। महिलाओं को भी, जो अधिकतर पश्चिमी देशों में केवल वर्तमान सदी में ही मताधिकार सम्पन्न थीं, पुरुषों के साथ समान आधार पर मताधिकार-सम्पन्न बनाया गया।
नागरिकता के कर्तव्य
नागरिकता और अधिकारों के संवैधानिक प्रावधानों पर अभी तक जो चर्चा हुई उससे यह विश्वास होने लगता है कि नागरिकता सिर्फ एक कानूनी पदस्थिति है जो यह परिभाषित करती है कि भारत के नागरिक कौन हैं और उनके अधिकार अथवा वे शर्ते जिनमें इन अधिकारों का उपभोग किया जा सकता है, क्या हैं। विद्वजनों का एक पनपता निकाय, यद्यपि, यह विश्वास करता है कि पदस्थिति के रूप में इस प्रकार का वैध-वैधानिक वैचारीकरण ‘नागरिक कौन है‘ प्रश्न का केवल अंशतः उत्तर देता अधिक-से-अधिक अनुकल स्थिति में एक निष्क्रिय द्योतन है। वे चाहते हैं हम उन ‘आधारिक संरचनाओं‘ (समानता और सामाजिक न्याय की) से परे निकल चलें जो कि संविधान स्थापित करने के प्रयास में है, ताकि नागरिकता के द्योतन पर हम एक ‘उत्तरदायी‘ भागीदारी की प्रक्रिया के रूप में भी ध्यान केन्द्रित कर सकें। नागरिकता तब, एक सक्रियता का भी गुण बनने के लिए अपने निष्क्रिय संकेतार्थ से उबरकर आगे निकल जाएगी। एक राष्ट्रीय समुदाय से सम्बद्ध नागरिक होने का भावाधार, तब उत्तरदायित्व की उन प्रवृत्तियों और सद्गुणों से आएगा जो उसे एक उत्तम‘ नागरिक के रूप में पहचान देंगे। उत्तरदायी भागीदारी फिर इन विभिन्न सामाजिक स्थितियों में खुद-ब-खुद व्यक्त होगी, नामतः राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, नृजातीय, वा धार्मिक पहचानों के प्रच्छन्नं प्रतियोगितांपूर्ण रूपों में नागरिक क्या दृष्टिकोण रखते हैं और कैसा आचरण करते हैंय अपने से भिन्न लोगों को सहन करने और उनके साथ मिलकर काम करने की उनकी कुशलताय लोकहित को बढ़ावा देने और राजनीतिक प्राधिकारियों की जवाबदेही तय करने हेतु राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी करने की उनकी इच्छाय खुद के स्वास्थ्य और पर्यावरण आदि को प्रभावित करने वाली अपनी आर्थिक माँगों और व्यक्तिगत विकल्पों में आत्म-संयम और व्यक्तिगत उत्तरदायित्व दर्शाने की उनकी तत्परता । नागरिकता के ऐसे गुण, कहा जाता है, एक स्थिर और प्रशासन योग्य लोकतंत्र का निर्माण करते हैं। विद्यालयों, पर्यावरणीय समूह, संघ व परिषदों समेत समाजों के भीतर विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं और संगठनों को यह माना जाता है कि नागरिकता के इन गुणों का अन्तर्निवशन करते हैं। एक संशोधन के द्वारा (42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976) भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों की एक सूची भाग-प्ट। में अधिनियम 51। के रूप में संविधान में अन्तर्निविष्ट की गई। नागरिकों को सम्बोधित मौलिक कर्तव्यों की कानूनी स्थिति बिल्कुल राज्य को सम्बोधित निदेशक सिद्धांतों की भाँति ही है, वह इस भाव में कि उनके परोक्ष प्रवर्तन हेतु कोई प्रावधान नहीं है। यहाँ यह उल्लेख किया जा सकता है, हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक कर्तव्यों को स्वभावतः अनिवार्य रखा है और यद्यपि उनके प्रवर्तन हेतु संविधान में कोई प्रावधान नहीं है, उनको लाग करने के प्रयास वाला कोई भी नियम कानून के अंतर्गत ‘युक्तिसंगत‘ हो सकता है। कर्तव्यों की सूची, जिसमें 10 नग हैं, फिर भी, उस पर अन्तर्दृष्टि डालती है जिसे ‘उत्तम‘ नागरिकता के संघटक के रूप में देखा जा सकता है। नागरिकों को ‘उत्कृष्टता‘ के लिए संघर्षरत रहने, ‘वैज्ञानिक मनरूस्थिति‘ विकसित करने अथवा ‘सार्वजनिक सम्पत्ति‘ की रक्षा करने का आदेश देते उनमें से कुछ सामान्यतः ईमानदारी और उत्तरदायित्व की शिक्षा देते लगते हैं। एक सामान्य अभिनति. बहरहाल, राष्ट्रीय जन-साधारण के भाव को अन्तःशोषित करने की दिशा में है। इस प्रकार यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह राष्ट्रीय एकता के प्रतीकों का सम्मान करे, जैसे राष्ट्रीय ध्वज, संविधान और राष्ट्रीय-गान तथा लोक विरासत के उद्गम जैसे स्वतंत्रता हेतु राष्ट्रीय संघर्ष‘ और ‘मिली-जुली संस्कृति‘ की परम्परा। नागरिकों से यह भी अपेक्षा की जाती
है कि वे देश की ‘सम्प्रभुता‘ और ‘एकता‘ की रक्षा न सिर्फ देश की ‘प्रतिरक्षा‘ करने और श्राष्ट्रीय सेवाश् पेश करने हेतु प्रतिबद्धता द्वारा ही करें बल्कि ‘लोक बंधुत्व‘ की भावना के प्रसार द्वारा भी करें।
अधिकार और नागरिकता
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
नागरिकता क्या है?
नागरिकता और व्यक्तिवाद
नागरिकता और बहु-संस्कृतिवाद
भारतीय संविधान में नागरिकता
भारत के नागरिक कौन हैं?
भारतीय नागरिकता में सम्प्रदाय को मान्यता
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धांत
अधिकार और मताधिकार
नागरिकता के कर्तव्य
नागरिकता में तनाव
नागरिकता और लिंग
नागरिकता की राहें
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर
उद्देश्य
भारतीय संविधान अधिकार और नागरिकता के विषय में विवरण देता एक विस्तीर्ण दस्तावेज है। इस इकाई को पढ़ चुकने के बाद आप नागरिकता के वैध-रीतिक पहलुओं को समझ सकेंगे जैसे कि वे भारतीय संविधान के भाग-प्प् में समाविष्ट हैं। इसे संविधान के भाग-प्प्प्, प्ट व प्ट। के साथ, जो क्रमशः मौलिक अधिकारों, निदेशक सिद्धांतों व मौलिक कर्तव्यों पर हैं, पढ़कर आप नागरिकता के स्वभाव को पूरी तरह से समझ सकेंगे जैसा कि संविधान-निर्माताओं द्वारा समझा गया है। इस इकाई को पढ़ने के बाद आप स्पष्ट कर सकेंगेः
ऽ नागरिकता का अर्थ,
ऽ भारत में नागरिकता का विशिष्ट स्वभाव,
ऽ भारत के संविधान में नागरिकता और अधिकार,
ऽ नागरिकता के तत्त्व,
ऽ नागरिकता की राहें,
ऽ नागरिकता के विरोधाभासध्तनाव और आलोचनाएँ।
प्रस्तावना
नागरिकता विषयों और प्रश्नों की एक श्रृंखला प्रस्तुत करती है नामतः, नागरिकता, क्या है? क्या यह कोई कानूनी पदवी है जो कुछ निश्चित अधिकारों के उपभोग की स्वीकृति देती है अथवा इसमें कर्त्तव्य और उत्तरदायित्व भी शामिल हैं? नागरिकता के मूल सिद्धांत क्या हैं? एक नागरिक कौन है? नागरिकता और राज्य के बीच क्या संबंध है? ये व अन्य प्रश्न उसके सारभाग-केन्द्र में रहे हैं जिसे ‘नागरिकता का सिद्धांत‘ कहा जा सकता। यह भली-भाँति समझ लिया जाना चाहिए कि जहाँ नागरिकता समानता सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखती है, लिंग, वर्ग, जाति, प्रजाति, राष्ट्रीयता आदि की सामाजिक-आर्थिक श्रेणियाँ यह निर्धारित करती हैं कि किस सीमा तक हम नागरिकता के अपने अधिकारों का उपभोग कर सकते हैं, अपने व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिए अनिवार्य विभिन्न शर्तों तक पहुँच सकते हैं, आगे वह सीमा भी जहाँ तक हम नागरिकता के अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं । जहाँ तकनीकी उन्नति और भूमण्डलीकरण विश्व और राज्यों के भीतर के लोगों को समीपतर ले आए हैं, उनके बीच सांस्कृतिक भेदों के प्रति जागरूकता भी बढ़ रही है। विश्व में राष्ट्र-राज्यों के बीच और लिंग, वर्ग, जाति, न जाति, राष्ट्रीयता आदि की सीमा-रेखाओं के साथ-साथ उनके भीतर असमानता से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं। जहाँ व्यक्ति इस सोच के साथ ही बड़ा होता है कि नागरिकता व्यक्तिगत अधिकारों व कर्तव्यों का पालन भर है, यह धारणा बढ़ रही है कि सांस्कृतिकध्धार्मिक सम्प्रदाय, आम राष्ट्रीय जीवन में भागीदारी निभाते हुए, अपनी निजी संस्कृतियों को कायम रखने का अधिकार भी रखते हैं। नागरिकता के अधिकारों को इसीलिए, विशिष्ट सांस्कृतिक समूहों की आवश्यकताओं की जिम्मेदारी लेनी पड़ती है। साम्प्रदायिक अधिकारों के प्रश्न इस प्रकार नवीन प्रज्ञता और नीति-निर्णयों में काफी महत्त्व अर्जित कर चुके हैं। अन्य पाठांशों की ओर बढ़ते समय हमें यहाँ उठाए गए प्रश्न दिमाग में आवश्यक रखने चाहिए नामतः, व्यक्ति और सम्प्रदाय अधिकारों के प्रश्न और वे विभिन्न कारक जो अधिकारों के उपभोग को निश्चित करते हैं, अन्य शब्दों में, जाति, वर्ग, लिंग, न जाति व राष्ट्रीय पहचान से नागरिकताओं का संबंध।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…