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स्टाइकियोमीट्री दोष क्या है , प्रकार , रिक्तिका , अन्तराकाशी , शोट्की , फ्रेंकेल दोष , अपूर्णनता (stoichiometric defects in hindi)
(stoichiometric defects in hindi) स्टाइकियोमीट्री दोष क्या है , प्रकार , रिक्तिका , अन्तराकाशी , शोट्की , फ्रेंकेल दोष , अपूर्णनता : जब किसी यौगिक में धनायन और ऋणायन का अनुपात उनके अणुसूत्र के अनुसार हो या समान हो अर्थात धनायन और ऋणायन का अनुपात अणुसूत्र के बराबर हो उन्हें स्टाइकियोमीट्री यौगिक कहते है।
और जब स्टाइकियोमीट्री यौगिकों में कोई दोष उत्पन्न होता है जैसे इसके अवयवी कण विचलित हो जाए या कुछ विस्थापित हो जाए तो इस प्रकार के दोष को स्टाइकियोमीट्री दोष कहते है , लेकिन याद रखिये स्टाइकियोमीट्री यौगिकों में दोष उत्पन्न होने के बाद भी धनायन और ऋणायन का अनुपात समान बना रहेगा।
स्टाइकियोमीट्री दोष दो प्रकार के होते है –
1. रिक्तिका दोष (vacancy defects)
2. अंतराकाशी दोष (Interstitial defect)
और जब स्टाइकियोमीट्री यौगिकों में कोई दोष उत्पन्न होता है जैसे इसके अवयवी कण विचलित हो जाए या कुछ विस्थापित हो जाए तो इस प्रकार के दोष को स्टाइकियोमीट्री दोष कहते है , लेकिन याद रखिये स्टाइकियोमीट्री यौगिकों में दोष उत्पन्न होने के बाद भी धनायन और ऋणायन का अनुपात समान बना रहेगा।
स्टाइकियोमीट्री दोष दो प्रकार के होते है –
1. रिक्तिका दोष (vacancy defects)
2. अंतराकाशी दोष (Interstitial defect)
1. रिक्तिका दोष (vacancy defects)
जब किसी क्रिस्टल जालक में अवयवी कण या जालक बिंदु अपने नियमित स्थान पर नहीं पाए जाते है अर्थात अपने नियमित स्थान से गायब हो जाते तो वहां रिक्ति बन जाती है अर्थात इसमें जालक बिंदु अपने निर्धारित स्थान से बाहर निकल जाते है जिससे इसके निर्धारित स्थान पर रिक्ति बन जाती है और इसलिए इस प्रकार के दोष को रिक्तिका दोष कहते है।
जब पदार्थों को गर्म किया जाता है तो ताप मिलने के कारण अवयवी कण अपना नियमित स्थान छोड़ सकते है जिससे रिक्तिका दोष उत्पन्न हो सकता है , इस प्रकार का दोष उत्पन्न होने के कारण पदार्थ के घनत्व में कुछ कमी आ जाती है।
रिक्तिका दोष को नीचे चित्र में रिक्त स्थानों द्वारा प्रदर्शित किया गया है –
2. अंतराकाशी दोष (Interstitial defect)
जब किसी पदार्थ या क्रिस्टल के अन्तराकशी स्थान पर कुछ अवयवी कण (परमाणु , अणु या आयन) आ जाते है तो इस प्रकार क्रिस्टल में जो दोष उत्पन्न होता है वह अन्तराकाशी दोष कहलाता है।
अंतराकाशी स्थान : अवयवी कणों के मध्य कुछ खाली जगह पायी जाती है उसे अन्तराकाशी स्थल कहते है।
जब आयनिक ठोसों में अंतराकाशी स्थान पर आयन आ जाते है तो इसे भी अन्तराकाशी दोष कहते है , अतिरिक्त आयन आने पर भी आयनिक ठोसों में उदासीनता बनी रहती है , लेकिन इन दोषों में पदार्थ या क्रिस्टल का घनत्व सामान्य से अधिक हो जाता है अर्थात घनत्व बढ़ जाता है।
इन दोषों को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है –
(a) शॉटकी दोष (Schottky defect)
(b) फ्रेंकेल दोष (Frenkel defect)
(a) शॉटकी दोष (Schottky defect)
जब किसी क्रिस्टल या आयनिक पदार्थ में समान संख्या में धनायन व ऋणायन अपना निर्धारित स्थान छोड़कर क्रिस्टल से बाहर चले जाते है , चूँकि धनायन और ऋणायन की संख्या समान है जो अपने निमित स्थान से गायब है इसलिए क्रिस्टल या आयनिक ठोस में विद्युत उदासीनता बनी रहती है , इसी दोष को शॉटकी दोष कहते है जैसा चित्र में दिखाया गया है –
चित्रानुसार क्रिस्टल जालक में समान संख्या में धनायन (A+) और ऋणायन (B-) अपने निर्धारित स्थान से गायब है इसलिए यहाँ विद्युत उदासीनता भी बनी रहती है।
शॉटकी दोष के उदाहरण : NaCl, KCl, CsCl तथा KBr आदि
(b) फ्रेंकेल दोष (Frenkel defect)
जब किसी आयनिक क्रिस्टल में धनायन या ऋणायन अपने निर्धारित स्थान को छोड़कर क्रिस्टल के अन्य स्थान अर्थात अंतराकाशी स्थान में चले जाते है तो इस प्रकार के दोष को फ्रेंकेल दोष कहते है।
इसमें आयन क्रिस्टल से गायब नही होते है परन्तु उसी में अन्तराकाशी स्थलों पर चले जाते है अत: सम्पूर्ण आयनिक क्रिस्टल विद्युत उदासीन बना रहता है।
फ्रेन्केल दोष के उदाहरण : ZnS, AgCl और AgI आदि।
फ्रेंकेल दोष को निम्न चित्र से समझा जा सकता है –
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