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Categories: sociology

भूमिका पटल , प्रस्थिति पटल और प्रस्थिति क्रम क्या है ? status sequence in sociology given by in hindi

status sequence in sociology given by in hindi भूमिका पटल , प्रस्थिति पटल और प्रस्थिति क्रम क्या है ?

भूमिका पटल, प्रस्थिति-पटल और प्रस्थिति-क्रम
संदर्भ समूह के आचरण का अध्ययन करने के लिए भूमिका-पटल, प्रस्थिति-पटल तथा प्रस्थिति-क्रम की गतिकी को समझना आवश्यक है। इसे उदाहरण के माध्यम से समझने की कोशिश कीजिए। मान लीजिए, एक संदर्भ समूह के अध्यापकों से कोई व्यक्ति प्रभावित होती है और वह अध्यापक बनने की कामना करने लगती है। ऐसा होने पर उसे निश्चय ही यह समझना चाहिए कि एक अध्यापक की स्थिति क्या होती है, किस प्रकार के लोगों के साथ उसका सक्रिय संपर्क रहता है, और अपनी जिम्मेदारियां निभाने में उसे किस तरह से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

इसी संदर्भ में मर्टन ने भमिका-पटलों का उल्लेख किया है। मर्टन का कहना है कि एक विशिष्ट सामाजिक प्रस्थिति किसी एक सहयोगी भूमिका से नहीं अपितु अनेक सहयोगी भूमिकाओं से बनती । है। इसी को भूमिका-पटल कहा जाता है। उदाहरण के लिए, किसी अध्यापक की प्रस्थिति में केवल विद्यार्थियों के प्रति अध्यापक की भूमिका का ही नहीं, बल्कि अन्य अध्यापकों, अधिकारियों तथा विद्यार्थियों के माता-पिता आदि के प्रति उसकी भूमिकाओं का भी समावेश रहता है।

भूमिका-पटल को समझना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पता चलता है कि भूमिका-पटल में सभी को संतुष्ट करना कितना मुश्किल है। इसी सिलसिले में मर्टन ने भूमिका-पटल में अस्थिरता के संरचनात्मक स्रोतों का उल्लेख किया है। भूमिका-पटल में बाधा का मूल स्रोत यह संरचनात्मक परिस्थिति है कि एक विशेष स्थिति रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के ऐसे भूमिका-सहयोगी होते हैं जिनका समाज में अलग स्थान होता है। उदाहरण के लिए, एक अध्यापक के भूमिका-पटल में केवल उसके सहयोगी अध्यापक नहीं, बल्कि स्कूल बोर्ड के प्रभावशाली सदस्य भी शामिल होते हैं। स्कूल बोर्ड के सदस्य अध्यापक से जो अपेक्षाएं रखते हैं, आवश्यक नहीं है कि ये अपेक्षाएं उसके सहयोगी अध्यापकों की अपेक्षाओं जैसी ही हों और इसी से संघर्ष की उत्पत्ति होती है।

परंतु मर्टन का कथन है कि इस संघर्ष की मात्रा को कम किया जा सकता है। पहली बात तो यह है कि विशिष्ट सामाजिक प्रस्थिति वाले व्यक्ति के आचरण से सभी भूमिका-सहयोगियों का एक जैसा संबंध नहीं होता। इसलिए विशिष्ट सामाजिक प्रस्थिति वाले व्यक्ति को उन लोगों की अपेक्षाओं के प्रति चिंतित नहीं होना चाहिए जो उससे सीधे जुड़े हुए नहीं हैं।

दूसरी बात यह है कि विशिष्ट प्रस्थिति वाले व्यक्ति को अपने भूमिका-पटल के सभी लोगों से सक्रिय संपर्क नहीं करना होता। उदाहरण के लिए, कक्षा में पढ़ाते हुए अध्यापक का संबंध केवल विद्यार्थियों से होता है, भूमिका-पटल के अन्य सदस्यों से नहीं। मर्टन की दलील है कि प्रेक्षणीयता से इस प्रकार की मुक्ति अध्यापक को उस द्वंद्व से बचाने में सहायक होती है जो भूमिका सहयोगियों की भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से उभर सकती है।

तीसरी बात यह है कि विशिष्ट सामाजिक स्थिति वाले व्यक्ति के समान और भी अनेक व्यक्ति होते हैं। मर्टन का कहना है कि उसके व्यावसायिक सहयोगी सत्ता के ढांचे तथा उस प्रस्थिति के भूमिका-पटल सहयोगियों की परस्पर विरोधी अपेक्षाओं से उत्पन्न समस्याओं से निपटने के लिए संरचनात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।

भूमिका-पटल के अलावा प्रस्थिति पटल की भी समस्या है जिसे संदर्भ समूह सिद्धांत के प्रसंग में समझना आवश्यक है। वास्तव में, यह प्रस्थिति पट क्या है?

एक ही व्यक्ति की अलग-अलग प्रस्थितियां – अध्यापक, पति, मां, पिता, भाई, बहन, राजनीतिक कार्यकर्ता – हो सकती हैं। सामाजिक प्रस्थितियों की इस पूरकता को उसका प्रस्थिति-पटल माना जा सकता है। प्रत्येक प्रस्थिति के अपने-अपने पृथक भूमिका-पटल हो सकते हैं।

एक प्रस्थिति की बजाय प्रस्थिति-पटल की विद्यमानता से मनुष्य के लिए मुश्किलें पैदा होती हैं। इसका कारण यह है कि उसके लिए अपनी सभी प्रस्थितियों की अपेक्षाएं सदैव पूर्ण करना असंभव होता है। उदाहरण के लिए, एक राजनेता व्यापक उद्देश्य के प्रति वचनबद्धता के कारण अपनी अन्य प्रस्थितियों जैसे पत्नी अथवा माँ की प्रस्थिति को सही ढंग से नहीं निभा पाती।

इसलिए, ऊपर दिया गया प्रश्न सामने आता है, उदाहरण के लिए, यदि राजनेता आपका संदर्भ समूह बनें तो आपको एक राज-नेता के प्रस्थिति-पटल में संभावित द्वंद्व तथा उसको हल करने के प्रयासों के बारे में अवश्य जान लेना चाहिए।

मर्टन के अनुसार, प्रस्थिति-पटल के तनाव से बचाव के अनेक उपाय हैं। पहला यह है कि अन्य लोगों द्वारा यह नहीं माना जाता कि आप एकमात्र प्रस्थितिवान व्यक्ति हैं। मर्टन का कहना है कि यहां तक कि हर व्यवसाय के मालिक को भी यह एहसास रहता है कि उसका कर्मचारी मात्र कर्मचारी नहीं है, वह पिता, पति अथवा बेटा भी है। यही कारण है कि जिस कर्मचारी के किसी निकट संबंधी की मृत्यु हो जाती है उससे कार्य की अपेक्षा सामान्य रूप की तरह नहीं की जाती।

दूसरा तथ्य यह है कि दूसरों की समस्याओं को सहानुभूति के साथ समझने के भाव की मदद से प्रस्थिति से जुड़े कर्तव्यों से उपजे द्वंद्व के शिकार हुए लोगों पर पड़ा दबाव कम किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को एक जैसी सदस्यता से जूझना पड़ता है और प्रत्येक व्यक्ति का प्रस्थिति-पटल होता है। यह समान नियति समानुभूति को जन्म देती है।

तीसरा तथ्य यह है कि प्रस्थिति पटल के तथ्यों का समुच्चय बिना किसी पूर्व-निर्धारण के नहीं होता। इससे भी द्वंद्व की संभावना कम हो जाती है। मर्टन के अनुसार, प्रभावशाली प्रस्थितियों के लोगों द्वारा आत्मसात् किए गए मूल्य ऐसे होते हैं कि यह संभावना बहुत कम रहती है कि उनमें मूल्यों से मेल न खाने वाली प्रस्थितियों को अपनाने की इच्छा हो।

संदर्भ समूह के सिद्धांत की दृष्टि से यह तथ्य बहुत दिलचस्प है। एक उदारहण से यह बात स्पष्ट हो जाती है। मान लीजिए कि एक व्यक्ति का जन्म तथा पालन-पोषण एक सुसंस्कृत एवं शिक्षित परिवार में हुआ है, और इसी वातावरण के कारण वह विद्वान बन जाती है। अब ऐसी पृष्ठभूमि के साथ उसके लिए सैनिक अधिकारी बनने की इच्छा करने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि वह जानती है कि इन दोनों स्थितियों में सामंजस्य रखना कितना कठिन होगा। संभवतः वह प्रोफेसर बनना चाहेगी। तब दो प्रस्थितियों, यानी एक विद्वान तथा एक प्रोफेसर की प्रस्थिति, में सामंजस्य रखने में कठिनाई नहीं होगी। कहने का मतलब यह है कि संदर्भ व्यक्ति के चयन या किसी प्रस्थिति को प्राप्त करने की इच्छा के पीछे एक उद्देश्य तथा तार्किकता विद्यमान होती है। संभवतः व्यक्ति की वही इच्छा होती है जिसकी उसके विचार तथा प्रयोजन अनुमति देते हैं। इसलिए यह आवश्यक नहीं कि प्रस्थिति-पटल में सभी प्रस्थितियों के बीच आपसी टकराव ही हो।

इकाई के सारांश को पढ़ने से पहले बोध प्रश्न 4 को पूरा कर लें।

बोध प्रश्न 4
प) मर्टन के अनुसार “अनुरूपता न रखने वाले व्यक्ति अपराधी नहीं हैं‘‘। क्यों? अपना उत्तर पाँच पंक्तियों में लिखिए।
पप) निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
क) सभी भूमिका-सहयोगियों का विशेष सामाजिक प्रस्थिति वाले लोगों के आचरण के साथ समान रूप से संबंध होता है।
ख) दूसरों की समस्याओं को समानुभूति के साथ समझने के भाव की मदद से प्रस्थिति से जुड़े कर्त्तव्यों से उत्पन्न द्वंद्व के शिकार हुए लोगों पर पड़ा दबाव काफी कम किया जा सकता है।
ग) किसी प्रस्थिति-पट के तत्वों का समुच्चय अनिवार्य रूप से बिना किसी पूर्व-निर्धारण के हो जाता है।

 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 4
प) अनुरूपता न रखने वाला व्यक्ति अपराधी नहीं होता क्योंकि अपराधी के विपरीत अनुरूपता न रखने वाला अपनी असहमति या असंतोष को छिपाता नहीं है। अपराधी कमजोर तथा अवसरवादी होता है, जबकि अनुरूपता न रखने वाला इतना साहसी होता है कि वह उन मूल्यों एवं प्रतिमानों को चुनौती दे सकता है जो उसे अस्वीकार्य हैं। अपराधी के विपरीत, अनुरूपता न रखने वाला उच्च नैतिक मूल्यों का धनी होता है। वह नई मूल्य प्रणाली को जन्म देना चाहता है।
पप) ख)

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