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श्रमण परम्परा क्या है | श्रमण शब्द का अर्थ किसे कहते हैं , आर्य समाज से सम्बन्ध śramaṇa tradition in hindi
śramaṇa tradition in hindi sramaṇa श्रमण परम्परा क्या है | श्रमण शब्द का अर्थ किसे कहते हैं , आर्य समाज से सम्बन्ध
आर्य समाज
स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसकी स्थापना हिन्दू धर्म को भीतर से पुनर्जीवित करने के लिए की थी। वे वेदों की सर्वोच्चता में विश्वास करते थे। उनके अनुसार वेदों में सभी मूल्यों तथा ज्ञान का भण्डार है। उनकी मुख्य नीतियों में से एक मानव जाति के कल्याण के लिए कार्य करना था। उन्हें जनता को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने में विश्वास था, और उन्होंने बहुत-से विद्यालयों की स्थापना की। वे मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते थे तथा वे गैर-हिन्दुओं को भी इस धर्म में सम्मिलित करना चाहते थे। उन्होंने धर्मांतरण के उद्देश्य से शुद्धि आन्दोलन आरम्भ किया।
श्रमण परम्परा (shramanic traditions in india)
श्रमण शब्द का अर्थ है जो आत्मसंयम का पालन करता है और तप करता है। यह वैदिक धर्म के समानांतर कई भारतीय धार्मिक आंदोलनों को संदर्भित करता है।
श्रमण परम्परा (शाखा) की विभिन्न सम्प्रदायों में निम्नलिखित सम्मिलित हैंः
1. जैन धर्म (बाद में चर्चा की गयी है)
2. बौद्ध धर्म (बाद में चर्चा की गयी है)
3. आजीविक
4. अज्ञान
5. चारवाक (अध्याय 15 में चर्चा की गयी है)
उपर्युक्त सभी पांच दर्शन नास्तिक या शास्त्रा विरोधी सम्प्रदाय (शाखा) से सम्बन्धित हैं।
आजीविक
ऽ इस सम्प्रदाय की स्थापना मक्खलि गोसाल द्वारा ईसा पूर्व पांचवी शताब्दी में हुई।
ऽ यह सम्प्रदाय सम्पूर्ण नियतत्ववाद (निश्चयवाद) के नियति ;भाग्यद्ध सिद्धांत के इर्दगिर्द घूमती है। इसका विश्वास है कि कोई स्वतंत्रा इच्छा नहीं है और जो कुछ भी हुआ है, हो रहा है या होगा, वह पूर्णरूपेण पूर्व-नियत या पूर्व निर्धारित है और ब्रह्मांडीय सिद्धान्तों पर आधारित है। इसलिए कर्म का कोई लाभ नहीं है।
ऽ यह परमाणु के सिद्धांत पर आधारित है और यह माना जाता है कि सब कुछ परमाणुओं से निर्मित है और अणुओं के समूह से विभिन्न गुण उत्पन्न होते हैं, जो पूर्व निर्धारित हैं।
ऽ आजीविक, वस्त्रों और किसी भौतिक सम्पत्ति के बिना सरल और संयमी जीवन व्यतीत करते हैं।
ऽ वे बौद्ध धर्म और जैन धर्म के विरोधी थे और नास्तिक थे।
ऽ वे जैन धर्म और बौद्ध धर्म के विपरीत कर्म के सि(ांत में विश्वास नहीं करते। वे कर्म को भ्रामक मानते हैं।
ऽ उन्होंने बौद्ध धर्म और जैन धर्म की भांति वेदों की सत्ता को नकारा था।
ऽ हालाँकि वे, जैन धर्म की भांति प्रत्येक जीव में आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते थे।
ऽ परन्तु वे जैन धर्म की निराकार आत्मा की अवधारणा के विपरीत आत्मा के भौतिक रूप में विश्वास करते थे।
ऽ बिन्दुसार ;ईसा पूर्व चैथी शताब्दीद्ध इनके अनुयायियों में से एक थे।
ऽ उत्तर प्रदेश में ‘‘श्रावस्ती’’ को आजीविकों का केंद्र माना जाता है।
ऽ अशोक के सातवें स्तम्भ के राजादेश में आजीविकों का उल्लेख मिलता है।
ऽ वर्तमान में आजीविकों के किसी भी ग्रन्थ का अस्तित्व नहीं है। इस सम्प्रदाय का वर्तमान युग में आकर्षण भी समाप्त हो चुका है।
अज्ञान
ऽ अज्ञान सम्प्रदाय कट्टरपंथी संशयवाद में विश्वास करते थे।
ऽ इस सम्प्रदाय का मानना है कि प्रकृति के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करना असम्भव है। यदि यह सम्भव भी है तो मोक्ष प्राप्ति के लिए व्यर्थ है।
ऽ यह सम्प्रदाय जैन और बौद्ध धर्मों का प्रमुख प्रतिद्वंदी था।
ऽ उन्हें खंडन में विशेषज्ञता प्राप्त थी और उन्हें अनभिज्ञ माना जाता था।
ऽ उनका विश्वास था कि ‘‘अनभिज्ञता (अज्ञानता) सर्वोत्तम है’’।
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