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कठोर जल एवं मृदु जल , जल की कठोरता के प्रकार , धावन सोडा , परम्युटिट विधि (जियोलाइट) या आयन विनिमय विधि
कठोर जल एवं मृदु जल : साबुन के साथ झाग बनाने व नहीं बनाने के आधार पर जल दो प्रकार का होता है –
जल की कठोरता के कारण
जल की कठोरता के प्रकार
Ca(HCO3)2 → CaCO3 + H2O + CO2
CaCl2 + Na2CO3 → CaCO3 + 2NaCl
Na4P6O182- + m2+ → 2Na+ + Na2m + P6O182-
धनात्मक विनिमायक रेजिन SO3H समूह युक्त जल में अविलेय कार्बनिक यौगिक (R-SO3H) होते है जबकि ऋणायन विनिमायक रेजिन NH2 समूह युक्त क्षारीय रेजिन (R-NH2) होते है।
सर्वप्रथम कठोर जल को धनायन विनिमायक रेजिन में से गुजारा जाता है जिससे कठोर जल में उपस्थित Ca2+ व Mg2+ रेजिन H+ आयनों द्वारा विस्थापित हो जाते है। उपरोक्त जल को ऋणायन विनिमायक रेजिन में से गुजारते है जिससे जल में उपस्थित क्लोराइड सल्फेट तथा बाई कार्बोनेट आयन रेजिन के OH– द्वारा विस्थापित हो जाते है।
ये H+ व OH– क्रिया कर जल बनाते है।
भारी जल (D2O) : सर्वप्रथम युरे ने भारी जल की खोज की , इसे भारी हाइड्रोजन का ऑक्साइड भी कहा जाता है।
भौतिक गुण :
यह रंगहीन , गंधहीन , स्वादहीन द्रव होता है।
रासायनिक गुण :
धातुओं के साथ क्रिया करके यह ड्यूटीरियम गैस उत्पन्न करता है।- धात्विक ऑक्साइड के साथ क्रिया : यह सोडियम ऑक्साइड से क्रिया करके सोडियम ड्यूटीरियो ऑक्साइड बनाता है।
मृदु एवं कठोर जल
जो जल साबुन के साथ आसानी से झाग देता है, उसे मृदु जल और जो जल साबुन के साथ कठिनाई से झाग देता है, उसे कठोर जल कहते हैं।
जल की कठोरता दो प्रकार की होती है – (i) अस्थायी कठोरता, (ii) स्थायी कठोरता।
अस्थायी कठोरताः जल की कठोरता यदि जल को उबालने से दूर हो जाती है, तो इस प्रकार की कठोरता अस्थायी कठोरता कहलाती है। जल की अस्थायी कठोरता जल में बुझा चूना अथवा दुधिया चूना डालने से दूर हो जाती है।
स्थायी कठोरताः जल की कठोरता यदि जल को उबालने से दूर नहीं होती है, तो इस प्रकार की कठोरता स्थायी कठोरता कहलाती है। जल की स्थायी कठोरता उसमें कैल्शियम और मैग्नीशियम के सल्फेट, क्लोराइड, नाइट्रेट आदि लवणों के घुले रहने के कारण होती है।
जल में सोडियम कार्बोनेट डालकर उबालने से स्थायी एवं अस्थायी दोनों प्रकार की कठोरता दूर हो जाती है।
जल की स्थायी कठोरता दूर करने की मुख्य विधि परम्यूटिट विधि है। (परम्यूटिट सोडियम जीओलाईट को कहते हैं)
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