JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

नरम राज्य क्या है | नरम राज्य की परिभाषा किसे कहते है Soft State in hindi meaning definition

Soft State in hindi meaning definition नरम राज्य क्या है | नरम राज्य की परिभाषा किसे कहते है ?

नरम राज्य
गुन्नार मिर्डाल ने अपनी पुस्तक ‘‘एशियन ड्रामा‘‘ में भारत सहित एशिया के अनेक देशों में आधुनिकीकरण से उत्पन्न समस्याओं के विषय में उल्लेख किया है। उनका मानना है कि शक्तिशाली राज्य, प्रभावी सरकार एवं कठोर निर्णय लेने तथा अपने देश के कानून को सख्ती से लागू करने की उनकी क्षमता आधुनिक यूरोपीय समाज की प्रमुख विशेषताएँ हैं किंतु आमतौर पर दक्षिण एशियाई देशों में और विशेषकर भारत में स्वातंत्र्योत्तर काल में शासकीय अभिजन द्वारा एक ऐसे पथ का अनुकरण किया जा रहा है जिसे मिर्डाल ने नरम राज्य की नीति की संज्ञा दी है। राजनीति के लोकतांत्रीकरण ने इस नीति को और भी मजबूत किया है। इसने राष्ट्र राज्य को अपने देश के कानून को लागू करने की क्षमता को कमजोर किया है। परिणामस्वरूप अपराध, हिंसा, आतंकवाद, कानून के उल्लंघन, राजनीतिक जीवन में भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण में काफी बढ़ोत्तरी हुई है।

बोध प्रश्न 1
प) भारत के निम्नलिखित ऐतिहासिक अवस्थाओं में प्रमुख सामाजिक समस्याओं का वर्णन करें।
क) प्राचीन
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
ख) मध्ययुगीन
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
ग) आधुनिक
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
घ) समकालीन
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………

पपद्ध उन्नीसवीं शताब्दी के चार प्रमुख सुधार आंदोलनों के नाम बताएँ:
क) ………………………………………………………………………………………………………………………………………….
ख) ………………………………………………………………………………………………………………………………………….
ग) ………………………………………………………………………………………………………………………………………….
घ) ………………………………………………………………………………………………………………………………………….

पपप) भारत में रूपांतरण के तीन प्रमुख रूप बताएँ:
क) ………………………………………………………………………………………………………………………………………….
ख) ………………………………………………………………………………………………………………………………………….
ग) ………………………………………………………………………………………………………………………………………….

बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) क) जातिगत श्रेष्ठता, धार्मिक कर्मकाण्डों पर अत्यधिक जोर, कठोर उच्च परंपरा, पुरोहितों की उच्च स्थिति, पशु बलि।
ख) उपेक्षा, अंधविश्वास की प्रवृत्ति, शुद्धता और अपवित्रता की गहरी धारणा छुआछूत, बाल-विवाह, महिलाओं की निम्न स्थिति, विधवा को विधवा की ही तरह जीने का कड़ाई से पालन।
ग) सती, विधवापन, बाल विवाह, निरक्षरता, छुआछूत, ठगी, अंधविश्वास।
घद्ध संप्रदायवाद, छुआछूत, जनसंख्या विस्फोट, कमजोर वर्गों की समस्याएँ, शराब एवं नशीले पदार्थों का सेवन, गरीबी, बेरोजगारी, काला धन, अपराध, अपचार और हिंसा।
पप) आर्य समाज, ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज और रामकृष्ण मिशन।
पपप) कद्ध संस्कृतिकरण
ख) पश्चिमीकरण
ग) आधुनिकीकरण

सारांश
इस इकाई में सर्वप्रथम सामाजिक रूपांतरण और सामाजिक समस्याओं के बीच संबंध पर चर्चा की गई है। भारतीय संदर्भ में सामाजिक रूपांतरण की प्रक्रिया को ऐतिहासिक और ढाँचागत पहलुओं की दृष्टि से स्पष्ट किया गया है। इसके बाद सामाजिक कारकों और सामाजिक समस्याओं, सांस्कृतिक तत्वों और सांस्कृतिक समस्याओं, अर्थव्यवस्था, राज्यव्यवस्था और सामाजिक समस्याओं के बीच संबंधों की परख की गई है। अंत में हमने इन समस्याओं तथा भारतीय राज्य-व्यवस्था की वास्तविक कार्य शैली से उत्पन्न समस्याओं से निपटने के लिए राज्य की भूमिका पर चर्चा की है।

 शब्दावली
संरचनात्मक पतन: इस संकल्पना का प्रयोग टालकॉट पारसन ने किया है जिसका मतलब है – एक ऐसी कठोर प्रणाली, जिसके अंतर्गत सामाजिक रूपांतरण का प्रतिरोध करने या उसमें बाधा डालने के लिए प्रयास किया जाता है और इसके फलस्वरूप सामाजिक ढाँचे में खराबी उत्पन्न होती है। प्रणालीजन्य कठोरता के विरुद्ध लोगों द्वारा सामूहिक प्रयास के रूप में उठाए गए कदमों को माक्र्सवादियों ने ‘‘क्रांति‘‘ की संज्ञा दी है।

संरचनात्मक विसंगतियाँ: इस संकल्पना का अभिप्राय यह है कि एक ही ढाँचे के अंतर्गत दो विपरीत उप-ढाँचे का होना जो कि एक-दूसरे से असंगत होते हैं।

नरम राज्य: इस संकल्पना का प्रयोग गुन्नार मिर्डाल ने अपनी पुस्तक ‘‘एशियन ड्रामा: एन एन्क्वायरी इन टू दि पावर्टी ऑफ नेशन्स‘‘ में किया है। इस संकल्पना से उनका अभिप्राय नव स्वतंत्र एशियाई राज्यों की ऐसी कार्य शैली से है जिससे इन राज्यों को देश के कानून को लागू करने के लिए कठिन निर्णय लेना मुश्किल होता है।

उद्देश्य
इस इकाई का पूरी तरह से अध्ययन करने के बाद आप निम्नलिखित बातों के विषय में समर्थ होंगे:

ऽ भारतीय संदर्भ में सामाजिक रूपांतरण और सामाजिक समस्याओं के संबंधों का इतिहासगत बोध;
ऽ संरचनात्मक रूपांतरण तथा सामाजिक समस्याओं के परस्पर संबंध का वर्णन;
ऽ सामाजिक कारकों और सामाजिक समस्याओं के संबंध का स्पष्टीकरण; तथा
ऽ भारत में इन समस्याओं को निपटाने के लिए राज्य के हस्तक्षेप के स्वरूप का इंगितीकरण।

प्रस्तावना
इस इकाई में हम ‘‘सामाजिक समस्याएँ – भारतीय संदर्भ में‘‘ पर चर्चा करना चाहेंगे। भारतीय समाज में कुछ अनूठी विशेषताएँ हैं। आज भी भारतीय समाज अपने सुदूर अतीत से किसी न किसी रूप में निरंतरता बनाए हुए हैं। भारतीय समाज के आरंभिक काल में वर्णाश्रम, जाति, संयुक्त परिवार प्रणाली और ग्राम समुदाय जैसी सामाजिक संस्थाओं का उदय हुआ जो आधुनिक युग में भी बहुत सी सामाजिक समस्याओं के लिए उत्तरदायी हैं। भारत अति प्राचीन काल से ही एक बहु धर्मावलंबी, बहु भाषा-भाषी, तथा बहु क्षेत्रीय समाज रहा है। भारतीय समाज की इन विविधताओं ने महत्वपूर्ण सांस्कृतिक योगदान किया है और ये विविधताएँ ही भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की शक्ति का स्रोत है। किंतु इसके साथ ही इन विविधताओं ने भारतीय समाज में सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक एकता के क्षेत्र में अनेक चुनौतियों को भी जन्म दिया है।

संदर्भ
राम, 1992: सोशल प्रॉब्लम्स इन इंडिया, रावत पब्लिकेशंस, जयपुर।
हर्नर एवं गोनयन, 1987ः द स्ट्रक्चर ऑफ सोसियोलाजिकल थ्योरी, चैथा संस्करण, रावत पब्लिकेशंस, जयपुर।
केनैथ हेनरी, 1978: सोशल प्रॉब्लम्स: इंस्टीट्यूशनल एंड ट्यूटर पर्सनल प्रेस्पेक्टिवस, स्कॉट फोसमैन एंड कं., लंदन।
कोठारी रजनी, 1988: ट्रांसफॉरमेशन एंड सरवाइवल: इन सर्च ऑफ ह्यूमन वर्ल्ड ऑर्डर, अजंता पब्लिकेशंस, दिल्ली।
लर्नर डेनियल, 1964, द पासिंग ऑफ ट्रेडिशनल सोसाइटी, द फ्री प्रेस, लंदन ।
पोलांकी कार्ल, 1957, द ग्रेट ट्रांसफॉरमेशन: द पोलिटिकल ऐंड इकोनोमिक थारिजन ऑफ टाइम, बेकन प्रेस, बास्टन।
मरटोन रॉबर्ट एंड निसबेट रॉबर्ट, 1976: कान्टेम्परेरी सोशल प्रॉब्लम्स, हरकोर्ट बरेस, आरवैनोविच, इन्टरनेशनल एडिटिंग, न्यूयार्क, शिकागो। योगेन्द्र सिंह, 1988, मॉडर्नाइजेशन ऑफ इंडियन ट्रैडिशन, पुनर्मुद्रण, रावत पब्लिकेशंस, जयपुर।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

3 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now