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धर्म का समाजशास्त्र की परिभाषा क्या है | धर्म का समाजशास्त्र परिचय किसे कहते है Sociology of Religion in hindi

Sociology of Religion in hindi धर्म का समाजशास्त्र की परिभाषा क्या है | धर्म का समाजशास्त्र परिचय किसे कहते है ?

धार्मिक विशेषज्ञ और धर्म का समाजशास्त्र (Religious
Specialists and Sociology of Religion
)
इससे पहले कि हम इन तीन प्रकार के विशेषज्ञों का विस्तृत अध्ययन करें यह आवश्यक है कि समाजशास्त्र के छात्र होने के नाते हम यह जान लें कि धर्म समाजशास्त्र का इनके बारे में क्या कहना है? ‘‘धार्मिक विशेषज्ञ वह हैं जो अपने को धार्मिक प्रक्रिया के प्रति समर्पित करता है‘‘ (टर्नर: समाजशास्त्र का अन्तरराष्ट्रीय विश्वकोष पृ. 437)। समाज में जहाँ इस शक्ति को अवैयक्तिक समझा जाता है, नृविज्ञानियों के अनुसार यह एक जादुई शक्ति है तथा इस शक्ति का उपयोग करने वाला एक जादूगर। जहाँ यह शक्ति व्यक्तिक मानी जाती है जैसे देवी, देवता, आत्माएं तथा शैतान आदि, वहाँ नरतत्वीय विज्ञान-वेत्ता इसे धर्म के रूप में लेते हैं। यथार्थ में धर्म और जादू के मध्य कोई स्पष्ट अंतर नहीं किया जा सकता । धार्मिक प्रक्रियाओं में धार्मिक विश्वास, रीतियों तथा जादुई तत्वों का समावेश रहता है।

प्रारम्भिक नृविज्ञानियों जैसे कि फ्रेजर, दुर्खाइम, मैलिनोस्की ने सैद्धांतिक अध्ययन के लिए धार्मिक विशेषज्ञों को अलग व विशिष्ट घटना के रूप में नहीं पहचाना । उनके अनुसार, विशेषज्ञ धार्मिक प्रक्रिया का एक भाग है तथा यह एक विशिष्ट ‘सामाजिक‘ घटना है।

मेक्स वेबर ने इस संबंध में महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उसने विश्व धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन किया जिसमें उसने धार्मिक विचारों के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया । है और धार्मिक विशेषज्ञों को सामाजिक परिवर्तन या परम्परा के संवर्धन के प्रमुख कारक के रूप में देखा है। वेबर ने धर्मो, उनके सामाजिक प्रभावों तथा धार्मिक कार्यकर्ताओं के बारे में प्रचुर मात्रा में लिखा है। इससे पहले कि हम वेबर के मत के बारे में विस्तृत चर्चा करें। हमें इन पर दृष्टि डालनी होगी कि नृविज्ञानी विभिन्न धार्मिक विशेषज्ञों में किस प्रकार भेद करते हैं।

मेक्स वेबर ने पारम्परिक व्यापकता की जानकारी होते हुए भी पुरोहित व पैगम्बर में भेद किया है। वेबर के अनुसार, पुरोहित ईश्वर को मनाने हेतु ‘नियमित रूप से संगठित तथा स्थायी उद्यम‘ करता है। वेबर के अनुसार पैगम्बर व्यक्तिगत आधार पर पुरोहित से भिन्न है। पैगम्बर का अधिकार व्यक्तिगत चमत्कार तथा प्रासंगिकता पर आधारित है।

बाक्स 1
वेबर से अलग मत रखने वाले विद्वान जो धर्म की सामाजिक परिवर्तन व पुनर्चेतन के फलस्वरूप उत्पत्ति के विचार को अधिक गहराई से नहीं लेते वे ओझा को सरल समाजों की धार्मिक व्यवस्था के सहज प्रतीक के रूप में देखते हैं। संपादक लेजा तथा ई. जेड. होग्ट ने अपने ‘रीडर इन कम्पेरेटिव रिलिजन‘ (1958) में एक पूरा खंड इस पहलू के प्रति समर्पित किया है। वे पाते हैं कि ओझा जीविका-अर्जित करने वाले समाज में महत्ता प्राप्त कर लेते हैं। जहाँ ओझा एक व्यक्ति अथवा समूह को व्यक्तिगत सेवाएं प्रदान करता है, दूसरी तरफ, उनके अनुसार, पुरोहित तंत्र रूप में अधिक जटिल खाद्यान्न उत्पादन व कृषि समाज की विशेषता है जहाँ पूरे समुदाय के हित के लिए सामान्य उत्सव अथवा रीति-रिवाज पाए जाते हैं।

रेमंड फर्थ के अनुसार ओझा एक ऐसा विशेषज्ञ है जो आत्माओं, दैवीय शक्ति पर नियंत्रण की विकसित तकनीक का प्रयोग करता है। यहाँ देवीय शक्ति आत्माओं पर नियंत्रण के प्रयोग पर बल दिया गया है। इस प्रकार वह “पारलौकिक तथा मानव जाति के मध्य संरक्षण के माध्यम के रूप में सेवाएं प्रदान करता है।‘‘ (फर्थ, 1964 ,पृ. 689)

यद्यपि हम पाते हैं कि उनके कार्य परस्पर व्यापक हैं, पुरोहित, पैगम्बर तथा ओझा स्पष्ट रूप से धार्मिक कार्यकर्ता की एक इकाई की भिन्न उपइकाइयां हैं। इससे पहले कि दैनिक जीवन में धार्मिक विशेषज्ञों की भूमिका के बारे में मोटे तौर पर व्याख्या करें, हम संक्षेप में धर्म के बारें में वेबर के मत का अध्ययन करेंगे।

 धर्म के बारे में वेबर का मत (Weber on Religion)
वेबर का विश्वास है कि किसी समाज में व्यक्तियों के तौर तरीके धार्मिक व जादुई तत्वों द्वारा संचालित होते हैं। वह अपने अध्ययन में ईश्वर की बहुलता तथा उसकी क्षमताओं की चर्चा करता है। वह इस्लाम तथा यहूदी जैसे अद्वैतवादी धर्मो तथा हिन्दू धर्म जैसे अनेक ईश्वरीय धर्मो की भी चर्चा करता है। धार्मिक अनुभवों तथा विशेषज्ञों का वर्गीकरण करने के प्रयास में वह इस बात की ओर इशारा करता है कि कैसे प्रार्थना, बलिदान तथा पूजा-उपासना के द्वारा मानव जाति दैवीय शक्ति से अपना संबंध स्थापित करती है। इस कार्य में पुरोहित रूपी मध्यस्थ उनकी मदद करते हैं। प्रायः प्रार्थना के फलदायक सिद्ध न होने पर झाड़ फूंक व जादू टोनों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार की स्थितियों में, वे जादूगर की ओर झुकते हैं। यह कहा जा सकता है कि धार्मिक विशेषज्ञ हितकारी दैवीय शक्तियों से धार्मिक क्रियाओं के द्वारा तथा अहितकारी शक्तियों से जादुई क्रियाओं द्वारा संबंध स्थापित करते हैं। कुछ ऐसे समाज भी हैं जहाँ ये दोनों क्रियाएं एक ही धार्मिक विशेषज्ञ द्वारा की जाती हैं, उदाहरण के लिए अफ्रीका में सूडान की नुएर (Nuer) जनजाति का मुखिया लियोपार्ड स्किन।

ऊपर वर्णित कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त वेबर, समाज में धार्मिक नेता अथवा पैगम्बर की मौजूदगी को भी मान्यता प्रदान करता है। पैगम्बर, इस्लाम जैसे विश्वव्यापी धर्म का संस्थापक अथवा भारत में सत्य साई बाबा की भांति पंथिक नेता हो सकता है। आइए हम प्रत्येक विशेषज्ञ के बारे में स्वतंत्र रूप से अध्ययन करें।

उद्देश्य
प्रस्तुत इकाई में धार्मिक विशेषज्ञों की प्रकृति का अध्ययन करते हुए तीन विशेष प्रकार के विशेषज्ञों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है: ओझा, पुरोहित तथा पैगम्बर। हम आशा करते हैं कि इकाई के अध्ययन के बाद आप निम्नलिखित के बारे में प्राप्त कर सकेंगे।

ऽ इन विशेषज्ञों की प्रकृति व कार्य,
ऽ समय के साथ इनका विकास कैसे हुआ तथा किस प्रकार उनकी स्थिति आज उतनी प्रासंगिक नहीं है जितनी एक समय पर थी,
ऽ मानव तथा ईश्वर के बीच मध्यस्थ के रूप में इनकी भूमिका, तथा
ऽ इन विशेषज्ञों की प्रकृति में होने वाले परिवर्तन।

प्रस्तावना
यह इकाई धार्मिक विशेषज्ञों की प्रकृति के अध्ययन से संबंधित है। हमारे लिए आवश्यक है कि, उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करें। उनमें निहित कुछ निश्चित चामत्कारिक गुणों के कारण उन्हें मानव तथा ईश्वर/दैवीय शक्ति के बीच मध्यस्थ की भूमिका का पद दिया जाता है। मध्यस्थता का यह कार्य किसी एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के किसी ऐसे समूह द्वारा किया जा सकता है, हाँ प्रत्येक व्यक्ति एक निश्चित व अलग तरह का कार्य करता है। यह कार्य अथवा क्रियाएं विशेष रीति-रिवाजों, दैनिक प्रक्रिया अथवा बीमारी के समय सम्पन्न कराई जा सकती हैं।

धार्मिक विशेषज्ञ विभिन्न प्रकार के हैं तथा उनकी प्रकृति उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य, सिद्धांत जिसमें वे विश्वास रखते हैं तथा उनके अनुयायियों की प्रकृति पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, मंदिरों में पुरोहित, पैगम्बर जैसे कि मोहम्मद साहब, पंथिक नेता जैसे कि सत्य साई बाबा, ओझा जैसे कि नेपाल व तिब्बत में पाए जाते हैं, मत-नेतृत्व जैसे कि इस्कॉन के दिवंगत स्वामी प्रभुपादी आदि हैं।

विशेषज्ञों की भूमिका व प्रभाव अलग-अलग समाजों में अलग अलग है तथा कुछ हद तक ये एक समाज विशेष में प्रचलित धार्मिक व्यवस्था की प्रकृति पर निर्भर करते हैं। विशेषज्ञों का कार्य प्रायःसुखमय लक्ष्यों की प्राप्ति करना तथा दूसरों को हित पहुँचाना होता है पर बहुधा उनका लक्ष्य हानि पहुँचाना भी हो सकता हैं। हम देखते हैं कि अक्सर लोग इन धार्मिक विशेषज्ञों की सेवा उन स्थितियों में भी प्राप्त करते हैं जहाँ उनकी कोई आवश्यकता नहीं होती। झाड़-फूंक करने वालों, जादू टोना करने वालों तथा दवाई देने वालों धार्मिक विशेषज्ञों की सेवाएं एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में प्राप्त की जाती हैं। अतः इस इकाई में विशेषज्ञों के तीन विशेष प्रकारों-पुरोहित, ओझा तथा पैगम्बर का अध्ययन किया गया है तथा उनके कार्य व सामाजिक महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है। हम जहाँ कहीं भी संभव होगा प्रस्तुत विवरण से संबंधित उदाहरण भी प्रस्तुत करेंगे।

सारांश
इस इकाई में आपने तीन विभिन्न प्रकार के धर्म-विशेषज्ञों के बारे में पढ़ा। हमने धर्मविशेषज्ञ को समझने से आरंभ किया तथा समाज के लिए उसके कार्यों का भी अध्ययन किया।

तत्पश्चात हमने मेक्स वेबर द्वारा धर्म के समाज-विज्ञान के महत्वपूर्ण योगदान का विश्लेषण किया एवं पुजारी, जादूगर व पैगम्बर के बारे में उनके विचार को जाना।

इस इकाई में प्रत्येक विशेषज्ञ-पुजारी, ओझा तथा पैगम्बर के बारे में अलग से चर्चा की गई तथा उनकी विशेषताओं तथा कार्यों के बारे में भी जाना गया । हमने यह दिखाने का प्रयास किया है कि किस प्रकार प्रत्येक विशेषज्ञ विशिष्ट संदर्भ में महत्व रखता है तथा किस प्रकार जनसामान्य से वह अपना संबंध स्थापित करता है। इन तीन प्रकार की भूमिकाओं का विश्लेषण करने का उद्देश्य यह दर्शाना है कि किस प्रकार प्रत्येक विशेषज्ञ पारलौकिक जगत से अपने भिन्न प्रकार से संबंध स्थापित करता है। अंततः जहां कहीं भी संभव हो सका, हमने अपने प्रस्तुतीकरण को भारतीय संदर्भ से लिये गये उदाहरणों से पुष्ट करने का प्रयास किया है। तथापि हमारा प्रस्तुतीकरण सीमित है क्योंकि विषय-क्षेत्र इतना व्यापक है कि उसे कुछ पृष्ठों में बांधना कठिन है।

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