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रैडक्लिफ ब्राउन सामाजिक संरचना उदाहरण रैडक्लिफ ब्राउन संरचनात्मक व्यावहारिकता radcliffe brown in hindi
concept of social structure by radcliffe brown in hindi pdf रैडक्लिफ ब्राउन सामाजिक संरचना उदाहरण रैडक्लिफ ब्राउन संरचनात्मक व्यावहारिकता ?
प्रकार्य की अवधारणा
जैसा कि इस पाठ्यक्रम में आपने पहले पढ़ा है कि जीव विज्ञान में ‘प्रकार्य‘ की अवधारणा का बहुत महत्व है। हर जीव की शरीर-संरचना जिन अवयवों अथवा अंगों के मेल से बनती है, वे अवयव ही शरीर को जीवित और स्वस्थ बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
एमिल दर्खाइम ने सामाजिक संस्थाओं के अध्ययन में इस अवधारणा का सफलतापूर्वक प्रयोग किया। उसने प्रकार्य की व्याख्या सामाजिक प्राणी की आवश्यकताओं के अर्थ में की। रैडक्लिफ-ब्राउन ने अपने अध्ययन में ‘आवश्यकताओं‘ के स्थान पर ‘अस्तित्व की अनिवार्य स्थितिया‘ की शब्दावली का प्रयोग किया है। दूसरे अर्थों में उसका यह मानना है कि मानव समाजों को अपने अस्तित्व के लिए कुछ बुनियादी शर्तों को परिपूर्ण करना होगा। जिस प्रकार जीव-जंतुओं के लिए सॉस लेना, खाना, मल-मूत्र त्यागना तथा प्रजनन क्रियाएं अनिवार्य है, उसी प्रकार सामाजिक संगठनों के लिए भी कुछ गतिविधियाँ नितांत आवश्यक है। रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार, इन ‘अस्तित्व की अनिवार्य स्थितियों‘ की पहचान समुचित वैज्ञानिक विधि से की जा सकती है। आइए, अब हम संरचना तथा प्रकार्य के बीच रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा बताए गए ‘संबंध‘ की व्याख्या करें।
संरचना और प्रकार्य
जीवों के संदर्भ में संरचना तथा प्रकार्य की परस्पर क्या क्रिया होती है? जिस प्रक्रिया के जरिए जीव की संरचना कायम रहती है, उसे ‘जीवन‘ कहते है। जीवन-प्रक्रिया में विभिन्न कोशिकाओं एवं अवयवों की गतिविधियाँ एवं पारस्परिक क्रियाएं शामिल हैं। इसका अर्थ यह है कि जीव-रचना के विभिन्न अवयवों के कार्यकलाप ही उसकी संरचना को बनाए रखने में सहायक होते हैं। यदि हमारे फेफड़े, हदय अथवा पेट काम करना बंद कर दें तो हमारे शरीर की क्या हालत होगी? शरीर निरूशक्त हो जाएग और हमारी मृत्यु हो जाएगी। रैडक्लिफ-ब्राउन (1971ः 179) का कहना है कि ‘हर जीव का जीवित रहना उसकी संरचना का प्रकार्य माना जाता है। इस प्रकार्य तथा उसकी निरंतरता के बल पर ही संरचना की निरंतरता कायम रहती है।‘
आइए, अब हम जैविक रचना से सामाजिक जीवन की ओर बढ़े। सामाजिक संरचना की निरंतरता सामाजिक जीवन की प्रक्रिया द्वारा कायम रहती है। सामाजिक जीवन में विभिन्न मनुष्यों तथा मनुष्यों के समूहों की गतिविधियाँ एवं पारस्परिक क्रियाएं शामिल होती हैं। दूसरे शब्दों में, सामाजिक जीवन वह विधि है जिससे सामाजिक संरचना का प्रकार्य होता है। किसी भी बार-बार होने वाली सामाजिक गतिविधि का प्रकार्य है – सामाजिक संरचना की निरंतरता को बनाए रखना। उदाहरण के लिए, विवाह निरंतर होने वाली सामाजिक गतिविधि है। विवाह के माध्यम से महिला और पुरुष एक-दूसरे के निकट आते हैं और उनके यौन-संबंधों को सामाजिक मान्यता मिलती है। वैवाहिक संबंध से परिवार में बच्चों का जन्म होता है, जो समाज के नए सदस्य बनते हैं। इस प्रकार, यौन-संबंधों को सामाजिक रूप देने तथा समाज को नए सदस्य प्राप्त करने का वैध उपाय प्रदान करके विवाह द्वारा सामाजिक संरचना को बनाए रखने का प्रकार्य संपन्न होता है। रैडक्लिफ-ब्राउन (1971ः 180) के शब्दों में, “इस प्रकार प्रकार्य की अवधारणा में संरचना की धारणा निहित है, जिसमें इकाइयों के संबंधों का समुच्चय, और अंगभूत अवयवों की गतिविधियों से बनी जीवन प्रक्रिया से अनुरक्षित संरचना की निरंतरता शामिल होती है।‘‘
आइए, अब हम सामाजिक संरचना तथा प्रकार्य के परस्पर संबंधों का और आगे विश्लेषण करें। रैडक्लिफ-ब्राउन का कहना है कि शरीर संरचना का प्रेक्षण कुछ हद तक प्रकार्य से स्वतंत्र अथवा पृथक रूप से किया जा सकता है अर्थात् मानव कंकाल का अध्ययन हड्डियों की स्थिति, रूप, आकार आदि के संदर्भ में किया जा सकता है जिसमें उनके प्रकार्य पर कोई ध्यान न दिया जाए। किंतु मानव समाज का अध्ययन करने में ‘संरचना‘ तथा ‘प्रकार्य‘ को पृथक नहीं किया जा सकता।
रैडक्लिफ-ब्राउन (1971ः 181) के अनुसार, “सामाजिक संरचना के कुछ पहलुओं का जैसे कि व्यक्तियों तथा समूहों के भौगोलिक वितरण का प्रत्यक्ष प्रेक्षण किया जा सकता है। किंतु अधिकतर सामाजिक संबंध, जो अपनी समग्रता में संरचना का निर्माण करते हैं (जैसे कि पिता और पुत्र, विक्रेता और ग्राहक तथा राजा और प्रजा का संबंध) उन सामाजिक गतिविधियों में ही देखे जा सकते हैं, जिनमें इनका प्रकार्य होता है‘‘। दूसरे शब्दों में, रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार सामाजिक आकृति विज्ञान (social morphology) या सामाजिक संरचनाओं के प्रकार, उनकी समानताओं, भिन्नताओं तथा वर्गीकरण का अध्ययन और सामाजिक शरीर विज्ञान (social physiology) या सामाजिक संरचनाओं की प्रकार्य-विधि का अध्ययन एक-दूसरे पर आश्रित है।
आइए, अब हम रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा व्यक्त एक महत्वपूर्ण विचार की चर्चा करें, जिसे सामाजिक प्रणाली की ‘प्रकार्यात्मक एकता‘ का नाम दिया गया है। परंतु पहले बोध प्रश्न को पूरा कर लें।
बोध प्रश्न 1
प) निम्नलिखित वाक्यों को रिक्त स्थानों की पूर्ति द्वारा पूरा कीजिए।
क) जबकि दखाईम ने “आवश्यकतओं की बात कही, रैडक्लिफ-ब्राउन ने अपने अध्ययन में ‘‘………………….” की शब्दावली का प्रयोग किया।
ख) रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार, हर जीव का जीवित रहना उसकी माना जाता है।
पप) निम्नलिखित कथन सही है अथवा गलत, बताइए।
क) विवाह निजी विषय है, जिसका सामाजिक संरचना से कुछ लेना-देना नहीं है। सही/गलत
ख) हर जीव की संरचना का प्रेक्षण उसके अंगों के प्रकार्य से पृथक करके नहीं किया जा सकता।
सही/गलत
ग) रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार, सामाजिक आकृति विज्ञान (social morphology) तथा सामाजिक शरीर विज्ञान (social physiology) का अध्ययन एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है।सही/गलत
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 1
प) क) अस्तित्व की अनिर्वाय स्थितियाँ
ख) उसकी संरचना का प्रकार्य
पप) क) गलत
ख) गलत
ग) सही
प्रकार्यात्मक एकता
जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा है सामाजिक आचरण अथवा गतिविधि के प्रकार्य का अर्थ है संपूर्ण सामाजिक प्रणाली के संचालन में उसका योगदान । इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सामाजिक व्यवस्था में एक प्रकार की एकता है, जिसे रैडक्लिफ-ब्राउन ने ‘प्रकार्यात्मक एकता‘ का नाम दिया है। इससे उसका अभिप्राय ऐसी स्थिति से है जिसमें सामाजिक व्यवस्था के सभी अंग समरसता (harmony) और अनुकूलता (consistency) के साथ काम करते हैं यानी ऐसे कोई तनाव अथवा टकराव पैदा नहीं होते, जिनका समाधान. अथवा नियंत्रण संभव न हो। यदि हम ब्रिटिश-पूर्व भारत का उदाहरण लें तो यह कहा जा सकता है कि सामाजिक व्यवस्था के विभिन्न अंग, अर्थात् ग्राम संगठन, जाति संयुक्त परिवार आदि समरसता और अनुकूल भाव से चलते थे। वे एक-दूसरे के पूरक थे तथा सामाजिक संरचना के अस्तित्व को बनाए रखने में योग देते थे।
अभी तक हमारा अध्ययन सामाजिक संस्थाओं के सकारात्मक प्रकार्यों, जैसे कि सामाजिक संरचना के अनुरक्षण (maintenance) में भूमिका, तक सीमित रहा है। परंतु समाज में प्रकार्यों के प्रभाव से संरचना का सदैव अनुरक्षण ही नहीं होता है, कभी-कभी ऐसे प्रकार्य भी होते हैं, जिनके प्रभाव से संरचना में विकार की संभावनाएं पैदा हो जाती है। ऐसे प्रकार्यों की ‘दुष्प्रकार्य‘ (dysfunction) कहा जाता है। आइए, अब हम रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा प्रतिपादित दुष्प्रकार्य की संभावना का विवेचन करें।
रैडक्लिफ-ब्राउन के संरचनात्मक प्रकार्यवाद के कुछ उदाहरण
रैडक्लिफ-ब्राउन केवल प्रकार्यवादी नहीं बल्कि एक संरचनात्मक प्रकार्यवादी था। इससे हमारा अभिप्राय है कि उसका अध्ययन केवल यहीं तक सीमित नहीं था कि रीति-रिवाज और सामाजिक संस्थाएं समाज के अस्तित्व को बनाए रखने की आवश्यकताएं किस तरह परिपूर्ण करती हैं। विभिन्न सामाजिक संबंधों के बीच क्या संबंध है– इसमें भी उसकी अभिरुचि थी। रैडक्लिफ-ब्राउन की संरचनात्मक प्रकार्यवाद की पद्धति को कुछ उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है। इन उदाहरणों में यह देखा जा सकता है कि उसने सामाजिक संरचना और प्रकार्य की अवधारणाओं को मिला कर किस तरह समाज का अध्ययन किया है।
रैडक्लिफ-ब्राउन (1933ः 230) ने अपनी पुस्तक अण्डमान आईलैडर्स में लिखा है, “जिस प्रकार हर प्राणी के शरीर का प्रत्येक अंग प्राणी के सामान्य जीवन में कोई न कोई भूमिका निभाता है, उसी प्रकार हर समुदाय के सामाजिक जीवन में प्रत्येक प्रथा और विश्वास की निश्चित भूमिका रहती है।‘‘ इसी मत को ध्यान में रखते हुए अण्डमान द्वीप समूह के लोगों में आनुष्ठानिक विलाप की प्रथा के बारे में रैडक्लिफ-ब्राउन की व्याख्या को समझा जा सकता है। इस व्याख्या को पढ़ने के बाद आपको रैडक्लिफ-ब्राउन की संरचनात्मक प्रकार्यवाद की अवधारणा अधिक स्पष्ट हो जाएगी।
अण्डमान द्वीप समूह में आनुष्ठानिक विलाप
अण्डमान के रीति-रिवाजों में सामाजिक विलाप भी शामिल है। मित्रों अथवा संबंधियों के लंबे समय के उपरांत पुनर्मिलन, मृत्यु, विवाह, नामकरण संस्कार, शांति स्थापना अनुष्ठान जैसे अनेक अवसरों में अण्डमानवासी सामूहिक रूप से रोते हैं।
रैडक्लिफ-ब्राउन की मान्यता है कि इन सभी समारोहों का उद्देश्य उस भावना की अभिव्यक्ति है, जिससे समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप व्यक्ति के आचरण को मर्यादित करने में मदद मिलती है। इसलिए रैडक्लिफ-ब्राउन ने इस प्रथा का अर्थ खोजने के महत्व पर बल दिया है। प्रश्न उठता है कि यह काम किस तरह किया जाए? सबसे पहले समाज के विभिन्न सदस्यों की व्याख्याओं पर विचार किया जा सकता है। इसके पश्चात् उन संदर्भो तथा स्थितियों की तुलना की जा सकती है, जिनमें प्रथा ने जन्म लिया और इस तरह उसका वास्तविक महत्व मालूम किया जा सकता है।
रैडक्लिफ-ब्राउन ने बताया कि आनुष्ठानिक विलाप उन स्थितियों में किया जाता है, जिनमें टूटे हुए अथवा बिगड़े हुए सामाजिक संबंध फिर से जोड़े जाने हैं। उदाहरण के लिए, जब लंबे समय से बिछुड़े दोस्त मिलते हैं तो आनुष्ठानिक विलाप इसलिए किया जाता है कि जुदाई समाप्त हो गई है और फिर से संपर्क कायम हो जाएंगे। इसी प्रकार, मौत के समय मृतक की अंतिम बिदाई पर आनुष्ठानिक विलाप किया जाता है क्योंकि उसके बाद जीवन की गाड़ी पहले की तरह चलने लगेगी और सामान्य संबंध तथा गतिविधियां पुनरू चालू हो जाएंगी।
इस तरह स्पष्ट हो जाता है कि आनुष्ठानिक विलाप की सामाजिक जीवन में निश्चित भूमिका अथवा प्रकार्य है। आइए, अब हम यह देखें कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने कैसे आदिम समाजों में टोटमवाद के अध्ययन के महत्व को प्रकार्य की दृष्टि से तो देखा ही और साथ में उसके संरचनात्मक पक्ष को भी हमारे सामने रखा। प्रकार्यात्मक भूमिका को समझने हेतु सोचिए और करिए 2 को पूरा करें।
सोचिये और करिए 2
अपने समुदाय में विवाह के मौके पर होने वाले रीति-रिवाजों को देखिए और उनकी सूची बनाइए। इनमें से दो को चुनकर दो पृष्ठों में बताइए कि उनका क्या प्रकार्यात्मक महत्व है? उनकी क्या प्रकार्य भूमिका है? यदि संभव हो तो अपने अध्ययन केन्द्र के अन्य विद्यार्थियों के उत्तर से अपने उत्तर की तुलना कीजिए।
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