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सामाजिक मानक किसे कहते हैं | social norms in hindi in sociology meaning | मानदण्ड समाज

समाज मानदण्ड क्या है सामाजिक मानक किसे कहते हैं | social norms in hindi in sociology meaning ?
मानक का अभिप्राय (Meaning of Norms)

सामाजिक मानक अथवा मानदण्ड समाज से जुड़े वे मूल्य, प्रतिमान, विश्वास तथा परम्पराएं हैं जो व्यक्ति के व्यवहार को निर्देशित करते हैं। इन मानदण्डों के अथवा नियामकों के आधार पर ही व्यक्ति यह समझ पाता है कि किसी परिस्थिति अथवा संदर्भ विशेष में उसका व्यवहार कैसा होना चाहिए। समाजशास्त्रियों के अनुसार सामाजिक नियामक एक तरह से वे अनौपचारिक निर्देश हैं जो सामाजिक व्यवहार को एक दिशा प्रदान करता है। परन्तु मनोवैज्ञानिकों के द्वारा ‘मानक‘ की परिभाषा को और सरलीकृत किया गया है और इसे (मानक को) पूरे समाज के संदर्भ में नहीं बल्कि छोटे-छोटे समूहों यथा- एक टीम, दफ्तर, संस्था आदि के संदर्भ में व्याख्यायित करने की कोशिश की गई है। वस्तुतः मनोवैज्ञानिकों ने मानक (नियामक) को सांस्कृतिक अथवा सामाजिक परिप्रेक्ष्य के अलावा छोटे-छोटे मानव समूहों के संदर्भ में समझने का प्रयास किया है।
अतः सामान्य शब्दों में कहा जाए तो मानक अथवा मानदंड वे प्रतिमान (Pattern) हैं जो व्यक्ति को यह बताता है कि उसे किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए। हालांकि एक बुद्धिमान व्यक्ति नियमानुसार ही आचरण करता है अगर ऐसा सचमुच अपरिहार्य हो।

प्रत्यायन अथवा विश्वास उत्पन्न करना (Persuasion)

प्रत्यायन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दूसरों को अपनी मनोवृत्ति में परिवर्तन लाने हेतु प्रभावित किया जाता है, दूसरे शब्दों में, कहा जाए तो व्यक्ति में विश्वास उत्पन्न करने की कोशिश की जाती है, उसे समझाया जाता है ताकि वह वक्ता की बात मानकर अपनी मनोवृत्ति बदल ले। प्रत्यायन के वैज्ञानिक अध्ययन का श्रेय सर्वप्रथम कार्ल होवलैंड को दिया जाता है। होवलैंड येल विश्वविद्यालय में समाज मनोविज्ञान के शिक्षक थे जिन्होंने सिपाहियों की मनोदशा और हौसले पर फिल्मों (चलचित्र) के प्रभाव का अध्ययन किया था। होवलैंड तथा उनके सह अनुसंधानकर्ताओं ने जिस तथ्य का अध्ययन किया था उसका सार (Essence) था – ‘‘कौन, किसे और क्या कहता है?‘‘ (Who says what to whom) इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है-
ऽ कौन: स्रोत = यहां स्रोत प्रत्यायक (Persuader) अर्थात् सूचना देने वाला व्यक्ति होता है।
ऽ क्या कहता है: सूचना/संदेश = इसका अभिप्राय है वास्तविक तथ्य जो प्रत्यायक (Persuader) द्वारा लक्ष्य व्यक्ति (Target person) से कहा गया है।
ऽ किसे: श्रोता = यहां श्रोता का अर्थ है लक्ष्य व्यक्ति जिसे प्रभावित कर उसकी मनोवृत्ति बदलने की कोशिश की जाती है।
प्रत्यायन: प्रत्यायन (Persuasion) अथवा राजी करने की कोशिश कितना प्रभावी हो सकता है, यह दो बातों पर निर्भर करता है – विश्वसनीयता तथा स्रोत का आकर्षक व्यक्तित्व।

प्रत्यायन के संघटक (Constructs of Persuasion)
प्रत्यायन की प्रक्रिया में तीन तत्व महत्वपूर्ण हैंः
ऽ प्रत्यायन (Persuasion) के लिए प्रयोग में लाया गया स्रोत (सूत्र)।
ऽ सूचना (संवाद) जो लक्ष्य व्यक्ति को प्रेषित किया जाता है।
ऽ श्रोता अर्थात् लक्ष्य-व्यक्ति (Target Person) जिसे प्रभावित करने की कोशिश की जाती है।

स्रोत की विश्वसनीयता (Source Credibility)
एक स्रोत (प्रत्यायक) को विश्वसनीय माना जा सकता है अगर वह अपने क्षेत्र का विशेषज्ञ है। परन्तु उसकी विश्वसनीयता के लिए इतना ही काफी नहीं है बल्कि उसके बारे में यह भी स्पष्ट होना जरूरी है कि वह विश्वास करने के लायक है। अर्थात् प्रत्यायन से संबंधित सूचनाओं को देने वाला सूत्र (Source) जिस हद तक विश्वसनीय होता है, उसी हद तक उसका प्रभाव हमारे विचारों तथा व्यवहारों पर पड़ता है।

स्रोत का रुचिकर होना (Source Likeability)
एक स्रोत (प्रत्यायक) रुचिकर माना जाता है अगर उसका व्यक्तित्व आकर्षक हो आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि वह बुद्धिमान भी होगा। अर्थात् प्रत्यायक अगर शारीरिक रूप से आकर्षक है, उसका व्यक्तित्व चमत्कारी है तो उसकी प्रभावशीलता भी ज्यादा होगी। यही कारण है कि स्रोत अथवा प्रत्यायक आकर्षक है तो उसकी बात को गंभीरता से लिया जाता है, परन्तु अगर वह आकर्षक नहीं है अथवा कम आकर्षक है तो उसकी बात के प्रति उतनी गंभीरता नहीं दिखाई जाती।
प्रत्यायन के प्रति प्रतिरोध अथवा प्रत्यायन के प्रभाव से बचना (Resisting Persuasions)
प्रत्यायन के प्रति प्रतिरोध का अर्थ है प्रत्यायन के प्रभाव से बचना। दूसरे शब्दों में, कहा जाए तो किसी प्रत्यायन के प्रभाव में आकर अपनी मनोवृत्तियों, विचारों में परिवर्तन नहीं लाने की प्रक्रिया ही प्रत्यायन के प्रति विरोध या प्रतिरोध है। प्रत्यायन के प्रभाव से बचने के कई तरीके होते हैंः
ऽ संचारण अथवा प्रत्यायक विचारों से रक्षा (Attitude inoculation)
ऽ अग्रचेतावनी (Forewarned)
ऽ मानसिक एवं शारीरिक रूप से क्षमतावान (Stockpile)
ऽ अपनी व्यक्तिगत स्वायत्तता की सुरक्षा अथवा प्रतिघात (Defences against influence)

संचारण अथवा प्रत्यायक विचारों से रक्षा (Attitude inoculation)

संचारण प्रत्यायन के प्रभाव से बचने का एक तरीका है और इस विधि में हमारे पूर्व अनुभव की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हमारे दृष्टिकोण के विपरीत हमारे पूर्व अनुभव अर्थात तर्क-वितर्क की अगर हमें जानकारी रहती है तो बाद के प्रत्यायन के विरुद्ध हमारे अंदर तीव्र प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है। इस आधार पर हम प्रत्यायन से बचाव करते हैं। इसे एक उदाहरण द्वारा हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि अगर किसी व्यक्ति को पहले से ही संचारित कर दिया जाता अर्थात् उसे रोग संवंधी टीका लगा दिया जाए तो उसकी रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है। यही बात मनोवृत्ति संचारण में होती है क्योंकि इस दौरान व्यक्ति अपनी मनोवृत्ति के विपरीत तर्कों से अंजान नहीं रहता। अतः वह प्रत्यायक के विचारों का जोरदार खंडन कर अपनी सुरक्षा कर लेता है।

अग्रचेतावनी (Forewarned)

यहां अग्रचेतावनी का अर्थ है प्रत्यायक (Persuader) के उद्देश्यों का पूर्वज्ञान। अर्थात् जब लक्ष्य व्यक्ति को इस बात का ज्ञान पहले से रहता है कि प्रत्यायन करने वाला व्यक्ति किस उद्देश्य या अभिप्राय से उसकी मनोवृत्ति या विचार को बदलने का प्रयास कर रहा है तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति प्रत्यायन के प्रति प्रतिरोध व्यक्त करता है। इसकी संभावना और बढ़ भी जाती है जहां प्रत्यायक संदेश लक्ष्य व्यक्ति के दृष्टिकोण के विपरीत होता है। पूर्वचेतावनी से लक्ष्य व्यक्ति को प्रत्यायक के संदेश को खंडित करने के लिए तथ्यों को इकट्ठा करने का मौका भी मिल जाता है। अतः अग्रचेतावनी में प्रत्यायक के अभिप्राय का पूर्वज्ञान ही प्रतिरोध का मुख्य आधार है। कई बार प्रत्यायक की बात से राजी न होकर लक्ष्य व्यक्ति कभी-कभी प्रत्यायक की बातों के प्रति तीव्र विरोध प्रकट करता है और उसकी मनोवृत्ति प्रत्यायक के उद्देश्य के प्रति और नकारात्मक हो जाती है। इसे मनोविज्ञान (Boomerang effect) में निष्फल होना भी कहा जाता है। यहां प्रत्यायक का उद्देश्य पूर्ण रूप से निष्फल हो जाता है।

प्रत्याक्रमण प्रभाव (Boomerang effect)
समाज विज्ञान में प्रत्याक्रमण प्रभाव अथवा निष्फल एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है जिसे कुछ प्रयोग द्वारा प्रमाणित भी किया गया है। प्रयोगों में यह पाया गया कि अगर किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जाता है तो यह प्रयास तो निष्फल होता ही है। साथ ही कई बार इस प्रयास के प्रतिरोध में तीव्र प्रतिक्रिया होती है अर्थात् वह व्यक्ति (जिसकी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा रहा हो) अनुपालन करने के बजाय प्रत्यायक के ठीक विपरीत व्यवहार करने लगता है। सोशल मार्केटिंग के क्षेत्र में ‘बूमरेंज इफेक्ट‘ अक्सर देखने को मिलता है। सोशल मार्कोटिंग के द्वारा मनोवृत्ति में बदलाव की कोशिश होती है ताकि एजेन्ट अपना माल बेच सके। ऐसे में कई बार संभावित खरीदार उस वस्तु (माल) को खरीदने के बजाय उसके प्रति तीव्र नकारात्मक मनोवृति विकसित कर लेता है। भले ही स्वाभाविक रूप से वह उस उत्पाद को बहुत ज्यादा नापसंद न करता हो।

मानसिक व शारीरिक रूप से क्षमतावान (Stockpile)
यहां ‘स्टॉकपाइल‘ का अभिप्राय यह है कि जो व्यक्ति शारीरिक रूप से सबल, मानसिक स्तर पर
बुद्धिमान तथा सामाजिक रूप से जागरूक हो, उसकी मनोवृत्ति में परिवर्तन लाना एक प्रत्यायक के लिए आसान नहीं होता। प्रत्यायन अर्थात् किसी से अपनी बात मनवाने के लिए उसे राजी करने की प्रक्रिया में लक्ष्य व्यक्ति आर काफी शिक्षित और स्वस्थ है तो प्रत्यायन बहुत ही कठिन हो जाता है, क्योंकि एक सबल व शिक्षित व्यक्ति की मनोवृत्ति में परिवर्तन लाना सहजता से संभव नहीं होता।

अपनी व्यक्तिगत स्वायत्तता की सुरक्षा (Defence against Influence)
प्रत्यायन से बचाव करने का एक तरीका यह भी है कि व्यक्ति अपनी स्वायत्तता की रक्षा करने की प्रवृत्ति को प्राथमिकता दे और सजग हो। इसके साथ ही प्रत्यायक के उद्देश्य के साथ-साथ उसकी चाल को भी समझे अर्थात् उन बारीकियों को समझे जिसके द्वारा प्रत्यायक मनोवृत्ति में परिवर्तन लाने की कोशिश करता है। यदि व्यक्ति यह निर्णय ले कि उसे हर कीमत पर अपने विश्वास व मनोवृत्ति को सुरक्षित रखना है तो प्रत्यायक की लाख कोशिशों के बावजूद उसकी मनोवृत्तियों में परिवर्तन लाना संभव नहीं होगा।

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