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Categories: sociology

सामाजिक रूपांतरण क्या है | सामाजिक रूपांतरण की परिभाषा किसे कहते है अर्थ social conversion in hindi

social conversion in hindi meaning definition known as  सामाजिक रूपांतरण क्या है | सामाजिक रूपांतरण की परिभाषा किसे कहते है अर्थ ?

उद्देश्य
इस इकाई का उद्देश्य सामाजिक रूपांतरण और सामाजिक समस्याओं के मध्य संबंध का वर्णन करना है। आपके द्वारा इस इकाई के अध्ययन के पश्चात निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति संभव होगी:
ऽ सामाजिक रूपांतरण, इसके दो प्रारूपों – ‘‘आधुनिकीकरण‘‘ तथा ‘‘क्रांति‘‘ की अवधारणा को सीखना और उनका समालोचनात्मक मूल्यांकन,
ऽ सामाजिक रूपांतरण और सामाजिक समस्याओं के मध्य संबंध को समझना,
ऽ सामाजिक समस्याओं की अवधारणा और संबंधित प्रश्नों का वर्णन,
ऽ सामाजिक समस्याओं की सुस्पष्ट परिभाषाएँ, विशेषताएँ और प्रकार,
ऽ सामाजिक समस्याओं, संस्थाओं और आंदोलनों के मध्य श्रृंखलाबद्धता का विवेचन, और
ऽ रूपांतरण और समस्याओं के संबंध में नीति-संबंधी निहित आशय को स्पष्ट करना।

 प्रस्तावना
इस इकाई की विषयवस्तु सामाजिक रूपांतरण और सामाजिक समस्याएँ हैं। निःसंदेह आपको इन दोनों प्रक्रियाओं के मध्य के संबंध को समझना है। समाज और सामाजिक समस्याओं में से कोई भी स्थिर नहीं है। सामाजिक समस्याएँ घनिष्ठ रूप से सामाजिक संरचना, विचारधाराओं, मूल्यों, अभिवृत्तियों, संस्थाओं, शक्ति, प्राधिकार और समाज के हितों से जुड़ी हुई हैं। सामाजिक रूपांतरण की प्रक्रिया सामाजिक जीवन के उपर्युक्त विभिन्न पक्षों में परिवर्तन लाती है और साथ ही साथ नयी सामाजिक समस्याएँ भी उत्पन्न करती है।

सर्वप्रथम, हम सामाजिक रूपांतरण की सैद्धांतिक पृष्ठभूमि को समझने की चेष्टा करेंगे। समाजशास्त्र के प्रारंभ में ‘‘उद्वविकास‘‘ और ‘‘प्रगति‘‘ की अवधारणाएँ समाज के गत्यात्मक पक्ष को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त होती थीं। धीरे-धीरे यह अनुभव किया गया कि ये अवधारणाएँ ‘‘मूल्यों से भारित‘‘ है इसलिए इनके स्थान पर ‘‘सामाजिक परिवतर्न‘‘ की अवधारणा का प्रयोग किया गया जिसे अधिक निरपेक्ष तथा मूल्यों से स्वतंत्र माना गया।

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात सामाजिक विज्ञानों की शब्दावली में ‘‘विकास‘‘ और ‘‘आधुनिकीकरण‘‘ की अवधारणाओं ने एक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया। यह दोनों अवधारणाएँ विकसित, औद्योगीकृत, पूँजीवादी और लोकतांत्रिक समाजों की विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। माक्र्सवादी विचारधारा से प्रभावित समाज वैज्ञानिकों के एक समूह ने ‘‘आधुनिकीकरण‘‘ के स्थान पर ‘‘क्रांति‘‘ के प्रयोग को वरीयता दी। ये लोग पूँजीवादी प्रणाली का कायाकल्प करना चाहते थे।

‘‘सामाजिक रूपांतरण‘‘ एक विस्तृत अवधारणा है जो सामाजिक गत्यात्मकता को दर्शाती है। सामाजिक रूपांतरण की अवधारणा में एक ओर उद्वविकास, प्रगति और परिवर्तन तथा दूसरी ओर विकास, आधुनिकीकरण और क्रांति का अर्थ समाविष्ट है।

सामाजिक रूपांतरण और सामाजिक समस्याएँ एक दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हैं। समाज स्थिर नहीं है इसके उपरांत भी समाज के प्रभुत्वशील समूह किसी भी तरह समाज पर अपनी पकड़ बनाए रखने की ओर दमनकारी विधियों द्वारा अपने निहित स्वार्थों की सुरक्षा का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार यदि नकारात्मक रूप से अपनी बात कही जाए तो, यदि सामाजिक रूपांतरण की प्रक्रिया का दमन किया जाता है तो यह अनेक नई समस्याएँ उत्पन्न करती है। दूसरी ओर यदि सामाजिक रूपांतरण की प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से चलती रहती है तो, पुरानी व्यवस्था के अवनति और नई व्यवस्था के उद्भव के बीच संक्रमण काल में समाज सामंजस्य की समस्याओं का सामना करता है।

 सामाजिक रूपांतरण की अवधारणा
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् ‘‘सामाजिक रूपांतरण‘‘ की अवधारणा का सामाजिक विज्ञानों में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इस अवधारणा का शाब्दिक अर्थ ‘‘परिवर्तनशील स्वरूप‘‘, ‘‘प्रतीति‘‘ या ‘‘लक्षण‘‘ अथवा मान्यताओं में बदलाव से है। कार्ल माक्र्स द्वारा विशेष रूप से अपनी पुस्तक ‘‘जर्मन आइडियोलॉजी‘‘ (1846) में विशेष रूप से इस अवधारणा को प्रयुक्त किया गया इसका आशय सामाजिक परिवर्तन के उस पक्ष से है जो त्वरित परिवर्तन या क्रांति की तरफ बढ़ते हुए समाज में अंतर्विरोधों की वृद्धि को दर्शाता है। माक्र्स अनुभव करता है कि सामाजिक विकास के कुछ सोपानों पर उत्पादन की भौतिक शक्तियों और उत्पादन के प्रचलित नियमों के मध्य संघर्ष होता है। इन अंतर्विरोधों पर आधारित संघर्ष सामाजिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त करता है। सामाजिक क्रांति की इस अवस्था को माक्र्स ने त्वरित सामाजिक रूपांतरण की अवधि कहा है। सामाजिक रूपांतरण समाज के स्वरूप में परिवर्तन या नवीन विरचनाओं की उत्पत्ति को निर्दिष्ट करता है। रजनी कोठारी (1988) का दृष्टिकोण है कि सामाजिक रूपांतरण के ‘‘आधुनिकीकरण‘‘ तथा ‘‘क्रांति‘‘ दो मुख्य प्रारूप है। इन्हें निम्नलिखित प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है:

सामाजिक रूपांतरण

आधुनिकीकरण क्रांति

हम रूपांतरण के इन दोनों प्रारूपों की बारी-बारी से विवेचना करेंगे।

 आधुनिकीकरण का प्रारूप
आधुनिकीकरण एक अवधारणा के रूप में पश्चिमी यूरोप, तथा उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक, पूँजीवादी और लोकतांत्रिक समाजों के विचारधाराओं तथा मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है। आधुनिकीकृत संरचना के विपरीत एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका की सामाजिक संरचना, कृषीय, परंपरागत, प्रथा-आधारित तथा प्रौद्योगिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी हुई है। जैसा कि डेनियल लर्नर (1964) ने स्पष्ट किया है, आधुनिकीकरण साक्षरता, राजनैतिक सहभागिता, नगरीकरण, व्यावसायिक गतिशीलता और समानुभूति का द्योतक है। आधुनिकीकरण की दूसरी विशेषताएँ मुक्त बाजार, औद्योगिकरण, लोकतांत्रिक, राज्य और आधुनिक शिक्षा है। आधुनिकीकरण के पाँच प्रमुख आयाम यथा – प्रौद्यागिकी, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक हैं। अपने घटकों के साथ ये निम्नलिखित प्रकार से प्रस्तुत किए जा सकते हैं:
आधुनिकीकरण

प्रौद्योगिक आर्थिक राजनीतिक सामाजिक मनोवैज्ञानिक
ऽ ऊर्जा के ऽ बाजार ऽ स्वतंत्रता ऽ गतिशीलता ऽ सर्वदेशीय-मन
निर्जीव स्रोत
ऽ आधुनिक यंत्र ऽ पूँजी ऽ व्यक्तिवादिता ऽ व्यावसायिक ऽ उपलब्धियाँ
ऽ भारी प्रौद्योगिकी ऽ वस्तु या जिन्स ऽ लोकतंत्र ऽ सार्वभौमवाद ऽ पूर्वाभिमुखीकरण
ऽ उपभोगवादिता ऽ सहभागिता ऽ विशिष्टता ऽ समानुभूति
ऽ नगरीय-औद्योगिक
संस्कृति
ऽ साक्षरता और
आधुनिक शिक्षा

आधुनिकीकरण के प्रारूप में रूपांतरण को लगातार, विकासीय, क्रमिक और सीधा माना जाता है। इस क्रमिक प्रक्रिया में परिवर्तन एक दीर्घ अवधि का परिणाम है। यह उल्लेखनीय है कि आधुनिकीकरण की प्रगति समाज में संरचनात्मक रूपांतरण को चित्रित करती है।

जैसा कि बताया जा चुका है, विकास का आधुनिकीकरण प्रारूप का औद्योगिकी और औद्योगिक समाज की प्रक्रिया साथ घनिष्ठ संबंध है। हम बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हैं। औद्यागिक समाज को भी पिछले कई दशकों से अदभुत परिवर्तनों से गुजरना पड़ा।

माक्र्सवादी क्रांतिकारी प्रारूप
इस प्रारूप में परिवर्तन मनुष्य की मध्यस्थता द्वारा लाया जाता है। जैसा कि ऐंग्लस ने निर्दिष्ट किया है कि मनुष्य ही वह एकमात्र प्राणी है जो अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप रूपांतरण लाने में समर्थ है।

फ्रांस (1779) तथा अमेरिका (1789) की क्रांति से पृथक इस शताब्दी में सोवियत संघ (1917) तथा चीन (1949) में क्रांतिकारी सामाजिक रूपांतरण का प्रभावशाली परीक्षण किया गया। इस प्रारूप के प्रतिपादकों के अनुसार औद्योगिक पूँजीवादी प्रणाली मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण से आक्रांत है। इसने अपूर्व सामाजिक विषमताओं को उत्पन्न किया। औद्योगिकीकरण, भारी प्रौद्योगिकी के उपयोग तथा व्यापक पैमाने पर उत्पादन के होते हुए भी, आधुनिकीकरण के पूँजीवादी प्रारूप में मनुष्य ने अपनी गरिमा खो दी है। क्रांतिकारी रूपांतरण ही विषमता, शोषण, बेकारी तथा अमानवीयकरण का उन्मूलन कर सकता है।

माक्र्सवाद-लेनिनवादी क्रांतिकारी रूपांतरण की अवधारणा का अंतिम लक्ष्य समानता पर आधारित वर्गरहित तथा राज्यविहीन समाज का निर्माण करना है। क्रांति के पश्चात् संक्रमण की अवस्था में, क्रांतिकारी रूपांतरण पर आधारित समाज की निम्नांकित विशेषताओं की विशेष रूप से चर्चा की जा सकती है:

रूपांतरण के क्रांतिकारी प्रारूप पर आधारित समाज
(संक्रमणकालीन अवस्था)

उत्पादन के साधनों सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद एकमात्र राजनीतिक दल
का सामूहिक स्वामित्व पर आधारित शक्ति-संरचना (साम्यवादी दल) और उसके
पोलिटब्यूरो पर आधारित
निर्णय
कोष्ठक 1.1
संस्कृतिकरण और पश्चिमीकरण
भारतीय प्रसंग में, रूपांतरण की दो प्रक्रियाओं -‘‘संस्कृतिकरण‘‘ और ‘‘पश्चिमीकरण‘‘ के मध्य एक स्पष्ट भेद किया जा सकता है। श्रीनिवास द्वारा प्रयुक्त संस्कृतिकरण यह निर्दिष्ट करता है कि उच्च जातियों के आचरणों और प्रथाओं का निम्न जातियों द्वारा किस प्रकार अनुकरण किया जाता है, जबकि पश्चिमीकरण का आशय भारतीय समाज पर पश्चिमी संस्कृति, मूल्यों और संस्थाओं के संघात से है। आधुनिकीकरण की मूलभूत विशेषताएँ पश्चिमीकरण की विशेषताओं के सदृश है।

इन प्रारूपों का समालोचनात्मक मूल्यांकन
मानव समाज ने रूपांतरण के दोनों प्रारूपों -‘‘आधुनिकीकरण‘‘ तथा ‘‘क्रांति‘‘ का अनुभव किया है। जैसा कि राजनी कोठारी ने उल्लेख किया है मानव ने इन दोनों प्रारूपों के मध्य चलने वाली तीव्र प्रतियोगिता को देखा है जिससे शीत युद्ध, विध्वंसकारी अस्त्र-शस्त्र, पारमाणविक अस्त्रों की धमकी, विश्व का दो शक्ति समूहों में विभाजन (सोवियत संघ के विघटन से पूर्व) और दूसरों पर प्रभुत्व स्थापन जैसी विश्वव्यापी समस्याओं का जन्म हुआ।

उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपीय चिंतन पूर्ण रूप से आशावादी था। प्रगति में इसकी पूर्ण आस्था थी। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् जोसेफ जे. स्पेंग्लर (डिक्लाइन ऑफ द वेस्ट) तथा पी.ए. सोरोकिन (सोशियो-कल्चरल डाइनामिक्स) द्वारा पश्चिमी सभ्यता, इसके विकास, प्रतिमान और भौतिक उन्नति के विरोध में स्वर उठाए गए। इन लेखकों ने बल दिया है कि पश्चिमी सभ्यता जो कि भौतिकवाद, औद्योगिकीकरण और आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रतिनिधित्व करती है, अवनति की ओर बढ़ रही है।

कार्ल मानहाइम (मैन एंड सोसायटी इन एन एज ऑपा रिक्न्स्ट्र क्शन), एरिक फ्राम (सेन सोसायटी) और पी.एल. बर्गर तथा अन्य (होमलेस माइन्ड) ने आधुनिकीकरण के औद्योगिक पूँजीवादी प्रतिमान की अवधारणा का गहन विश्लेषण किया है। उनका दृष्टिकोण है कि पश्चिम के औद्योगिकीकृत पूँजीवादी समाज निम्नलिखित दिशाओं की ओर बढ़ रहे हैं:
ऽ अवनति,
ऽ विघटन और विसंगठन,
ऽ सांस्कृतिक मूल-हीनता,
ऽ परिवार और धर्म जैसी संस्थाओं का दुर्बल होना,
ऽ व्यक्तियों की स्वायत्तता में ह्रास, तथा
ऽ एक जन-समाज का उद्भव।

क्रांति के प्रतिफल के रूप में साम्यवादी क्रियाकलापों, इसकी उत्पादन व्यवस्था, आर्थिक संगठन और शक्ति संरचना की क्रुश्चेव, जिलास और गोर्वाचेव ने आलोचना की। एक प्रणाली के रूप में इसने अधिनायकवाद, पुलिस आतंक, देश निष्कासन, मानवाधिकारों का हनन, उत्पादन में गिरावट, अर्थव्यवस्था का पतन तथा एक दलीय पदाधिकारियों पर आधारित नए वर्ग एवं राज्य अधिकारियों को उत्पन्न किया। रूपांतरण के दोनों प्रारूप हिंसा, संसाधनों का असमान वितरण, निर्धनता, बेकारी जैसी सामाजिक समस्याओं का समाधान न पा सके। हमें यह ध्यान मे रखना है कि जब समाज एक संरचना से दूसरी संरचना की ओर बढ़ना प्रारंभ करता है तो कुछ समस्याएँ निश्चित रूप से उत्पन्न होती हैं। समाज जब एक निर्माण से दूसरे निर्माण की ओर अथवा रूपांतरण के एक सोपान से दूसरे सोपान की ओर बढ़ता है तो इन दोनों स्थितियों के मध्य की अवधि ‘‘संक्रमण‘‘ की स्थिति मानी जाती है। किसी भी समाज में संक्रमण का काल सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सामंजस्य, सांस्कृतिक समायोजन और आर्थिक पुनर्निर्माण की समस्याएँ उत्पन्न करता है। समाज चुनौतियों और प्रत्युत्तर के प्रतिरूप पर आगे बढ़ता है। जब कभी समाज पर कोई चुनौती आती है तब वह इसका प्रत्युत्तर देने की चेष्टा करता है। जब प्रत्युत्तर प्रभावी होता है तब सकारात्मक रूपांतरण तथा विकास होता है। जब सामाजिक समस्याएँ व्यापक मात्रा में होती हैं और प्रत्युत्तर चुनौतियों का सामना नहीं कर पाता तब समाज में अधोगामी अवस्था आती है। सरल शब्दों में कहा जाए तो सामाजिक समस्याएँ सामाजिक रूपांतरण का परिणाम है। सामाजिक समस्याओं के समाधान के प्रयत्न सामाजिक रूपांतरण को प्रारंभ कर सकते हैं।

बोध प्रश्न 1
प) सामाजिक रूपांतरण के अर्थ को आठ पंक्तियों में स्पष्ट कीजिए।
पप) सामाजिक रूपांतरण के प्रारूपों का उल्लेख कीजिए तथा उनके द्वारा उत्पादित मुख्य समस्याओं की गणना आठ पंक्तियों में कीजिए।
पपप) पश्चिमी, भौतिकवादी, पूँजीवादी आधुनिकीकरण के प्रारूप के प्रमुख आलोचकों के नाम उनकी पुस्तकों के शीर्षक के साथ बताइए:
क) ………………………………………………………………………………………………………………………………………..
ख) ………………………………………………………………………………………………………………………………………..
ग) ………………………………………………………………………………………………………………………………………..
घ) ………………………………………………………………………………………………………………………………………..
पअ) सामाजिक रूपांतरण के क्रांतिकारी प्रारूप की आलोचना पाँच पंक्तियों में लिखिए:

बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) सामाजिक रूपांतरण एक व्यापक अवधारणा के रूप में सामाजिक गत्यात्मकता को इंगित करने के लिए प्रयुक्त होता है। इस अवधारणा का शाब्दिक अर्थ सामाजिक स्वरूप, आकृति अथवा चरित्र के परिवर्तन अथवा अपनी मूल पहचान को खो देने वाले बदलाव से है। माक्र्स के अनुसार रूपांतरण सामाजिक परिवर्तन का वह पक्ष है जो समाज में उत्पन्न होने वाले उन अंतर्विरोधों की ओर इंगित करता है जो समाज को त्वरित परिवतर्न या क्रांति की तरफ अग्रसर करता है। सामाजिक रूपांतरण उस परिवर्तन को निर्दिष्ट करता है जो समाज के स्वरूप में परिवर्तन या नवीन विरचनों की उत्पत्ति करता है।

पप) क) आधुनिकीकरण
यह उस अर्थव्यवस्था, राजनीति और औद्योगीकृत पूँजीवादी समाज का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें या तो विपुल समृद्धि है और या तो अत्यधिक अभाव या कष्ट। रूपांतरण का यह प्रतिरूप मानव जाति के एक बड़े भाग में निर्धनता, बेकारी और वंचना के लिए तथा एक छोटे हिस्से में विपुल समृद्धि, अत्युत्पादन और अत्युपभोग के लिए उत्तरदायी है।

ख) क्रांति
साम्यवाद के कार्यप्रणाली की, क्रांति के प्रतिफल के रूप में अपने साहचर्यो – तानाशाही, पुलिस आतंक, देश निकाला, मानवाधिकारों का हनन, उत्पादन में अवनति, अर्थव्यवस्था का पतन और दलीय पदाधिकारियों और राज्याधिकारियों के नए वर्ग की रचना के लिए आलोचना की जाती रही है।

पपप) क) जोसेफ जे स्पेंगलेर: द डिक्लाइन ऑफ द वेस्ट
ख) पी.ए. सोरोकिन: द सोशल एंड कल्चरल डाइनमिक्स
ग) कार्ल मैनहीम: मैन एंड सोसायटी: इन एन एज ऑफ रिकान्स्ट्रक्शन
घ) पेल्नी, एल. बर्जर: होमलेस माइन्ड एंड अदर्स

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