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SN अभिक्रिया क्या है , प्रकार , SN1 , SN2 नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन , उदाहरण , क्रिया विधि nucleophilic substitution reaction in hindi
nucleophilic substitution reaction in hindi SN अभिक्रिया क्या है , प्रकार , SN1 , SN2 नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन , उदाहरण , क्रिया विधि किसे कहते हैं ?
नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया (SN अभिक्रिया) (nucleophilic substitution reaction) :
वे अभिक्रिया जिनमे एक नाभिक स्नेही के स्थान पर दूसरा नाभिक स्नेही आता है , उन्हें नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहते है।
इन्हे SN अभिक्रिया के नाम से भी जाना जाता है।
ये क्रियाएँ दो प्रकार की होती है।
- SN1
- SN2
SN1अभिक्रिया या एकाणुक नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया :
जब तृतीयक ब्यूटिल हैलाइड की क्रिया जलीय KOH से की जाती है तो त्रियक ब्यूटिल एल्कोहल बनता है।
(CH3)3C-X + जलीय KOH → (CH3)3C-OH + KX
क्रिया विधि :
- यह क्रिया SN1 क्रिया विधि से होती है , यह दो पदों में होती है , पहले पद में मध्यवर्ती कार्बोकैटायन का निर्माण होता है। यह पद धीमी पद में मध्यवर्ती कार्बोकैटायन पर OH– प्रहार करता है। यह पद तेज गति से होता है।
- slow (धीमे) पद में क्रियाकारक का एक अणु भाग लेता है अतः यह प्रथम कोटि की अभिक्रिया है।
- ध्रुवीय विलायकों की उपस्थिति में यह क्रिया तेज गति से होती है।
- SN1 अभिक्रिया का वेग कार्बोकैटायन का स्थायित्व पर निर्भर करता है।
- तृतीक ब्यूटिल क्लोराइड में 30 कार्बोकैटायन बनता है जो की 20 तथा 10 कार्बोकैटायन से अधिक स्थायी होता है अतः 30 हैलाइड में SN1 अभिक्रिया तेज गति से होती है अतः SN1 अभिक्रिया के वेग का घटता क्रम
30 > 20 > 10 हैलाइड
उदाहरण : (CH3)3C-X > (CH3)2CH-X > CH2-CH2-CH2-X
- इस क्रिया में रेसिमीकरण होता है।
नोट : बेंजील और एलिल हैलाइड में SN1 अभिक्रिया सबसे तेज गति से होती है क्योंकि बेंजील तथा एलिल कार्बोकैटायन अनुनाद के कारण अधिक स्थायी होते है अतः SN1 अभिक्रिया के वेग का घटता क्रम
benzyl हैलाइड > एलिल हैलाइड > 30 > 20 > 10 हैलाइड
SN2 अभिक्रिया या द्विअणुक नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया :
जब मैथिल हैलाइड की क्रिया जलीय KOH से की जाती है तो मैथिल एल्कोहल बनता है।
CH3-X + KOH → CH3-OH + KX
क्रिया विधि :
- यह क्रिया एक ही पद में होती है , इस क्रिया में आने वाला नाभिक स्नेही जाने वाले नाभिक स्नेही के पीछे से 180 डिग्री के कोण पर प्रहार करता है जिससे मध्यवर्ती संक्रमण अवस्था बनती है। यह अत्यंत अस्थायी होती है , दुर्बल नाभिक स्नेही इसमें से हट जाता है।
- यह द्वितीय कोटि की अभिक्रिया है क्योंकि क्रियाकारक के दो अणु भाग लेते है।
- यह क्रिया अध्रुवीय विलायकों में तेज गति से होती है।
- इस क्रियाविधि में अणु के विन्यास का प्रतिपन हो जाता है।
- 30 हैलाइड में SN2 अभिक्रिया सबसे धीमे वेग से होती है क्योंकि 30 हैलाइड में तीन एल्किल समूह के कारण नाभिक स्नेही को पीछे से प्रहार करने में अधिक त्रिविम बाधा का सामना करना पड़ता है अतः SN2 अभिक्रिया के वेग का घटता क्रम
10 > 20 > 30 हैलाइड
नोट : दोनों प्रकार की क्रियाविधियों के लिए समान एल्किल समूह होने पर अभिक्रिया के वेग का घटता हुआ क्रम
R-I > R-Br > R-Cl > R-F
प्रश्न : बेंजीन तथा एलिल क्लोराइड में SN1 अभिक्रिया के प्रति अधिक क्रियाशील होते है।
उत्तर : SN1 अभिक्रिया का वेग कार्बोकैटायन के स्थायित्व पर निर्भर करता है , कार्बोकैटायन जितना अधिक स्थायी होता है SN1 अभिक्रिया उतनी ही तेज गति से होती है।
बेंजीन तथा एलिल कार्बोकैटायन अनुनाद के कारण अधिक स्थायी होते है अतः ये SN1 अभिक्रिया के प्रति अधिक क्रियाशील होते है।
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