हिंदी माध्यम नोट्स
Categories: history
सिरोपाव क्या है | सिरो पाव किसे कहते है ? परिभाषा अर्थ मतलब को समझाइये Siropav in hindi meaning definition
Siropav in hindi meaning definition सिरोपाव क्या है | सिरो पाव किसे कहते है ? परिभाषा अर्थ मतलब को समझाइये ?
प्रश्न : सिरोपाव किसे कहते है ?
उत्तर : शासकों के राज्यभिषेक , विवाह , जन्म आदि के अवसरों पर अपने सामन्तों को विशेष वस्त्राभूषण दिए जाते थे जो सिरो पाव कहलाते थे | यह एक सामन्ती विशेषाधिकार था | सिरोपाव सामन्ती श्रेणीनुसार देय था |
प्रश्न : मध्यकालीन राजस्थान की सैन्य व्यवस्था का उल्लेख कीजिये।
उत्तर : मध्यकालीन राजस्थान की सैन्य व्यवस्था पर मुग़ल सैन्य व्यवस्था का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। सेना मुख्यतः दो भागों में बंटी हुई होती थी। एक राजा की सेना जो ‘अहदी’ कहलाती थी। और दूसरी सामन्तों की सेना जो ‘जमीयत’ कहलाती थी। अहदी सैनिकों की भर्ती , प्रशिक्षण , वेतन आदि कार्य दीवान और मीरबक्शी के अधीन होता था। दाखिली सैनिकों की भर्ती यद्यपि राजा की तरफ से होती थी लेकिन इनकों सामंतों की कमान अथवा सेवा में रख दिया जाता था। इन्हें वेतन सामन्तों की तरफ से दिया जाता था। जमीयत के लिए ये कार्य सम्बन्धित सामंत करता था।
सेना में भी अफगानों , रोहिलों , मराठों , सिन्धियों , अहमद नगरियों आदि को स्थान दिये जाने लगे जिन्हें परदेशी कहा जाता था। घोड़े को दागने की प्रथा चल गयी थी। जिनके पास बन्दूकें होती थी वे बन्दूकची कहलाते थे। सेना के मुख्य रूप से दो भाग होते थे – प्यादे (पैदल) तथा सवार।
प्यादे (पैदल सैनिक) : यह राजपूतों की सेना की सबसे बड़ी शाखा थी। राजपूतों की पैदल सेना में दो प्रकार के सैनिक होते थे –
(1) अहशमा सैनिक : जो तीर कमान , भाला , तलवार , कटार आदि का प्रयोग करते थे।
(2) सेहबन्दी सैनिक : ये बेकार (बेरोजगार) लोगों के लिए जाते थे। ये अस्थायी होते थे और मालगुजारी वसूल करने में मदद करते थे।
सवार : इसमें घुड़सवार और शुतरसवार (ऊँट) सम्मिलित थे जो “राजपूत सेना के प्राण” मानी जाती थी। घुड़सवारों में दो प्रकार के घुडसवार होते थे –
(1) बारगीर : इन सैनिकों को सारा साज सामान राज्य की तरफ से दिया जाता था और
(2) सिलेदार : इन्हें घोड़े , अस्त्र-शस्त्र और अन्य साजों सामान की व्यवस्था स्वयं करनी पड़ती थी। इन्हें केवल यूद्ध के अवसर पर भर्ती किया जाता था। इनका वेतन बारगीर से अधिक होता था। घोड़ों की संख्या के आधार पर घुडसवारों की निम्नलिखित श्रेणियाँ थी –
I. निम अस्पा – दो घुड़सवारों के पास एक घोडा होता था।
II. यक अस्पा – वह घुड़सवार जिसके पास एक घोडा हो।
III. दुअस्पा – वह घुड़सवार जिसके पास दो घोड़े हो।
IV. सिह अस्पा – वह घुडसवार जिसके पास तीन घोड़े हो।
तोपखाना : लगभग सभी रियासतों का अपना अपना तोपखाना था , यह मुगली प्रभाव का सीधा परिणाम था। उस समय के तोपखानों को दो भागों में बाँट सकते है –
(1) जिन्सी तथा (2) दस्ती।
जिन्सी भारी तोपें होती थी , इन्हें रामचंगी कहते थे जो 10-12 सेर तक का गोला फेंक सकती थी तथा जिन्हें कई बैल खींचते थे।
दस्ती हल्की तोपें होती थी जो विभिन्न नामों से जानी जाती थी। इनमें मुख्य थी – नरनाल लोगों की पीठ पर ले जाया जाने वाला हल्का तोपखाना , “शुतरनाल” ऊँट पर ले जाई जाने वाली छोटी तोपें , जो ऊँट को बैठाकर चलाई जाती थी। ‘गजनाल’ अथवा ‘हथनाल’ हाथी की पीठ पर लाद कर ले जाने वाला तोपखाना था। समकालीन कागजातों में ‘रहकला’ का भी उल्लेख मिलता है जो पहिये वाली गाड़ी पर लगी हल्की तोपें होती थी , जिन्हें बैल खींचते थे।
तोपखाने के अधिकारियों में ‘बक्शी तोपखाना’ , ‘दरोगा तोपखाना’ और मुशरिफ तोपखाना के उल्लेख मिलते है।
तोपचियों को “गोलन्दाज” कहा जाता था। सैन्य विभाग को “सिलेहखाना” कहा जाता था। सिलेहखाना शब्द हथियार डिपो के लिए भी प्रयुक्त हुआ है। घुड़सवारों के निरिक्षण के लिए घोड़े सहित सभी घुड़सवारों को ‘दीवान ए अर्ज’ में लाया जाता था जहाँ अमीन , दरोगा , तवाइची और मुशरिफ बक्शी द्वारा हुलिया रखने , दागने और निरिक्षण में सहायता करते थे।
तनख्वाह – जागीर और नकदी जागीर के घोड़े भी दागे जाते थे।
हस्ति सेना : सेना में हाथियों का प्रयोग प्राचीन काल से ही भारत की विशेषता रही है परन्तु राजपूत काल में इसके प्रबंध के लिए एक अलग विभाग संगठित किया गया , जिसे ‘पीलखाना’ कहा जाता था। हाथी को चलाने वाला ‘महावत’ कहा जाता था। हल्दी घाटी के युद्ध में राणा प्रताप और अकबर की सेनाओं की हाथियों की लड़ाई बड़ी घमासान हुई थी। इस युद्ध में मानसिंह के हाथी “मरदाना” ने हाहाकार मचा दिया था। साथ ही राणा के हाथी लूणा और रामप्रसाद और मुगलों के हाथी गजमुक्त और गजराज ने भी हाथी युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
प्रश्न : मध्यकालीन राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था में जागीरदारी प्रथा (सामन्ती प्रथा) का उल्लेख कीजिये।
उत्तर : सामन्तवाद प्रथा भूमिदान से जुडी हुई व्यवस्था है। भारत में सर्वप्रथम भूमिदान देने की परम्परा सातवाहन शासकों ने शुरू की। प्रारंभ में भूमिग्राही केवल उस भूमि से प्राप्त राजस्व का ही उपयोग कर सकते थे। गुप्तकाल में आकर राजस्व के साथ साथ अन्य अधिकारों का भी भुमिग्राही को हस्तांतरण किया जाने लगा। वे अपनी अपनी सैन्य टुकड़ियाँ रखने लगे , कानून व्यवस्था को देखने लगे। इन भूमि मालिकों को सामंत कहा गया। हर्षकालीन भारत ‘सामन्ती भारत’ ही था।
राजस्थान की समान्त व्यवस्था रक्त सम्बन्ध तथा कुलीय भावना पर आधारित थी। सर्वप्रथम कर्नल जेम्स टॉड ने यहाँ की सामंत व्यवस्था के लिए इंग्लैंड की फ्यूडल व्यवस्था के समान मानते हुए उल्लेख किया है। राजस्थान की समान्त व्यवस्था रक्त सम्बन्ध और कुलिय भावना पर आधारित प्रशासनिक तथा सैनिक व्यवस्था थी। समस्त राजपूत राजवंश ‘भाई बंध कुल ठोक प्रणाली’ पर आधारित थे अर्थात राजपूतों के विभिन्न राजकुलों ने ज्यों ज्यों अपने राज्यों की स्थापना की , उसके साथ ही अपने राज्य में व्यवस्था बनाये रखने और बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा प्राप्त करने के लिए अपने बन्धु बांधवों को अपने राज्य में से भूमि के टुकड़ों उन्हें दे दिए। राज्य का केन्द्रीय भाग (खालसा) राजा के पास और सीमावर्ती भाग उसके बन्धु बांधवों को दिया गया। बाद में अपने स्वजनों और सम्बन्धियों के साथ साथ विश्वस्त सेनानायकों , उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को भी भूमि दी जाने लगी।
लगभग प्रत्येक राजपूत राज्य का संगठन कुलीय भावना पर आधारित होता था , राजा कुल का नेता होता था। सामन्त अपने आपको कुलीय सम्पति (राज्य) का हिस्सेदार और संरक्षक मानते थे। उनका राजा के साथ बन्धुत्व और रक्त का सम्बन्ध था , स्वामी तथा सेवक का नहीं।
शासन कार्य में सामान्यतया प्रमुख सामन्तों की सलाह ली जाती थी , उत्तराधिकारी के चयन में सामंतो की सहमति अनिवार्य थी। युद्ध के समय सामंत राजा की सहायता करते थे क्योंकि वे अपनी पैतृक संपत्ति की रक्षा करते थे। सामन्तों तथा राजा के मध्य सम्बोधन सम्मानसूचक शब्दों से होता था जैसे राजा अपने सामंतों को भाई जी अथवा काकाजी जैसे आदरसूचक शब्दों से सम्बोधित करता तो समान्त राजा को ‘बापजी’ कहकर सम्बोधित करते थे क्योंकि वह कुल का नेता था। कुल मिलाकर मुगल प्रभाव से पूर्व राजस्थान में सामंत व्यवस्था सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में चल रही थी।
प्रश्न : मध्यकालीन राजस्थान में सामंतों से वसूल किये जाने वाले प्रमुख शुल्क कौन कौनसे थे ? बताइए ?
उत्तर : उत्तराधिकारी शुल्क एक प्रकार से उक्त जागीर के पट्टे का नवीनीकरण करना था जागीरदार की मृत्यु की सूचना पाते ही राजा अपने दीवानी अधिकारी को कुछ कर्मचारियों के साथ उस जागीर में भेजता यदि उत्तराधिकारी शुल्क इन्हें जमा नहीं कराया जाता तो जागीर जब्त करने का निर्देश दीवान को दिया जाता था।
रेख : जब मुगलों की परिपाटी के अनुकूल राजपूत शासकों द्वारा सामन्तों की जागीर की उपज का वार्षिक अनुमान निर्धारित किया गया तो उसे ‘रेख’ कहा गया।
रेख जो कि जागीर की वार्षिक आय थी , के आधार पर सामन्तों के सैनिक बल का अनुपात स्थापित होने लगा। शासकों और सामन्तो के मध्य महत्वपूर्ण कड़ी सामन्ती सैनिक सेवा थी जिसे ‘चाकरी’ कहा जाता था। युद्ध काल में ‘सामन्ती सैनिक’ (जमीयत) सेवा प्राप्त करने के लिए राजा ‘खास रुक्का’ भेजता था। आगे चलकर ‘चाकरी’ और छंटूद की भी रकम जागीरदारों से ली जाने लगी।
तलवार बंधाई : यह नया सामन्ती उत्तराधिकार शुल्क था। इसके तहत नव सामंत खड़गबन्धी (तलवार बंधाई) का दस्तूर शासक की उपस्थिति में करे तथा नए सामंत इसके उपलक्ष्य में हुक्मनामा , कैदखालसा , नजर अथवा नजराना पेश करे , की प्रथा प्रारंभ हुई।
पेशकशी : जोधपुर राज्य में यह शुल्क सर्वप्रथम मोटा राजा उदयसिंह (1583-1595 ईस्वीं) ने लागू किया जो ‘पेशकशी’ कहलाता था। महाराजा अजीतसिंह ने इस हुक्मनामा के साथ ‘तागीरात’ नामक नया कर जोड़ दिया।
नजराना : उदयपुर और जयपुर राज्यों द्वारा भी ‘नजराना’ वसूल किया जाने लगा। नजराना ठिकाने के राजस्व का 1/7 वाँ हिस्सा होता था। नजराना दिए जाने के बाद राजा ठिकाने के पट्टे को उसके नाम कर देता था। जैसलमेर एक मात्र ऐसी रियासत थी जहाँ उत्तराधिकारी शुल्क नहीं लिया जाता था।
अन्य शुल्क : नजराना के अलावा “तागीरात” और ‘मुस्सदी खर्च ‘ जागीरदारों के लिए अनिवार्य कर दिया गया , इन्हें न दिए जाने पर जागीर जब्त भी की जा सकती थी। राजकुमारियों के विवाह पर नौत के रुपये वसूले जाते थे तो सामंतों ने अपनी लड़कियों के विवाह पर जनता से चंवरी कर के रूप में वसूला।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
12 hours ago
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
12 hours ago
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
2 days ago
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
2 days ago
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
3 months ago
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…
3 months ago