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Categories: इतिहास

श्रावस्ती क्यों प्रसिद्ध है महात्मा बुद्ध और भक्तो के लिए , shravasti is famous for in hindi lord buddha

shravasti is famous for in hindi lord buddha श्रावस्ती क्यों प्रसिद्ध है महात्मा बुद्ध और भक्तो के लिए ?
श्रावस्तीः उत्तर प्रदेश में लखनऊ से 150 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित श्रावस्ती बुद्ध काल का महत्वपूर्ण शहर है। बुद्ध ने यहां जैतवाना मठ में उपदेश दिए थे। इस मठ तथा शहर के अवशेष माहेत एवं साहेत नामक दो गांवों में पाये गये हैं। माहेत में दो स्तूपों एवं मंदिरों के अवशेष हैं। साहेत में जेतवाना मठ के अवशेष देखे जा सकते हैं।

श्रीनगरः जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर की स्थापना का श्रेय राजा प्रवरसेन (6वीं शताब्दी) को है। झेलम नदी श्रीनगर को दो भागों में बांटती है। श्रीनगर की दिनचर्या झेलम नदी, डल एवं नगीन झीलों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। श्रीनगर स्थित प्रमुख दशर्न ीय स्थल हंै हरी पर्वत किला, जामा मस्जिद (1674) रोजहबल मस्जिद, जेन-उल-अब्दीन की माता का मकबरा, शाह हामादन मस्जिद, पटर मस्जिद (1623), शंकराचार्य पहाड़ी आदि। 6-4 किलोमीटर लम्बी तथा 4 मीटर चैड़ी डल झील श्रीनगर के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। आसफ खान द्वारा 1632 में निर्मित निशात बाग तथा शाहजहां द्वारा निर्मित शालीमार बाग विशेष रूप से दर्शनीय हैं। चश्मा शाही एवं गजीम बाग भी दर्शनीय स्थल हंै। श्रीनगर स्थित प्रताप सिंह संर्ग्राहालय में चित्रा,ंे मूर्तियां,ंे हथियारों आदि को संग्रहीत किया गया है। श्रीनगर से 58 किलोमीटर दूर स्थित अच्छाबल जल-प्रपात एवं अपने उद्यान के लिए प्रसिद्ध है।
श्रीरंगपट्टनमः कर्नाटक स्थित श्रीरंगपट्टनम की स्थापना 10वीं शताब्दी में हुई थी। 1454 में विजयनगर राजाओं ने यहां किले का निर्माण करवाया था। यहां निर्मित जामा मस्जिद के निर्माण का श्रेय टीपू सुल्तान को है। नरसिंह (17वीं शताब्दी) तथा गंगाधरेश्वर (16वीं शताब्दी) श्रीरंगपट्टनम स्थित प्रमुख हिंदू मंदिर हैं। श्रीरंगपट्टनम से 5 किलोमीटर दूर स्थित रंगानाथिट्टू पक्षी अभयार.; की स्थापना 1975 में की गई थी। यहां कावेरी नदी के कुछ टापुओं का आनंद नौकायन द्वारा लिया जा सकता है।
श्रीविलीपुटरः तमिलनाडु स्थित श्रीविलीपुटर 108 पवित्र वैष्णव स्थलों में से एक है। श्रीविलीपुटर स्थित विष्णु वादाबद्रासाइकोइल का गोपुरम लगभग 60 मीटर ऊंचा है। थीरूमलाई नायक का प्राचीन महल श्रीविलीपुटर स्थित ऐतिहासिक महल है। श्रीविलीपुटर से 19 किलोमीटर दूर स्थित शिवकाशी मंे पटाखों का निर्माण होता है। श्रीविलीपुटर से कुछ दूर स्थित राजपलयम एक अन्य प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर है।
सरधानाः उत्तर प्रदेश स्थित इस शहर का संबंध 18वीं शताब्दी के स्ट्रासबोरग सैनिक वाल्टर रेनहार्डट से है, जिसे बंगाल के नवाब द्वारा 1763 में सरधाना तालुका दी गई थी। 1834 में निर्मित कोठी दिलखुश (बेगम महल) एक विस्तृत उद्यान के मध्य में स्थापित की गई है। यहां स्थित एक अन्य प्रसिद्ध इमारत अफगान वंश के शाही परिवार की है। इसके परिसर में एक मस्जिद एवं मकबरा है। सैंट जोहन रोमन गिरजाघर यहां स्थित प्रसिद्ध चर्च है।
सासारामः बिहार स्थित सासाराम प्रसिद्ध मुस्लिम स्थल है। शेरशाह सूरी ने 1535 में यहां अपने पिता हसन खां का मकबरा बनाया था। सासाराम से 60 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित आरा, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का प्रसिद्ध केंद्र रहा था। आरा बिहार की सोन गहरों के प्रसिद्ध सिंचाई तंत्र की शाखा पर स्थित है। पटना से 30 किलोमीटर दरू स्थित मनेर एक अन्य पा्र चीनतम इस्लामिक केंद्र है। यहां स्थित हजरत मनेरी की दरगाह (बड़ी दरगाह) एक पवित्र मजार है। यहां स्थित छोटी दरगाह अपने वास्तुशिल्प के लिए प्रसिद्ध है।
सांचीः मध्य प्रदेश स्थित सांची भोपाल से 47 किलोमीटर दूर शांत पहाड़ियों से घिरा एक प्रसिद्ध बौद्ध स्थल है। सांची स्थित स्तूपों में प्राचीनतम स्तूप का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में किया गया था। सांची स्थित महान स्तूप भारत के सबसे विशालकाय स्तूपों में से एक है। यह स्तूप व्यास में 37 मीटर तथा ऊंचाई में 16 मीटर है। सांची स्थित 1-2-3 स्तूप, 17-18 मंदिर तथा 45-46 क्रमसंख्या वाले मठ विशेष रूप से दर्शनीय हैं। सांची से 20 किलोमीटर पूर्व में स्थित रायसेन में एक मंदिर, तीन महल एवं एक जलाशय दर्शनीय हैं। सतधारा में भी बौद्ध परिसर तथा स्तूपों के अवशेष देखे जा सकते हैं।
सागरद्वीपः पश्चिम बंगाल स्थित सागरद्वीप गंगा के मुहाने पर स्थित द्वीप है। मध्य जनवरी में होने वाला ‘गंगा सागर मेला’ यहां हजारों भक्तों को आकर्षित करता है। यहां स्थित कपिलमुनि मंदिर भी प्रसिद्ध है।
सारनाथः उत्तर प्रदेश में वाराणसी से 10 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में स्थित सारनाथ भारत का एक प्रमुख बौद्ध केंद्र है। बुद्ध ने ईसा पूर्व 528 में ज्ञानार्जन के उपरांत अपना पहला उपदेश यहीं दिया था। सारनाथ स्थित दर्शनीय स्थलों मंे सम्मिलित हंै अंगारिक धर्मपाल की मूर्ति, मुलंगधाकुटी विहार, पीपल वृक्ष, धमेख स्तूप (28 मीटर व्यास तथा 13 मीटर ऊंचा) धर्मराजिका स्तूप (इसका निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था), मुख्य मकबरा एक चैकारे 29 × 27 मीटर इमारत है, जिसकी ऊंचाई 5-5 मीटर है। चैखंडी में स्थित स्तूप का संबंध पांचवीं शताब्दी से है। सारनाथ स्थित हिरण वन जैन सम्प्रदाय के लिए धार्मिक स्थल है, यहीं उनके 11वें तीर्थंकर ने निर्वाण किया था। सारनाथ स्थित अन्य दर्शनीय स्थलों में सम्मिलित हंै बर्मी मठ, जापानी मठ, तिब्बती मठ, अपसीडल मंदिर, अशोक स्तंभ, वो- स्तूप, जैन मंदिर, चीनी मंदिर तथा पुरातात्विक संग्रहालय आदि।
सियांगः पश्चिमी सियांग की गोद में बसा अरुणाचल प्रदेश का सियांग जिला मलिनिथन में पाई गई हिंदू देवताओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। सियांग के निचले हिस्से दिबांग घाटी में प्रसिद्ध बिस्माकनगर महल के अवशेष पाये गये हैं। सियांग से कुछ दूर तेजू के निकट स्थित परशुराम कुंड राज्य का सबसे प्रसिद्ध स्थल है। यहां प्रतिवर्ष मध्य जनवरी में मकर संक्रांति को आयोजित मेले में हजारों श्रद्धालु कुंड में स्नान करते हैं। सियांग से कुछ दूर तथा राज्य की राजधानी ईटानगर से 150 किलोमीटर दूर स्थित जिरो देवदार वृक्षों से घिरी घाटी के बीच अवस्थित एक अन्य प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। यहां के अपातानी जगजाति निवासियों ने धान उत्पादन की कुछ अद्भुत विधियां विकसित की हैं। नामदफा राष्ट्रीय उद्यान डिब्रूगढ़ से 140 किलोमीटर दूर स्थित है। 200-4500 मीटर की ऊंचाई में विस्तृत इस राष्ट्रीय उद्यान में बिल्ली परिवार के चारों सदस्य पाये जाते हैं। भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित जगजातीय लोग यहां प्रतिवर्ष फरवरी-अप्रैल तथा नवंबर में उत्सवों का आयोजन करते हैं।
सोंथी (सन्नथी)ः कर्नाटक में भीमा नदी के दक्षिणी तट पर अवस्थित सन्नथी एक प्रसिद्ध धर्म स्थल है। यहां निर्मित चंद्रलांबा मंदिर का निर्माण संभवतः चालुक्यों द्वारा 12वीं शताब्दी में किया गया था। शिव को समर्पित इस मंदिर में महाकाली,, महालक्ष्मी एवं सरस्वती की प्रतिमाएं हैं।
सोनपुरः बिहार स्थित सोनपुर गंगा एवं गंडक नदियों के संगम पर अवस्थित है। यहां प्रत्येक वर्ष दीपावाली के उपरांत पहली पूर्णिमा को एशिया के सबसे बड़े पशु मेले का आयोजन किया जाता है। एक महीने चलने वाले इस समारोह में पशुओं तथा अनाज का लेन-देन होता है। ऐसी मान्यता है कि सोनपुर में हाथी एवं मगरमच्छ के मध्य युद्ध हुआ था। यहां स्थित हरिहरनाथ मंदिर मंे पूर्णिमा के दिन स्नान करने को पवित्र माना जाता है।
सोनपुर से कुछ दूर तथा पटना से लगभग 55 किलोमीटर दूर स्थित वैशाली प्रसिद्ध ऐतिहासिक एवं बौद्ध स्थल है। वैशाली का नाम राजा विशाल से लिया गया है, जिनका संबंध ईसा पूर्व छठी शताब्दी के रामायण काल से था। ऐसी मान्यता है कि वैशाली विश्व का पहला ऐसा नगर था जिसने शासन में गणराज्य रूप को प्रयुक्त किया था। बुद्ध ने अपना अंतिम संदेश भी यहीं दिया था। ईसा पूर्व वैशाली द्वितीय बौद्ध सभा का केंद्र था। श्वेतांबर समुदाय के जैन अनुयायी मानते हैं कि महावीर का जन्म (ईसा पूर्व 599) वैशाली में ही हुआ था। वैशाली में कोलुहा स्थित अशोक स्तंभ लगभग 18-3 मीटर ऊंचा है, जिसे ‘भीमसेन की लाठी’ के नाम से भी जागा जाता है। रामकुंड, खरोगा पोखर, कमल तालाब वैशाली स्थित प्रमुख जलाशय हैं। मीरंजी.की-दरगाह, राजा विशाल का गढ़ तथा चैमुखी महादेव वैशाली स्थित अन्य प्रमुख स्मारक हैं।
सोमनाथपुरः कर्नाटक स्थित सोमनाथपुर मैसूर क्षेत्र का एक छोटा-सा ग्राम है, जो 1268 में निर्मित केशव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। होयसाल शैली में निर्मित यह चैकोर मंदिर 75 मीटर लंबा तथा 55 मीटर चैड़ा है।
सोलनः हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में स्थित स्वारघाट मलान दुग्र के लिए प्रसिद्ध है। शिवालिक पर्वत श्रेणी के मध्य में स्थित स्वारघाट एक ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक महत्व का स्थल है। यहां निर्मित नालागढ़ रियासत के किले का ऐतिहासिक महत्व है।
हम्पीः कर्नाटक स्थित प्राचीन समय में विजयनगर साम्राज्य से संबंधित तथा हिंदू शासन का प्रमुख केंद्र था। एक समय में हम्पी रोम से भी समृद्ध नगर था। हम्पी में शेष रहे अधिकतर स्मारकों का निर्माण कृष्णदेव राय (1509-1529) ने करवाया था। यहां स्थित दर्शनीय स्थलों में सम्मिलित हंै विरुपाक्ष मंदिर, रघुनाथ मंदिर, नरसिंह मंदिर, सुग्रीव गुफा, विठाला मंदिर, कृष्ण मंदिर, प्रस्रसन्ना विरुपक्ष, हजार राम मंंिदिर, कमल महल तथा महानवमी डिब्बा आदि। हम्पी से 6 किलोमीटर दूर ही तुंगीाद्रा बांध अवस्थित है।
हरिद्वारः उत्तराखडं स्थित हरिद्वार गगंा नदी किनारे तथा शिवालिक पहाड़ियांे के आधार पर अवस्थित है। हरिद्वार को हिंदुओं के सात सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। हरिद्वार वस्तुतः एक प्राचीन नगर है तथा प्रसिद्ध चीनी यात्री द्वेनसांग ने भी इसका वर्णन किया है। प्राचीनकाल में इसे कपिल मुनि के नाम पर कपिला भी कहा जाता था। तैमूर भी इस नगर की ओर आकर्षित हुआ था। शहर के पश्चिमी भाग में गंगा के किनारे स्थित हरि-की-पौढ़ी को विष्णु पद चिन्हों के कारण पवित्र माना जाता है। गंगा को इसी स्थल पर एक गहर का रूप दिया गया है। यहां अनेक धर्मों, समुदायों के संतों, प.डों एवं साधुओं को पूजा-अर्चना करते देखा जा सकता है। शिवालिक के दक्षिणी भाग में स्थित मनसादेवी मंदिर यहां स्थित सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। हरि की पौढ़ी के पास ही प्रसिद्ध गंगा द्वार का मंदिर है, जहां लाखों लोग पवित्र गंगा जल में स्नान करते हैं। प्रतिवर्ष यहां चैत्र में मेष संक्रांति के समय मेला लगता है तथा बारह वर्ष के अंतराल पर यहां कुंभ का मेला लगता है। 10वीं शताब्दी में निर्मित माया देवी मंदिर में माया देवी मूर्ति के तीन मस्तक और चार हाथ हैं। यहां से तीन किलोमीटर दूर कनखल में शिव की पत्नी सती ने स्वयं को जलाया था। कनखल स्थित दकेश्वर एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर है। लोगों की मान्यता है कि हरिद्वार में मरने वाला प्राणी परमपद पाता है और यहां स्नान से जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। अनेक पुराणों में इस तीर्थ का वर्णन और प्रशंसा उल्लिखित है।
हरिहरः कर्नाटक स्थित हरिहर ने अपना नाम होयसल शैली में निर्मित श्री हरिहरेश्वर मंदिर (1223) से लिया है। हरिहरेश्वर मंदिर में हरिहर की 1-3 मीटर ऊंची मूर्ति है। हरिहर से 10 किलोमीटर दूर स्थित अनीकोंडा में होयसल शैली में निर्मित एक छोटा, लेकिन प्रसिद्ध मंदिर है।
हसन (हासन)ः कर्नाटक के हसन जिले में स्थित हेलबिड, बेलूर तथा डोडागडावहली का संबंध होयसल वंश से रहा है। हेलबिड होयसल राज्य की राजधानी थी, जिसकी स्थापना द्वारसमुद्र ने 11वीं शताब्दी में की थी। हेलबिड में निर्मित 12वीं शताब्दी की जैन बस्तियां तथा होयसालेश्वर मंदिर विशेष रूप से दर्शनीय हैं। यागची नदी के किनारे बसा बेलूर हेलबिड से पूर्व होयसल वंश की राजधानी था। बेलूर का चेन्नकेश्व मंदिर, वीरनारायण मंदिर तथा जैन बस्तियां दर्शनीय हैं। होयसल शैली में निर्मित डोडागडावहली स्थित लक्ष्मीदेवी मंदिर का निर्माण 1113 ईसवी में हुआ था।
हिरियूरः कनार्ट क स्थित हिरियूर वदे वती नदी के दाहिने किनारे पर अवस्थित है। यहां स्थित तेरुमलेश्वर मंदिर में 14 मीटर ऊंचा दीप स्तंभ है। यहां से 15 किलोमीटर दूर स्थित वाणीविलासपुर बांध का निर्माण 19वीं शताब्दी में मैसूर के पहले आधुनिक बांध के रूप में किया गया था। इसके समीप स्थित झील भी काफी आकर्षक है।
हिसारः हरियाणा स्थित हिसार की स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने 1354 में की थी। हिसार स्थित गुजरी महल, फिरोज शाह की मस्जिद विशेष रूप् से दर्शनीय हैं। हिसार में वर्ष में दो बार आयोजित किए जागे वाले पशु मेले का विशेष महत्व है। यहां से 30 किलोमीटर दूर स्थित सिरसा का संबंध 1500 ईसा पूर्व से है।
हैदराबादः हैदराबाद समृद्ध गिजामों की नगरी है। हैदराबाद की स्थापना गोलकोंडा के पांचवें सुल्तान कुतुबशाही ने 1589 में की थी। हैदराबाद अपने अनेक ऐतिहासिक स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है। पुराने हैदराबाद में स्थित चार मीनार का निर्माण मुहम्मद कुली कुतुबशाह ने 1591 में किया था। 56 मीटर ऊंची इस मीनार के पास ही मक्का मस्जिद स्थित है। यह विश्व की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। यहां एक समय में 10,000 व्यक्ति नमाज पढ़ सकते हैं। इसका मुख्य कक्ष 67 मीटर लम्बा, 54 मीटर चैड़ा तथा 23 मीटर ऊंचा है। चार मीनार से पांच किलोमीटर दक्षिण में फल्कनुमा महल स्थित है। यह महल शास्त्रीय एवं मुगल शैलियों का मिश्रण है। इस महल में अनेक बहुमूल्य नगों का संग्रह है। 12वीं शताब्दी में निर्मित गोलकोंडा किला तथा गोलकोंडा किले से एक किलोमीटर उत्तर में कुतुबशाही राजाओं के मकबरे अन्य प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है। यहा ं स्थित सालारजंगंग संगंग्रह्रहालय भारत के तीन बड़े राष्ट्रीय संग्रहालयों में से एक है। इस संग्रहालय में विश्व की 35,000 से अधिक प्रदर्शनयोज्य वस्तुएं रखी गईं हैं।

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