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शोर मंदिर किसने बनवाया या महाबलीपुरम का शोर मंदिर कहाँ स्थित है shore temple in hindi
shore temple in hindi , is located at which city and state शोर मंदिर किसने बनवाया या महाबलीपुरम का शोर मंदिर कहाँ स्थित है ?
उत्तर : महाबलिपुरम भारत के तमिलनाडु राज्य के महाबलीपुरम नामक एक कस्बा है जो एक चेंगलपट्टू जिले में है | यहाँ शोर मंदिर स्थित है जिसका निर्माण 700-728 ईस्वी के दौरान बताया जाता है | इसका निर्माण पल्लव वंश के नरसिंहवर्मन द्वितीय ने करवाया था |
महाबलीपुरम् का शोर मंदिर, यह समुद्र तट पर स्थित है। इसका गर्भगृह समुद्र की ओर है, मंडप, अर्द्धमंडप व आंगन पश्चिम की ओर है। नीचे वर्गाकार तथा ऊपर पिरामिडनुमा है। इसका एक विशाल प्रांगण है। यह द्रविड़ शैली का एक सुन्दर नमूना है।
प्रश्न: पल्लवकालीन मंदिर वास्तुकला की विभिन्न शैलियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: तमिल देश (द्रविड देश) में द्रविड शैली का विकास पल्लव काल में हुआ जिसका चरमोत्मकर्ष चोल काल मे हुआ। पल्लवों ने विशेषकर
काची, महाबलीपरम. तंजौर और कडकोयई में स्थापत्य का विशेष विकास किया जिसे हम चार शैलियों में विभक्त कर सकते हैं-
1. महेन्द्रवर्मन शैली – इस समय सादगीपूर्ण मंदिर बनाये गये जिन्हें मंडप कहा गया। मंडप चट्टानों को काट कर बनाय गये, जो बौद्ध चैत्यों से प्रभावित थे। ठोस चटटानों को काटकर मंदिर बनाने की तकनीकि का प्रारम्भ महन्द्रवमन शैली से हुआ। जिसकी मुख्य विशेषता थी शिलाखण्ड (चट्टान) एक स्तम्भ युक्त बरामदा व अंदर की ओर एक या दो कमरे व अष्ट भुजाकार स्तम्भों की पंक्ति। ऐसे मंडप ममनौर, त्रिचनापल्ली, महेन्द्रवाडी, दालवनपुर सियामंगलम, कुरंगनिमट्टन, मंदागपटु आदि में बनवाये गये।
2. मामल्ल शैली – इसमें मंडप मंदिर एवं रथ मंदिर दोनों का ही अत्यधिक विकास हुआ। नरसिंह वर्मन प्रथम ने मामल्लपुरम (महाबलीपुरम) नगर बसाया। इसका मुख्य केन्द्र मामलपुरम (महाबलीपुरम) रहा। मामल्ल शैली में दो प्रकार के मंदिर बने-
(i) मण्डप शैली – गुफा मंदिर है, स्तम्भ जिन्हें विभिन्न चित्रों सूर्य, दुर्गा, वामन, वराह आदि से सजाया गया है। मंडप मंदिर, महेन्द्र
शैली से अधिक विकसित हुये। जिसमें वराह मण्डप, महिष मण्डप- महिषासुरमर्दनी, त्रिमुर्ति मण्डप तथा पंचपाण्डव मण्डप-
गोवर्धनधारी कृष्ण बनवाये गये।
(ii) रथ मंदिर – एकाश्म (रथ) चट्टानों को काटकर बनाए गए है। स्थों का विकास विहारों एवं चैत्यों से हुआ। रथ मंदिर, एकाश्मक (Single Stone) मंदिर थे। चट्टानों को काट कर आठ रथ बनाये गये – द्रोपदी, अर्जुन, भीम, धर्मराज, सहदेव, गणेश, पिंडरी तथा वलायनकुट्टी। ये प्रायः सप्त पैगोडा के नाम से जाने जाते हैं। इनमें धर्मराज रथ मंदिर सबसे बड़ा व द्रोपदी सबसे छोटा रथ मंदिर है। इसके नीचे का भाग वर्गाकार व शिखर पिरामिडनुमा है।
3. राजसिंह शैली – इसमें पत्थर के बजाय ईंट व लकड़ी का प्रयोग किया गया। यह पल्लव शैली का चरमोत्कर्ष था। इस शैली के 3 मंदिर बड़े प्रसिद्ध हैं –
2. कांची का कैलाशनाथ मंदिर, पल्लव शैली का सबसे बड़ा मंदिर है। पल्लव शैली में गर्भगृह पर पिरामिड आकार शिखर का चरमोत्कर्ष इस मंदिर में दिखाई देता है। इसमें द्रविड शैली की सभी विशेषताएं मौजूद हैं, – विशेषकर परिवेष्ठित प्रांगण, गोपुरम, स्तम्भ युक्त मंडप, अर्द्धमंडप, महामंडप, विमान आदि।
3. कांचीपुरम् का बैकुण्ठ पैरूमल मंदिर, यह पल्लव शैली का अत्यन्त विकसित नमूना है।
अन्य – महाबलीपुरम् का ईश्वर मंदिर है।
4. नंदीवर्मन शैली – इस शैली के मंदिर स्वतंत्र पाषाण खण्डों के बने हुये हैं। इनमें स्वतंत्र प्रस्तर खण्ड के स्तम्भ शीषर्षों – का
विकास हुआ, इस शैली के मंदिरों में ओज का अभाव है। इस शैली के प्रमुख मंदिर हैं – कांचीपरम का मक्तेश्वर व मांगतेश्वर मंदिर,
ओरगडम का वाडामलीश्वर मंदिर, गुडीमल्लम का परशुरामेश्वर मंदिर और तिरूत्तणी का विरटानेश्वर मंदिर। नंदीवर्मन शैली के पश्चात्
चोल शैली का प्रभाव दिखाई देने लगता है।
प्रश्न: एहोल के मूर्ति शिल्प पर एक लेख लिखिए। दृ
उत्तर: एहोल में रावण-फाडी गुफा की छत में उत्कीर्ण गंधर्व-युगल का मनोहारी चित्रण मिलता है। यह शैलकृत मंदिर शिव को समर्पित है। रावण-फाडी गुफा में ही नटराज शिव को नृत्य-मुद्रा में उत्कीर्ण किया गया है। शिल्प में गति और लयात्मकता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। एहोल स्थित रावण-फाड़ी गुफा में ही महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा में दुर्गा द्वारा महिषासर के संहार का दृश्य उत्कीर्ण है। दुर्गा अत्यन्त प्रचण्ड मुद्रा में त्रिशूल से असुर पर वार कर रही है। मूर्तिशिल्प में अत्यन्त गतिशीलता है। एहोल के ही दर्गा-मंदिर में बाहरी प्रदक्षिणा पक्ष पर अनेक सुंदर मूर्तिशिल्प उत्कीर्ण मिलते हैं। दुर्गा मंदिर म ही गर्भ-गृह की अर्धवृत्ताकार प्रदक्षिणा-पथ की बाहरी दीवार के अंतिम छोर पर शिव का वृषभवाहन रूप उत्कीर्ण किया गया है।
बादामी – बादामी की गफा संख्या 1 में महिषासर मर्दिनी के रूप में देवी दुर्गा को महिष दहधारा असुर को पँछ । पकडकर उस पर त्रिशुल से प्रहार करते हुए दिखाया गया है। बादामी की गुफा संख्या 1 म हा नटराण का अट्ठारह हाथों वाली मूति सर्वाधिक महत्त्वपर्ण है। चतुर्भज हरिहर स्वरूप में शिव और विष्ण को एक साथ दिखाया गया है परन्तु मूति में दो का कश-सज्जा एवं शरीर के अंग तथा आयुध आदि पृथक-पृथक् दिखाई देते
बादामी की गुफा संख्या ३ विषणु की त्रिविक्रम स्वरूप की मूर्ति विशेषतः उल्लेखनीय है। अष्टमुन त्रिविक्रम विषणु हाथों में चक्र, गदा, धनुष, बाण, खडग खेटक और शंख आदि सशोभित हैं। वराह अवतार मूति में वराह की शरीर में अपूर्व शारीरिक बल और खड़े होने की मद्रा में सहजता के साथ-साथ देवता की दृढ़ता का भाव भी प्रदर्शित है।
वैकुण्ठ नारायण विष्णु – इस मर्तिशिल्प में विष्ण पांच सर्पकणों के छात्र के नीचे व सर्प की कुण्डलियों पर आसीन है। यह बहुत ही अपूर्व व विलक्षण मूतिशिल्प है। इसमें विष्ण बद्ध प्रतिमा के समान दिखाइ ८ ९ १० ११ १। (बादामी असामान्य लक्षण हैं। विष्णु को इस मुद्रा में यहीं पर ही अंकित किया गया।
उपर्युक्त मूर्तिशिल्पों के अतिरिक्त बादामी गफा में अन्य ऐसे अनेक मर्तिशिल्प हैं जो शिल्पकला के बेजोड़ नमूने को न सकते हैं। उदाहरण के लिए उड़ते हए गन्धर्वो के मर्ति शिल्प। बादामी गुफा में उत्कीर्ण अनेक नर-नारी युगल प्रतिमाएं भी ध्यानाकर्षित करती हैं।
महाकूट – महाकूट में अनेक छोटे-बड़े मंदिर हैं। जिनमें से दो विशाल मंदिर हैं- महाकूटेश्वर व मल्लिकार्जन महाकूटेश्वर मंदिर का प्रत्येक मंदिर शिव को समर्पित है। अतः मंदिर के बाहर नन्दी की प्रतिमाएं भी दर्शनीय हैं। यहीं पर संगमहेश्वर मंदिर में मुख लिंग बना हुआ है, जो लगभग छठी अथवा सातवीं शताब्दी की रचना है। इसमें चारों दिशाओं में विष्णु के चार मुख शिवलिंग पर उकेरे गये हैं।
अर्धनारीश्वर – यहां इस प्रतिमा को इस प्रकार की बनाई गई अन्य प्रतिमाओं से कहीं अधिक प्रभावी और खबसरत की से बनाया गया है। लकुलीश शिव रू इस प्रतिमा में शिव को लकुलीश रूप में दैत्य के ऊपर सीधे खड़े रूप में अंकित किया गया है।
पट्टडकल नटराज शिव – एक दीवार में उत्कीर्ण मूर्तिशिल्प में शिव को एक मोटे से बौने दानव को पैरों तले कुचलते हुए दिखाया गया है। उनके पैरों को नृत्य की मुद्रा में बनाया गया है।
रावण द्वारा कैलाश पर्वत को उठाना – पट्टडकल में उत्कीर्ण इस मूर्तिशिल्प में जहां शिव व पार्वती को बहुत ही छोटे रूप में दिखाया गया वहीं रावण को पूर्ण शक्ति के साथ पर्वत को हिलाने के प्रयास की मुद्रा में बनाया गया है। विरूपाक्ष मंदिर के बरामदे की भित्ति पर शिल्पकार ने प्रेमी-युगल को अंकित किया है जिन्हें विशेष मुद्रा में खड़े हुए दिखाया गया है। विरूपाक्ष मंदिर की दक्षिणी दीवार में एक द्वारपाल को उत्कीर्ण किया गया है। विरूपाक्ष मंदिर के बरामदे के ही एक खम्भे में दो आकृतियों को जोर आजमाईश अथवा मल्लयुद्ध करते हुए अंकित किया गया है।
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