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पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन कक्षा 12 जीव विज्ञान नोट्स पीडीएफ डाउनलोड sexual reproduction in flowering plants in hindi

By   June 18, 2023

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पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन pdf download

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पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन का मतलब होता है कि उनके अंग्रेजों द्वारा उत्पन्न बीज द्वारा नए पौधे बनाए जाते हैं। यह लैंगिक प्रजनन की प्रक्रिया के द्वारा होता है, जिसे पौधे के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

पुष्पी पादपों के पुरुष जनित अंग्रेज पौधों को स्टामन कहा जाता है, जो पुष्प के मध्यम से बाहर निकलते हैं। इनमें पोलेन ग्रेन्यूल्स होते हैं, जो बीज को गर्भनाली में जा के गर्भस्थ पुष्पाणु तक पहुंचाते हैं।

पुष्पी पादपों की महिला जनित अंग्रेज पौधों को कार्पल कहा जाता है, जो गर्भनाली के नीचे और गर्भस्थ पुष्पाणु के ऊपर स्थित होते हैं। इनमें गर्भस्थ पुष्पाणुओं को संचित करने के लिए गर्भाशय और गर्भनाली की भूमिका होती है।

लैंगिक प्रजनन की प्रक्रिया में, पुरुष अंग्रेज पौधे के स्टामन से पोलेन ग्रेन्यूल्स उत्पन्न होते हैं और वे पुष्प के माध्यम से बाहर आते हैं। जब महिला जनित अंग्रेज पौधे के कार्पल पर पोलेन ग्रेन्यूल्स पहुंचते हैं, तब उन्हें गर्भनाली के माध्यम से गर्भस्थ पुष्पाणु तक ले जाया जाता है। यहां, गर्भस्थ पुष्पाणु और बीज का एकीकरण होता है और नया पौधा उत्पन्न होता है।

इस प्रकार, पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन द्वारा नए पौधे उत्पन्न होते हैं। यह एक साधारण प्रजनन प्रक्रिया है जो उन्हें अपने प्रजनन और प्रजातीय विकास के लिए सक्षम बनाती है।

sexual reproduction in flowering plants in hindi

पुष्पी पौधों में लैंगिक प्रजनन की प्रक्रिया को हिंदी में “पुष्पांग वनस्पतियों में लैंगिक प्रजनन” कहा जाता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें पुरुष और महिला जनित प्रजातियों के बीज एक साथ मिलते हैं और नए पौधे की उत्पत्ति होती है।

पुष्पी पौधों में, पुरुष प्रजातियों को स्टामिन कहा जाता है, जिनमें पोलेन ग्रेन्यूल्स होते हैं। पोलेन ग्रेन्यूल्स को पुरुष पौधे के माध्यम से पुष्प की प्रजातियों के गर्भनाली तक पहुंचाया जाता है।

दूसरी ओर, महिला प्रजातियों को कार्पल कहा जाता है, जिनमें गर्भनाली और गर्भस्थ पुष्पाणु होते हैं। जब पोलेन ग्रेन्यूल्स कार्पल पर पहुंचते हैं, तो उन्हें गर्भनाली के माध्यम से गर्भस्थ पुष्पाणु तक ले जाया जाता है। यहां पोलेन ग्रेन्यूल्स और गर्भस्थ पुष्पाणु के बीच एकीकरण होता है, जिससे नये बीज उत्पन्न होते हैं।

इस प्रक्रिया के द्वारा पुष्पी पौधों में लैंगिक प्रजनन की प्रक्रिया पूरी होती है, जो उन्हें अपने प्रजनन और प्रजातीय विकास के लिए सक्षम बनाती है।

जनित

क्षेत्र में प्रजनन की संबंधित जनित (जेनेटिक) विशेषताओं को “जनित” कहा जाता है। यह जीवन के संबंध में उन विशेषताओं को संकेत करता है जिनका संबंध वंशानुक्रम, गुणों, विकास और प्रजनन से होता है। जनित विशेषताएं जननीय संपत्ति के रूप में व्यक्त होती हैं और वारिस अथवा अगली पीढ़ी में आगे बढ़ती हैं।

जनित विशेषताएं व्यक्ति, प्राणी, वनस्पति या किसी अन्य जीव के जीनोम (जीन संगठन) में आवश्यक जीनों के साथ जुड़ी होती हैं। ये जीन विशेषताएं बापदायी (पितृजन्म) और मातृजन्म (मांगर्भिक जन्म) द्वारा संचित होती हैं और पीढ़ी से पीढ़ी को साझा की जाती हैं।

जनित विशेषताएं आकार, रंग, संरचना, विकास, संगठन और उपस्थिति के अनुसार बदलती रहती हैं। इसके साथ ही, जनित विशेषताएं प्राकृतिक चयन (नेचरल सिलेक्शन) और जनित बदलाव (म्यूटेशन) के माध्यम से विकसित होती हैं। जनित विशेषताएं व्यक्ति या जीवन्त प्राणी के विशेषताओं और स्वभाव को प्रभावित करती हैं।

गर्भनाली

गर्भनाली (या गर्भशय) वनस्पतियों में महिला जनित अंग्रेज पौधों में एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह गर्भाशयकोशिकाओं (श्रेणी) का एक समूह होता है जो कार्पल (प्रजननी अंग्रेज पौधों के भाग) को घेरता है। यह गर्भनाली कार्पल की संरचना को सुरक्षित रखने, विकास में सहायता करने और बीज को संचित करने के लिए जिम्मेदार होता है।

गर्भनाली वनस्पतियों में पोलिनेशन के पश्चात बदलाव करती है और गर्भनाली के अंदर बीज के विकास को संभव बनाती है। यह गर्भनाली में गर्भस्थ पुष्पाणुओं को संचित करती है, जिनका उपयोग बाद में बीज के विकास के लिए किया जाता है। गर्भनाली में उत्पन्न गर्भस्थ पुष्पाणुओं का समूह गर्भकोषी (अथवा औद्भिज्य) कहलाता है।

गर्भनाली में अनुक्रमिक रूप से विकसित होने वाले गर्भस्थ पुष्पाणुओं में नाना पर्यायात्मक का संयोग होता है, जिससे वे गठित होते हैं और उत्पन्न होने वाले बीज को धारण करते हैं। इसके पश्चात गर्भनाली संक्रमित होती है और बीज को पूरी तरह से विकसित होने और पूर्ण पौधे के रूप में परिणत होने में मदद करती है।

पुष्पाणु

पुष्पाणु (या पोलेन ग्रेन्यूल्स) पौधों में लैंगिक प्रजनन का महत्वपूर्ण अंग होते हैं। ये छोटे बिंदुग्रंथि के रूप में पाये जाते हैं, जो पुष्प के पुरुष अंग (स्टामिन) में उत्पन्न होते हैं। पुष्पाणु ग्रेन्यूल्स गर्भनाली के माध्यम से गर्भस्थ पुष्पाणु तक पहुंचाए जाते हैं।

पुष्पाणु एक पोलिनेशन प्रक्रिया के दौरान प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होते हैं। जब पुष्पाणु पुरुष पौधे के स्टामिन से उद्भवित होते हैं, तो उन्हें हवा, पशु, पक्षी या अन्य पोलिनेटर्स (बीजने वाले) द्वारा पुष्प की महिला अंग (कार्पल) तक ले जाया जाता है।

पुष्पाणु धूलि, पेंगिकुल, या अन्य सतह पर छिड़कते हैं और उन्हें अपनी गर्भनाली के माध्यम से सुरक्षित रखते हैं। जब पुष्पाणु गर्भकोषी में पहुंचते हैं, तो वे गर्भनाली के अंदर बीज के विकास को संचित करते हैं। ये पुष्पाणु स्त्रोतों के रूप में जाने जाते हैं, जो पौधे के प्रजनन या बीजने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

पुष्पाणु प्रजनन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनका प्रसारण पोलिनेशन द्वारा होता है, जिससे वनस्पति का जीवनचक्र आगे बढ़ सकता है।

प्रजातीय विकास

प्रजातीय विकास (या जनजातीय विकास) एक वनस्पति या जीवाश्म के विकास की प्रक्रिया है जिसमें उसकी बाल्यावस्था से जीवन की अवस्था तक का समय अवधि शामिल होती है। यह विकास जीवाश्म की विभिन्न स्थितियों, संरचनाओं, और कार्यों के माध्यम से होता है जो जीवाश्म को उसकी प्रजाति के रूप में पहचानने में मदद करता है।

प्रजातीय विकास में चार मुख्य चरण होते हैं:
1. बाल्यावस्था (या बालकालीन अवस्था): यह विकास का पहला चरण होता है जहां नवजात जीवाश्म बालकालीन संरचनाएं और गुणधर्म विकसित करता है। इस अवधि में जीवाश्म अपनी प्राथमिक गतिविधियों, जैसे आहार प्राप्ति और बढ़ने की प्रक्रिया, को विकसित करता है।
2. किशोरावस्था (या युवावस्था): यह दूसरा चरण होता है जहां जीवाश्म विकसित होता है और अपनी सामरिक और प्रजातीय विशेषताओं को प्रकट करता है। इस चरण में जीवाश्म कार्यक्षेत्र, अभियांत्रिकी, और प्रजातीय विकास के लिए आवश्यक बदलावों को अनुभव करता है।
3. प्रौढ़ावस्था (या प्रौढ़कालीन अवस्था): यह तीसरा चरण होता है जहां जीवाश्म अपनी प्रजाती के सभी विशेषताओं को विकसित करता है। इस अवधि में जीवाश्म विपणन, जीवन की निर्माण, और अपने प्रजाती के बाकी सदस्यों के साथ संघर्ष करता है।
4. वृद्धावस्था: यह चौथा और अंतिम चरण होता है जहां जीवाश्म अपनी अंतिम अवधि में प्रवेश करता है और उसकी कार्यक्षमता और विकास धीरे-धीरे कम होने लगते हैं। यह चरण जीवाश्म के जीवन की अवधि के अंत को दर्शाता है और मृत्यु के पश्चात आता है।

प्रजातीय विकास जीवाश्म के जीवन चक्र में महत्वपूर्ण होता है और वनस्पतियों और अन्य जीवाश्मों के बारे में उनकी पहचान, प्रकृति और अभिव्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है।