हिंदी माध्यम नोट्स
Categories: Physics
अर्द्धचालक डायोड की परिभाषा क्या है , अर्द्धचालक डायोड किसे कहते है ? semiconductor diode in hindi
semiconductor diode in hindi , अर्द्धचालक डायोड की परिभाषा क्या है , अर्द्धचालक डायोड किसे कहते है ? :-
P-N संधि को अग्र बायस करना : बैटरी के जब P-N सन्धि के p भाग को धनात्मक सिरे से तथा n भाग को बैटरी के ऋणात्मक सिरे से जोड़ा जाता है तो इस प्रकार का बायस PN संधि को अग्र बायस करना कहलाता है।
P-N संधि को अग्र बायसीत करने पर उसके संधि क्षेत्र में बाह्य विद्युत क्षेत्र P से n की ओर उत्पन्न होता है। इस बाह्य विद्युत क्षेत्र की दिशा संधि के आंतरिक विद्युत क्षेत्र के विपरीत होती है जिसके कारण उस आंतरिक विद्युत क्षेत्र में कमी आ जाती है जिससे अवक्षय परत की चौड़ाई भी कम हो जाती है।
अवक्षय परत में कमी के कारण रोधिका विभव कम होता जाता है , इस कारण p भाग से बहुसंख्यक हॉल n की ओर जबकि n भाग से बहुसंख्यक इलेक्ट्रॉन P-N संधि को पार कर p भाग की ओर जाने लगते है।
बहुसंख्यकों के चलने के कारण बनने वाली यह धारा अधिक मान (मिली एम्पियर कोटि में) की होती है।
इस धारा की दिशा p से n भाग की ओर होती है।
बैटरी के बाह्य विभव को ओर अधिक बढाने पर इस धारा के मान में और अधिक वृद्धि होने लगेगी।
P-N सन्धि को अग्र बायस करने पर धारा अधिक मान की प्रवाहित होती है , इसका अर्थ है कि अग्र बायस की स्थिति में P-N संधि का आंतरिक प्रतिरोध बहुत अल्प होता है।
इस स्थिति में P-N संधि के आंतरिक प्रतिरोध को उसका अंत: प्रतिरोध (rf) कहा जाता है।
सामान्यतया अग्र प्रतिरोध का मान कुछ सौ ओम तक होता है।
P-N संधि को अग्र बायसीत करने पर उसके संधि क्षेत्र में बाह्य विद्युत क्षेत्र P से n की ओर उत्पन्न होता है। इस बाह्य विद्युत क्षेत्र की दिशा संधि के आंतरिक विद्युत क्षेत्र के विपरीत होती है जिसके कारण उस आंतरिक विद्युत क्षेत्र में कमी आ जाती है जिससे अवक्षय परत की चौड़ाई भी कम हो जाती है।
अवक्षय परत में कमी के कारण रोधिका विभव कम होता जाता है , इस कारण p भाग से बहुसंख्यक हॉल n की ओर जबकि n भाग से बहुसंख्यक इलेक्ट्रॉन P-N संधि को पार कर p भाग की ओर जाने लगते है।
बहुसंख्यकों के चलने के कारण बनने वाली यह धारा अधिक मान (मिली एम्पियर कोटि में) की होती है।
इस धारा की दिशा p से n भाग की ओर होती है।
बैटरी के बाह्य विभव को ओर अधिक बढाने पर इस धारा के मान में और अधिक वृद्धि होने लगेगी।
P-N सन्धि को अग्र बायस करने पर धारा अधिक मान की प्रवाहित होती है , इसका अर्थ है कि अग्र बायस की स्थिति में P-N संधि का आंतरिक प्रतिरोध बहुत अल्प होता है।
इस स्थिति में P-N संधि के आंतरिक प्रतिरोध को उसका अंत: प्रतिरोध (rf) कहा जाता है।
सामान्यतया अग्र प्रतिरोध का मान कुछ सौ ओम तक होता है।
P-N सन्धि को पश्च बायस करना
जब P-N संधि के p भाग को बैट्री के ऋणात्मक सिरे से तथा n भाग को बैट्री के धनात्मक सिरे से जोड़ा जाता है तो इस प्रकार का बायस P-N संधि को पश्च /उत्क्रम बायस करना कहलाता है।
P-N सन्धि को पश्च बायस करने पर संधि पर उत्पन्न बाह्य विद्युत क्षेत्र आन्तरिक विद्युत क्षेत्र की दिशा में उत्पन्न होता है। जिसके कारण आंतरिक विद्युत क्षेत्र में वृद्धि हो जाती है इससे संधि की अवक्षय परत की चौड़ाई में वृद्धि हो जाती है। अवक्षय परत के बढ़ने से रोधिका विभव का मान भी बढ़ जाता है। इस स्थिति में p भाग से अल्पसंख्यक इलेक्ट्रॉन n भाग की ओर जबकि n भाग से अल्पसंख्यक हॉल p भाग की ओर गमन करने लगते है। अल्पसंख्यको के चलने के कारण n से p की ओर एक अल्प मान की धारा निर्मित होती है। इसका मान माइक्रो एम्पियर कोटि का होता है।
इस पश्च धारा के मान में प्रारंभ में वृद्धि होती है परन्तु एक निश्चित पश्च वोल्ट के पश्चात् यह पश्च धारा लगभग नियत हो जाती है। इस पश्च धारा के नियत मान को पश्च संतृप्त धारा कहते है।
पश्च बायस की स्थिति में धारा अल्प होने से संधि का आंतरिक प्रतिरोध उच्च होता है , इस आन्तरिक प्रतिरोध को इस स्थिति में पश्च प्रतिरोध (Rr) कहा जाता है।
सामान्यतया पश्च प्रतिरोध का मान मेगा ओम कोटि का होता है।
नोट : P-N संधि के अग्र बायस एवं पश्च बायस की स्थिति में चित्र निम्न प्रकार से दर्शाया जाता है –
n-p संधि डायोड एवं उसके अभिलाक्ष्णिक वक्र
जब किसी p-n संधि को परिपथों में जोड़ा जाता है तो इसके लिए उसके p तथा n सिरों पर धात्विक इलेक्ट्रोड बनाये जाते है , इस प्रकार बनी युक्ति को ही P-N संधि डायोड कहा जाता है।
इसे अर्द्धचालक डायोड भी कहते है।
किसी भी डायोड के दोनों सिरों के मध्य विभव का परिवर्तन करने पर उससे प्रवाहित विद्युत धारा में भी परिवर्तन होने लगता है।
किसी भी P-N संधि डायोड के लिए उससे प्रवाहित विद्युत धारा तथा उसके दोनों सिरों के मध्य आरोपित विभव के बीच खिंचा गया परिवर्तन का ग्राफ ही अभिलाक्ष्णिक वक्र कहा जाता है।
किसी भी p-n संधि डायोड का प्रतिक चिन्ह निम्न प्रकार से दर्शाया जाता है –
Recent Posts
सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ
कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…
4 weeks ago
रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?
अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…
4 weeks ago
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
2 months ago
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
2 months ago
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
3 months ago
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
3 months ago