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Secondary alcohols in hindi types examples द्वितीयक ऐल्कोहॉल क्या है अल्कोहल की पहचान विधि

द्वितीयक ऐल्कोहॉल क्या है अल्कोहल की पहचान विधि Secondary alcohols in hindi types examples ?

(ब) द्वितीयक ऐल्कोहॉल (Secondary alcohols)

(i) ऐल्डिहाइड की अभिक्रिया से ( By the reaction of aldehydes) – फार्मेल्डिहाइड के अतिरिक्त सभी ऐल्डिहाइड (ऐल्केनैल) ग्रीन्यार अभिकर्मक से अभिक्रिया करके योगोत्पाद बनाते हैं जो जल अपघटन पर द्वितीयक ऐल्होहॉल देते हैं।

(ii) एथिल फॉर्मेट की अभिक्रिया से (By the reaction of ethyl formate) – एक अणु एथिल फॉर्मेट दो अणु ग्रीन्यार अभिकर्मक के साथ निम्नलिखित दो पदों में अभिक्रिया करके द्वितीयक ऐल्कोहॉल बनाता है।

(स) तृतीयक ऐल्कोहॉल (Tertiary alcohols) 

(i) कीटोन की अभिक्रिया से (By the reaction of ketones) – कीटोन (ऐल्केनॉन) ग्रीन्यार अभिकर्मक के साथ अभिक्रिया करने तृतीयक ऐल्कोहॉल देते हैं।

(ii) एस्टर की अभिक्रिया से (By the reaction of esters) – एक अणु एथिल एस्टर (एथिल फार्मेट के अतिरिक्त) दो अणु ग्रीन्यार अभिकर्मक से निम्नलिखित पदों में अभिक्रिया करके तृतीयक ऐल्कोहॉल बनाता है।

हैलो ऐल्केन से (From halo alkanes)-

हैलो ऐल्केन की जलीय क्षार जैसे NaOH अथवा KOH अथवा नम Ag20 से अभिक्रिया पर . ऐल्केनॉल प्राप्त होते हैं। हैलो ऐल्केन की जलीय क्षार के प्रति क्रियाशीलता का क्रम इस प्रकार है-

तृतीयक > द्वितीयक > प्राथमिक

(नोट- तृतीयक ऐल्किल हैलाइड की जलीय क्षार से अभिक्रिया पर ऐल्कीन भी बनती है ।) अतः तृतीयक ऐल्किल हैलाइड से निम्नलिखित प्रकार ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है।

1-हैलोऐल्केन के विहाइड्रोहैलोजनीकरण से प्राप्त ऐल्कीन की HBr से अभिक्रिया करने पर द्वितीयक ब्रोमोऐल्केन प्राप्त होते हैं जिनकी जलीय KOH से अभिक्रिया कराने पर द्वितीयक ऐल्कोहॉल बनते हैं।

 ऐल्केनैल और ऐल्केनोन (कार्बोनिल यौगिक) के अपचयन से [(By reduction of alkanal and alkanone (carbonyl cornpounds)]– ऐल्केनैल अपचयन पर प्राथमिक ऐल्केनॉल तथा ऐल्केनोन अपचयन पर द्वितीयक ऐल्केनॉल देते हैं ।

इन यौगिकों का अपचयन मुख्यतः निम्नलिखित अपचायकों द्वारा किया जाता है-

(1) Na एवं एथेनॉल से (बूवो ब्लॉक अपचयन) (Bouveault Blanc reduction)– सोडियम तथा एथेनॉल से अपचयन पर ऐल्केनैल और ऐल्केनोन क्रमश संगत प्राथमिक तथा द्वितीयक ऐल्केनॉल देते हैं। यह अभिक्रिया बूवो ब्लांक अपचयन (Buovealut Blanc reduction) कहलाती है। इस क्रिया में हैंसले (Hensley) ने 1947 में सुधार किया, उसने सोडियम एवं एथेनॉल की सैद्धान्तिक मात्रा लेकर अभिक्रिया को निष्क्रय विलायक जैसे टॉलूईन या o- जाइलीन में कराई जिससे उत्पाद 85-90% मात्रा में प्राप्त हुआ ।

बूवो ब्लांक अपचयन की क्रियाविधि – यह अभिक्रिया एक समय में एक इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण द्वारा निम्नलिखित पदों में सम्पन्न होती है-

(2) लीथियम ऐलुमिनियम हाइड्राइड (LiAIH ) अथवा सोडियम बोरोहाइड्राइड (NaBH) से-प्रयोगशाला में ऐल्डिहाइड एवं कीटोन का अपचयन सोडियम बोरोहाइड्राइड या लीथियम ऐलुमिनियमहाइड्राइड (LAH) से करते हैं।

सोडियमबोरोहाइड्राइड को ऐल्डिहाइड या कीटोन के जलीय या ऐल्कोहॉलिक विलयन में डालने से अभिक्रिया सुगमता से हो जाती है। इसको प्रयुक्त करना आसान है।

लीथियम ऐलुमिनियमहाइड्राइड जल एवं ऐत्कोहॉल से प्रचंडता (Violently) से अभिक्रिया करता है। इसलिए इसको शुष्क डाइएथिल ईथर या टेट्राहाइड्रोफ्यूरेन (THF) में प्रयुक्त करते हैं। अपचयन पद के बाद प्राप्त उत्पाद का जल अपघटन करते हैं जिससे कि ऐल्कोहॉल प्राप्त होते हैं।

सोडियम बोरोहाइड्राइड एवं लीथियमऐलुमिनियम हाइड्राइड दोनों ही अपचयनों में धातु द्वारा कार्बोनिल समूह के कार्बन को हाइड्राइड आयन (H) का स्थानान्तरण होता है।

क्रियाविधि- सोडियम बोरोहाइड्राइड द्वारा अपचयन-

बोरोहाइड्राइड एक हाइड्रोजन का बंधी इलेक्ट्रॉनों साथ ध्रुवित कार्बोनिल समूह के आंशिक धनावेशित कार्बन पर स्थानान्तरण कर देता है और ऋणात्मक आवेशित ऑक्सीजन बोरॉन पर आक्रमण करती है। इस प्रकार बोरोहाइड्राइड के चारों हाइड्रोजन स्थानान्तरित होकर टेट्राऐल्किल बोरेट बनाते हैं जो जल या ऐल्कोहॉल से जल अपघटित या ऐल्कोहॉली अपघटन द्वारा संगत ऐल्कोहॉल में बदल जाते हैं।

नोट- डारजन (Darzen 1947) के अनुसार ऐल्डिहाइड एवं कीटोन का अपचयन सोडियमहाइड्राइड NaH से करने पर भी ऐल्कोहॉल अधिक मात्रा में प्राप्त होते है ।

(3) उत्प्रेरकी हाइड्रोजीनकरण – ऐल्केनैल एवं ऐल्कोनॉन का निष्क्रिय विलायकों में विशिष्ट उत्प्रेरक Ni, Pt, Pd या Ru की उपस्थिति में हाइड्रोजनीकरण करने पर भी क्रमशः 1° ऐल्कोहॉल एवं 2° ऐल्कोहॉल प्राप्त होते हैं।

कार्बोक्सिलिक अम्ल और एस्टर के अपचयन से-

कार्बोक्सिलिक अम्लों का अपचयन-नाइस्ट्रोम एवं ब्राउन (1947) के अनुसार लीथियम ऐलुमिनियम हाइड्राइड कार्बोक्सिलक अम्लों का संगत प्राथमिक ऐल्कोहॉल में अपचयन कर देता है ।

कार्बोक्सिलिक अम्लों का अपचयन कठिनाई से होता है। इसलिये इनका अपचयन प्रबल अपचायक LiAlH से हो जाता है जबकि सोडियम बोरोहाइड्राइड इतना प्रबल अपचायक नहीं । इसलिये कार्बोक्सिलिक अम्लों का अपयचन NaBH से नहीं होता है।

(ii) उत्प्रेरकी हाइड्रोजनीकरण– कार्बोक्सिलिक अम्ल H2 से विशिष्ट उत्प्रेरक यूरेनियम या कॉपर क्रोमाइट CuO-Cu Cr2O4 की उपस्थिति में अपचयित होकर प्राथमिक ऐल्कोहॉल दे देते हैं।

 (2) एस्टरों का अपचयन 

(i) एस्टर, कार्बोक्सिलिक अम्लों की अपेक्षा सुगमता से अपचयित हो जाते हैं। इनका अपचयन LiAIH4 तथा NaBH, दोनों से हो जाता है। ऐस्टर के अपचयन में C—OR बंध का विदलन (cleavage) होता है।

(ii) बूवोब्लांक अपचयन– एस्टरो का Na एवं C2H5OH से भी अपचयन हो जाता है।

(iii) उत्प्रेरकी हाइड्रोजनीकरण – एस्टर उत्प्रेरित हाइड्रोजनीकरण पर भी अपचयित होकर प्राथमिक ऐल्कोहॉल बनाते हैं। हाइड्रोजनीकरण रूथेनियम या CuO – CuCr2O4 उत्प्रेरक की उपस्थिति में होता है।

 एस्टर के जल अपघटन द्वारा (By hydrolysis of esters)-

जब एस्टर को तनु खनिज अम्ल / क्षार के साथ गर्म किया जाता है तो वे ऐल्केनोइक अम्ल में परिवर्तित हो जाते हैं। (विस्तार से अध्ययन के लिए अध्याय 7 देखें)

 प्राथमिक ऐमीन से (From primary amines) –

प्राथमिक ऐमीन की नाइट्रस अम्ल (HNO2) के साथ अभिक्रिया से ऐल्कोनॉल प्राप्त होते हैं। नाइट्रस अम्ल को रासायनिक क्रिया के संयम ही NaNO2 एवं HCI की अभिक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। (विस्तार से अध्ययन के लिए अध्याय 8 देखें)

किण्वन द्वारा :- ऐल्कोहॉलों के निर्माण की यह प्राचीन विधि है । सुक्रोस, इन्वर्टेस एन्जाइम की उपस्थिति में ग्लूकोस तथा फ्रक्टोस में परिवर्तित होता है। ग्लूकोस, जाइमेस एन्जाइम द्वारा ऐथेनोल में परिवर्तित हो जाता है ।

ऑक्सोअभिक्रिया द्वारा :

जब ऐल्कीन, हाइड्रोजन तथा कार्बन मोनोऑक्साइड के मिश्रण को उच्च ताप एवं उच्च दाब पर कोबाल्ट कार्बोनिल हाइड्राइड उत्प्रेरक की उपस्थिति में भेजा जाता है तो पहले फॉर्मिल समूह का योग होता है जो Cu – Zn के द्वारा अपचयन पर ऐल्कोहॉल में परिवर्तित हो जाता है। इसे कार्बोनिलीकरण अथवा हाइड्रोफॉर्मिलीकरण अभिक्रिया कहते हैं।

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