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द्वितीय विश्व युद्ध के लिए हिटलर कहां तक उत्तरदाई था , second world war hitler in hindi
second world war hitler in hindi द्वितीय विश्व युद्ध के लिए हिटलर कहां तक उत्तरदाई था ?
प्रश्न: द्वितीय विश्व युद्ध के लिए हिटलर कहां तक उत्तरदायी था ? आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
उत्तर: महायुद्ध के उत्तरदायित्व के विषय में इतिहासकारों में प्रारंभ से ही परस्पर विरोधी एवं तीव्र मतभेद रहे हैं। बहत से इतिहासज्ञों ने हिटलर को प्रमुख रूप से उत्तरदायी माना है, किन्तु कुछ विद्वानों ने इस मत का खण्डन किया है। इसके अतिरिक्त कुछ लेखकों ने मुसोलिनी एवं रूस के नेताओं को भी उत्तरदायी ठहराया है, दूसरी ओर रूसी नेताओं एवं इतिहासकारों ने ब्रिटेन एवं फ्रांस की श्तुष्टकीरणश् की नीति को महायुद्ध के लिए उत्तरदायी ठहराया है। कुछ विद्वानों ने सामूहिक उत्तरदायित्व के मत का प्रतिपादन किया है।
हिटलर का उत्तरदायित्व : 1945 में युद्ध अपराधियों पर अभियोग चलाने और उन्हें दण्डित करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सैनिक न्यायाधिकरणश् की स्थापना की गई। द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के बाद 1945-46 में, अंतर्राष्ट्रीय सैनिक न्यायालय (International Military Tribunal) में नात्सी युद्ध-अपराधियों पर मुकदमें चलाए गए। इस न्यायालय में, जिसमें चार प्रमख विजयी राणे के प्रतिनिधि सम्मिलित थे, जर्मनी से प्राप्त युद्ध संबंधी दस्तावेजों के आधार पर 12 प्रमुख नात्सी नेताओं को, आक्रामक युद्धों की योजना बनाने, तैयारी करने और आरम्भ करने के अपराध में मृत्यु दण्ड दिया और अनेकों को कारावास का दण्ड दिया। रीबनदाप सहित 11 लोगों को फाँसी की सजा दी गई।
अन्तर्राष्ट्रीय सैनिक न्यायालय ने 1 अक्टूबर, 1946 को दिए गए निर्णय में कहा कि 1 सितम्बर, 1939 के कुछ दिनों पर्व का घटनाओं से, हिटलर एवं उसके सहयोगियों का पोलैण्ड पर आक्रमण करने के घोषित उद्देश्य को किसी भी कीमत पर पूरा करने का दृढ़ निश्चय प्रमाणित हो जाता है। …… प्रस्तुत साक्ष्यों को पूर्णतः संतोषजनक मानते हुए इस न्यायालय का निश्चित मत है कि 1 सितम्बर, 1939 को जर्मनी द्वारा पोलैण्ड के विरुद्ध आरम्भ किया गया युद्ध स्पष्टतया एक आक्रामक युद्ध था, जिसने कुछ समय पश्चात् अधिकांश विश्व को समाविष्ट कर लिया……।
सैनिक न्यायालय ने अपने निर्णय की पुष्टि के लिए जर्मन सरकार के अनेक गुप्त दस्तावेजों के उद्धरण प्रस्तुत किए थे, किन्तु उसके मत को गम्भीरतापूर्वक स्वीकार नहीं किया जा सकता। उस न्यायाधिकरण में किसी जर्मन निर्णायक के न होने तथा पोलैण्ड एवं इटली की ओर से भी किसी व्यक्ति के, निर्णायक अथवा अभियुक्त के रूप में उपस्थित न होने के कारण उसका फैसला एकपक्षीय कहा जा सकता है। दूसरे, युद्ध की समाप्ति के तुरन्त बाद विजेता-राष्ट्रों द्वारा गठित इस न्यायालय से संतुलित निर्णय की आशा नहीं की जा सकती थी।
कुछ ब्रिटिश, फ्रेंच, जर्मन एवं अमेरिकन इतिहासज्ञों ने हिटलर को ही मुख्य रूप से युद्ध के लिए उत्तरदायी माना है। प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार श्सर लेविस बी. नेमियरश् (Sir Lewis B- Namier) ने डीप्लोमेटिक प्रिल्यूड (1938-39) में यह प्रमाणित करने का प्रयास किया, कि हिटलर युद्ध करना चाहता था। प्रोफेसर एलेन बुलक (Bullock) ने अपने ग्रंथ श्हिटलर एण्ड आरिजिन्स ऑफ सेकण्ड वर्ल्ड वार, ई.एम.राबर्टसन द्वारा सम्पादित द आरिजिन्स ऑफ सेकण्ड वर्ल्ड वार में यह मत व्यक्त किया है कि 1930 के बाद यूरोप में केवल हिटलर ही ऐसा व्यक्ति था, जो अपनी विदेश-नीति संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने का संकल्प करके उनकी पूर्ति के लिए आवश्यक साधन भी जुटा चुका था।
उसने न केवल युद्ध का भय उत्पन्न किया और उसकी धमकी से अनचित लाभ उठाया. वरन संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होने पर, वह जोखिम उठाकर युद्ध के लिए तैयार हो गया और उसके पश्चात् पोलैण्ड के अभियान में सफल होने पर, उसने दोहरी बाजी लगाकर पहले पश्चिम में और उसके बाद पूर्व में आक्रमण किया। इसी कारण, अन्य राष्ट्रों की अनिश्चयी, निन्दनीय एवं वितण्डावादी नीतियों की जानकारी होते हुए भी, हिटलर एवं वह राष्ट्र जो उसका अनुगामी था, 1939 में आरम्भ हुए युद्ध के लिए अनन्य रूप से तो नहीं, किन्तु प्रधानतः उत्तरदायी थे।
हर्मन माव (Hermann Mau) एवं हेल्मट क्रासनिक (Helmut Krausnick) नामक दो जर्मन विद्वानों ने भी अपने ग्रंथ श्जर्मन हिस्ट्री (1933-45), में तथा जे. स्नेल ने श्द आउटब्रेक ऑफ सेकण्ड वर्ल्ड वारश् में हिटलर को द्वितीय विश्व-युद्ध के लिए उत्तरदायी ठहराया है। स्विस इतिहासकार वाल्टर होफर (Water Hofer) ने भी अपने ग्रंथ श्वार प्रिमेडिटेटडश् में यह अभिधारणा प्रस्तुत की है कि 1939 में हिटलर ने पूर्व-विमर्शित युद्ध आरम्भ किया।
प्रोफेसर ट्रेवर रोपर (Trevor Roper) के मतानुसार हिटलर के आत्मचरित मेन काम्फ (मेरा संघर्ष) में ही उसकी आक्रामक विस्तारवादी नीति की रूपरेखा मिल जाती है।
अन्य नेताओं का उत्तरदायित्व रू 1961 में प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर ए.जे.पी. टेलर (Taylor) ने श्ओरिजिन्स आफ द सेकण्ड वर्ल्ड वारश् नामक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें उसने नेमियर, व्हीलर-बेनेट (Wheeler-Bennett), विस्कमेन (Wiskemann) एवं फ्रेंच लेखक बामान्त (Maurice Baumont), जिन्होंने हिटलर को मुख्य रूप से युद्ध के लिए उत्तरदायी माना है, सभी के विचारों को खण्डन किया है। प्रोफेसर टेलर ने अधिकांश इतिहासकारों के इस मत को अस्वीकार किया है कि हिटलर ने द्वितीय विश्वयुद्ध की योजना तैयार की और केवल उसी की इच्छा के कारण यद्ध हुआश्। प्रोफेसर टेलर का विचार है कि मेन काम्फ में हिटलर ने जिन विस्तारवादी योजनाओं का उल्लेख किया था, वे उसकी कोरी कल्पनाएं मात्र थीं, जिनका उसकी वास्तविक नीति से कोई संबंध नहीं था।
प्रोफेसर टेलर की पुस्तक प्रारम्भ से ही तीव्र विवाद का विषय बन गयी। एफ.एच.हिन्सले ने अपने ग्रंथ द पावर एण्ड पर्सट ऑफ पीस में, पी.ए.रेनाल्ड्स ने अपने ग्रंथ हिस्ट्री (1961) में, देवर-रोपर तथा ए.एल.राउस, स्पेन्सर आप अनेक विद्वानों ने उसके तर्को का खण्डन किया है। इन विद्वानों ने मुख्य रूप से यह आलोचना की है कि टेलर ने कर कटनीतिक घटनाओं एवं दस्तावेजों के आधार पर अपने मत प्रस्तुत किए हैं और युद्ध को अवश्यम्भावी बतान १ आधारभत तत्वों की उपेक्षा की है। यह विवाद सम्भवतः आगे भी कई वर्षों तक चलता रहेगा. तथापि उपलब्ध ऐतिहास साधनों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और इटली की तुलना में हिटलर का उत्तरदायर अपेक्षाकृत अधिक था।
प्रश्न: शीतयुद्ध की राजनीति द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए कहां तक उत्तरदायी थी ? आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
ऽ द्वितीय विश्व की समाप्ति पर 9 फरवरी, 1946 में पहली बार रेडियो मास्को से स्टालिन ने कहा कि – यह सोचना गलत होगा कि युद्ध आकस्मिक रूप में हुआ था या कुछ राजनीतिज्ञों की गलती का परिणाम था। हालांकि कुछ गलतियां थी। लेकिन युद्ध वास्तव में एकाधिकारी पूँजीवाद पर आधारित संसार की आर्थिक और राजनीतिक शक्तियों का अवश्यम्भावी परिणमा था। .
ऽ इसके जवाब में चर्चिल ने 5 मार्च, 1946 को फुल्टन में कहा – ष्इतिहास में यही एक ऐसा युद्ध था जिसे समय रहते हुए रोका जा सकता था। यह राजनीतिज्ञों की गलती का परिणाम था न कि पूँजीवादी व्यवस्था का।
ऽ इतिहासकार राइट ई.ली. ने अपनी पुस्तक ‘Ten Years The world at way to war” जो 1942 में प्रकाशित हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध
चल रहा है और इतिहासकार युद्ध के कारणों की खोज में लगा हुआ है। उसने दोनों बातों को (पूंजीवादी व साम्यवाद) को साथ में रखा और परिणाम निकाला कि यह व्यवस्था का परिणाम व राजनीतिज्ञों की गलती का परिणाम था।
ऽ 1948 में अमेरिका ने युद्ध संबंधी दस्तावेज. प्रकाशित किये और यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि यदि 1939 में नाजी-सोवियत पैक्ट नहीं होता तो युद्ध होता ही नहीं। इसमें जर्मनी और रूस ने श्अनाक्रमणश् की स्थिति में रहने का समझौता किया था।
ऽ इसी के जवाब में रूस ने द्वितीय विश्वयुद्ध संबंधी समस्त दस्तावेज व मसले प्रकाशित किए औरजी-सोवियत पैक्ट को निरस्त करते हुए स्टालिन ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि युद्ध का वास्तविक कारण 1925 की ल्यकानों संधि थी इसमें जर्मनी को छूट दे दी कि वह पूर्व की ओर ही बढे। हिटलर साम्यवादिया व यहूदियों को समाप्त कर रहा था। इतिहासकार प्लेमिंग इससे सहमत हैं।
ऽ इतिहासकार चार्ल्स टेन्सिल ने अपनी पुस्तक “The Back Door to War Roozvelt forgin Police” में युद्ध का नादायित्व
रूजवेल्ट पर थोपा है। रूजवेल्ट ने बर्लिन स्थित अपने निकटतम राजदूत कैनेडी को पूरी छूट दे रखी था कि वह हिटलर की भरसक
सहायता करे। उसने अपने और दूतावासों को भी स्पष्ट आदेश दे दिये थे कि रूस के विरुद्ध जो भी राष्ट्र हैं उन्हें पूरी तरह से सहायता ही जाए। क्योंकि हिटलर साम्यवादी विरोधी प्रचार कर रहा था तो रूजवेल्ट जाने – अनजाने में हिटलर को सहायता दे रहा था। इसीलिए युद्ध का कारण रूजवेल्ट थे।
ऽ इतिहासकार ए.जे.पी. टेलर ने अपनी पुस्तक ‘The Orgin of The IInd World War’ (1961) में द्वितीय विश्वयुद्ध के बारे में कहा कि अपनी विचारधारा में हिटलर ही बदमाश नहीं था बल्कि सभी राजनीतिज्ञ बदमाश थे। सब अपनी व्यक्तिगत राजनीति करने में लगे हए थे। हिटलर ने (i) Political Testament में कहा कि – यह असत्य है कि मैं या जर्मनी का कोई और 1939 में लडाई लडना चाहता था। यह जरूरी था और इसके लिए मुझे उकसाया गया था। मुख्यतः उन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिज्ञों द्वारा जो या तो यहदी जाति के थे या उनके हितों के लिए लड़ रहे थे। दूसरे पत्र में जो अपने फील्ड मार्शल के नाम था स्पष्ट कहा गया कि पूर्व की ओर बढ़ो। (हिटलर की नाजीवादी विचारधारा)
निशस्त्रीकरण रू इसका अर्थ था कि शस्त्रों को सीमित करना जहां तक राष्ट्रीय सुरक्षा में हित मे हो। राष्ट्रसंघ की प्रसंविदा में भी ष्राष्ट्रीय सुरक्षा का ध्यान रखते हए राष्ट के शस्त्रास्त्रों की निम्नतम सीमा निर्धारित करना, शान्ति बनाए रखने के लिए आवश्यक।ष् निशस्त्रीकरण माना गया। 1921 में वाशिंगटन सम्मेलन में नौसैनिक राष्ट्रों ने टन भार के अनुपात से परिसीमित करना स्वीकार किया।
ऽ चर्चिल का मत था कि ष्यदि वर्साय की संधि की निःशस्त्रीकरण सम्बंधी धाराओं का 1934 तक कढ़ाई से पालन किया जाता तो हिंसा या रक्तपात के बिना संसार की शान्ति व सुरक्षा की अनिश्चित काल तक रक्षा की जा सकती थी।ष्
ऽ निःशस्त्रीकरण संबंधी जेनेवा सम्मेलन (1932) में फ्रांस व जर्मनी के मतभेदों के कारण कोई निर्णय नहीं हुआ। इस सम्मेलन में जर्मनी ने कहा यदि संसार में कोई शान्तिप्रिय देश है तो वह जर्मनी है। क्योंकि न तो उसके पास सेना है, न ही जहाजी बेडे, न ही वायुसेना, न स्थल सेना और न ही पनडुब्बियां हैं। वर्साय की संधि उसके लिए एक गुण बन गई या उसे एक गुण मान लिया गया। हिटलर ने कहा कि वह सम्मेलन की बात तब ही मानेगा जब बाकि देश जर्मनी की इतनी ही सैन्य शक्ति रखेंगे। यदि सीमित नहीं करते हैं तो हम निःशस्त्रीकरण से बाहर चले जायेंगे और चला भी गया। वह भी शस्त्रीकरण में शामिल हो गया। संसार के सभी समाचार पत्रों ने हिटलर की बात का समर्थन किया कि जर्मनी का निःशस्त्रीकरण विचार सही है। और यदि वह सम्मेलन के बाहर जाता है तो गलत नहीं है। इसके फलस्वरूप हिटलर ने वर्साय की सन्धि को तोड़ दिया। जिससे सभी देश शास्त्रीकरण की दौड़ में शामिल हो गये जिसका भयंकर परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध था।
फ्रांस द्वारा जर्मनी से क्षतिपूर्ति करने की कठोर नीति, महान आर्थिक मंदी, जापान में सैन्यवाद, जर्मनी में नाजीवाद एवं इटली में फांसीवादी शक्तियों का विकास आदि कुछ ऐसी घटनाएं. थी जिन्होंने 1919 में स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को घातक आघात पहुँचाया। इंग्लैण्ड ने तुष्टिकरण की नीति अपनाकर आक्रामक राज्यों को अधिक प्रोत्साहित किया। वर्साय की संधि की व्यवस्थाएं कठोर एवं अपमानजनक थी स्वभाविक था वे कुछ समय बाद ध्वस्त होती। लेकिन इसी समय सम्पूर्ण पंजीवादी जगत रूस से भय खाए हए था इसलिए वर्साय की संधि में फिनलैण्ड से लेकर पौलैण्ड तक एक नये राज्यों की एक साम्यवाद से सुरक्षावादी दीवार खींची। अतः उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि शीतयुद्ध की राजनीति द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए जिम्मेदार थी।
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