संज्ञा की परिभाषा क्या है ? संज्ञा किसे कहते है ? भेद , अर्थ , शब्द उदाहरण सहित sangya in hindi meaning

(sangya in hindi meaning in english) संज्ञा की परिभाषा क्या है ? संज्ञा किसे कहते है ? भेद , अर्थ , शब्द उदाहरण सहित व्याख्या कीजिये ?

संज्ञा : संज्ञा उस विकारी शब्द को कहते हैं जिससे किसी वस्तु विशेष अथवा किसी व्यक्ति के नाम का बोध हो, जैसे- घर, गंगा, मोहन, भारत आदि। ‘वस्तु’ शब्द यहाँ व्यापक अर्थ में प्रयुक्त है। वह पदार्थ और प्राणी का वाचक होने के साथ ही उनके धर्म का भी वाचक है।

संज्ञा दो प्रकार की होती है- पदार्थवाचक और भाववाचक। पदार्थवाचक संज्ञा वह है जिससे किसी पदार्थ या पदार्थों के समूह का बोध होता है, जैसे- राम, राजा, सभा, भीड़, कागज, घोड़ा, काशी आदि। यहाँ पदार्थ से तात्पर्य जड़ और चेतन दोनों प्रकार के पदार्थों से है। पदार्थवाचक संज्ञा के भी दो भेद होते हैं- व्यक्तिवाचक और जातिवाचक। इस प्रकार संज्ञा के तीन प्रकार हुए- व्यक्तिवाचक, जातिवाचक और भाववाचक ।

व्यक्तिवाचक  – व्यक्तिवाचक संज्ञा उसे कहते हैं जिससे किसी एक ही पदार्थ अथवा पदार्थो के एक ही समूह का बोध होता हो, जैसे गंगा, महामण्डल, काशी, मोहन आदि। यहाँ काशी या मोहन कहने से किसी एक ही पदार्थ या प्राणी का बोध होता है। काशी कहने से इस नाम के एक ही नगर अथवा एक ही प्राणी का बोध होता है।

जातिवाचक संज्ञा – जातिवाचक संज्ञा उसे कहते हैं जिससे किसी जाति के सभी पदार्थों अथवा उनके समूहों का बोध हो, जैसे नदी, पर्वत, मकान, सभा, मनुष्य आदि। पर्वत कहने से हिमालय, विंध्याचल, आबू आदि सभी पर्वतों का बोध होता है। इस प्रकार नदी कहने से संसार की सभी नदियों का बोध होता है।

भाववाचक संज्ञा – जिस संज्ञा से पदार्थ में प्राप्त होने वाले किसी धर्म का बोध होता है उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं, जैसे, लड़कपन, बुढ़ापा, चतुराई, नम्रता आदि।

संज्ञा के भेद के सम्बन्ध में हिन्दी के वैयाकरण एकमत नहीं हैं। हिन्दी के अधिकांश व्याकरण  ग्रन्थों में संज्ञा के पाँच भेद माने गए हैं- व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, गुणवाचक, भाववाचक और सर्वनाम। वस्तुतः ये भेद कुछ तो संस्कृत व्याकरण के अनुसार, कुछ अंग्रेजी व्याकरण के अनुसार, कुछ रूप के अनुसार तथा कुछ प्रयोग के अनुसार किए गए हैं।