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सैंधव सभ्यता की नगर योजना पर प्रकाश डालिए saindhav civilization town planning in hindi
saindhav civilization town planning in hindi सैंधव सभ्यता की नगर योजना पर प्रकाश डालिए ?
प्रश्न: सैंधव सभ्यता की नगर योजना व नगरीय जीवन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धौलावीरा, रंगपुर, कालीबंगा, सुत्कागेंडोर आदि प्रमुख नगर दिखाई देते हैं। इन बस्तियों का ढांचा नगरों के अस्तित्व को
दर्शाता है।
सिंधु सभ्यता के नगर विश्व के प्राचीनतम सुनियोजित नगर हैं। सिंधु स्थलों से प्राप्त नगर विन्यास से पता चलता है कि विधिवत नक्शा बनाकर भवन निर्माण किया होगा। जिसमें उपयोगिता, कलात्मकता एवं सौन्दर्यता को अधिक महत्व दिया जाता था। नगर निर्माण योजना में पर्याप्त समानता है। प्रत्येक स्थान पर दो टीले हैं। पश्चिमी टीला (गढी) ऊँचा है। जहां सार्वजनिक महत्व के स्नानागार, अन्नागार, महाविद्यालय, पुरोहितावास जैसे भवन मिले हैं। सैन्धव युग के भवन एक या दुमंजिले एवं विविध आकार प्रकार के थे, जो पक्की ईटों से निर्मित थे।
भवन निर्माण में सजावट. अंलकरण की बजाय उपयोगिता को आधार बनाया गया था। मकान के बीच में आंगन एवं चारों ओर कमरें. ईटों की फर्श तथा प्रत्येकं मकान में रसोई, कुआँ, स्नानागार, सीढ़ियाँ, खिड़कियां, चूल्हे आदि मिले हैं। कुछ बिना दरवाजों के मकान भी हैं। मकानों में टोडा मेहराब का प्रयोग किया गया। नगरों की सड़कें प्रायः एक दुसरे को समकोण पर काटती है जो नगरों को आयताकार खण्डों में विभाजित करती है। सड़कों की अधिकतम चैडाई 10 मी. (33 फीट) है। जो प्रायः कच्ची ही है। सैन्धव नगरों में जल निकासी अद्भुत थी। घर के कमरें, रसोई, स्नानागार, शौचगृह आदि की निकास नालियाँ एक बडी नाली में और सभी बड़ी नालियाँ सार्वजनिक नाली में मिलती थी। बीच-बीच में गहरे गडडे बने हए थे जो सफाई के लिए थे। स्पष्ट है कि सैन्धव नगर नियोजन व्यवस्था तत्कालीन विश्व में अद्भुत थी। जिसका आज भी कुछ भारतीय नगरों में प्रभाव देखा जा सकता है।
नगरीय जीवन की विशेषताएं –
ऽ कृषि-व्यापार अधिशेष आधारित सभ्यता थी। विभिन्न आर्थिक गतिविधियां जो कि नगर केन्द्रित अर्थव्यवस्था की विशेषता होती है। यह
नगर केन्द्रित अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करती है जो इसकी मुख्य विशेषता थी।
ऽ दीर्घ परम्परा से सम्बद्ध जिसका महत्वपूर्ण पक्ष शैक्षणिक परम्परा से सम्बद्ध था ऐसी परम्परा जहां लोग लेखन कला से परिचित थे।
ऽ विभिन्न सामाजिक समूहों व वर्गों जैसे व्यापारी, पुजारी वर्ग, शिल्पी, श्रमिक के अस्तित्व तथा विभिन्न धार्मिक आस्थाओं यथा सामूहिक
स्नान, पारलौकिक शक्ति में विश्वास, मूर्तिपूजा आदि में विश्वास, विकसित प्रकार के सामाजिक संगठन व धार्मिक जीवन को इंगित
करते हैं जो नगरीय जीवन की प्रमुख विशेषता होती है।
ऽ धर्म (प्रकति) सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के जीवन में एक महत्वपूर्ण बौद्धिक कारक था। लोगों के जीवन में धर्म की महत्ता,
बहुदेववादी प्रवृति (शिव, मातृदेवी ……) ग्राम व शहर दोनों में एक समान रूप से विद्यमान थे।
ऽ ग्रामीण अभिनति (Biass) नगरीय जीवन में ग्रामीण पूर्वाग्रह दृष्टिगोचर होता है। हड़प्पाई नगरीय जीवन-ग्रामीण मूल्यों व आदशों तथा
धार्मिक विश्वास एवं आस्थाओं से प्रभावित दिखाई देता है।
प्रश्न: वास्तुकला के अत्यन्त विकसित एवं नियोजित रूप का दर्शन हमें श्सैन्धव सभ्यता में हो जाता है।श्
उत्तर: सैन्धव नगरों में पक्की एवं कच्ची ईटों द्वारा भवनों का योजनाबद्ध निर्माण किया गया। जिसमें स्नान कक्ष, पाकशाला, नालियों की व्यवस्था के साथ-साथ पीने के पानी के लिए कएं की व्यवस्था व साथ ही सार्वजनिक स्नानागार और नगर की सडकें आदि उनकी उत्कष्ट अभिरुचि और नगर निर्माण योजना के विकसित ज्ञान की ओर संकेत करता हा य लाग दुर्ग-विधान से भी परिचित थे। वासदेवशरण अग्रवाल के अनुसार सैन्धव लोग (सिंधु घाटी के लोग) दुर्ग-विधान से युक्त किलेबन्द नगरों में निवास करते थे। हडप्पा में 25 फट चैडा वप्र (कटी हुई मिट्टी की दीवार जिस पर ईंटों की दीवार खड़ी की जाती थी) मिला था जिसके ऊपर ईंटों की प्राचीर के बीच-बीच में बुर्ज थे। मुख्य दिशाओं में ऊँचे द्वार थे। हड़प्पा नगर की रक्षा प्राचीर के दक्षिणी सिरे पर दुर्ग तक जाने के लिए सीढियाँ बनाई गई थी। हड़प्पा की ही भांति मोहनजोदड़ो में भी एक दुर्ग टीले के ऊपर बनाया गया था।
हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, काली बंगा व लोथल आदि नगरों के अवशेष इस सभ्यता के वैभवपूर्ण नागरिक जीवन का चित्र प्रस्तुत करते हैं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में भवन निर्माणार्थ पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया था। घरों के गन्दे पानी की निकासी के लिए नालियों की व्यवस्था की गई थी। घरों की नालियों का पानी सडक की बडी नालियों में चला जाता था। इससे यह स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि सिंधु घाटी या सैन्धव सभ्यता के लोग स्वच्छता का बहुत ध्यान रखते थे।
सैन्धव सभ्यता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण केन्द्र मोहनजोदड़ो था। यहां के अवशेषों में विशाल श्जलकुण्डश् उल्लेखनीय है। इस जलकुण्ड में जाने के लिए उत्तर तथा दक्षिण की ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं जो कि पक्की ईंटों से बनाई गई थी।
कच्छ की खाड़ी पर खादिर द्वीप के मध्य धौलावीरा (श्वेत. कूप) नामक पुरातात्विक स्थल के उत्खनन से सम्भवतः विश्व के सबसे बड़े जलाशय के अवशेष अभी हाल ही में प्रकाश में आये हैं।
मोहनजोदड़ो में भी हड़प्पा की ही भांति अनाज भण्डारण के लिए श्कोष्ठागारश् अथवा कोठार बना हुआ था। यह धान्यागार पक्की ईंटों से निर्मित है। इसमें अन्न भण्डारण के लिए 27 कोठे बने हुए थे।
इसके साथ अनेक कक्ष तथा बरामदे भी हैं। यह राजप्रासाद जैसा प्रतीत होता है। यहां के अन्य उल्लेखनीय भग्नावशेषों में सभा भवन की गणना भी की जा सकती है। मोहनजोदड़ो के अन्य अवशेषों के विश्लेषण से यहां के नगर निर्माण की सुनियोजित प्रणाली का ज्ञान प्राप्त होता है। यहां के लोग समृद्ध तथा आरामदायक घरों में रहते थे।
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