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ग्रामीण आतंकवाद किसे कहते है | ग्रामीण आतंकवाद की परिभाषा क्या है rural terrorism definition in hindi
rural terrorism definition in hindi ग्रामीण आतंकवाद किसे कहते है | ग्रामीण आतंकवाद की परिभाषा क्या है ?
ग्रामीण आतंकवाद
ग्रामीण आतंकवादी आंदोलनों को ग्रामीण गुरिल्ला आंदोलन भी कहा जाता है। क्योंकि इनकी आतंकवादी कार्यवाहियां वनों या जंगलों से ही होती हैं तथा मुख्यरूप से इनकी पृष्ठभूमि ग्रामीण होती है। इन्हें जनसमर्थन ग्रामीण क्षेत्रों से ही मिलता है तथा ये उन लोगों को आतंकित करते हैं जो इन्हें समर्थन व सहयोग नहीं देते हैं। ये कस्बों को कंगाल या कमजोर करने के लिए अपने संगठन बनाते हैं तथा जब उचित समय आता है तब बगावत कर देते हैं।
ग्रामीण आतंकवाद का विकास
ग्रामीण आतंकवाद कोई एक नया तथ्य नहीं है। आतंकवादी हमलों के लिए ग्रामीण जनता बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ग्रामीण जनता की सुरक्षा बहुत ज्यादा मुश्किल व खर्चीली है। ग्रामीण अधिकारी व पुलिस अधिकारी आतंकवादियों की धमकी से डरे होते हैं अतः वे आतंकवादियों के सामने। आंखबंद करने वाली नीति का अनुसरण करते हैं। आतंकवाद का मुख्य लक्ष्य दौलतमंद क्षेत्र में उदाहरण के लिए पेरू, कोलम्बिया इत्यादि का अफीम उत्पादक क्षेत्र), काम करती ग्रामीण जनता, सड़क या किसी पृथक क्षेत्रों, ग्रामीण क्षेत्रों की जलापूर्ति (वे इसके लिए दोषपूर्ण है) तथा । संरचनात्मक ढांचा होते हैं जो तोड़फोड़ दिये जाते हैं। ग्रामीण आतंकवादियों द्वारा विशेषकर हाथ से चलने वाली मिसाइलें तथा मशीनगन का प्रयोग किया जाता है। संपर्क टूटी सेना या पुलिस बल, बड़े महत्वपूर्ण सैनिक हथियारों के गोदाम, तेल प्रतिशोध कारखाने, सैनिक अड्डे, तथा संरक्षित ग्राम, इत्यादि को ग्रामीण आतंकवादी अपना शिकार बनाते हैं। सही समय पर सहायता न पहुंचने की वजह से सैनिक हथियारों के गोदामों के सुरक्षा रक्षक आसानी से ग्रामीण आतंकवादियों के शिकार बन जाते हैं। इन सब दुर्घटनाओं से बचने के लिए ग्रामीण सुरक्षा व्यक्तियों को निगरानी यंत्र तथा सचेतक प्रणाली से सुसज्जित करना चाहिए।
1940 के बाद से ग्रामीण आतंकवादियों के द्वारा रोड माईनिंग अर्थात् सड़क में बारूद बिछाने की तकनीक का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है। जिससे वाहन के पहिये के दबाव में आने से विस्फोट होता है जो ग्रामीण सड़क पहले से ही खुर्दरी व टूटी फूटी होती है जिसमें इस प्रकार के विस्फोट करने में आसानी होती है। कुछ दूसरे प्रकार के हथियारों में रोड बम तथा परिष्कृत विस्फोटक आते हैं। इस प्रकार के विस्फोट व हथियार ग्रामीण आतंकवादियों के पास होने के बावजूद भी उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों पर आधिपत्य जमाने में कठिनाई होती हैं क्योंकि इसके लिए ग्रामीण लोगों से संपर्क अत्यावश्यक है लेकिन यह भी बहुत कठिन हो जाता है चूंकि ग्रामीण क्षेत्र में अजनबी को बहुत ही आसानी से पहचाना जा सकता है, जिसकी सहायता से खुफिया एजेंसियों के द्वारा इन्हें दबोच लिया जाता है।
सामान्य परिस्थितियों में आर्मी तथा पुलिस बल अच्छे हथियार होने की वजह से ग्रामीण गुरिल्ला दल पर भारी पड़ते हैं लेकिन यह प्रतिकुल जब होता है जब ग्रामीण आतंकवादी घात लगाकर या अचानक हमला करते हैं। आतंकवादियों के संभावित हमले को जानने के लिए अच्छे खुफिया दस्ते की आवश्यकता होती है। जिसका मानव ही सबसे अच्छा साधन है। ग्रामीण सुरक्षा दलों को ग्रामीण लोगों में उनकी सुरक्षा के लिए उनका हौसला बढ़ाना चाहिए तथा उन्हें आतंकवादियों को पराजित कर देने का विश्वास दिलाना चाहिए ताकि ग्रामीण लोग सुरक्षा दलों को सूचना देने में सहायक सिद्ध हो सकें। यदि ग्रामीण जनता को यह विश्वास दिलाया जाये कि स्थाई सरकार होने से उनके जीवन स्तर में सुधार होगा तो ये ग्रामीण उन लोगों से कम प्रभावित होंगे, जो राजनीतिक गतिविधियों में अपराध व हिंसा का प्रयोग करते हैं। अतः इससे ग्रामीण जनता शांति व सम्पन्नता की और बढ़ेगी।
एशिया व अफ्रीका में ग्रामीण आतंकवादी गतिविधियां
ग्रामीण आतंकवादियों ने एशिया व अफ्रीका में नियंत्रित क्षेत्र में लोकप्रिय समर्थन पाने के लिए माओ की क्रांति व संवर्ग (कैडर) बढ़ाने की रणनीति को अपनाया। इसके बावजूद जो इनको सहयोग नहीं करते उनको आतंकित किया. गया। ज्यादातर, ग्रामीण आतंकवादी उन बड़े आपराधिक गेंग से नजदीकी संपर्क रखते हैं जो अफीम तस्करी की वजह से धनाढय हैं। ग्रामीण आतंकवादियों से एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू यह जुड़ा है कि ये लोग आंतरिक संकट या कार्यवाही की वजह से पड़ौसी देश में शरण लेते हैं तथा वहां प्रशिक्षित होते हैं और वापिस आकर आतंकवादी के रूप में कार्य करते है। 1971 में बंग्लादेश युद्ध के दौरान भारतीयों ने सहायता के लिए गुरिल्ला बल को। प्रशिक्षित किया था। उदाहरण के लिए एशिया और अफ्रीका, जहां पर ग्रामीण आतंकवाद बड़े स्तर पर व्याप्त है।
1970 के दशक के बाद कम्बोडिया में सरकार के दुष्ट शासन के आतंक को सबसे ऊपर बताया गया। 1975 में चीन के साम्यवादी दल ने बलपूर्वक अपना शासन स्थापित किया, लेकिन अभी आतंक के शासन में कुछ ढील दी है। लाखों लोगों को मार दिया गया तथा संपूर्ण शहरी सभ्यता को खत्म कर दिया गया। सन 1978 में वियतनाम ने कंबोडिया पर चढाई की तथा जनता को बलपूर्वक नियंत्रित किया। सन 1991 तक कम्बोडिया सिविल वार से झूझता रहा। इसी प्रकार 1970 से फिलिपिन्स में दो मुख्य गुरिल्ला संगठन कार्यरत्त रहे। ये दल हैं माओइस्ट “न्यू पीपुल्स आर्मी‘‘ (एन पी ए) और मुस्लिम सेसेनिस्ट ग्रुप (एम एन एल एफ) जो देश के दक्षिणी द्वीपों में एक स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र के लिए संघर्षरत्त है।
एम एन एल एफ के हजारों गुरिल्ला शस्त्र है जिसे ईरान, लिबिया का समर्थन तथा कभी कभी पूर्वी मलेशिया के पंडौसी मुस्लिम क्षेत्रों की सहानुभूति प्राप्त हो जाती है। लेकिन जिन क्षेत्रों में ये अपनी कार्यवाहियां करते हैं उसमें ईसाई बहुमत का कड़ा मुकाबला करने की वजह से इनकी शक्ति कमजोर पड़ गई है। एन पी ए स्थानीय अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों और सैनिकों की हत्या करके आतंक फैलाती है। ये बड़े व्यापारियों से धन ऐंठ कर अपनी वित्तीय आवश्यकता को पूरा करते हैं। इनका दल ग्रामीण क्षेत्र में रहता है जो कि. संगठित है तथा अपने आंतक से ग्रामीण क्षेत्र में अनुशासन कायम रखते हैं। वक्त के चलते हुए एन पी ए टूट चुकी है लेकिन इसके कई सदस्य शस्त्र आपराधिक गेंग के रूप में कार्यरत्त हैं।
1983 से श्रीलंका भी आतंकवादी गतिविधियों से ग्रसित है। श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र में तमिल टाइगर्स (एल टी टी ई) के द्वारा खून खराबा या मारकाट की जाती रही है तथा दक्षिणी क्षेत्र में उग्र सिहंली राष्ट्रवाद आंदोलन पीपुल्स लिब्रशन फ्रंट के द्वारा जातीय संघर्ष शुरू किया गया। सन् 1989 में सरकारी ताकतों ने जे वी पी नेताओं को बेरहम अपराध के आरोप में बंदी बना लिया या मार डाला । यद्यपि मुक्ति चीतों की शक्ति में काफी कमी आई है क्योंकि सरकारी ताकतों से मुठभेड़ के दौरान इनके साथ काफी दुर्घटनाएं हुई हैं। हालांकि इनके कट्टर सदस्य जंग जारी रखे हुए है। इसी से श्रीलंका में आतंकवाद जारी है। भारत में आतंकवाद को सामुदायिक हिंसा के संदर्भ में देखा जाता है जैसे हिंदू और मुस्लिम के बीच, गौरखाओं द्वारा पृथकतावादी हिंसा, नागा तथा दूसरे के बीच। सिख हिंसाए तथा आतंकवाद मुख्यतः शहरी क्षेत्रों में ही केन्द्रित हैं लेकिन इनके द्वारा हिंदुओं की मारकाट गांवों व बस्ती तक फैली हुई है।
आतंकवाद भारत के उत्तरप्रदेश राज्य में दिसम्बर 1992 में दो पागल संप्रदायों के बीच हिंसात्मक विस्फोट के रूप में फैला। मुम्बई में हिन्दुओं ने मुसलमानों की दुकाने लूटी तथा जातीय विस्फोट की एक भयानक प्रक्रिया ने लगभग सौ लोगों की जाने ले ली। अफगानिस्तान, मध्य एशिया तथा कुर्दीस्तान भी अनिस्ट ग्रामीण आतंकवाद के अनुभव से गुजर रहे हैं। इन क्षेत्रों में आतंकवाद चट्टानी पहाड़ियों के क्षेत्रों में जनजातीय ढांचे पर आधारित है। चीन जातीय लोग अपने आपको आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रखते हैं क्योंकि ये लोग सरकार की नियमित सेनाओं से अपने आपको स्वतंत्र रखना चाहते हैं। ये उन रास्तों पर अपना नियंत्रण रखने के लिए युद्ध करते हैं जहां से सरकार की नियमित विचरण करती है। यद्यपि इस क्षेत्र में और गंभीर चुनौती जब मिलती है जब बड़ी पड़ौसी शक्तियां इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाने के लिए आतंकवादियों को समर्थन देती हैं। इन क्षेत्रों में जातीय विशुद्धिकरण की प्रवृति भी जारी है।
सूडान, सोमालिया तथा दक्षिणी अफ्रीका को भी आतंकवादी आंदोलनों का अनुभव है। सूडान का एक आतंकवादी संगठन पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पी एल ए 7 सूडान के आधे भाग विशेषकर देश के दक्षिणी भाग पर अपना आधिपत्य बनाये हुए है। हालांकि यह 1983 में अस्तित्व में आया था लेकिन इसका दो भागों में विभाजन हो गया। जिसमें एक सूडान के दक्षिणी भाग को स्वतंत्र करना चाहता है तथा दूसरा सूडान में संघीय सरकार की मांग करता है। इन आतंकवादी गतिविधियां को सेना व पुलिस के द्वारा दबा दिया जाता है। 1991 से सोमालिया भी इस दुर्व्यवस्था का शिकार है। बीस वर्ष पुराने निरंकुश साम्यवादी शासन का जरनल मोहम्मद आदीद ने “यूनाइटिड सोमानी कांग्रेस‘‘ (यू एस सी) के साथ संगठित होकर तख्ता पलट दिया। जल्दी ही इस संगठन का अदीद व अली मेहंदी के नेतृत्व में विभाजन हो गया। जिसमें यू एस सी ने अली मेंहदी को सोमालिया का राष्ट्रपति नियुक्त कर दिया । ये दोनों ग्रुप अपनी निजी सेनाएं रखते हैं। इन गैगों में युवा लोग होते हैं, जिनके पास बटनचालित मशीनगन तथा रॉकेट लांचर शामिल हैं जो कि खाने पीने की वस्तुएं लूटते हैं । अमरीका व संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा समस्या के समाधान के लिए हस्तक्षेप करने के बावजूद भी लड़ाई जारी रखी तथा शांति स्थापकों के प्रति तिरस्कार प्रकट किया। अंगोला व मोजाम्बिक 1975 में पुर्तगाल से आजाद हो गये। लेकिन यहां की बनी नई सरकारों को भी आतंकवादी आंदोलन का सामना करना पड़ा। यूनिटा और रेनामों (न्छप्ज्। व्थ् त्म्छ।डव्) ने पर्याप्त मात्रा में क्षेत्रों को कब्जे में रखा तथा ग्रामीण व जनजातीय लोगों को आतंकित किया। ए एन सी के द्वारा स्थिति को सुधारने के प्रयत्नों के बावजूद भी दक्षिणी अफ्रीका में हिंसा और आतंकवाद को जारी रखा तथा वहां के राजनीतिक विकास की प्रक्रिया को क्षतिग्रस्त किया।
लैटिन अमरीका में ग्रामीण आतंकवादी गतिविधियां
कोलम्बिया व पेरू जैसे लैटिन अमरीकी देशों में चल रही हिंसा व आतंकवाद के पीछे “नशीले पदार्थो का उत्पादक संघ है‘‘ जो आतंकवादी गतिविधियों हेतु वित्त उपलब्ध कराता है। सेनदिरो लुमिनोसो का ग्रामीण गुरिल्ला संगठन तथा उसकी तकनीकें पेरू की छोटी बस्तियों में कार्यान्वित होती हैं तथा इनका आधार कोको उत्पाद ग्रामीण क्षेत्र है। यह एक हिंसात्मक निकाय है तथा यह जनता को सरेआम मार देना या उनके अंगभग कर देने जैसी निर्दयी गतिविधियों से लोगों को आतंकित करती है। कोलम्बिया लैटिन अमरीका में एक ऐसा देश है जिसकी एक स्थायी राजनीतिक लोकतांत्रिक व्यवस्था है। लेकिन यह निरंतर हिंसा से पीड़ित रहा है क्योंकि इसे अतंर्राष्ट्रीय नशीले पदार्थों की तस्करी करने वालों से वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। कोलम्बिया के दो मुख्य आतंकवादी संगठन आमर्ड रिवालुसनरी फोर्सस ऑफ कोलम्बिया व नेशनल लिब्रेशन आर्मी हैं।
आर्मड रिवोलयूशनरी फोर्सेस ऑफ कोलम्बिया एक राष्ट्र व्यापी ग्रामीण संगठन है जिसका एक खुला राजनीतिक मोर्चा है। नेशनल लिब्रेशन आर्मी उत्तरी पूर्वी कोलम्बिया के तेल उत्पादक प्रदेशों में अपनी गतिविधियां चलाती है। इसका मुख्य उद्देश्य विदेशी तेल उत्पाद कंपनियों को भगाना है। यद्यपि आज भी नशीले पदार्थों के धन्धे से प्राप्त धन इस देश में व्याप्त है और यहां हिंसा थमने के कोई आसार नजर नहीं आते हैं द्य एल साल्वदार आतंकवाद कि बहुत सारी दुर्घटनाओं से पीड़ित हुआ। जिसने धन ऐंठने के लिए अपहरण जैसी पद्धति को अपनाया तथा समय समय पर आतंकवादी निकायों ने यहां की सरकारों को भी गिराने के प्रयत्न किये हैं। कई सालों से चली आ रही हिंसा ने देश की आर्थिक स्थिति को कमजोर किया जिसमें एल सल्वदार की जनता के लिए। कोई राहत का काम नहीं किया। क्योंकि पूर्व आतंकवादी तथा आतंकवादी निकायों के सदस्य किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए हमेशा बंदूक का प्रयोग करते हैं। यहां यह ध्यान दिया जाता है कि कोलम्बिया और पेरू में आतंकवादियों को आर्थिक सहयोग देने के पीछे अमरीका व यूरोप के देशों को नशीली दवाओं आदि के निर्यातक लोगों को रोकना चाहिए जो कि इसे खरीदते हैं तथा कोको का उत्पादन करने वाले किसानों को निरुत्साहित करना चाहिए। जिससे कि आतंकवादियों के हथियारों से बचाव हो सके।
बोध प्रश्न 2
टिप्पणी प) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए रिक्त स्थान का प्रयोग कीजिए।
पप) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरं से अपने उत्तर की तुलना किजिए।
1) कुछ शहरी आतंकवादी निकायों का नाम बताइये तथा उनसे संबंधित तकनीकों का वर्णन कीजिए।
2) ग्रामीण आतंकवाद क्या है।
3) लैटिन अमरीका के कुछ उन देशों के नाम बताइये जहां अभी भी आतंकवादी सक्रिय हैं।
बोध प्रश्न 2
1) कुछ शहरी आतंकवादी निकाय हैं- फिलिस्तीन का ईरगन जवाई लेयामी, ईरान का कट्टरतावादी संगठन, सददाम हुसैन तथा उसके समर्थक इत्यादी। शीरी आतंकवादी निकायों द्वारा अपनाई जाने वाली कुछ तकनीकें अग्रलिखित हैं-बम का प्रयोग, सम्पत्ति का विध्वंस करने के हिंसक साधन, किसी व्यक्ति को लक्ष्य बनाकर गोली मारकर हत्या अपहरण इत्यादि ।
2) ग्रामीण आतंकवादी उसे कहते हैं जो अपनी आतंकवादी गतिविधियों को जंगलों व वनों में चलाते हैं तथा जो मुख्यतया ग्रामीण पृष्ठभूमि से होते हैं।
3) लैटिन अमरीका के वे देश जहां अभी भी आतंकवादी सक्रिय है वे हैं – कोलम्बिया, पेरू, एल साल्वाडोर इत्यादि।
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