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श्वसन (respiration in hindi) , ऑक्सी / वायु श्वसन , अनऑक्सी श्वसन / अवायु श्वसन , अन्तर , respiration takes place in
श्वसन (respiration) : पादपों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया संपन्न होने पर कार्बोहाइड्रेट नामक जटिल कार्बनिक पदार्थो का निर्माण होता है।
निर्मित जटिल कार्बनिक पदार्थो को ऑक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति में सरल पदार्थो में विघटित करने की क्रिया श्वसन कहलाती है तथा श्वसन की क्रिया के फलस्वरूप ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।
सजीवों में संपन्न होने वाली श्वसन की क्रिया सामान्यत: दो प्रकार की होती है।
1. ऑक्सी / वायु श्वसन : इसे Aerobic respiration के नाम से भी जाना जाता है।
श्वसन की इस क्रिया में ऑक्सीजन की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट रुपी भोज्य पदार्थो को जल तथा कार्बन डाई ऑक्साइड में पूर्णत: अपघटित कर दिया जाता है तथा इस प्रक्रिया से अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होती है जिसे सामान्यतया सजीवो के द्वारा उपापचयी क्रियाओ को संपन्न करने हेतु उपयोग किया जाता है।
उपरोक्त प्रकार का श्वसन सामान्यत: सभी जन्तुओ तथा पादपो में पाया जाता है तथा इस प्रकार के श्वसन को निम्न अभिक्रिया के द्वारा दर्शाया जाता है।
C6H12O6 + 6O2 → 6O2 + 6H2O + 686 K.Cal
2. अनऑक्सी श्वसन / अवायु श्वसन : इसे Anaerobic respiration के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार का श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सम्पन्न होता है।
इस प्रकार के श्वसन के अन्तर्गत खाद्य पदार्थो का पूर्ण अपघटन नहीं होता जिसके फलस्वरूप एल्कोहल का निर्माण होता है तथा कुछ मात्रा में कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जित होती है , वही उत्सर्जित होने वाली ऊर्जा भी कम मात्रा में उत्सर्जित होती है।
इस प्रकार का श्वसन सामान्यत: संग्रहित तथा अंकुरित होने वाले बीजों में पाया जाता है इसके अतिरिक्त ऐसा श्वसन माँसल फलो में भी पाया जाता है परन्तु माँसल फलों में यह श्वसन अस्थायी रूप से पाया जाता है वही कुछ कवक तथा जीवाणुओं में ऐसा श्वसन स्थायी रूप से पाया जाता है।
इस प्रकर्त के श्वसन को निम्न रासायनिक अभिक्रिया के द्वारा दर्शाया जाता है –
C6H12O6 → 2C2H5OH + 2CO2 + 56 K.Cal
निर्मित जटिल कार्बनिक पदार्थो को ऑक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति में सरल पदार्थो में विघटित करने की क्रिया श्वसन कहलाती है तथा श्वसन की क्रिया के फलस्वरूप ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।
सजीवों में संपन्न होने वाली श्वसन की क्रिया सामान्यत: दो प्रकार की होती है।
1. ऑक्सी / वायु श्वसन : इसे Aerobic respiration के नाम से भी जाना जाता है।
श्वसन की इस क्रिया में ऑक्सीजन की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट रुपी भोज्य पदार्थो को जल तथा कार्बन डाई ऑक्साइड में पूर्णत: अपघटित कर दिया जाता है तथा इस प्रक्रिया से अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होती है जिसे सामान्यतया सजीवो के द्वारा उपापचयी क्रियाओ को संपन्न करने हेतु उपयोग किया जाता है।
उपरोक्त प्रकार का श्वसन सामान्यत: सभी जन्तुओ तथा पादपो में पाया जाता है तथा इस प्रकार के श्वसन को निम्न अभिक्रिया के द्वारा दर्शाया जाता है।
C6H12O6 + 6O2 → 6O2 + 6H2O + 686 K.Cal
2. अनऑक्सी श्वसन / अवायु श्वसन : इसे Anaerobic respiration के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार का श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सम्पन्न होता है।
इस प्रकार के श्वसन के अन्तर्गत खाद्य पदार्थो का पूर्ण अपघटन नहीं होता जिसके फलस्वरूप एल्कोहल का निर्माण होता है तथा कुछ मात्रा में कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जित होती है , वही उत्सर्जित होने वाली ऊर्जा भी कम मात्रा में उत्सर्जित होती है।
इस प्रकार का श्वसन सामान्यत: संग्रहित तथा अंकुरित होने वाले बीजों में पाया जाता है इसके अतिरिक्त ऐसा श्वसन माँसल फलो में भी पाया जाता है परन्तु माँसल फलों में यह श्वसन अस्थायी रूप से पाया जाता है वही कुछ कवक तथा जीवाणुओं में ऐसा श्वसन स्थायी रूप से पाया जाता है।
इस प्रकर्त के श्वसन को निम्न रासायनिक अभिक्रिया के द्वारा दर्शाया जाता है –
C6H12O6 → 2C2H5OH + 2CO2 + 56 K.Cal
वायु तथा अवायु श्वसन के मध्य प्रमुख अन्तर (aerobic respiration and anaerobic respiration difference)
ऑक्सी / वायु श्वसन | अनऑक्सी श्वसन / अवायु श्वसन |
1. इस प्रकार का श्वसन ऑक्सीजन की उपस्थिति में संपन्न होता है। | इस प्रकार का श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सम्पन्न होता है। |
2. इस प्रकार का श्वसन सामान्यत:सभी जीवित cells में संपन्न होता है। | इस प्रकार का श्वसन मुख्यतः बीजों में मांसल फलों में कवक तथा जीवाणुओं में पाया जाता है। |
3. इस प्रकार के श्वसन में ग्लूकोज के एक अणु का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है जिसके फलस्वरूप 38 ATP का निर्माण होता है। | इस प्रकार के श्वसन में एक ग्लूकोज के अणु का पूर्ण रूप से ऑक्सीकरण नहीं होता जिसके कारण इस प्रकार के श्वसन से केवल 2 ATP का निर्माण होता है। |
4. इस प्रकार के श्वसन में कोशिका के कोशिका द्रव्य में ग्लाइकोलाइसीस या माइटोकॉण्ड्रिया में क्रेब चक्र संपन्न होता है। | इस प्रकार के श्वसन में सभी क्रियाएँ कोशिका के कोशिका द्रव्य में संपन्न होती है। |
5. इस प्रकार के श्वसन में श्वसनी पदार्थ का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। | इसमें श्वसनी पदार्थ का अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है। |
6. इस प्रकार के श्वसन में अंतिम उत्पाद कार्बन डाइ ऑक्साइड , जल , तथा ऊर्जा होते है। | इसमें अंतिम उत्पाद एल्कोहल व कार्बन डाई ऑक्साइड का निर्माण होता है व अम्ल मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होती है। |
पादपों में संपन्न होने वाली श्वसन की क्रिया के क्रियाधार
पादपों में सम्पन्न होने वाली श्वसन की क्रिया के अंतर्गत उपयोग किया जाने वाला ऐसा पदार्थ जिससे ऊर्जा का उत्सर्जन होता है , श्वसन के क्रियाधार कहलाते है या इन्हें श्वसनाधार के नाम से भी जाना जाता है।
पादपों में श्वसन के क्रियाधार के रूप में कार्बोहाइड्रेट , वसा तथा प्रोटीन के अणुओं का उपयोग किया जाता है।
प्राथमिक श्वसनाधार के रूप में कार्बोहाइड्रेट का उपयोग किया जाता है तथा कार्बोहाइड्रेट में भी Hexose शर्करा का सर्वप्रथम उपयोग किया जाता है।
कार्बोहाइड्रेट की अनुपस्थिति में वसा को श्वसन क्रियाधार के रूप में उपयोग किया जाता है।
वसा के उपयोग किये जाने पर श्वसन की क्रिया के अंतर्गत प्रोटीन का उपयोग प्रारंभ किया जाता है।
Blackmann नामक वैज्ञानिक के द्वारा श्वसन की क्रिया के अन्तर्गत कार्बोहाइड्रेट को उपयोग किये जाने पर इसे प्लाबी श्वसन नाम दिया वही वसा तथा प्रोटीन का उपयोग किये जाने पर जीव द्रव्यी श्वसन नाम दिया।
पादपो में प्लाबी श्वसन सामान्य अवस्था में संपन्न होता है परन्तु पादपो में किसी रोग के उत्पन्न होने पर या संचित भोजन अपर्याप्त मात्रा में होने पर या भुखमरी की स्थिति होने पर जीव द्रव्यी श्वसन संपन्न किया जाता है।
पादपो में पाया जाने वाला श्वसन स्थल (respiration takes place in)
पादपों में श्वसन क्रिया की प्रारंभिक अवस्थाएं पादप की कोशिका के कोशिका द्रव्य में संपन्न होती है तथा ऑक्सी श्वसन की सम्पूर्ण क्रियाएँ कोशिका के माइटोकोंड्रिया में संपन्न होती है।
कोशिका में पाया जाने वाला माइटोकोंड्रिया कोशिका शक्ति गृह या पॉवर हाउस ऑफ़ सेल कहलाता है।
माइटोकॉण्ड्रिया दोहरी झिल्ली वाला कोशिकांग होता है जिसकी बाहरी झिल्ली बाहरी कला के नाम से जानी जाती है तथा आंतरिक झिल्ली आन्तरिक कला के नाम से जानी जाती है।
माइटोकॉण्ड्रिया की दोनों झिल्लियो के मध्य एक रिक्त स्थान पाया जाता है जिसे परिकला अवकाश के नाम से जाना जाता है तथा इस रिक्त स्थान की चौड़ाई 40-70 A (एंग्स्टर्म) होती है। माइटोकॉण्ड्रिया की दोनों कलाएं लिपिड तथा प्रोटीन से निर्मित होती है अर्थात लाइको प्रोटीन से निर्मित होती है।
माइटोकॉण्ड्रिया की आन्तरिक कला माइटोकॉण्ड्रिया के आधारी भाग में धस कर वलयकार उभारो का निर्माण करती है , प्रत्येक उभार को Crista के नाम से जाना जाता है तथा सभी उभारो को सामूहिक रूप से Cristae के नाम से जाना जाता है।
दो क्रिस्टी के मध्य पाए जाने वाले अवकाश को अन्त: क्रिस्टी अवकाश के नाम से जाना जाता है।
माइटोकॉण्ड्रिया के आधारी भाग में तरल या अर्द्ध तरल प्रोटीन पाए जाते है जिनमे श्वसन क्रिया से सम्बन्धित विभिन्न सह एंजाइम जैसे NAD , NADD तथा ADP पाए जाते है। इनके अतिरिक्त RNA , DNA , राइबोसोम तथा इलेक्ट्रॉन वाहक पाए जाते है।
माइटोकॉण्ड्रिया के क्रिस्टी की सतह पर वृन्त युक्त कणिकीय पदार्थ पाए जाते है जिन्हें प्रारंभिक कण या F1 कण या ऑक्सीसोम के नाम से जाना जता है , इन कणों के द्वारा इलेक्ट्रॉन के परिवहन के फलस्वरूप ATP का निर्माण किया जाता है।
माइटोकॉण्ड्रिया के आधारी भाग को पीठिका या मेट्रिक्स के नाम से जाना जाता है।
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