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relationship between education and psychology in hindi , शिक्षा और मनोविज्ञान के बीच संबंध क्या है
शिक्षा और मनोविज्ञान के बीच संबंध क्या है relationship between education and psychology in hindi ?
शिक्षा व मनोविज्ञान मे सम्बन्ध RELATION OF EDUCATION & PSYCHOLOGY
Psychology explains the how of human development as related to learning education attempts to provide the what of learning —Crow & Crow (p 8 )
भूमिका
शिक्षा और ‘मनोविज्ञान’ को जोडने वाली कडी हे — ‘मानव यवहार । इस सम्बध मे दो विद्वानो के विचार दृष्टाय है –
1 ब्राउन (Brown) – “शिक्षा वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है ।”
2 पिल्सबरी (Pillsbury ) – ” मनोविज्ञान, मानव व्यवहार का विज्ञान है।” इन परिभाषाओ से शिक्षा और मनोविज्ञान के सम्बन्ध पर पर्याप्त प्रकाश पडता है। दोनो का सम्बध मानव व्यवहार से है। शिक्षा, मानव व्यवहार मे परिवर्तन करके उसे उत्तम बनाती है। मनोविज्ञान, मानव यवहार का अध्ययन करता है । इस प्रकार, शिक्षा और मनोविज्ञान मे सम्बध होना स्वाभाविक है । पर इस सम्बन्ध मे मनोविज्ञान का स्थान श्रेष्ठ है । इसका कारण यह है कि शिक्षा को अपने प्रत्येक काय के लिये मनोविज्ञान की स्वीकृति प्राप्त करनी पडती है । बी० एन० झा ने ठीक ही लिखा है “शिक्षा जो कुछ करती है और जिस प्रकार वह किया जाता है, उसके लिये उसे मनोवज्ञानिक खोजो पर निर्भर होना पडता है ।” Education has to depend on psychological findings for what it does and how it is done -B N Jha .
मनोविज्ञान को यह स्थान इसलिये प्राप्त हुआ है, क्योंकि उसने शिक्षा के सब क्षत्रो को प्रभावित करके उनमे क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिये हैं। इस सन्दर्भ मे रयान ( Ryan ) के ये सारगर्भित वाक्य उल्लेखनीय हैं – “आधुनिक समय के अनेक विद्यालयो मे हम मित्रता और सहष काय का वातावरण पाते हैं। अब उनमे परम्परागत औपचारिकता, मजबूरी मौन, तनाव और दण्ड के अधिकतर दशन नहीं होते हैं ।’
मनोविज्ञान द्वारा किये जाने वाले परिवर्तन Changes Brought about by Psychology
मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र मे जो क्रान्तिकारी परिवर्तन किये है उनका वन निम्नाकित शीषको के अ तगत किया जा रहा है
(1) बालक को महत्व — पहले शिक्षा विषय प्रधान और अध्यापक प्रधान थी । उसमें बालक को तनिक भी महत्त्व नही दिया जाता था। उसके मस्तिष्क को खाली बतन समझा जाता था जिसे ज्ञान से भरना शिक्षक का मुख्य कत्त य था । मनोविज्ञान ने बालक के प्रति इस दृष्टिकोण मे आमूल परिवर्तन करके शिक्षा को बाल-केद्रित बना दिया है। अब शिक्षा बालक के लिये है, न कि बालक शिक्षा के लिये ।
(2) बालको की विभिन्न अवस्थाओं को महत्त्व – प्राचीन शिक्षा पद्धति मे सभी आयु के बालको के लिये एक सी शिक्षा और एक सी शिक्षण विधियो का प्रयोग किया जाता था । मनोज्ञानिको ने इन दोनो बातो को अनुचित और दोषपूर्ण सिद्ध कर दिया है। उनका कहना है कि बालक जसे-जैसे बडा होता जाता है, बसे बसे उसकी रुचियाँ और आवश्यकताये बदलती जाती हैं, उदाहरणाथ बाल्यावस्था मे उसकी रुचि खेल मे होती है पर किशोरावस्था मे वह खेल और काय में अतर समझने लगता है। इस बात को ध्यान में रखकर बालको को बाल्यावस्था मे खेल द्वारा और किशोरावस्था मे अन्य विधियो द्वारा शिक्षा दी जाती है। साथ ही उनकी शिक्षा के स्वरूप मे भी अन्तर होता है।
(3) बालकों की रुचियो व मूल प्रवृत्तियों को महत्त्व – पूर्व काल की किसी भी शिक्षा योजना मे बालको की रुचियो और मूल प्रवृत्तिया का कोई स्थान नही था । उन्हें ऐसे अनेक विषय पढने पडते थे, जिनमे उनको तनिक भी रुचि नही होती थी और जिनका उनकी मूल प्रवृत्तियो से कोई सम्बध नही होता था । मनोविज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि जिस काय मे बालको को रुचि होती है उसे वे जल्दी सीखते है । इसके अतिरिक्त, वे काय करने मे अपनी मून प्रवृत्तियो से प्रेरणा प्राप्त करते है । अत अब बालको की शिक्षा का आधार उनकी रुचिया और मूल प्रवृत्तियाँ है ।
(4) बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओ को महत्व – शिक्षा की प्राचीन विधियो मे पालको की यक्तिगत विभिन्नताओ को स्वीकार नही किया जाता था । अ सबके लिये समान शिक्षा का आयोजन किया जाता था । मनोविज्ञान ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि बालको की रुचियो, रुझानो क्षमताओ योग्यताओ आदि |
अन्तर होता है । अत सब बालको के लिये समान शिक्षा का आयोजन सवथा अनुचित है। इस बात को ध्यान में रखकर मद-बुद्धि पिछडे हुए और शारीरिक दोप वाले बालको के लिये जलग अलग विद्यालयो मे अलग अलग प्रकार की शिक्षा की यवस्था की जाती है। Kuppuswamy . के शदों मे पक्तिगत विभिन्नताको के ज्ञान नेा यक्तिगत विभिन्नताओ के अनुकूल शक्षिक कायक्रम का नियोजन करने मे सहायता दा है।”
समय में पाठ्यक्रम के सव विपय सब अतिरिक्त वह पूर्ण रूप स पुस्तकीय और के इन दोना दोषो की कटु आलोचना की
(5) पाठ्यक्रम मे सुधार – पहले बालका के लिए अनिवाय होते थे । इसके ज्ञान प्रधान था । मनोविज्ञान ने पाठ्यक्रम है । वह इस बात पर बल देता है कि पाठ्यक्रम का निर्माण बालका की आयु रुचियो और मानसिक योग्यताओ को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए । यही कारण है कि आठवी कक्षा के बाद पाठ्यक्रम को साहित्यिक, वज्ञानिक आदि वर्गों मे विभाजित कर दिया गया है।
बल-प्राचीन शिक्षा का मुरय उद्देश्य पुस्तकीय ज्ञान को ही महत्त्व दिया विचार भी नही किया गया । क्रियाजो को बहुत महत्त्वपूर्ण खेलकूद, सास्कृतिक कायक्रम
(6) पाठ्यक्रम सहनामा क्रियाओ पर बालक का मानसिक विकास करता था। अत जाता था और पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का कभी मनोविज्ञान ने बालक स सर्वाङ्गीण विकास के लिये इन बताया है। यही कारण है कि जाजकल विद्यालयो मे आदि की विशेष रूप से यवस्था की जाती है ।
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(7) सीखने की प्रक्रिया में उन्नति पहले शिक्षको को सीखने की प्रक्रिया का कोई ज्ञान नही था । वे यह नही जानते थे कि एक ही बात को एक बालक देर मे और दूसरा बालक जल्दी क्यो सीख लेता था । मनोविज्ञान ने सीखने की प्रक्रिया
के सम्बध मे खोज करके अनेक अच्छे नियम बताये है। इनका प्रयोग करने से बालक कम समय मे और अधिक अच्छी प्रकार सीख सकता है ।
(8) शिक्षण विधियो मे सुधार – प्राचीन शिक्षा पद्धति मे शिक्षण विधियाँ मौखिक थी और बालको को स्वय सीखने का कोई अवसर नही दिया जाता था। वे मौन श्रोताओ के समान शिक्षक द्वारा कही जाने वाली बातो को सुनते थे और फिर उनको कठस्थ करते थे । मनोविज्ञान ने इन शिक्षण विधियों में आमूल परिवर्तन कर दिया है । उसने ऐसी विधियो का आविष्कार किया है जिनसे बालक स्वय सीख
खेल द्वारा सीखना’ रेडियो, पर्यटन दिया जाता है। Ryburn (p 5 ) के
सकता है । इस उद्देश्य से ‘करके सीखना चलचित्र आदि को शिक्षण विधियों में स्थान अनुसार – “मनोविज्ञान के ज्ञान मे प्रगति होने के कारण ही शिक्षण विधियो मे क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं।”
(9) अनुशासन की नई विधिया – पहले समय मे बालका को अनुशासन मे रखने की केवल एक विधि थी — शारीरिक दण्ड । विद्यालय मे दण्ड और दण्ड का भय उत्पन्न करके आतक और कठोरता के वातावरण का निर्माण किया जाता था । मनोविज्ञान ने दण्ड भय और कठोरता पर आधारित अनुशासन को सारहीन प्रमाणित कर दिया है। इनके स्थान पर उसने प्रेम प्रशसा और सहानुभूति को अनुशासन के कही अधिक अच्छे आधार बताया है । वह हमे अनुशासनहीनता के कारणा को खोजने और उनको दूर करने का परामश देता हैं।
( 10 ) मूल्याकन की नई विधिया – बालको द्वारा अर्जित किया जाने वाले ज्ञान का मूल्याकन करने के लिए अति दीघकाल से मौखिक और लिखित परीक्षाओ का प्रयोग किया जा रहा है। इन परीक्षाओ के दोषो को दूर करने के लिए मनो विज्ञान ने अनेक नई विधियो की खोज की है जसे बुद्धि परीक्षा, यक्तित्व परीक्षा वस्तुनिष्ठ परीक्षा आदि ।
( 11 ) शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति व सफलता – Drevel के अनुसार मनोविज्ञान – शिक्षा के उद्देश्यो को निर्धारित नही करता है पर वह हमको यह निश्चित रूप से बताता है कि उनकी प्राप्ति सम्भव है या नही। इतना ही नही मनोविज्ञान की सहायता के बिना शिक्षक यह नही जान सकता है कि वह अपने उद्देश्यो को प्राप्त करने मे सफल हुआ है या नही ।
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( 12 ) तीन सम्बधों का विकास — Ryburn का मत है कि शिक्षा मे तीन प्रकार के सम्बध होत है—बालक और शिक्षक का सम्बध बालक और समाज का सम्बन्ध एव बालक और विषय का सम्बध । शिक्षा मे सफलता तभी मिल सकती है। जब ये तीनो सम्बध उचित प्रकार के हा अर्थात् ये ऐसे हो कि बालक इनसे लाभावित हा । इस दिशा मे मनोविज्ञान बहुत सहायता देता है। Ryburn (p 13 ) केश दो – ‘जब हम इन सम्ब धो का उचित दिशाओ मे विकास करने का प्रयत्न करते है, तब मनोविज्ञान हमे सबसे अधिक सहायता देता है ।”
( 13 ) नये ज्ञान का आधार पूर्व ज्ञान — स्टाउट का मत है “शिक्षा सिद्धान्त को मनोविज्ञान द्वारा दिया जाने वाला मुख्य सिद्धा त यह है कि नवीन ज्ञान का विकास पूर्व ज्ञान के आधार पर किया जाना चाहिए ।”
The main principle which psychology lends to the theory of education is that new knowledge should be development of previous knowledge-Stout Analytic Psychology Vol II .
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