JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Uncategorized

ग्रामीण बैंक किसे कहते हैं | प्रथम क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना कब हुई थी regional rural bank in hindi

regional rural bank in hindi ग्रामीण बैंक किसे कहते हैं | प्रथम क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना कब हुई थी परिभाषा क्या है जानकारी बताइये इतिहास सहित |

ग्रामीण बैंक
ग्रामीण बैंक वह स्वैच्छिक संस्था है जिसका उदय १९७० के दशक के मध्य के वर्षों में बांग्लादेश में हुआ और देश में गरीबी दूर करने का नया कार्यक्रम बन गई। इसका लक्ष्य देश के चुने हुए क्षेत्रों में ग्रामीण जनसंख्या के निचले स्तर के ४० प्रतिशत लोगों तक था। इसके लक्ष्य समूह में सामान्य तौर पर वे घर आते हैं जिनके पास आधे एकड़ से अधिक भूमि नहीं है।

ग्रामीण बैंक लक्षित समूहों को बैंकिंग सेवाएँ अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से उनके घरों पर उपलब्ध कराते हैं। वे ऋण लेने वालों के साथ साप्ताहिक बैठकों में भाग लेते हैं जहां ऋण की राशि उपलब्ध कराई जाती है और ऋण भगतान की किश्तें इकट्ठी की जाती हैं। ग्रामीण बैंक ने तीव्रता से प्रगति की है और १९८४ के अंत तक बांग्लादेश के सभी गांवों के २.५ प्रतिशत को अपनी सेवाएँ दीं।

ग्रामीण बैंक की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसके लगभग ५१ प्रतिशत सदस्य महिलाएँ हैं जो उपलब्ध कराई गई राशि का लगभग ३७ प्रतिशत प्राप्त करती हैं। ग्रामीण बैंक की ऋण राशि का उपयोग मूलतः ग्रामीण गैर-फसल कार्यकलापों जैसे व्यापार, दुकानदारी, पशुधन एवं मात्स्यिकी प्रसंस्करण और निर्माण कार्यों को चलाने के लिए किया जाता है।

यह भी बात उल्लेखनीय है कि ग्रामीण बैंक ने गैर फार्म कार्यकलापों में महिलाओं की अधिक भागीदारी को बढ़ावा दिया है। ऋण प्राप्तकर्ता घरों की प्रति व्यक्ति आय ऋण न प्राप्त करने वालों की तुलना में तीव्रता से बढ़ी है। इस प्रकार से, ग्रामीण बैंक अन्य गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों की तुलना में, जोकि दान देने वाली संस्थाएं बनकर रह गए थे, गरीबों की आय में वृद्धि करने में सफल रहा।

किन्तु यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि ग्रामीण बैंक बांग्लादेश की कुल जनसंख्या के छोटे से हिस्से को ही अपनी सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी उन्मूलन पर उल्लेखनीय प्रभाव डालने में इसे प्रतिबलित किया जा सकता है?

समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP)
समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) भारत की छठी पंचवर्षीय योजना (१९८०-१९८५) में तैयार किया गया महत्वाकांक्षी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम था तथा इसे ग्रामीण क्षेत्रा के १५० लाख परिवारों की सहायता करने के लिए बनाया गया ताकि उन्हें गरीबी रेखा से ऊपर उठाया जा सके।

आई. आर. डी. पी. ऋण और आर्थिक सहायता के माध्यम से पात्रा परिवारों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है ताकि वे उत्पादक और मध्य आय पैदा करने वाली परिसम्पत्तियां प्राप्त कर सकें। यह कार्यक्रम गरीबी उन्मूलन की पूर्व योजनाओं से भिन्न था जो समग्र विकास का लाभ सबको मिलने पर आधारित थीं।

आई. आर. डी. पी. पर किए गए अधिकांश अध्ययनों से बड़ी संख्या में लक्षित लाभ प्राप्तकर्ताओं के आय के स्तर में वृद्धि होने से कार्यक्रम की सफलता का पता चलता है तथापि आई. आर. डी. पी. की रिपोर्टों के मूल्यांकन से कई प्रशासनिक और संस्थागत कमजोरियों का पता चलता है। उपयुक्त तथा समेकित सुपुर्दगी प्रणाली के लिए ब्लॉक स्तर पर मशीनरी कमजोर पाई गई। चूंकि लाभ प्राप्तकर्ताओं की पहचान चुनी गई ग्रामसभाओं की अपेक्षा ब्लॉक विकास अधिकारियों द्वारा की जाती थी, अतः अधिक उपयुक्त घरों को लक्षित नहीं किया जा सका।

आई. आर. डी. पी. की एक अन्य कमी प्राथमिक क्षेत्रा थी और उसमें भी पशु पालन उप-क्षेत्रा, में सहायता की अन्य योजनाओं की अधिकता। यह कार्यक्रम कई मामलों में निवेश की कमी और गुणवत्तापूर्ण पशुओं की अनुपलब्धता के कारण विफल हो गया। इस कार्यक्रम में चारा और आहार को शामिल नहीं किया गया था और लाभ प्राप्तकर्ता अपने उत्पादों, विशेषकर दूध, का विपणन नहीं कर पाते थे। लाभ प्राप्तकर्ताओं को कच्चे माल की उपलब्धता, चल पूंजी तक पहुंच और विपणन के रूप में आधारभूत ढांचे की कमी थी। परिणामस्वरूप, आय में आरम्भिक वृद्धि को लम्बे समय तक बनाए नहीं रखा जा सका। एक और निराशाजनक बात यह रही कि अधिकांश लाभ प्राप्तकर्ताओं के पुराने ऋणों का वापस भुगतान नहीं हुआ। इस कार्यक्रम के बचाव के रास्तों और खामियों को दूर करके क्षेत्रीय और अन्य क्षेत्रा विकास कार्यक्रमों के साथ समेकित करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि प्रत्येक क्षेत्रा के समेकित विकास के लिए इसे व्यापक रूप दिया जा सके।

नेपाल का लघु किसान विकास कार्यक्रम
नेपाल का लघु किसान विकास कार्यक्रम (ैथ्क्च्) ऋण पर आधारित कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य छोटे और सीमान्त किसानों की उत्पादकता में वृद्धि करना है। चैथी योजना (१९७०-७५) के दौरान आरम्भ किया गया यह प्रमुख कार्यक्रम है जिसमें बहु-क्षेत्रों पर बल दिया गया और इसके आधार के रूप में ग्रामों के समूह को लिया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य उपलब्ध संसाधनों और सेवाओं को लघु किसानों की ओर अभिमुख करना था ताकि उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाया जा सके।

समूह द्वारा निर्धारित परियोजनाओं के संबंध में समूह का उत्तरदायित्व होने से सहयोग की भावना को बढ़ावा मिला। १९७० के दशक के अंत तक लगभग ७००० कृषक परिवारों सहित २४ लघु किसान विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे थे। मूल्यांकन रिपोर्टों से पता चला है कि इस कार्यक्रम के प्रतिभागियों की औसत घरेलू आय गैर-प्रतिभागियों की तुलना में २४ प्रतिशत अधिक पाई गई। इससे कार्यक्रम में शामिल किए गए किसानों की खाद्य तक पहुंच पर अनुकूल प्रभाव पड़ा।

यद्यपि लघु किसान विकास कार्यक्रम का सकारात्मक प्रभाव पड़ा तथापि इसकी भी सीमाएँ हैं। किसानों तथा समूह आयोजकों द्वारा पहचानी गई कार्यक्रम की समस्याएं कार्यक्रम के उद्देश्यों के संबंध में स्पष्टता की कमी, जटिल ऋण प्रक्रियाएं, ऋण राशि के दुरूपयोग, कार्यक्रम का लाभ बड़े किसानों द्वारा उठाये जाने तथा अनुपयुक्त सहयोगी सेवाओं के कारण पशुधन की उच्च मृत्युदर हैं।

मजदूरी रोजगार योजनाएँ
काम के बदले अनाज कार्यक्रम (थ्थ्ॅच्) बांग्लादेश में १९७० के दशक के मध्य वर्षों में भूमिहीन तथा निर्धन वर्ग के लिए रोजगार के अवसर जुटाने और आधारभूत ढांचा विकसित करने के उद्देश्य से आरम्भ किया गया। खाद्य सहायता के रूप में प्राप्त किए गए गेहूं का भुगतान किया जाता है।

कई योजनाओं तथा दिवसों में हुई प्रगति के बावजूद इस कार्यक्रम से जुटाए गए रोजगार के अवसर कुल उपलब्ध मानव दिवसों का एक प्रतिशत ही हैं। दूसरे, कार्यक्रम के अंतर्गत श्रमिकों की मजदूरी की दर गेहूं की मात्रा की दृष्टि से सरकारी तौर पर निर्धारित दर से काफी कम थी। अंत में, कार्यक्रम के अंतर्गत विकसित किए गए आधारभूत ढांचे की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी।

भारत में मजदूरी रोजगार से संबंधित अधिक व्यापक योजनाएँ हैं। यद्यपि यहाँ १९६० में ग्रामीण जन शक्ति कार्यक्रम आरम्भ किया गया तथापि १९७० के दशक के मध्य के वर्षों में इस प्रकार के कार्यक्रमों पर अधिक बल दिया गया। १९७७ में ‘‘काम के बदले अनाज‘‘ कार्यक्रम लाया गया तथा १९८० में इसके स्थान पर राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम लाया गया जिसका उद्देश्य वर्ष के खाली समय में काम चाहने वाले लोगों को पूरक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना था ताकि टिकाऊ सामुदायिक परिसम्पत्तियाँ सृजित की जा सकें। इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रति वर्ष ३००-४०० मिलियन मानव दिवस रोजगार सृजित करना था। १९८३ में ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गांरटी कार्यक्रम (त्नतंस स्ंदकसमेे म्उचसवलउमदज ळनंतंदजमम च्तवहतंउउम) आरम्भ किया गया जिसका उद्देश्य प्रत्येक भूमिहीन ग्रामीण श्रमिक को कम से कम १०० दिन का रोजगार सुनिश्चित करना और एन आर ई पी के अंतर्गत जुटाए गए रोजगार के अवसरों के अतिरिक्त प्रतिवर्ष ३०० मानव दिवस रोजगार विकसित करना था।

१९८९ में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम छत्म्च् ) और ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम का विलय नए एकल विस्तृत कार्यक्रम जवाहर रोजगार योजना में कर दिया गया। इस योजना से प्रतिवर्ष अकुशल रोजगार के लगभग ६५० मिलियन मानव दिवस सृजित करने का अनुमान लगाया गया। इससे ग्रामीण भारत के लगभग १० प्रतिशत बेरोजगार श्रमिकों के लिए रोजगार उपलब्ध किए जाने की संभावना थी।

इन योजनाओं से ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी में स्थिरता और विशेषकर काम न होने और सूखे के समय भूमिहीन श्रमिकों को कुछ हद तक सुरक्षा उपलब्ध कराने पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा तथापि, इनमें स्थानीय दबावों के कारण सड़कों और भवन निर्माण पर अधिक बल दिया जाता रहा है जिसके परिणामस्वरूप सामुदायिक परिसम्पत्तियों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा सका और अधिक लाभकारी परियोजनाओं जैसे जलसंभरण पर आधारित भूमि विकास कार्यों, मृदा संरक्षण तथा सिंचाई की उपेक्षा हुई।

गरीबी उन्मूलन एवं ग्रामीण विकास
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
दक्षिण एशिया में गरीबी
गरीबी उन्मूलन नीतियाँ
व्यष्टि बनाम समष्टि दृष्टिकोण
भूमि सुधार
स्व-रोजगार को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ
मूल आवश्यकताओं का सार्वजनिक प्रावधान
मूल्यांकन
सारांश
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर
उद्देश्य

इस अध्याय में दक्षिण एशिया के विकास के गरीबी उन्मूलन तथा ग्रामीण विकास जैसे अहम मुद्दों का अध्ययन किया गया है। इसे पढ़ने के बाद आपः
ऽ दक्षिण एशिया में गरीबी की समस्या की व्याप्तता का वर्णन कर पाएंगे,
ऽ ग्रामीण विकास तथा गरीबी उन्मूलन के बीच सम्पर्क का पता लगा पाएंगे,
ऽ समस्या के समाधान के लिए क्षेत्रा के देशों द्वारा अपनाई जाने वाली व्यष्टि एवं समष्टि नीतियों की पहचान कर पाएंगे, और
ऽ गरीबी उन्मूलन के विविध तरीकों के प्रभाव का मूल्यांकन कर पाएंगे।

प्रस्तावना
दक्षिण एशिया में गरीबी के आकलनों में व्यापक भिन्नता है किन्तु मूल तथ्य यह है कि गरीबी बड़े पैमाने पर दक्षिण एशिया के सभी सात देशों में जड़ों तक फैली है ।

दक्षिण एशिया में गरीबी प्रमुखतः ग्रामीण समस्या है क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों में आनुपातिक दृष्टि से अधिक सघन है। अतः गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम ग्रामीण विकास के साथ गहराई से जुड़े हैं। सबसे पहले इस इकाई में हम क्षेत्रा में गरीबी की समस्या के विविध आयामों की चर्चा करेंगे और उसके उपरांत क्षेत्रा में गरीबी उन्मूलन और ग्रामीण विकास के लिए व्यष्टि और समष्टि (डपबतव ंदक डंबतव) स्तर की नीतियों का अध्ययन करेंगे ।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now