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reference electrode in hindi , निर्देश इलेक्ट्रोड किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है समझाइये

जानिये reference electrode in hindi , निर्देश इलेक्ट्रोड किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है समझाइये ?

ऑक्सीकरण-अपचयन (Oxidation-Reduction)
परिचय (Introduction)
जब किसी धातु की छड़ को उसकी किसी लवण के विलयन में आंशिक रूप से डुबोया जाता है तो दो प्रकार की अभिक्रियाएँ सम्भव हैं।

(i) इलेक्ट्रॉड के परमाणु ऑक्सीकृत होकर धनायन बनाये जो इलेक्ट्रॉड को छोड़कर विलयन में चले जायें तथा इलेक्ट्रॉन इलेक्ट्रॉड पर रह कर उसे ऋणावेशित कर दें, या

(ii) विलयन से धातु आयन इलेक्ट्रॉड पर जमा होकर उसे धनावेशित कर दें। शीघ्र ही विलयन धातु तथा धातु आयनों के मध्य एक साम्य स्थापित हो जाता है तथा एक निश्चित विभवान्तर (Potential difference) उत्पन्न हो जाता है जो विलयन में लवण की सान्द्रता तथा तापक्रम पर निर्भर करता है। इस विभवान्तर को इलेक्ट्रॉड विभव कहते हैं। लेकिन किसी एक इलेक्ट्रॉड अभिक्रिया के कारण उत्पन्न इलेक्ट्रॉड विभव को प्रयोगों द्वारा नहीं निकाला जा सकता – केवल दो इलेक्ट्रॉड विभवों के अन्तर का माप किया जा सकता है। इलेक्ट्रॉड विभव को सीधे ही प्रयोगों द्वारा जान सकने के लिए अतः; यह आवश्यक है कि उसे किसी शून्य इलेक्ट्रॉड विभव वाले तन्त्र से जोड़कर दोनों के मध्य का अन्तर ज्ञात कर लिया जाये। लेकिन ऐसा कोई इलेक्ट्रॉड ज्ञात नहीं है जिसका वास्तविक इलेक्ट्रॉड विभव शून्य हो। इस कारण से, एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रॉड को एक निर्देश इलेक्ट्रॉड (reference electrode) के रूप में लिया जाता है जिसका सभी तापमानों पर इलेक्ट्रॉड विभव शून्य मान लिया गया है
दो भिन्न-भिन्न इलेक्ट्रॉड विभवों वाली इलेक्ट्रॉडों को जोड़ने से प्राप्त व्यवस्था को एक सेल (cell) कहते हैं तथा उनके विभवों के अन्तर को सेल का विद्युत वाहक बल (electromotive force), emf कहा जाता है क्योंकि इसी बल के कारण विद्युत उच्च विभव वाले इलेक्ट्रॉड से निम्न विभव वाले इलेक्ट्रॉड की तरफ प्रवाहित होती है। इसकी इकाई वोल्ट (volt) है । जिंक सल्फेट विलयन में डूबी हुई जिंक इलेक्ट्रॉड तथा कॉपर सल्फेट विलयन में डूबी हुई कॉपर इलेक्ट्रॉड के युग्मन से एक अति सामान्य सेल प्राप्त होता है। जिंक इलेक्ट्रॉड से जिंक आयन विलयन में चले जाते हैं तथा प्रत्येक ऐसे आयन के निकलने से इलेक्ट्रॉड पर दो इलेक्ट्रॉन बचे रहते हैं। दूसरी ओर, विलयन से कॉपर आयन निकल कर कॉपर इलेक्ट्रॉड पर जमा होने लगते हैं जिससे यह धनावेशित हो जाती है। दोनों इलेक्ट्रॉडों को जोड़ने पर बाह्य परिपथ (external circuit) में इलेक्ट्रॉन एक धारा के रूप में जिंक से कॉपर इलेक्ट्रॉड की तरफ बहने लगते हैं। सेल में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाएँ निम्न हैं:
(अ) जिंक ऐनोड पर
Zn ⇌ Zn2+ + 2e ऑक्सीकरण अर्ध क्रिया E°=+0.76V

(ब) कॉपर कैथोड पर
Cu2+ + 2e ⇌ Cu अपचयन अर्धक्रिया
E°=+0.34V
हम जानते हैं कि जिस किसी अभिक्रिया में इलेक्ट्रॉन निकलते हैं वह ऑक्सीकरण कहलाती है तथा जिस अभिक्रिया में इलेक्ट्रॉनों का अवशोषण होता है उसे अपचयन कहते हैं। स्पष्ट है कि ऑक्सीकरण  के फलस्वरूप धनीय ऑक्सीकरण अवस्था में वृद्धि होती है तथा अपचयन के कारण धनीय ऑक्सीकरण में कमी आती है। इस प्रकार, जिंक इलेक्ट्रॉड (एनोड़) पर ऑक्सीकरण तथा कॉपर इलेक्ट्रॉड (कैथोड़) पर अपचयन होता है। किसी एक अकेले प्रक्रम को प्रदर्शित करने वाली अभिक्रिया को अध् अभिक्रिया (half-reaction) कहते हैं। जिंक तथा कॉपर इलेक्ट्रॉडों पर होने वाली अर्ध-अभिक्रियाओं को पृथक-पृथक पिछले पृष्ठ पर दिखाया गया है। एक ऑक्सीकरण इलेक्ट्रॉड विभव को ऑक्सीकरण विभव तथा एक अपचयन अर्ध-अभिक्रिया वाले इलेक्ट्रॉड विभव को अपचयन विभव कहा जाता है। यहां यह बताना आवश्यक है कि ऑक्सीकरण या अपचयन अर्ध-अभिक्रिया में विभाजन परिकल्पनात्मक ही है तथा कोई भी एक अर्ध-अभिक्रिया तब तक आगे नहीं बढ़ती है जब तक कि उसे किसी ऐसी अन्य अभिक्रिया से जोड़ा नहीं जाये जिससे सेल का निर्माण हो सके। अब इलेक्ट्रॉन निकालने वाली तथा ग्रहण करने वाली दोनों अभिक्रियाएँ अर्थात ऑक्सीकरण व अपचयन, साथ-साथ होने लगती हैं तथा सकल वैद्युतरासायनिक (electrochemical) अभिक्रिया इन दोनों अध् – अभिक्रियाओं के योग के समान होती है। इस प्रकार, उपर्युक्त दोनों के योग से सामान्य सेल की निम्न अभिक्रिया प्राप्त होती है :
Zn + Cu2+ ⇌ Zn2+ + Cu
अर्ध-अभिक्रियाओं सेल का विद्युत वाहक बल दोनों इलेक्ट्रॉड विभवों के बीजीय योग के समान होता है। अतः उपर्युक्त सेल अभिक्रिया का emf
E =0.76+0.34 = 1.10V
यह देखने में आया है कि किसी इलेक्ट्रॉड के विभव तथा अर्ध-अभिक्रिया के अपचयन विभव का चिन्ह समान होता है जबकि ऑक्सीकरण विभव का विपरीत चिन्ह होता है इसलिए विशुद्ध तथा प्रयोगिक रसायनशास्त्र के अन्तर्राष्ट्रीय संघ (IUPAC) ने 1953 में केवल अपचयन विभव को ही इलेक्ट्रॉड विभव मानने की अनुशंसा की। चूंकि ऑक्सीकरण का विपरीत ही अपचयन है, किसी अभिक्रिया के ऑक्सीकरण विभव का मान वही होगा जो विपरीत अभिक्रिया के अपचयन विभव के चिन्ह बदलने से प्राप्त होता है । अतः एक अर्ध-अभिक्रिया को निम्न प्रकार के अपचयन समीकरण के रूप में लिखना वांछनीय है जिसमें पदार्थ के ऑक्सीकृत रूप को सदैव बायीं ओर लिखा जाता है
Ox + ne ⇌ Red
जहां Ox पदार्थ के ऑक्सीकृत रूप को तथा Red अपचयित रूप को प्रदर्शित करता है। अब सकल कुल अभिक्रिया दोनों अर्ध-अभिक्रियाओं के अन्तर से प्राप्त होती है। यह ध्यान देने योग्य है कि अन्तिम समीकरण में e नहीं होना चाहिए क्योंकि इस समीकरण को प्राप्त करने से पूर्व दोनों अर्ध-अभिक्रियाओं में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान कर ली जाती है। इस प्रकार प्रथम अर्ध-अभिक्रिया को निम्न प्रकार लिखा जाता है :
Zn2+ + 2e → Zn
E°=−0.76 V
इस अभिक्रिया का मानक इलेक्ट्रॉड विभव* (E°) ही इसका मानक अपचयन विभव है। सेल की दूसरी अर्धक्रिया को निम्न प्रकार लिखा जा सकता है-
Cu2+ + 2e→ Cu
E°= +0.34 V
सकल अभिक्रिया के मानक अपचयन विभव का मान उन दोनों अपचयन अर्ध-अभिक्रियाओं के मानक अवस्थाओं में इलेक्ट्रॉड विभव के मान को ही मानक इलेक्ट्रॉड विभव कहते हैं। मानक अवस्था से हमारा तात्पर्य है 25°C तापक्रम तथा विलयन की सक्रियता 1M होनी चाहिए।

मानक विभवों के अन्तर के समान है जिनसे यह सकल अभिक्रिया प्राप्त होती है। एक अर्ध-अभिक्रिया में ऑक्सीकारक को पहले तथा अपचायक को बाद में लिखते हैं। Zn – Cu सेल में होने वाली अभिक्रिया को अतः निम्न प्रकार लिखा जा सकता है :
Zn + Cu2+ → Zn2+ + Cu
इस अभिक्रिया को निम्न प्रकार भी प्रदर्शित किया जा सकता है-
Zn2+ / Zn || Cu2+ |Cu
E°= 0.34–(−0.76) = 1.10v
अपचायक विभव से हमें किसी अभिकर्मक की ऑक्सीकारक या अपचायक शक्ति को मात्रात्मक जानकारी प्राप्त होती है। पदार्थों को जब उनके मानक अपचयन विभवों के बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित किया जाता है तो प्राप्त श्रृंखला को वैद्युतरासायनिक श्रृंखला (electrochemical series) कहते हैं। 25° C पर कुछ प्रमुख पदार्थों के E° के मान सारणी 8.1 में दिये गये हैं ।
सारणी 8.1 कतिपय अर्धअभिक्रियाओं के मानक अपचयन विभव (25°C पर)

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