JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: history

राजस्थान दिवस कब मनाया जाता है और क्यों कारण क्या है | इतिहास बताइए rajasthan day is celebrated on

rajasthan day is celebrated on in hindi and why reason ? राजस्थान दिवस कब मनाया जाता है और क्यों कारण क्या है | इतिहास बताइए ?

प्रश्न : राजस्थान दिवस कब मनाया जाता है ?

उत्तर : 30 मार्च 1949 को जयपुर , बीकानेर , जोधपुर और जैसलमेर रियासतों के ‘संयुक्त राजस्थान ‘ में समूहन से ‘वृहद राजस्थान’ के निर्माण से राजस्थान में सदियों पुराना निरंकुश राजतंत्र समाप्त हो गया | अब 30 मार्च , “राजस्थान दिवस” के रूप में मनाया जाता है | इसे वृहद राजस्थान दिवस भी कहा जा सकता है |

प्रश्न : राजस्थान में ब्रिटिश शासन के गहरे दुष्परिणाम निकले। आलोचनात्मक विवेचना कीजिय। 

उत्तर : राजस्थान के राज्यों ने अंग्रेज कंपनी के साथ सन्धियाँ (1818 ईस्वीं) करके मराठों द्वारा उत्पन्न अराजकता से मुक्ति प्राप्त कर ली और राज्य की बाह्य सुरक्षा के बारे में भी निश्चित हो गए क्योंकि अब कम्पनी ने उनके राज्य की बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा की जिम्मेदारी भी ले ली थी लेकिन संधियों में उल्लेखित शर्तों को कम्पनी के अधिकारियों ने जैसे ही क्रियान्वित करना शुरू किया। कम्पनी ने राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके देशी नरेशों की प्रभुसत्ता पर भी चोट की और उनकी स्थिति कम्पनी के सामंतों और जागीरदारों जैसी हो गयी। कम्पनी की नीतियों से सामंतों की पद मर्यादा और अधिकारों को भी आघात लगा। कंपनी द्वारा अपनाई गयी , आर्थिक नीतियों के परिणामस्वरूप राजा , सामंत , किसान , व्यापारी , शिल्पी और मजदूर सभी वर्ग पीड़ित हुए।
1. अंग्रेजों द्वारा राज्यों के आन्तरिक शासन में हस्तक्षेप : मेवाड़ के प्रशासन में भी पोलिटिकल एजेंट के बार बार हस्तक्षेप ने राज्य की आर्थिक स्थिति को दयनीय बना दिया। 1823 ईस्वीं में कैप्टन कौब ने समस्त शासन प्रबन्ध अपने हाथ में ले लिया तथा महाराणा को खर्च के लिए एक हजार रुपये दैनिक नियत कर दिया।
2. राज्यों के उत्तराधिकार मामलों में हस्तक्षेप : अंग्रेजों ने राज्यों से सन्धियाँ करते समय आश्वासन दिया था कि वह उनके परम्परागत शासन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे लेकिन राज्य में शांति और व्यवस्था बनाये रखने के बहाने अंग्रेजों ने उत्तराधिकार के मामलों में खुलकर हस्तक्षेप किया। 1826 ईस्वीं में अलवर राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर बलवंतसिंह और बनेसिंह के मध्य अलवर राज्य के दो हिस्से करवा दिए। गोद लेने के प्रश्न पर भी अंग्रेज अपना निर्णय लादने का प्रयास करते थे।
3. राज्यों की वित्तीय स्थिति कमजोर होना : अंग्रेजों ने जयपुर नरेश को शेखावटी में राजमाता के समर्थक सामन्तों को कुचलने के लिए सैनिक सहायता दी और सैनिक खर्च के रूप में सांभर झील को अपने अधीन (1835 ईस्वीं) कर लिया। जोधपुर में शांति व्यवस्था स्थापित करने के नाम पर 1835 ईस्वीं में ‘जोधपुर लिजियन’ का गठन कर उसके खर्च के लिए एक लाख पंद्रह हजार रुपये वार्षिक जोधपुर राज्य से लिए जाने लगे। 1841 ईस्वीं में ‘मेवाड़ भील कोर’ की स्थापना मेवाड़ राज्य के खर्च पर की गयी , 1822 ईस्वीं में ‘मेरवाड़ा बटालियन’ , 1834 ईस्वीं में ‘शेखावटी ब्रिगेड’ की स्थापना कर इसका खर्चा सम्बन्धित राज्यों से वसूला जाने लगा , जबकि इन सैनिक टुकड़ियों पर नियंत्रण और निर्देशन अंग्रेजों का था।
4. राज्यों का प्रशासन शिथिल होना और अराजकता व्याप्त होना : संधियों के बाद राजपूत राज्यों को बाह्य आक्रमणों का भय न रहा तथा आंतरिक विद्रोह के समय भी अंग्रेजी सहायता उपलब्ध थी। प्रशासनिक मामलों में रेजिडेंट का दखल अधिकाधिक बढ़ने लगा। धीरे धीरे राजाओं ने प्रशासन पर अपना नियंत्रण खो दिया , अब वे रेजीडेन्ट की इच्छानुसार शासन सञ्चालन करने वाले रबर की मोहर मात्र रह गए। नरेशों का प्रशासन में महत्व नहीं होने से वे प्रशासन के प्रति पूर्णतया उदासीन हो गए। वे अपना समय रंग रेलियों में , सुरा-सुन्दरी के भोग में गुजारने लगे। जयपुर के शासक जगतसिंह ने तो वेश्या ‘रस कपूर’ के नाम पर सिक्के चला दिए। जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह के दरबार में वेश्या ‘नन्ही जान’ का इतना प्रभाव था कि , उस पर स्वामी दयानंद सरस्वती को विष देने के आरोप लगे।
5. किसानों और जन साधारण का बेहाल : अंग्रेजों के साथ सन्धियाँ करने के पश्चात् राजपूत राज्यों के खर्च में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। अंग्रेजों ने राज्यों से अधिकाधिक खिराज लेने का प्रयास किया और अंग्रेज रेजिडेंट और सैनिक बटालियनों के ऊपर भी राजाओं की अधिक खर्च के लिए बाध्य किया गया। इसके साथ ही विकास कार्यों (रेलवे , सिंचाई , सडक , शिक्षा , चिकित्सा) पर खर्च करने से भी राज्यों के खर्च में वृद्धि हुई , जबकि व्यापार पर अंग्रेजी अधिपत्य स्थापित हो जाने से राज्यों की आय में कमी आई। अत: राज्यों के सारे खर्च की पूर्ति का भार भूमिकर पर ही आ पड़ा। इसलिए भूमि कर बढ़ाना आवश्यक हो गया लेकिन प्राचीन व्यवस्था के अंतर्गत भूमि कर आसानी से नहीं बढाया जा सकता था। इस कारण अंग्रेजों की सलाह पर नयी भूमि बन्दोबस्त व्यवस्था लागू की गयी।
प्रश्न : प्रजामण्डल आन्दोलन के सामाजिक प्रभावों की विवेचना कीजिये।
उत्तर : देशी रियासतों में नागरिक अधिकारों की बहाली , उत्तरदायी शासन की स्थापना और राजनितिक आन्दोलन को समन्वित रूप देने के लिए अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् की प्रांतीय शाखाओं के रूप में रियासतों में जो राजनितिक संगठन स्थापित हुए , प्रजामंडल कहलाये। इनके द्वारा संचालित आन्दोलन प्रजामण्डल आन्दोलन कहलाया। इन प्रजामंडल आंदोलनों ने राजनितिक आंदोलन के साथ साथ सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अत्यन्त सराहनीय कार्य किये जिन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत स्पष्ट किया जा सकता है –
1. महिलाओं को आन्दोलन से जोड़ता : राजस्थान की नारियों ने प्रजामंडल में सक्रीय रूप से भाग लिया। बाँसवाड़ा में श्रीमती जिया बहिन , मारवाड़ में महिमा देवी किंकर , रमादेवी , कृष्णाकुमारी , जयपुर में दुर्गादेवी शर्मा , मेवाड़ में नारायणी देवी और उनकी पुत्री आदि के नेतृत्व में जगह जगह महिला मण्डल बने। महिलाओं ने भारत छोड़ो आंदोलन , सामाजिक सुधारों , धरना देने आदि में बढ़ चढ़कर भाग लिया और बड़े स्तर पर गिरफ्तारियाँ दी। इस आंदोलन की यह एक सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि महिलाओं को चार दिवारी से बाहर निकालकर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा कर दिया।
2. दलितोत्थान का कार्य : प्रजामण्डल के दौरान सभी जगह छुआ-छूत , ऊँच-नीच आदि के भेदभाव को मिटाया गया और दलितों को भी आंदोलन में सक्रीय रूप से सम्मिलित किया गया। अलवर में पंडित हरिनारायण ने अस्पृश्यता निवारण संघ , ‘वाल्मीकि संघ’ , गोकुल भाई भट्ट ने ‘हरिजन सेवा संघ’ , भोगीलाल पंड्या ने ‘हरिजन समिति , वर्मा जी ने ‘मेवाड़ हरिजन सेवा संघ ,” रामनारायण चौधरी ने ‘राजपूताना हरिजन सेवा संघ’ आदि अनेक दलितोत्थान संस्थाएँ स्थापित की। इन्होने दलितों में मद्य निषेध , शिक्षा प्रसार , जनजागरण , मंदिर प्रवेश , गरीबी उन्मूलन आदि कार्य कर इन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने का सराहनीय प्रयास किया।
3. आदिवासी उत्थान कार्य : दक्षिण अरावली क्षेत्र में ठक्कर बापा की प्रेरणा में अमृतलाल पाठक ने (1936 ईस्वीं) प्रतापगढ़ में जनजातियों में जनजागृति के लिए विशेष कार्य किया। अलवर में पं. हरिनारायण शर्मा ने आदिवासी संघ द्वारा , भोगीलाल पंड्या और उनके सहयोगियों ने बागड़ सेवा संघ द्वारा , वर्मा जी ने मेवाड़ प्रजामंडल द्वारा और अन्य प्रजामण्डलों ने भी भील सेवा कार्य , आदिवासी छात्रावास स्थापना , दापा , मद्यपान , सागडी प्रथा की रोक के लिए कानून बनवाए और शिक्षा प्रसार और जनजागृति पैदाकर आदिवासियों में राष्ट्रीय चेतना विकसित की।
4. शिक्षा प्रसार का कार्य : प्रजामण्डल आंदोलनों का एक सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य जनसामान्य की शिक्षा का प्रचार-प्रसार रहा। इनके द्वारा जगह जगह रात्रि पाठशालाएँ और गाँव गाँव और शहर शहर में अनेक पाठशालाएँ , दलितों के लिए ‘कबीर पाठशालाएं’ खोली गयी। प्रजामण्डलों ने सभी नगरों और कस्बों में पुस्तकालय , वाचनालय स्थापित कर संचालित किये गए। हीरालाल शास्त्री ने ‘वनस्थली विद्यापीठ’ और हरिभाई किंकर ने ‘महिला शिक्षा सदन’ (हटुण्डी) स्थापित कर महिला शिक्षा के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान दिया।
5. बेगार और बलेठ प्रथा उन्मूलन का कार्य : मेवाड़ प्रजामण्डल ने बेगार और बलेठ प्रथा के विरुद्ध अभियान चलाकर इनके लिए विशेष कानून बनवाए। मारवाड़ में जयनारायण व्यास , हाडौती में पं. नयनूराम शर्मा , बागड़ में भोगीलाल पण्ड्या , गोकुल भट्ट जैसे सभी नेताओं ने बलेठ और बेगार प्रथा के विरुद्ध आन्दोलन चलाकर इसे समाप्त करने का प्रयास किया। इसी के फलस्वरूप जगह जगह कृषक , आदिवासी आंदोलन उठ खड़े हुए।
6. सामाजिक सौहार्द और एकता की स्थापना : प्रजामंडल आन्दोलनों के सामाजिक प्रभावों ने जातीय और धार्मिक वैमनस्य को मिटाया। सभी को समानता और भाईचारे का पक्का पाठ पढाया क्योंकि सभी की एक समान समस्या थी निरंकुश सामन्तीशाही इसलिए इस आंदोलन में हिन्दू मुस्लिम और सभी वर्गों और जातियों ने एक साथ बढ़-चढ़कर भाग लिया।
7. सामाजिक सुधार कार्य : प्रजामण्डलों के सभी नेताओं और कार्यकर्त्ताओं ने गाँव गाँव , शहर-शहर जा कर सक्रीय रूप से बाल विवाह , कन्या वध , पर्दा प्रथा , मृत्यु भोज , बहुविवाह प्रथा , दहेज़ प्रथा , डाकन प्रथा , छुआछूत , ऊँच-नीच का भेदभाव आदि सभी कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया। विधवा पुनर्विवाह महिला शिक्षा , विवाह की अधिक आयु आदि का पुरजोर समर्थन ही नही किया बल्कि इस सन्दर्भ में जनजागृति भी पैदा की।
इस प्रकार शराबबंदी आंदोलन , नशीली वस्तुओं का प्रचार रोकना , मजदूरों के हितों के लिए कानून बनवाना , प्रजा की भलाई के कार्य करना , चरखा और खादी उत्पादन केंद्र स्थापित करना , बाढ़ और अकाल राहत कार्यो में जन सहयोग जैसे अनेक कार्य हाथ में लेकर जनता को अपने साथ मिला लिया।
Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now