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शरीर का तापमान कितना होना चाहिए ? what is the normal body temperature in fahrenheit ?

Solved438 viewsजीव विज्ञान
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question : शरीर का तापमान कितना होना चाहिए ? what is the normal body temperature in fahrenheit ?

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admin Selected answer as best January 30, 2023
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जानेंगे शरीर का तापमान कितना होना चाहिए ?

शारीरिक ताप नियंत्रण (Body tempreature regulation)

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शारीरिक क्रिया के लिये शरीर में एक निश्चित ताप होना आवश्यक होता है । जन्तुओं में शरीर का तापमान 0° से 40°C तक होता है। इससे यह पता चलता है कि पृथ्वी पर जन्तुओं का वितरण वायुमण्डीय तापक्रम में भिन्नता के कारण सीमित होता है। कुछ जन्तु शून्य या उससे कम ताप पर पर ही जीवित रहते हैं जबकि अन्य कुछ जन्तु गर्म स्थानों पर ही पाये जाते हैं तथा 50°C ताप तक सहन कर सकते हैं।

शरीर का तापमान (Body temperature)

पक्षियों एवं स्तनियों का शारीरिक तापमान स्थिर (constant) रहता है जबकि अन्य जन्तुओं का तापमान स्थिर नहीं रहता है तथा बाहरी वायुमण्डलीय ताप के कारण बदलता रहता है। मनुष्य के शरीर का तापमान 36° से 38°C होता है। अधिकांश स्तनियों में भी दैहिक ताप में इसी सीमा में होता है। पक्षियों का शारीरिक तापमान स्तनियों की अपेक्षा थोड़ा अधिक होता है । यह 41 ° से 42°C की सीमा में होता है। शरीर के ताप का संतुलन बनाये रखने की क्षमता के आधार पर क्षमता पर प्राणियों को निम्न समूहों में बाँटा जाता है-

  1. असमतापी (Poikilotherms)

इन जन्तुओं का तापमान वायुमण्डल के तापमान के अनुसार बदलता रहता है। इन्हें शीत-रुधिरतापी (Cold blooded) भी कहते हैं। सभी अकशेरुकी ( invertebrates) तथा निम्न कशेरुकी (lower veterbrates ) जैसे पिसीज (pisces) एम्फीबियन्स ( amphibians) एवं रेप्टाइल्स (reptiles) असमतापी जन्तु होते हैं। इन जन्तुओं में अपने दैहिक ताप नियंत्रण हेतु कोई भी क्रियाविधि नहीं पाई जाती है परन्तु ये जन्तु प्रतिकूल ताप को अपने व्यवहार ( behaviour) में परिवर्तन करके सहन करने की कोशिश करते हैं। ये प्राणी या तो अपेक्षाकृत आरामदायक जलवायु वाले स्थान पर जाकर रहने लगते हैं यह कहीं छुपकर बैठ जाते हैं। कुछ प्राणी प्रतिकूल परिस्थितियों में सुप्तावस्था (dormancy) में जीवन व्यतीत करते हैं।

  1. समतापी (Homotherms)

इन जन्तुओं के शरीर का ताप सदैव एक ही बना रहता है। वातावरण के तापमान में परिवर्तन का इन कोई प्रभाव नहीं होता है। उन्हें उष्ण तापी (warm blooded) उष्णशोषी (endothermic) कहते हैं। इन प्राणियों में तापक्रम समान या स्थिन बनाने रखने के लिय या तो ताप उत्पन्न किया जाता है या उसको शरीर से बाहर निकलने दिया जाता है। कशेरुकी जन्तुओं में स्तनधारी (mammals) एवं पक्षी (aves) सच्चे समतापी प्राणी है। कुछ अशकेरूकी (कीट) तथा कुछ निम्न कॉर्बेट्स (गहन समुद्री मछलियाँ) भी समतापी होती है। ताप-संरक्षण हेतु इनके शरीर पर उष्ण-रोगी (heat insulating) संरचनायें जैसे स्तनधारियों के शरीर पर बाल (hairs) तथा पक्षियों पर पंख (feathers) होते हैं। कुछ प्राणी शरीर का तापमान बढ़ाने के लिए वायुमण्डल से ताप का अवशोषण करते हैं।

  1. विषमतापी (Heterotherms)

इन जन्तुओं में सीमित (limited) ताप नियंत्रण की क्षमता होती है। इनमें समतापी एवं असमतापी दोनों के गुण पाये जाते हैं। इन जन्तुओं में कुछ पक्षी एवं स्तनी आते हैं जो क्रियाशील (active) अवस्था में तो शरीर के तापक्रम को नियंत्रित कर सकते हैं परन्तु निष्क्रिय (resting) अवस्था में नहीं। इस तरह इनका दैहिक ताप शारीरिक क्रिया के अनुसार बदलता रहता है। मोनोट्रीम (momotremes) कुछ मार्सपिएल्स (marsupils), स्लोथ ( soths) आदि इस समूह में आते हैं।

ताप नियंत्रण की क्रियाविधि (Mechanism of temperature kegualtion)

स्तनियों एवं पक्षियों में अपने दैहिक तापमान को स्थिर रखने पर का गुण होता है इसी कारण ये समतापी कहलाते हैं । स्तनियों का दैहिक ताप 36° – 38°C तथा पक्षियों का 39°-41°C होता है। विभिन्न जातियों के मध्य दैहिक तापमान में अधिक भिन्नताऐं नहीं होती है। जैसे चूहे 36.5°C का शारीरिक ताप घोड़े 37°C का तथा हाथी का 36,2°C होता है। सामान्यतया समतापी जन्तुओं में दैहिक तापमान को स्थिर रखने के लिए निम्न प्रक्रम पाये जाते हैं।

  • उष्ण उत्पादन (Heat production)

प्रत्येक जन्तु अपने जीवन में उष्मा का उत्पादन करता है। उष्मा उत्पादन की क्रिया उपापचयी दर (metabolic rate) पर निर्भर करती है। किसी भी जन्त की उपापचयी दर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ज्ञात की जा सकती है तथा यह किसी भी जन्तु के शरीर में उष्मा का एक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत ‘ होती है। उपापचयी उष्मा भोज्य पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन एवं वसा) के अन्तिम उत्पादों में परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न होती है। उपापचयी क्रियाओं से कुछ जन्तु जैसे सील (seals), वालरूस (walreuses) में इतनी उष्मा उत्पन्न होती है कि ये ध्रुवीय क्षेत्र (polar region) की सर्दी में भी गर्म रहते हैं। शरीर का तापमान सामान्य से कम होने पर छोटी-छोटी अनैच्छिक पेशियाँ (involuntary muscles) अतुल्यकालिक संकुचन ( asynchronous contraction) करती है। जिससे उष्मा निकलती है। इस उष्मा उत्पत्ति की ठिठुरन – उष्मा – उत्पत्ति ( shivering thermogeneisis) a हार्मोन्स एवं ताप के कोशिकाओं पर प्रभाव से भी उष्मा उत्पन्न होती है। (तालिका-7)

(2) उष्ण-क्षय (Heat loss)

जन्तुओं में शरीर का तापमान सामानय से अधिक होने की स्थिति में विभिन्न युक्तियों द्वारा शरीर से उष्मा का ह्यस होता है। शरीर से सामान्यतया विकिरण (radiation) वाष्पीकरण (evaporation), संवहन (convection) एवं संचालन (conduction) द्वारा उष्मा का क्षय होता है । (तालिका-2)। जलीय प्राणियों में केवल संचालन द्वारा तथा स्थलीय प्राणियों में संहवन तथा विकिरण द्वारा उष्मा का ह्यस होता है। शरीर के सम्पर्क में आने वाली वायु संचालन द्वारा गर्म होकर शरीर से दूर चली जाती है जिससे शरीर का ताप हवा को स्थानान्तरिक कर दिया जाता है । स्तनियों में त्वचा (skin) उष्मा क्षय का मुख्य अंग है। श्वसन सतहों (respiratory surface) जैसे मुखगुहा की भीतरी सतह (internal surface of buccal cavity) से उष्मा क्षय द्वारा शरीर का तापमान नीचे आ जाता है। निम्न तालिका में उष्मा उत्पादन एवं उष्मा एवं के विभिन्न तरीकों को दर्शाया गया है।

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