पाल शैली किसे कहते हैं , pal style Sculpture in Hindi definition मूर्तियां कहाँ मिलती है उदाहरण
यहाँ हम जानेंगे कि पाल शैली किसे कहते हैं , pal style Sculpture in Hindi definition मूर्तियां कहाँ मिलती है उदाहरण
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पाल शैली
बिहार और बंगाल के पाल और सेन शासकों, के समय में (8 से 12वीं सदी) बौद्ध और हिंदू दोनों ने ही सुंदर मूर्तियां बनाईं। इसके लिए काले बैसाल्ट पत्थरों का प्रयोग किया गया। पाल शैली की विशेषता इसकी मूर्तियों में परिलक्षित अंतिम परिष्कार है मूर्तियां अतिसज्जित और अच्छी पाॅलिश की हुई हैं मानो वे पत्थर की न होकर धातु की बनी हों। पाल शैली की प्रस्तर मूर्तियां नालंदा, राजगीर
और बोधगया में मिलती हैं। मूर्ति शिल्प की दृष्टि से नालंदा कला के तीन चरण माने गए हैं बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियों का महायान चरण, सहजयान मूर्तियां और अंतिम कापालिक प्रणाली का कलाचक्र।
बुद्ध की प्रतिमाएं : गुप्तकालीन मूर्तिशिल्प में बुद्ध धर्म का शांति आदर्श अत्यंत भव्यता से बुद्ध की मूर्तियों में अभिव्यक्त हुआ है। उनके चेहरे की भाव मुद्रा और मुस्कान उस परम समरसता की अनुभूति को दर्शाती है, जिसे उस महाज्ञानी ने प्राप्त किया था। इन मूर्तियों के शिल्प की हर रेखा में सौंदर्य और भाव का परम्परागत स्वरूप दर्शाया गया है। कायिक स्थिति, हस्त मुद्राएं और अन्य सभी लक्षण प्रवृत्ति-प्रतीकों के रूप में उपस्थित हैं मस्तक अंडाकार, भौंहे कमान जैसी, पलकें कमल की पंखुड़ियां, अधर आम्रफल की तरह, कंधों की गोलाई हस्तिशु.ड जैसी, कटि सिंह की और उंगलियां फूलों जैसी। सांची के विशाल स्तूप के प्रवेश द्वारों पर पांचवीं सदी में रखी गयी बुद्ध की चार प्रतिमाएं उस कोमलता, लालित्य और प्रशांति को दर्शाती हैं, जो समृद्ध और परिपक्व गुप्तकालीन शिल्प विधा की विशेषताएं हैं। बुद्ध की काया की रूपरेखाओं में दर्शित लालित्यपूर्ण अनुकूलन मूर्तिशिल्प के उस विकास क्रम को व्यक्त करता है, जिसे प्रारंभिक गुप्तकालीन कोणीय स्वरूप का अगला चरण कहा जा सकता है। बुद्ध की प्रतिमाएं मथुरा में भी मिली हैं, जो बौद्ध धर्म का सुसम्पन्न केंद्र रहा था। इनमें एक सबसे प्राचीन प्रतिमा 5वीं सदी ई. की है, जो पूर्ववर्ती प्रतिमाओं के भारी आयतन अपनाने के बावजूद कुषाणकालीन आदिरूपों से कई दृष्टियों से भिन्न है। शाक्यमुनि की उत्कीर्ण उत्तिष्ठ मुद्रा में प्रतिमा पूर्णतः भिक्षु के परिधान में हैं, जिसकी तहें समानांतर छल्लों में दर्शित हैं। बुद्ध के सिर के पीछे प्रभामंडल भी बनाया गया है।
इस काल में बौद्ध मूर्तिशिल्प का एक अन्य सक्रिय केंद्र सारनाथ था, जहां बुद्ध की खड़ी और बैठी प्रतिमाएं बनाई गईं। सारनाथ में नए सौंदर्यपरक आदर्श का अधिक विकसित रूप दिखाई देता है। सारनाथ के खंडहरों में मिली बुद्ध की अपेक्षाकृत अधिक उभार वाली मूर्ति को गुप्तकालीन मूर्तिकला का सर्वसुंदर और भव्य प्रतिमान कहा जा सकता है। हल्के रंग के बलुई पत्थर से बनी इस प्रतिमा में बुद्ध को बैठकर अपना प्रथम उपदेश देते हुए दर्शाया गया है। प्रतिमा की पीठिका के नीचे घुटनों के बल झुके हुए दो भिक्षुओं को न्यायचक्र की पूजा करते दिखाया गया है। इस न्याय चक्र को बुद्धि का प्रतीक मानते हैं। सारनाथ की इस बुद्ध प्रतिमा में उत्कृष्टता से चित्रित प्रभामंडल इसकी विशेषता है।
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