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क्रान्तिक घटनाएं किसे कहते हैं critical phenomena in hindi | क्रांतिक स्थिरांकों के निर्धारण की प्रायोगिक विधि (Experimental Determination of Critical Constants)

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क्या आप जानना चाहेंगे कि क्रान्तिक घटनाएं किसे कहते हैं critical phenomena in hindi | क्रांतिक स्थिरांकों के निर्धारण की प्रायोगिक विधि (Experimental Determination of Critical Constants) के बारे में जानकारी |

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admin Selected answer as best October 1, 2022
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क्रान्तिक घटनाएं (CRITICAL PHENOMENA)

उपर्युक्त समतापी वक्रों से स्पष्ट है कि गैसें कम ताप पर आदर्श गैस के व्यवहार से विचलित हो जाती हैं, इसका कारण है कम ताप पर गैसों का द्रवण। जब हम किसी गैस का ताप कम करते हैं तो अणुओं की गतिज ऊर्जा में कमी आ जाती है, और दाब को बढ़ाने से गैस के अणु एक-दूसरे के समीप आ जाते हैं और गैस का घनत्व अधिक हो जाता है तथा गैस के अणुओं के पास आ जाने से उनके मध्य आकर्षण बल बढ़ जाता है और गैसें द्रवित होने लगती हैं। इस प्रकार कम ताप व अधिक दाब पर गैसों का द्रवण किया जा सकता है। गैसों के द्रवण में दाब से अधिक महत्वपूर्ण ताप का प्रभाव होता है। वायुमण्डलीय दाब पर तो प्रत्येक गैस को द्रवित किया जा सकता है, किन्तु वायुमण्डलीय ताप पर सब गैसों को द्रवित करना सम्भव नहीं होता है।

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प्रत्येक गैस के लिए ताप की एक अधिकतम सीमा होती है जिससे अधिक ताप होने पर किसी गैस का दाब चाहे कितना ही अधिक बढ़ाया जाये उसका द्रवण (liquification) नहीं हो पाता, गैसों के ताप के इस मान को क्रान्तिक -थर्मामीटर ताप (Critical temperature) कहते हैं और इसे Tद्वारा -CO2 प्रदर्शित करते हैं। इस क्रान्तिक ताप पर किसी गैस का वह गर्म बाथ -गर्म जल निम्नतम दाब जिस पर गैस द्रवित हो सके क्रान्तिक दाब (Critical pressure) कहलाता है, इसे P. द्वारा प्रदर्शित करते हैं। किसी गैस के क्रान्तिक ताप व क्रान्तिक दाब पर उस गैस के एक मोल का आयतन क्रान्तिक आयतन (Critical volume) कहलाता है और इसे V. द्वारा प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार ये तीनों T..P.व Vगैसों के क्रान्तिक स्थिरांक कहलाते हैं। क्रान्तिक ताप व दाब पर जब किसी गैस का द्रवण होता है तो द्रव व गैस के मध्य की सीमा रेखा समाप्त हो जाती है और यह कहना कठिन हो जाता है कि गैस अवस्था कहां समाप्त हो रही है और द्रव अवस्था कहां से प्रारम्भ हो रही है, इस अवस्था को हम क्रान्तिक अवस्था (Critical state) कहते है और इस घटना को क्रान्तिक घटना (Critical phenomenon) कहा जाता है।

क्रान्तिक अवस्थाओं के बारे में सबसे पहले सैण्ट ऐण्डज (St. Andrews) न 1809 उन्होंने विभिन्न तापमानों पर कार्बन डाइऑक्साइड की एक निश्चित मात्रा पर दाब क प्रभाव अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने ऐण्डूज उपकरण काम में लिया (चित्र 3.8)/

इसमें  एक केश नली (Capillary tube) ‘A’ है जो दोनों ओर से खुली होती है, इसमें का का आक्साइड गैस प्रवाहित करते हैं, जिससे उसके अन्दर की वायु विस्थापित होकर उसके स्थान CO2  पर भर जाती है, तरन्त दोनों सिरे सील कर देते हैं। फिर नीचे वाले सिरे को पारे के टब में खोल देते हैं कि उस गैस के दाब तक पारा चढ जाता है। ऐसी ही एक और नई केशनली B को तैयार करते हैं, जिसमें वा भरी रहती है और यह मैनोमीटर का कार्य करती है। इन दोनों नलियों को चित्र 3.8 के अनुसार एक तांत के बर्तन में फिट कर देते हैं जिसमें जल भरा रहता है, इसके नीचे दोनों ओर दो स्क्रू S1  व S2  लगे रहते ह जिन्हें घुमाने पर गैस के दाब को बढ़ाया जा सकता है। नली A का ऊपरी भाग एक गरम बाथ से मिल रहता है जहां CO2 के ताप को परिवर्तित किया जा सकता है।

क्रान्तिक स्थिरांकों के निर्धारण की प्रायोगिक विधि (Experimental Determination of Critical Constants)

प्रयोगशाला में द्रव पदार्थों के क्रान्तिक स्थिरांकों का निर्धारण कान्यार डी ला तूर (Cagniard de | Tour) के उपकरण (चित्र 3.9) द्वारा किया जा सकता है। सिद्धान्त (Theory)—यह प्रयोग इस सिद्धान्त पर आधारित है कि जब गैस द्रवीकरण की अवस्था में होती है तो उस समय तापस्थापी उसकी वाष्प व द्रव का घनत्व समान होता है, इसीलिए गैस व द्रव अवस्था परस्पर इतनी अधिक मिल जाती है कि उन्हें अलग-अलग पहचानना सम्भव नहीं होता। उपकरण में U आकार की एक नली होती है जिसके एक सिरे पर बल्ब बना होता है जिसमें द्रव पदार्थ को भरा जाता है, उसके बाद U नली में पारा भर दिया जाता है। पारे के ऊपर वाय WITH होती है, इसके सिरे को सील करके बन्द कर दिया जाता है, नली का यह सिरा मैनोमीटर का कार्य करता है। नली के बल्ब वाले सिरे को तापस्थापी अथवा थर्मोस्टेट (Thermostat) में रखा जाता द्रव है, जिसमें गरम द्रव प्रवाहित होता रहता है, उच्च ताप पाकर बल्ब का द्रव गरम होकर वाष्प में परिवर्तित होता रहता है और एक चित्र 3.9. क्रान्तिक ताप व दाब मापने ऐसी अवस्था आ जाती है जब बल्ब में उपस्थित द्रव तथा वाष्प की का उपकरण अलग-अलग पहचान करना कठिन हो जाता है. यही ताप क्रान्तिक ताप T. कहलाता है, इसे थर्मामीटर द्वारा नोट कर लिया जाता है। इसी समय मैनोमीटर में क्रान्तिक दाब P. नोट कर लेते है, अब गैस को ठण्डा करते हैं, जब धन्ध के साथ द्रव व गैस की दो अलग-अलग सतहे पृथक् होने लगें तो उस समय भी ताप व दाब नोट कर लेते हैं। दोनों पाठ्यांकों के मध्यमान को सही क्रान्तिक ताप T. व सही क्रान्तिक आयतन ज्ञात करना थोड़ा कठिन कार्य है  क्योंकि ताप व दाब के थोड़े से परिवर्तन से आयतन बहुत अधिक प्रभावित होता है।  क्रान्तिक आयतन ज्ञात करने के लिए अमेगट की औसत घनत्व विधि काम में लायी जाती है। इसमें विभिन्न तापों पर गैसीय  तथा द्रव अवस्था में पदार्थो का घनत्व ज्ञात करके उनके मध्य एक ग्राफ खीचा जाता है जिसमें दोनों वक्र परस्पर अपने-अपने उच्चतम (maxima) बिन्दु ‘C’ पर मिलते हैं और जिस बिन्दु पर ये दोनों वक्र मिलते हैं वह शिखर बिन्दु क्रान्तिक ताप होता है और उसके संगत घनत्व क्रान्तिक घनत्व होता है। किन्तु वक्र का शिखर तीक्ष्ण (sharp) नहीं होता वरन चपटा (flat) होता है (चित्र 3.10) अतः बिन्दु C की सही स्थिति का पता लगाना थोड़ा कठिन कार्य हो जाता है। इस समस्या को हल करने के लिए सरल रेखीय व्यास के नियम (Law of rectilinear diameter) का उपयोग किया जाता है। इस नियम के अनुसार यदि वास व द्रव के घनत्वों के मध्यमानों (mean) को ताप के विरुद्ध आलेखित किया जाये तो एक सरल रेखा पाप्त होती है। यह सरल रेखा वक्र AB को बिन्दु पर काटती है. बस इसी बिन्दु के संगत ताप व घनत्व के मान क्रान्तिक ताप व क्रान्तिक घनत्व के मान होते हैं। क्रान्तिक घनत्व के मान का गैस के अणु भार में भाग देने पर क्रान्तिक आयतन प्राप्त हो जाता है क्योंकि Vc  = M/Dc  बास्तबिक गैसों के PV समपाती बक्र (The PV Isotherms of Real Gases)

एक निश्चित ताप पर किसी गैस के दाब व आयतन के मध्य खींचे गये वक्र को समतापी बक्र (isotherms) कहा जाता है। एक आदर्श गैस के लिए PV=K, अतः आदर्श गैसों के समतापी वक्र समकोणीय हापइरबोला की आकृति में होते हैं। लेकिन वास्तविक गैसों के लिए ऐसा नहीं होता। सैण्ट ऐण्डूज ने अलग-अलग ताप पर CO2  गैस के आयतन पर दाब के प्रभाव को देखा और विभिन्न तापमानों पर समतापी वक्र खींचे। उन्होंने देखा कि 31.1°C ताप के ऊपर गैस का दाब चाहे कितना ही बढ़ाया जाये उसका द्रवण नहीं होता, अतः 31.1°C कार्बन डाइ-ऑक्साइड का क्रान्तिक ताप कहलाता 48.1°C है। ऐण्डूज द्वारा किये गये प्रयोग के परिणामों को चित्र 3.118 में दर्शाया गया है।

अब हम कार्बन डाइऑक्साइड के इन समपाती वक्रों पर विचार करते हैं। पहला वक्र HIJK 13.1°C पर खींचा ज गया है। इस वक्र में बिन्दु H से I तक दाब का मान बढ़ रहा है और साथ में आयतन का मान कम हो रहा है अर्थात् गैस एक आदर्श गैस की भांति व्यवहार कर रही है, बिन्दु I के बाद जब गैस का दाब और बढ़ाते हैं तो गैस का दाब बढ़ने के स्थान पर उसका द्रवीकरण प्रारम्भ हो जाता है, बिन्दु 1 से J तक दाब बढ़ने के साथ निरन्तर गैस का द्रवीकरण होता है और आयतन में कमी आती जाती है। बिन्दु J पर, गैस पूर्ण रूप से द्रव अवस्था में आ जाती है और इसके बाद दाब बढ़ाने का आयतन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि CO2  अब गैस अवस्था में न होकर द्रव अवस्था में आ चुकी है। यही कारण है कि J से K तक वक्र लम्बरूप (vertical) आकार में है।

दूसरा समतापी वक्र DEFG थोड़ा उच्च ताप 21.5°C पर खींचा गया है। इस वक्र में भी बिन्द D से E तक दाब बढ़ने के साथ आयतन में कमी हो रही है अर्थात् गैस आदर्श आचरण कर रही है। E बिन्दु आते ही गैस का द्रवण प्रारम्भ हो जाता है, जो निरन्तर बिन्दु F तक जारी रहता है। बिन्दु E से F तक की क्षतिज रखा (horizontal line) में दाब बढ़ाने पर गैस के दाब में तो वृद्धि नहीं होती किन्तु गैस के द्रवीकरण के साथ आयतन कम होता जाता है। हम देखते हैं कि 13.1°C के क्षैतिज वक्र IJ की तुलना में EF की लम्बाई काफी कम है। F से G तक का वक्र JK वक्र की भाति ही लम्बवत् है और इस समय दाब बढ़ाने का गैस क आयतन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा रहा है. क्योंकि गैस बिन्दु F पर पूर्णरूप से द्रव अवस्था में आ चुकी है।

ताप बढ़ने के साथ गैस के समतापी वक्रों में क्षैतिज रेखा की लम्बाई कम होते-होते 31.1°C ताप पर कवल एक बिन्दु B के रूप में रह जाती है, अतः गैस वक्र A से B तक आदर्श व्यवहार करती है, बिन्दु B पर वह द्रवित हो जाती है और B से C तक वह दाब से अप्रभावी रहती है। इस बिन्दु B को ही कम क्रान्तक बिन्दु कहते हैं। इस वक्र के ताप 31.1°C को कार्बन डाइऑक्साइड का क्रान्तिक ताप Tc ओर बिंदु B के दाब (73 वायुमंडल ) को CO2 का क्रांतिक दाब Pc व इस बिंदु के संगत आयतन (95.7 cc/mol) को CO2 का क्रान्तिक आयतन Vल कहते हैं। इस ताप के ऊपर कोई समतापी वक तो गैस एक आदर्श गैस की भांति समकोणीय हाइपरबोला (rectangular hyperbola) बनाती इसके बाद वह एक आदर्श गैस की भांति व्यवहार करती है।

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) 73.0 95.7 304.3
जलवाष्प (H2O) 217.7 45.0 647.2
अमोनिया (NH3) 111.5 72.0 405.5
नीऑन (Ne) 26.9 41.7 44.4
जीनॉन (Xe) 58.0 119.0 289.7
मेथेन (CH4) 45.6 98.7 190.6
एथेन (C2H6) 48.2 148.0 305.4
एथीन (C2H4) 50.5 127.4 282.4

समस्त गैसों के लिए इस प्रकार के समपाती वक्र खीचे जा सकते हैं आर उनसे क्रान्तिक सिस निर्धारण किया जा सकता है। कुछ प्रमुख गैसों के क्रान्तिक स्थिराक निम्न सारणी में दिये जा रहे हैं। सारणी 3.2. कुछ सामान्य गैसों के क्रान्तिक स्थिरांक

गैसों के नाम Pc (atm) Vc (cc/mol) Tc (Kelvin)
हाइड्रोजन (H2) 12.8 65.0 33.3
हीलियम (He) 2.26 57.6 5.3
क्लोरीन (Cl2) 76.1 123.7 417.1
आर्गन (A) 48.0 78.0 150.7
नाइट्रोजन (N) 33.5 90.0 126.1
ऑक्सीजन (0) 49.7 74.4 153.4
कार्बन मोनो-ऑक्साइड (CO) 34.0 90.0 134.0
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