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क्वाटरनरी किसे कहते हैं , QUATERNARY IN HINDI | उत्तर-हिमकाल में जलवायु क्या है , Climate in the Post Glacial Period
Climate in the Post Glacial Period in hindi क्वाटरनरी किसे कहते हैं , QUATERNARY IN HINDI | उत्तर-हिमकाल में जलवायु क्या है ?
क्वाटरनरी भू-आकारिकी
(QUATERNARY GEOMORPHOLOGY)
आज से लगभग 1 मिलियन (10 लाख) वर्ष पूर्व सेनोजोइक काल में क्वाटरनरी श्युग का प्रारम्भ हुआ तथा आज तक इसका आस्तित्व विद्यमान है। इस युग के अन्तर्गत सामान्यतः प्लीस्टोसीन एवं होलोसीन (उत्तर-हिमानी काल) को सम्मिलित किया जाता है। प्लीस्टोसीन काल में जलवायु में अत्यधिक परिवर्तन हुआ था। इस प्लीस्टोसीन जलवायु परिवर्तन के विषय में विभिन्न आधारों, जैसे रूपराग विश्लेषण, कार्बन डेटिंग, आइसोटोप विश्लेषण, पोटेशियम-आर्गन डेटिंग आदि, पर पर्याप्त आँकड़े उपलब्ध हैं जिनके आधार पर जलवायु परिवर्तन की घटनाओं का आसानी से पता चल जाता है। प्लीस्टोसीन हिमयुग में चार हिमकाल तथा चार अन्तर्हिमकाल की प्रावस्थायें हुयीं थीं, जब उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप के विस्तृत भाग का हिमानीकरण हो गया था।
उत्तरी अमेरिका का हिमानीकरण
उत्तरी अमेरिका के प्लीस्टोसीन हिमानीकरण के समय शीतलन की चार प्रावस्थाओं का प्रादुर्भाव हुआ था जिस कारण वृहद हिमचादरों एवं हिमनदों का निर्माण हुआ। इन हिमनदों एवं हिमचादरों का चार भूमध्यरेखा की ओर प्रसार तथा चार बार ध्रुवों की ओर निवर्तन हुआ। यह चार प्रकार निम्न थे।
(1) नेवास्कन हिमकाल (आज से 300,000 से 2,60,000 वर्ष पहले), (2) कन्सान हिमकाल (आज से 205,000 से 167,000 वर्ष पहले), (3) इल्लीनोइन हिमकाल (आज से 135,000 से 100,000 वर्ष पहले), (4) विसकान्सिन हिमकाल (आज से 70,000 से 10,000 पर्ष पहले) इन चार हिमकालों का गर्म कालों, जिन्हें अन्तर्हिमकाल कहा जाता है, से अलगाव हुआ था।
तीन प्रमुख हिमचादरों से हुआ जो निम्न प्रकार है।
(1) लेब्राडोर हिमचादर, (2) हडसन खाड़ी या किवाटिन हिमचादर, तथा (3) कार्डिलैरियन या राकी हिमचादर। प्रारम्भ में लेब्राडोर तथा किवाटीन हिमटोपियों से हिमचादरों का अलग-अलग स्वतन्त्र रूप् से दक्षिण की ओर प्रसार प्रारम्भ हुआ परन्तु बाद में ये दोनों हिमचादरें आपस में मिल गयी तथा एक विशाल हिमचादर में परिवर्तित हो गयीं। इस विस्तृत हिमचादर का सुदूर दक्षिण में नेब्रास्का प्रान्त तक विस्तार हो गया। पूर्व में इस हिमचादर ने सम्पर्ण अप्लेशियन पर्वतीय क्षेत्र को आच्छादित कर लिया। राकी हिमचादर के प्रसार ने अलास्का, पश्चिमी कनाडा, संयुक्त राज्य के वाशिंगटन, इदाझे, मोण्टाना आदि प्रान्तों को हिमाच्छादित कर दिया। इस तरह प्लीस्टोसीन हिमानीकरण के समय उत्तरी अमेरिका का विस्तृत क्षेत्र 1000 से 1500 मीटर के मोटी हिमचादर के नीचे ढ़क गया था। अन्तर्हिमकालों, जिस समय जलवायु अपेक्षाकृत गर्म हो जाती है, के समय विभिन्न हिमचादरों के निवर्तन के परिणामस्वरूप कई अन्तस्थ हिमोढ़ कटकों (terminal morainic ridges) का भी निर्माण हो गया। प्लीस्टोसीन हिमानीकरण के फलस्वरूप ही ग्रेटलेक्स (सुपीरियर, मिशीगन, हृारन, इरी तथा ओण्टारियो झीले) का निर्माण हुआ।
यूरोप का हिमानीकरण- इस युग का हिमानीकरण की तीन हिमचादरों के कारण प्रसार हुआ। इन तीन हिमटोपियों का अभिनिर्धारिण तथा नामकरण किया गया है, जैसे स्काटलैण्ड हिमटोपी, स्कैझिउनेविया हिमटोपी, तथा आल्प्स हिमटोपी स्काटलैण्ड एवं स्कैण्डिनेविया की हिमटोपियों से निकली हिमचादरों ने ग्रेट ब्रिटेन, स्कैण्डिनेवियन देशों, डेनमार्क, बेल्जियम, लक्जेमबर्ग, नीदरलैण्ड, जर्मनी आदि को हिमाच्छादित किया जबकि आल्प्स पर्वत की हिम टोपी से निकल कर हिमचादरों ने उत्तर की ओर बढ़ते हुए स्विटजरलैण्ड, आस्ट्रिया, इटली, फ्रान्स, दक्षिणी जर्मनी आदि को हिमावरण से ढ़क लिया।
उत्तर-हिमकाल में जलवायु
(Climate in the Post Glacial Period)
प्लीस्टोसीन हिमयुग के समय अभिनव हिमचादर का अन्तिम निवर्तन लगभग 18,000 वर्ष पहले प्रारम्भ हआ तथा यह निवर्तन लगभग 10,000-12,000 वर्ष पहले तक चलता रहा जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका से हिमचादर पूर्णतया हट गयी। दूसरी, तरफ, युरोप में स्कैण्डिनेविया तथा स्काटलैण्ड में पीछे हटती हिमचादरों में 10,200 वर्ष पहले पुनः फैलाव होने से वे पुनः आगे बढ़ने लगी। इसी प्रकार इस कारण से हिमचादरों में पुनरुत्थान प्रारम्भ हुआ। परिणामस्वरूप सीमित क्षेत्र में लघु हिमकाल का पुनरागमन हो गया। इस लघु अवधि वाले हिमकाल को यंगर ड्रयास कहते हैं। इस अल्प अवधि वाले लघु हिमाल का शीघ्र ही अवसान हो गया तथा हिमचादरें अन्तिम रूप से पीछे हट गयीं। इस प्रकार आज से 18,000 से 5,500 वर्ष पहले के काल को विहिमानीकरण कहते हैं जिससे जलवायु में त्वरित परिवर्तन तथा तापमान में वृद्धि का पता चलता है।
प्लोस्टोमीन हिमानीकरण के फलस्वरूप सागर तल में 18,000 वर्ष पहले लगभग 100 मीटर की गिरावट दर्ज की गयी तथा विहिमानीकरण के कारण सागर तल में वापसी प्रारम्भ हो गयी, अर्थात् हिमचादरों के पिघलने से प्राप्त जलराशि की महासागरों में वापसी के कारण सागर तल में वृद्धि होने लगी, तथा आज से 5000-6000 वर्ष पहले सागर तल वर्तमान सागर तल के बराबर हो गया। ग्रीनलैण्ड तथा आइसलैण्ड अब भी मोटी हिमचादरों के अन्दर ढके रहे। कई साक्ष्यों के आधार पर पाया गया कि उत्तर-प्लीस्टोसीन हिमकाल से आज से लगभग 5000-6000 वर्ष पहले वर्तमान तापमान की अपेक्षा तापमान 2.5°c (4.5°F) अधिक था। इस तरह उत्तर-प्लीस्टोसीन काल के समय को जलवायु काल भी कहते है।
क्रिश्चियन काल में जलवायु परिवर्तन
जैविक एवं भूगर्भिक स्त्रोतों से प्राप्त आकडों तथा पराजलवाय के संकेतकों, यंत्रीय अभिलेखों अर्थात् मौसम एवं जलवायु के तत्वों, जैसे: तापमान, आर्द्रता, वायुदाब आदि के विभिन्न यंत्रों में नापे गये आँकडों के अभिलेखों तथा विभिन्न प्रकार के दस्तावेजों पर आधारित सूचनाएँ इतनी पर्याप्त एवं उचित होती थी कि प्राचीन समय से वर्तमान समय तक जलवायु में वार्षिक उतार-चढ़ाव की पूर्नरचना करना और भी आसान हो गया है। तापमान एवं आर्द्रता के अभिलेखों से पता चलता है कि युरोप महाद्वीप एवं रूस सागरीय प्रदेशों में प्रथम सदी ई. में वर्तमान समय के समान ही जलवायु दशायें व्याप्त थीं। इन क्षेत्रों में चैथी सदी ई. तक आर्द्रता में वृद्धि होती गयी। जिस कारण वर्षा में भी वृद्धि दर्ज हुई एवं जलवायु और अधिक अनुकूल हो गयी क्योंकि तापमान में थोड़ी वृद्धि दर्ज हुई एवं जलवाय और अधिक हो गयी क्योंकि तापमान में थोडी वृद्धि दर्ज की गयी। उत्तरी अमेरिका तथा युरोप में पाँचती र वर्षा में कमी के कारण शुष्कता में वृद्धि होने से शुष्क प्रावस्था का सूत्रपात हुआ जिस कारण अर्द्धशा दशा व्याप्त हो गयी। 600-700 ई0 में उत्तरी गोलार्द्ध में तापमान एवं शुष्कता में वृद्धि के कारण जलवा और अधिक कठोर हो गयी परिणामस्वरूप अल्पलाइन पर्वतों के आर-पार लोर्गी का आवागमन प्रारम्भ हो गया सन् 950 से 1250 ई0 तक के 300 वर्षों के समय को पृथ्वी की जलवायु के इतिहास में लघ अनुकूलतम जलवायु की प्रावस्था के नाम से जाना जाता है। इस प्रावस्था के समय जलवायु अपेक्षाकृत गर्म एवं शुष्क हो गयी तथा तापमान में वर्तमान औसत भमण्डलीय तापमान से 1° सेण्टीग्रेट से 2° सेण्टीग्रेट की वृद्धि दर्ज की गयी। ग्रीनलैण्ड तथा आइसलैण्ड की जलवायु मृदु जलवायु हो गयी अर्थात लोगों के रहने के लिए अनुकूल हो गयी। जिससे ग्रीनलैण्ड की इस मृदु जलवायु ने आइसलैण्ड से विकिंग लोगों को ग्रीनलैण्ड आने के लिए आकर्षित एवं प्रेरित किया और अन्ततरू विकिंग लोग ग्रीनलैण्ड में बस गये। उल्लेखनीय है कि 9वीं सदी ई. में आइसलैण्ड की जलवायुं तापमान में वृद्धि के कारण लोगों के लिए अनुकूल हो गयी थी । परिणामस्वरूप युरोप से विकिंग लोग आकर आइसलैण्ड में बस गये थे। दक्षिणी ग्रीनलैण्ड की जलवायु इतनी अनुकूल अवश्य हो गयी थी कि वहां पर बसे लोगों के निर्वाह के लिए बौनी वनस्पति, चरागाह तथा सीमित कृषि फसलें उग एवं पनप सकें।
आगे चलकर 950 से 1250 ई. तक की अनुकूलतम जलवायु की प्रावस्था को 1250-1450 ई. तक की अवधि में विपरीत स्थिति हो गयी, अर्थात् तापमान में पुनः गिरावट हो गयी जिस कारण ग्रीनलैण्ड पर हिम का अधिकाधिक जमाव प्रारम्भ हो गया, अधिसंख्य प्लावी हिम तथा तैरती हिमचादरों के कारण आइसलैण्ड तथा ग्रीनलैण्ड के मध्य यातायात समाप्त हो गया। 13वीं सदी ई. में उत्तरी अटलाण्टिक महासागर एवं उत्तरी सागर में अत्यन्त तुफानी मौसम हो गया।
उत्तरी गोलार्द्ध के मध्य एवं उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में जलवायु के प्रतिकूल (खराब जलवायु) होने कि प्रक्रिया सदैव चलती रहती है। जिसके परिणामस्वरूप 1450 से 1880 ई.तक लगभग चार सौ वर्षों तक जलवायु और अधिक कठोर हो गयी क्योंकि तापमान हिमांक के नीचे चला गया। इस कारण पुनः एक हिमकाल का आगमन हुआ जिसे पृथ्वी के जलवायु के इतिहास में लघु हिम युंग (Little ice Age) कहा जाता है। ग्रीनलैण्ड की जलवायु इतनी अधिक ठंडी हो गयी कि वहां पहले से आवासित लोगों की सामूहिक मृत्यु हो गयी तथा उनकी बस्तियाँ एवं जरूरतमंद वस्तुएँ मोटी हिमपरतों के नीचे दब गये। अल्पाइन हिमनद और अधिक सक्रिय हो गये, सभी हिमानीकृत घाटियां मोटी हिमचादरों के नीचे समाहित हो गयीं वर्तमान में बढ़ते अल्पाइन हिमनदों ने पर्वतों की तलहटी में बसे गावों को घेर कर हिमचादरों के नीचे दफना दिए, कई नदियां तथा झीलें जम गयीं, उदाहरण के लिए टेम्स नदी 16 वीं सदी में चार बार, 17वीं सदी में 8 बार तथा 18वीं सदी में 6 बार पूर्णतया जम गयी थी। आइसलैण्ड की गाथाओं के अभिलेखों से वहां की जलवायु की कठोरता एवं प्रचण्डता का स्पष्ट पता चल जाता है। अत्यधिक सर्द पर्यावरण के कारण आइसलैण्ड के अधिसंख्य लोग मौत के शिकार हो गये। इससे ज्ञात होता है कि लघु हिमकाल (1450-1880 ई.) में चरम सर्द दशा तथा हिमनदों का अग्रगमन लगातार नही रहा, वरन् इस 400 वर्षों की अवधि में कई शीत एवं गर्म अन्तराल (Cold and warm intervals) होते रहे हैं। विश्वास किया जाता है कि प्रत्येक शीत अवधि (Cold period) कम-से-कम 30 वर्षों की अवश्य रही होगी तथा दो शीत वर्ष सबसे ठंडा रहा जब उत्तरी युरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के विस्तृत भाग में ग्रीष्म ऋत हई ही नही। इसी कारण से वर्ष 1816 को जलवायु के इतिहास में ग्रीष्म ऋतु विहीन वर्ष के नाम से जाना जाता है।
सन् 1860 के बाद तापमान की प्रवृति
(Trends of Temperature after 1860 A.D.)
सन् 1860 ई से वर्तमान समय तक भूमण्डलीय औसत तापमान में उतार-चढ़ाव की निम्न प्रवृत्तियों का उल्लेख किया जा सकता हैः
(1) 1860-1920 ई.- भूमण्डलीय औसत तापमान में 0.2°C से 0.6°C तक असमान वृद्धि।
(2) 1921-1945 ई.- भूमण्डलीय औसत तापमान में 0.4°C वृद्धि की स्थिर प्रवृत्ति।
(3) 1946-1975 ई.- भूमण्डलीय औसत तापमान में 0.4°C वृद्धि की दोलनी प्रवृत्ति- उत्तरी गोलार्द्ध का ऊष्मन हुआ जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में तापमान लगभग स्थिर रहा।
(4) 1976-1989 ई.- भूमण्डलीय ऊष्मन की औसत प्रवृत्ति चलती रही भूमण्डलीय औसत तापमान में 0.2°C की वृद्धि हुई।
(5) 1990-2000 ई.- भूमण्डलीय तापमान में अधिकतम वृद्धि दर्ज की गयी- 20वीं सदी का सबसे गर्म दशक रहा- सन् 1980 से सबसे गर्म 7 वर्षों में से 6 सर्वाधिक गर्म वर्ष इसी दशक में-20वीं सदी में तापमान में कुल 0.5°C से 0.7°C तक की वृद्धि।
क्वाटरनरी जलवायु परिवर्त तथा स्थलरूप
क्वाटनरी काल में जलवायु परिवर्तन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रावस्था प्लीस्टोसीन हिमयुग के आगमन की थी, जिस समय उत्तरी अमेरिका एवं युरोप के अधिकांश भाग का हिमानीकरण हुआ था। उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप मे हिमचादरों के अग्रगमन के चार कालों का निर्धारण किया जा चुका हैः
उत्तरी अमेरिका यूरोप
हिमकाल 1. नेवास्कन 1. गुंज
अन्तर्हिमकाल अफ्टोनियन –
हिमकाल 2. कन्सान 2. मिण्डल
अन्तर्हिमकाल याइमाउथ –
हिमकाल 3. इल्लीनोइन 3. रिस
अन्तर्हिमकाल संगमन –
हिमकाल 4. विसकान्सिन 4. बुर्म
अन्तर्हिमकाल होलोसीन –
क्वाटरनरी काल की अवधि 2.5 मिलियन वर्ष बतायी गयी है, जबकि अन्तिम क्वाटरनरी की अवधि विगत 1,30,000 वर्ष रही है। यह अनुमान लगाया गया है कि प्लीस्टोसीन हिमयुग के समय पूरी पृथ्वी का लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्र मोटी हिम चादरों के नीचे दब गया था। प्लीस्टोसीन हिमयुग आज से 10 लाख वर्ष पहले प्रारम्भ हुआ था तथा 9,90,000 वर्षों तक सदैव कायम रहा। उत्तरी अमेरिका तथा युरोप में हिमचादरों की पूर्णतया वापसी आज से 10,000 वर्ष पहले हो चुकी थी। इस 10,000 वर्ष की अद्यतन अवधि को उत्तर-हिमकाल या होलीसीन काल भी कहा जाता है।
प्लोस्टोसीन महा हिमयुग के 4 हिमकालों के समय हिमचादरों के आगे बढ़ने तथा 4 अन्तर्हिमकालों मय हिमचादरों के पीछे लौटने के कारण हिमानी अपरदन एवं निक्षेपण की अनेक घटनायें हुई। इन क्रियाओं के निम्न परिणाम हुएः
(1) अनेक स्थलरूपों का निर्माण,
(2) पहले से निर्मित स्थलरूपों में परिमार्जन उनकी आकृतियों एवं विस्तार में परिवर्तन,
(3) मोटी हिमचादरों के भार के कारण स्थलीय भागों में अवतलन,
(4) हिमचादरों के पिघलने पर स्थलीय भागों में उभार,
(5) हिमकाल के समय सागर तटीय भागों में नये स्थलों का उन्मज्जन,
(6) हिमचादरों के पिघलने से प्राप्त जल की सागरों में वापसी होने पर सागर तटीय भागों का निमा
(7) सागर तल में उतार-च्ढ़ाव का प्रवाल भित्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव,
(8) उत्तरी अमेरिका में वृहत् झीलों (सुपीरियर, मिशिगन,ह्ययूरन ओण्टारियो तथा इरी) का अविर्भाव एवं विकास,
यद्यपि प्लीस्टोसीन हिमानीकरण का प्रत्यक्ष प्रभाव धरातल के 3,00,000 वर्ग किमी. क्षेत्र तक ही सीमित था,परन्तु इसका प्रभाव विश्वव्यापक था। क्वाटरनरी जलवायु परिवर्तन, प्लीस्टोसीन हिमानीकरण, तथा उत्तर-हिमकाल क्षेत्रीय स्तर का स्थलाकृतियों पर व्यापक प्रभाव पड़ाः
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