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छद्म प्रथम कोटि की अभिक्रिया , छदम एकाणुक अभिक्रिया (pseudo first order reaction in hindi)
(pseudo first order reaction in hindi) छद्म प्रथम कोटि की अभिक्रिया , छदम एकाणुक अभिक्रिया : वे अभिक्रिया जो प्रकृति में तो द्वितीयक कोटि की प्रतीत होती है लेकिन अध्ययन से यह पाते है कि वह प्रथम कोटि अभिक्रिया की है , ऐसी अभिक्रियाओं को ही छदम कोटि की अभिक्रिया कहते है जो दिखने पर तो अलग कोटि की दिखती है लेकिन होती अन्य कोटि की है।
अर्थात कुछ अभिक्रिया ऐसी होती है जिनमें अभिकारक तो दो होते है लेकिन अभिक्रिया की कोटि केवल एक क्रियाकारक की सांद्रता पर निर्भर करता है।
जैसे मान लीजिये एक निम्न अभिक्रिया संपन्न हो रही है –
A + B → C + D
समीकरण को देखने से हम कह सकते है कि अभिक्रिया दोनों क्रियाकारक अर्थात A और B की सांद्रता पर निर्भर करता है , लेकिन मान लेते है कि एक क्रियाकारक की सांद्रता का मान बहुत अधिक है और दुसरे पदार्थ या क्रियाकारक की सांद्रता बहुत कम है तो जो क्रियाकारक उच्च मात्रा में होता है उसका मान थोडा बहुत परिवर्तन करने से अभिक्रिया के वेग में कोई परिवर्तन नही होता है लेकिन चूँकि क्रियाकारक B यहाँ कम मात्रा में है अत: इसकी थोड़ी मात्रा भी परिवर्तित करने से अभिक्रिया का वेग अधिक परिवर्तित हो जाता है , अत: अभिक्रिया में दो क्रियाकारक है लेकिन अभिक्रिया का वेग केवल एक क्रियाकारक की सांद्रता पर निर्भर करता है इसलिए इस अभिक्रिया को प्रथम कोटि की अभिक्रिया कह सकते है।
इसे हम निम्न उदाहरण द्वारा अच्छी तरह से समझ सकते है –
एस्टर का अम्लीय जल अपघटन की अभिक्रिया निम्न प्रकार होती है –
अर्थात कुछ अभिक्रिया ऐसी होती है जिनमें अभिकारक तो दो होते है लेकिन अभिक्रिया की कोटि केवल एक क्रियाकारक की सांद्रता पर निर्भर करता है।
जैसे मान लीजिये एक निम्न अभिक्रिया संपन्न हो रही है –
A + B → C + D
समीकरण को देखने से हम कह सकते है कि अभिक्रिया दोनों क्रियाकारक अर्थात A और B की सांद्रता पर निर्भर करता है , लेकिन मान लेते है कि एक क्रियाकारक की सांद्रता का मान बहुत अधिक है और दुसरे पदार्थ या क्रियाकारक की सांद्रता बहुत कम है तो जो क्रियाकारक उच्च मात्रा में होता है उसका मान थोडा बहुत परिवर्तन करने से अभिक्रिया के वेग में कोई परिवर्तन नही होता है लेकिन चूँकि क्रियाकारक B यहाँ कम मात्रा में है अत: इसकी थोड़ी मात्रा भी परिवर्तित करने से अभिक्रिया का वेग अधिक परिवर्तित हो जाता है , अत: अभिक्रिया में दो क्रियाकारक है लेकिन अभिक्रिया का वेग केवल एक क्रियाकारक की सांद्रता पर निर्भर करता है इसलिए इस अभिक्रिया को प्रथम कोटि की अभिक्रिया कह सकते है।
इसे हम निम्न उदाहरण द्वारा अच्छी तरह से समझ सकते है –
एस्टर का अम्लीय जल अपघटन की अभिक्रिया निम्न प्रकार होती है –
CH3COOC2H5 + H2O → CH3COOH + C2H5OH
इस अभिक्रिया में हम देख सकते है कि इसकी आण्विकता दो है।
इसलिए अभिक्रिया से इस अभिक्रिया का वेग CH3COOC2H5 और H2O की सांद्रता पर निर्भर करना चाहिए लेकिन वास्तविकता में ऐसा होता नहीं है , इस अभिक्रिया में जल को आधिक्य में लिया जाता है इसलिए इस अभिक्रिया का वेग जल की सांद्रता परिवर्तन से बहुत कम या नगण्य प्रभावित रहता है इसलिए हम यहाँ कह सकते है इस अभिक्रिया का वेग CH3COOC2H5 केवल की सांद्रता पर निर्भर करता है , इस अभिक्रिया को छदम एकाणुक अभिक्रिया या छदम प्रथम कोटि की अभिक्रिया कहते है।
अतः हम कह सकते है कि वे अभिक्रियाये जिनकी कोटि कुछ और प्रतीत होती है लेकिन वास्तविकता में इनकी कोटि प्रथम कोटि की होती है ऐसी अभिक्रिया को छदम प्रथम कोटि की अभिक्रिया कहते है।
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