हिंदी माध्यम नोट्स
रक्षक कोलाइडी , रक्षण कोलाइड क्या है , रक्षक किसे कहते है , उपयोग , protective colloid in hindi
protective colloid in hindi , रक्षक कोलाइडी , रक्षण कोलाइड क्या है , रक्षक किसे कहते है , उपयोग :-
स्कंदन : कोलाइडी कणों को अवक्षेप में बदलने की क्रिया को स्कन्दन कहते है।
स्कन्दन निम्न प्रकार से किया जा सकता है –
- कोलाइडी विलयन में विद्युत अपघट्य मिलाने से:- जब As2S3सोल (ऋण आवेशित) में विधुत अपघट्य NaCl मिलाया जाता है तो Na+ आयन द्वारा ऋणावेशित कोलाइडी कण उदासीन हो जाते है जिससे कणों का आकार बडा हो जाता है। ये गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पैंदे में एकत्रित हो जाते है अर्थात स्कंदन हो जाता है।
- दो विपरीत आवेशित सोल मिलाकर: जब As2S3सोल (ऋण आवेशित) में Fe2O3.xH2O सोल (धनावेशित) मिलाया जाता है तो ये एक दूसरे के कोलाइडी कणों को उदासीन कर स्कन्दित हो जाते है।
- विद्युत कण संचलन की क्रिया में भी स्कंदन हो जाता है।
- लगातार अपोहन करने से भी स्कंदन हो सकता है।
- कोलाइडी विलयन को अत्यधिक गर्म करने से कोलाइडी कण परस्पर टकराकर अपने आवेश को नष्ट कर लेते है जिससे स्कंदन हो जाता है।
हार्डी शुल्जे का नियम
इस नियम के अनुसार स्कन्दित करने वाले आयन की संयोजकता जितनी ज्यादा होती है उसकी स्कन्दन क्षमता उतनी ही अधिक होती है।
- As2S3सोल (ऋणावेशित सोल) के स्कंदन के लिए निम्न विद्युत अपघट्यो की स्कंदन क्षमता का बढ़ता हुआ क्रम – NaCl < MgCl2 < AlCl3 < SnCl4
या
Na+ < Mg2+ < Al3+ < Sn4+
- Fe2O3.xH2O सोल (धनावेशित) के स्कंदन के लिए निम्न विद्युत अपघट्य की स्कंदन क्षमता का बढ़ता हुआ क्रम –
NaCl < Na2SO4 < Na3PO4 < Na4[Fe(CN)6]
या
Cl– < SO42- < PO43- < [Fe(CN)6]4-
द्रवरागी तथा द्रव विरागी कोलाइड का स्कंदन : कोलाइडी विलयन का स्थायित्व निम्न दो कारको पर निर्भर करता है –
- कोलाइडी कणों पर आवेश
- विलायक योजन अर्थात विलायक के अणुओं को घेरना
यदि उपरोक्त दोनों गुणों को हटा दिया जाए तो कोलाइडी कणों का स्कंदन आसानी से होता है।
द्रवरागी कोलाइड के चारो ओर विलायक (जल) की परत होने के कारण इनका स्थायित्व अधिक होता है। इस परत को हटाने के लिए एल्कोहल व एसीटोन काम में लेते है , जब यह परत हट जाती है तो विद्युत अपघट्य मिलाने पर इनका स्कंदन हो जाता है।
द्रवविरागी कोलाइड में केवल विद्युत अपघट्य मिलाने से ही इनका स्कन्दन हो जाता है।
रक्षक कोलाइडी : द्रव विरागी कोलाइड का स्कंदन आसानी से हो जाता है। यदि द्रव विरागी कोलाइड में द्रवरागी कोलाइड मिला दिया जाए तो द्रव विरागी कोलाइड का स्कन्दन आसानी से नहीं होता। यहाँ द्रव रागी कोलाइड F द्रव विरागी कोलाइड की स्कन्दन से रक्षा करता है , यहाँ द्रव रागी कोलाइड को रक्षक कोलाइड कहते है। इस घटना को रक्षण कहते है।
जब स्वर्ण सोल (द्रव विरागी) में जिलेटिन (द्रव रागी) सोल मिलाया जाता है तो विद्युत अपघट्य (NaCl) मिलाने पर स्वर्ण सोल का स्कंदन नहीं होता क्योंकि जिलेटिन रक्षक कोलाइड का काम करता है अर्थात ये स्वर्ण सोल की स्कन्दन से रक्षा करता है।
पायस / इमल्शन
वे कोलाइडी विलयन जिनमे परिक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम दोनों ही द्रव अवस्था में होते है उन्हें पायस कहते है।
दो अमिश्रणीय द्रवों को मिलाने से पायस बनते है परन्तु ये पायस अस्थायी होते है। ये पदार्थ जो पायस के स्थायित्व को बढ़ा देते है उन्हें पायसीकर्मक कहते है।
नोट : पायसी कर्मक परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों के चारो ओर रक्षात्मक परत का निर्माण कर लेता है जिससे परिक्षिप्त प्रावस्था के कण परस्पर मिल नहीं पाते।
पायस के प्रकार :
पायस दो प्रकार के होते है –
- O/W पायस या तेल/जल पायस: वे पायस जिनमे परिक्षिप्त प्रावस्था तेल तथा परिक्षेपण माध्यम जल होता है उन्हें O/W पायस या तेल/जल पायस कहते है।
उदाहरण : दूध , वेनिशिंग क्रीम
नोट : O/W पायस या तेल/जल पायस के लिए साबुन , प्रोटीन , गोंद आदि पायसी कर्मक है।
- W/O पायस या जल/तेल पायस: वे पायस जिनमे परिक्षिप्त प्रावस्था जल तथा परिक्षेपण माध्यम तेल होता है उन्हें W/O पायस या जल/तेल पायस कहते है।
उदाहरण : मछली का तेल , मक्खन आदि।
नोट : W/O पायस या जल/तेल पायस के लिए लम्बी श्रृंखला वाले एल्कोहल पायसीकर्मक है।
पायस के उपयोग :
- पायसीकरण द्वारा साबुन की सहायता से वस्त्र को स्वच्छ किया जाता है।
- दूध एक पायस है जो हमारे दैनिक आहार का प्रमुख अवयव है।
- विभिन्न दवाइयों रोगों के निदान में काम आता है।
- झाग प्लवन विधि में सल्फाइड , अयस्को का सांद्रण किया जाता है। इस विधि में पायस का निर्माण होता है।
Recent Posts
सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ
कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…
रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?
अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…