वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत कक्षा 12 जीव विज्ञान के प्रश्न उत्तर principles of inheritance and variation class 12 questions in hindi
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वंशागति तथा विविधता दो सिद्धांत हैं जो बायोलॉजी और प्राकृतिक विज्ञान के महत्वपूर्ण मुद्दों को समझने में मदद करते हैं। ये दोनों सिद्धांत बिग बैंग से लेकर विविधता के पिछले क्रमश: संवर्धनीय उपचर्याओं की व्यापक अध्ययन को समझने में मदद करते हैं।
1. वंशागति (एवोल्यूशन): वंशागति द्वारा सिद्ध किया गया है कि जीव धार्मिक रूप से एक गतिशील और संगठित प्रकृति के साथ विकसित हुए हैं। यह सिद्धांत दर्शाता है कि संजीवी जीवों के बीच में जेनेटिक बदलाव और प्राकृतिक चयन के माध्यम से समय के साथ नई प्रजातियों की उत्पत्ति हुई है। चरम रूप से, वंशागति सिद्धांत दर्शाता है कि सभी जीव एक ही साझी वंशागतिक मूल के वंशज हैं, जो बहुत समय पहले एक प्रारंभिक संयोजन से उत्पन्न हुए थे।
2. विविधता (डिवर्सिटी): विविधता का सिद्धांत कहता है कि पृथ्वी पर अस्तित्व में आने वाले जीवों में वैज्ञानिक रूप से स्वतंत्रता, अविभाज्यता और प्रकृतिक चयन के माध्यम से व्यक्तिगत विभिन्नताओं की महान संख्या होती है। इस सिद्धांत के अनुसार, जीवों के बीच में रंग, आकार, संरचना, विशेषता, प्रजाति आदि में बहुतायत के स्तरों पर विभिन्नता होती है। विविधता का महत्वपूर्ण पहलु यह है कि यह प्राकृतिक वातावरण में संतुलन, संक्रमण और समुदाय के लिए महत्वपूर्ण होती है।
इन दो सिद्धांतों के आधार पर, वंशागति और विविधता को एक ही मुद्रा में देखा जा सकता है। वंशागति द्वारा जीव उत्पन्न होते हैं, जबकि विविधता उनके विभिन्न संस्करणों को व्यक्त करती है। वंशागति और विविधता मिलकर बायोलॉजी और प्राकृतिक विज्ञान में जीवों की विविधता और इसके पीछे के मूल लक्ष्यों को समझने में मदद करते हैं।
principles of inheritance and variation in hindi
वंशागति और विविधता के सिद्धांतों को हिंदी में विवरण निम्नलिखित हैं:
1. वंशागति का सिद्धांत: वंशागति का सिद्धांत कहता है कि विशेषताओं और गुणों का अनुवांशिक रूप से अग्रगामी पीढ़ियों के द्वारा उत्पन्न होता है। यह मानव, जानवर, पौधों और अन्य जीवों में देखा जा सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार, आपके माता-पिता द्वारा प्राप्त गुणों और विशेषताओं का आपके संतानों में प्रभाव होता है। इसके अलावा, वंशागति द्वारा जन्म लेने वाले जीवों के बीच उत्पन्न होने वाले विभिन्न रंग, आकार, संरचना और अन्य विशेषताओं के माध्यम से विभिन्नता भी होती है।
2. विविधता का सिद्धांत: विविधता का सिद्धांत कहता है कि जीव में विभिन्नता की महान संख्या होती है। यह विभिन्न प्रजातियों, जातियों, और व्यक्तिगत स्तरों पर देखी जा सकती है। विविधता विभिन्न जीवों के बीच में विशेषताओं, गुणों और प्रकृतिक चयन के माध्यम से होती है। यह विविधता जीवजगत में संजीवी प्रजातियों के आदान-प्रदान, भोजन-पदार्थ श्रृंखला में और पर्यावरणीय प्रकार के लिए महत्वपूर्ण होती है।
इन सिद्धांतों के माध्यम से, जीवजगत में वंशागति और विविधता के आधार पर विभिन्न प्रजातियों और संरचनाओं की उत्पत्ति और विकास की समझ बढ़ाई जा सकती है।
प्राकृतिक विज्ञान
प्राकृतिक विज्ञान वह शाखा है जो मनुष्य के द्वारा प्रकृति और प्राकृतिक पदार्थों के अध्ययन पर केंद्रित होती है। यह विज्ञान जीवन के विभिन्न पहलुओं की समझ में मदद करने वाली प्रकृति के कानूनों, प्रक्रियाओं और घटनाओं का अध्ययन करती है। प्राकृतिक विज्ञान विभिन्न विषयों जैसे भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीवविज्ञान, ज्योतिषी, भूगोल, खनिज विज्ञान, आकाशविज्ञान, आदि को सम्मिलित करती है।
प्राकृतिक विज्ञान मानव जीवन के साथ-साथ पृथ्वी और उसके प्राकृतिक परिवार के बारे में विस्तृत ज्ञान प्रदान करती है। इसका अध्ययन हमें पृथ्वी की वातावरणिक, जलीय, जीवाणुवादिक और आबादीवादिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है। प्राकृतिक विज्ञान द्वारा हम पृथ्वी की रचना, मौसमी परिवर्तन, पौधों और जन्तुओं के जीवन की समझ, जीवाणुओं और रोगों का अध्ययन, जलवायु बदलाव, जल संरक्षण, ऊर्जा संरक्षण, आदि के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं।
प्राकृतिक विज्ञान मानव समाज को पर्यावरणीय मुद्दों पर ध्यान देने, प्राकृतिक संसाधनों का समयानुसार उपयोग करने और प्रकृति की संतुलनित रखने की महत्वपूर्णता को समझने में मदद करता है। यह हमें अनुकूलता के साथ प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने के तरीके सिखाती है ताकि हम संभवतः समुचित रूप से पृथ्वी की संसाधनों का संभालना और संरक्षण कर सकें।
प्रकृतिक चयन
प्रकृतिक चयन (Natural Selection) एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक प्रक्रिया है जो जीवजगत में जीवों की संख्या में परिवर्तन और जीवजगत के धीरे-धीरे बदलते ढंगों की सृजनशीलता के लिए जिम्मेदार होती है। इसका आधार चर्मविलय (Variation) और विरोधाभासी चयन (Selective Pressure) पर होता है।
चर्मविलय से मतलब है कि जीवों के बीच विभिन्न गुण, रंग, आकार, संरचना आदि में सामान्य और विशिष्टताएं मौजूद होती हैं। यह चर्मविलय विभिन्न कारकों के कारण उत्पन्न होता है, जैसे जन्मांतर प्रक्रिया, मिश्रण और म्यूटेशन। चर्मविलय के कारण ही विविधता और विभिन्न प्रकार की संरचनाओं में अंतर पाया जाता है।
विरोधाभासी चयन वह प्रक्रिया है जिसमें पर्यावरण में उपस्थित चयनात्मक दबावों के कारण कुछ विशेष विशेषताओं वाले जीवों की संख्या में बदलाव होता है। इस प्रकार, पर्यावरणीय तत्वों द्वारा सामरिक लाभ और प्रजनन की क्षमता के माध्यम से संवर्धन के लिए चयन किया जाता है।
इन दो प्रक्रियाओं के मिलने से प्रकृतिक चयन होता है। यह मतलब होता है कि विशेष गुणों वाले जीवों को पर्यावरण में अधिक संभावित होने के कारण वे प्रजनन और अधिकारों का योग्य दावेदार बनते हैं और उनके उत्पन्न आपूर्ति का आकार बढ़ता है। यह अंतराली रूप से सतत होता रहता है और समय के साथ, जीवजगत में बदलाव के रूप में प्रकट होता है।
प्राकृतिक चयन द्वारा, जीवों के अधिकांश आदान-प्रदान कारक उनके वातावरण में अनुकूलता और संभावनाओं के आधार पर होते हैं, जो उनके जीनों के वितरण और जनसंख्या के बदलते ढंगों में प्रभावित होते हैं। प्रकृतिक चयन महत्वपूर्ण रूप से जीवजगत के विकास और उद्भव में भूमिका निभाता है।
चयनात्मक दबाव (Selective Pressure) एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो जीवजगत में विभिन्न प्रजातियों और संरचनाओं के आवास, भोजन, संगठन, संघटन, परिवारवाद, रक्त संघटन, आदि को प्रभावित करती है। चयनात्मक दबाव प्राकृतिक चयन की मुख्य ड्राइविंग फ़ोर्स है, जिससे विभिन्न विशेषताओं वाले जीवों की संख्या में परिवर्तन होता है।
चयनात्मक दबाव जीवों को प्राकृतिक वातावरण के माध्यम से प्रभावित करके उन्हें प्रजनन, स्थानांतरण, खाद्य प्राप्ति, सुरक्षा, रोग प्रतिरोध, सामरिक सफलता, आदि के लिए अनुकूल बनाता है। यह दबाव जीवों में स्थायी और संगठित बदलाव को उत्पन्न करता है, जिससे उनके विशेषताओं में परिवर्तन होता है।
चयनात्मक दबाव के कुछ उदाहरण हैं:
1. पर्यावरणीय परिवर्तन: जब पर्यावरण में परिवर्तन होता है, जैसे मौसमी परिवर्तन, भूमिका का बदलना, खाद्य उपलब्धता में परिवर्तन, वन्यजीवों की प्रजाति के उदय या अस्तित्व
में परिवर्तन, तो उस परिवर्तन के अनुकूल बनने वाले जीव ज्यादा सफल होते हैं।
2. प्राकृतिक श्रृंगार: प्रजनन प्रक्रिया में, जीवों के बीच विशेष प्रतिस्पर्धा होती है। उत्तेजना के आधार पर, वे जीव प्रजनन के लिए चयनित होते हैं जिनकी विशेषताएं और गुण अधिक आकर्षक होते हैं। इससे वे विशेषताएं और गुण आगे बढ़ते हैं और विशेषताओं का प्रसार होता है।
3. उपभोग दबाव: जब खाद्य स्रोतों में परिवर्तन होता है, जैसे खाद्य परिवर्तन, प्रिय शिकार, प्रतिरक्षा प्रणाली के साथ संघर्ष, तो वह जीव ज्यादा उपभोग दबाव के अनुकूल होते हैं जिनकी विशेषताएं और गुण प्रभावी होते हैं। ऐसे जीवों के विशेषताओं की संख्या बढ़ती है जो उपभोग दबाव के साथ संघर्ष करने में सक्षम होते हैं।
चयनात्मक दबाव विभिन्न प्रकार के दबावों के रूप में प्रकट हो सकता है और विभिन्न प्रजातियों को विभिन्न तरीकों से प्रभावित कर सकता है, जो जीवजगत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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