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प्राइमेट श्रेणी : प्राइमेट से क्या तात्पर्य है किन्ही तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए ? प्राइमेट्स की प्रमुख विशेषता क्या है अर्थ

जीव विज्ञान प्राइमेट श्रेणी : प्राइमेट से क्या तात्पर्य है किन्ही तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए ? प्राइमेट्स की प्रमुख विशेषता क्या है अर्थ  ? Primate in hindi

 प्राइमेट श्रेणी
प्राइमेट श्रेणी में बंदर आते हैं। ये सबसे सुसंगठित स्तनधारी हैं।
मारमोसेट अन्य बंदरों की तरह मारमोसेट के चेहरे, हथेलियों और तलवों को छोड़कर बाकी सारे शरीर पर बाल होते हैं। आंखें आगे की ओर होती हैं। इस प्राणी के लंबी पूंछ होती है।
नदी-घाटियों और झीलों के किनारे के उष्णकटिबंधीय जंगल मारमोसेटों का आम वासस्थान है। यहां बंदर अपना अधिकांश जीवन पेड़ों पर बिताते हैं ( रंगीन चित्र १५)। जंगलों में बंदरों को अपना भोजन मिलता है। इसमें फल , कोंपलें, पक्षियों के अंडे और कीट शामिल हैं।
मारमोसेट अपने अग्रांगों और पश्चांगों का उपयोग करते हुए पेड़ों के बीच मुक्त संचार कर सकते हैं । अग्रांग का अंगूठा बाकी अंगुलियों की विरुद्ध दिशा में होता है।
मारमोसेट के लगभग मनुष्य के जितने ही दांत होते हैं और उनका आकार भी करीब वैसा ही होता है य सिर्फ सुबा-दांत कुछ बड़े होते हैं। उनके मुंह के अंदर विशेष गल-थैलियां होती हैं। इनमें वे भोजन भर लेते हैं और उसे फुरसत के समय शौक से खाते हैं।
मारमोसेट झुंड बनाकर रहते हैं और उनमें से एक खुर्राट उनका अगुवा होता है। झुंड में रहने से उन्हें शत्रुओं से भाग जाने और भोजन ढूंढने में मदद मिलती है। बंदरों के झुंड मकई और अन्य पौधों के खेतों-बगीचों पर हमला करते हैं। वहां वे जितना खाते हैं उससे कहीं ज्यादा तहस-नहस कर डालते हैं। मारमोसेट हर बार आम तौर पर एक और कभी कभी दो बच्चे देते हैं। मारमोसेट के कई भिन्न भिन्न प्रकार हैं।
मनुष्य सदृश बंदर मनुष्य सदृश बंदरों में अफ्रीका के चिपैंजी और गोरिल्ला और बोर्नियो तथा सुमात्रा के टापुओं में रहनेवाले ओरांग-उटांग शामिल हैं। चिंपैंजी (रंगीन चित्र १६) अपना आधा जीवन पेड़ों पर और आधा जमीन पर बिताता है। दिन के समय वह आम तौर पर जमीन पर रहता है पर रात में हमेशा पेड़ का सहारा लेता है। चिंपैंजी एक बड़ा-सा पुच्छहीन बंदर है। वह १५० सेंटीमीटर तक लंबा हो सकता है। उसके गोल सिर और मनुष्य की जैसी ही बड़ी कर्ण-पालियां होती हैं। आंखें आगे की ओर होती हैं। उसके हाव-भाव काफी हद तक मनुष्य के से होते हैं।
चिंपैंजी का मस्तिष्क अन्य स्तनधारियों की तुलना में कहीं अधिक सुविकसित होता है । मस्तिष्क का वजन रीढ़-रज्जु के वजन से १६ गुना भारी होता है (कुत्ते में यह पांच गुना होता हैं )। फिर भी बड़े आकार के बावजूद चिंपैंजी का मस्तिष्क मनुष्य के मस्तिष्क से काफी छोटा होता है।
चिंपैंजी में नियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं आसानी से विकसित हो सकती हैं उसे खाने के लिए मेज पर बैठना , नेपकिन और चम्मच का उपयोग करना इत्यादि बातें सिखायी जा सकती हैं। केले आदि जैसा मनपसंद खाना यदि छत में टांग दिया जाये तो यह सिखा-सिखाया चिंपैंजी लाठी के सहारे उसे पाता है। प्राणिउद्यानों में चिंपैंजी अपने रक्षक को हमेशा पहचान लेते हैं।
चिंपैंजी के अग्रांग पश्चांगों से लंबे होते हैं । अग्रांग का अंगूठा बार्क अंगुलियों की विरुद्ध दिशा में होता है पर मनुष्य के अंगूठे से वह छोटा होता है। चिंपैंजी जमीन पर झुका हुआ तलवों के सहारे चलता है। अग्रांगों की अधझुर्क अंगुलियों से उसे आधार मिलता है।
चिंपैंजी झुंड बनाकर रहते हैं। हर झुंड में ६ से १४ चिंपैंजी होते हैं। वे रसदार फल , काष्ठफल , कोंपलें और पक्षियों के अंडे तथा कीट खाते हैं। चिंपैंज हर रात पेड़ों पर टहनियों का नया घोंसला बनाता है।
मादा चिंपैंजी हर बार एक बच्चा देती है और बड़ी चिंता से उसर्क परवरिश करती है। चिंपैंजी कई दर्जन वर्ष जिन्दा रहते हैं ।
गोरिल्ला मनुष्य सदृश बंदरों में सबसे बड़ा है। उसकी लंबाई १८० सेंटीमीटर या इससे अधिक होती है। गोरिल्ला मुख्यतया जमीन पर रहता है।
दूसरी ओर ओरांग-उटांग हमेशा घने वृक्षों के बीच रहते हैं और कभी-कभार ही जमीन पर चले आते हैं। मलाया की भाषा में ओरांग-उटांग का अर्थ है बनमानुस।
मनुष्य सदृश बंदर प्राणि-संसार के अत्यंत सुविकसित जीव हैं।
भारत के बंदर भारत में वंदर एक आम प्राणी है और सब इसे जानते हैं। भारत में इनके १० से अधिक प्रकार हैं। भारत में बंदरों की कुल संख्या लगभग छः करोड़ है। अफ्रीका में जिस प्रकार मारमोसेट बड़े पैमाने पर फैले हुए हैं उसी प्रकार भारत में मेकैक या मर्कट।
मर्कटों के बड़े बड़े झुंड जंगलों में पेड़ों पर नजर आते हैं। झुंडों में बड़े बड़े नर, मादा और बच्चे होते हैं। अपने अग्रांगों और पश्चांगों के सहारे वे पेड़ों पर बड़ी आसानी से चढ़ और कूद सकते हैं। इन अंगों में अंगूठा अन्य उंगलियों की विरुद्ध दिशा में होता है। वे जमीन पर भी उतर आते हैं। मर्कट अक्सर मनुष्यों की बस्तियों के पास भी दिखाई देते हैं। मर्कटों को कभी कोई छूता नहीं और वे आदमियों से डरते नहीं। वे वनस्पति और प्राणि-भोजन खाते हैं। इस में फल, बीज तथा विभिन्न कीट शामिल हैं। भोजन पाते ही वे पहले पहल उसे अपनी गल-थैलियों में लूंस लेते हैं और फिर आराम से खाते हैं ।
अन्य बंदरों की तरह मर्कट का चेहरा भी बालों से खाली होता है। आंखें उसकी आगे की ओर होती हैं। उसके केशरहित अग्रांग और पश्चांग मनुष्य के हाथ-पैरों से मिलते-जुलते होते हैं। हाव-भाव में भी वे लगभग मनुष्य के समान होते हैं। अन्य बंदरों की तरह मर्कट के भी सुविकसित प्रमस्तिष्कीय गोलार्द्ध होते है और उनमें कई दरारें होती हैं। उनमें आसानी से नियमित प्रतिवर्ती क्रियाए
विकसित हो सकती हैं। मर्कटो को साधकर आसानी से विभिन्न करतब सिखाये जा सकते हैं। सिखे-सिखाये मर्कट शहरों और देहातों की सड़कों पर देखे जा सकते हैं। मर्कट हर बार आम तौर पर एक बच्चा देता है।
दक्षिण भारत में लंबी पूंछवाला टोपधारी मर्कट एक आम प्राणी है ( आकृति १६२, १)। यह जंगली और पालतू दोनों प्रकार का होता है। टोपधारी मर्कट बड़ा ही मजाकिया, कुलबुला और नटखट होता है । लंबी पूंछ और सिर पर टोप की तरह उगे हुए बालों के लक्षणों से यह झट पहचाना जा सकता है।
छोटी पूंछवाला बंगाली मर्कट भारत के उत्तर में पाया जाता है।
मलाबार तट पर सिंह-पुच्छधारी मर्कट मिलता है। इसकी पूंछ के सिरे में – सिंह की पूंछ की तरह बालों का गुच्छा होता है (आकृति १६२, २)। सिर को कालर की तरह घेरनेवाली भूरी दाढ़ी से भी यह पहचाना जा सकता है।
इनसे भी अधिक सुपरिचित और बड़े पैमाने पर फैले हुए हैं पतले शरीरवाले लंगूर या हनूमान (प्राकृति १६३)। ये बंदर मर्कटों से बड़े होते हैं और उनके लंबे अग्रांग तथा पश्चांग और लंबी पूंछ होती है।
हनूमान भी झुंड बनाकर रहते हैं। ये केवल जंगलों ही में नहीं बल्कि देहातों के आसपास और खुद देहातों में भी पाये जाते हैं। वहां वे जरा भी न डरते हुए छप्परों पर चढ़ जाते हैं। जमीन पर भी वे बड़ी चुस्ती से छलांगें मारते हुए सहूलियत से चलते हैं।
उनकी आवाज अक्सर सुनाई देती है। यह प्रसंगानुसार बदलती है। जब वे खेलते-कूदते हैं तो वह कुछ मधुर-सी और लयबद्ध-सी लगती है जबकि संकट के समय खरखरी।
हनूमान केवल शाकभक्षी होते हैं। वे कोंपलें , फल और बीज खाते हैं। खेतों की फसलों पर हमला करके वे बड़ा उत्पात मचाते हैं। वे लोगों से डरते नहीं क्योंकि लोग उल्टे उनकी रक्षा करते हैं ।
कुछ स्थानों में तो उन्हें पवित्र प्राणी माना जाता है। बनारस में एक विशेष मंदिर है जहां उनका एक झुंड का झुंड पाल रखा गया है। उन्हें वहां खिलाया जाता है।
भारत के विभिन्न भागों में इनके पांच प्रकार पाये जाते हैं। उत्तर भारत में ज्यादातर पवित्र मर्कट या भूरा हनूमान पाया जाता है. और दक्षिण भारत में नीलगिरि लंगूर।
प्रश्न- १. मारमोसेटों में पेड़ों पर के जीवन की दृष्टि से कौनसी अनुकूलताएं पायी जाती हैं ? २. भारत में कौनसे बंदर मिलते हैं? ३. बंदर उपयोगी प्राणी है या हानिकर? ४. मनुष्य सदृश बंदर और मारमोसेट में क्या फर्क है ? ५. मनुष्य सदृश बंदर के कौनसे प्रकार हैं?

सूंडधारी श्रेणी
सूंडधारी श्रेणी में हाथियों के दो प्रकार शामिल हैं – भारतीय और अफ्रीकी। विद्यमान स्थलचरों में ये सबसे बड़े प्राणी हैं।
भारतीय हाथी (आकृति १६० ) तीन मीटर लंबा होता है और उसका वजन चार टन से अधिक। वह घने , छायादार और गीले उष्णकटिबंधीय जंगलों में रहता है। वहां वह बड़ी आसानी से घूम-फिर सकता है।
हाथी के विशाल किंतु अपेक्षतया कम लंबे शरीर को उसकी भारी भरकम टांगों से आधार मिलता है। इन टांगों में अंगुलियों के ऊपर छोटे छोटे खुर होते हैं। हाथी की बहुत ही मोटी .त्वचा पर बाल लगभग नहीं होते।
हाथी की एक विशेष इंद्रिय उसकी सूंड है। यह सिर के अगले भाग से लटकती है। सूंड उपरले ओंठ में समेकित अत्यंत सुविकसित और लंबी नाक का ही स्वरूप है। सूंड बहुत ही लचीली होती है क्योंकि वह अनगिनत पेशियों से बनी होती है। यह सभी दिशाओं में मुड़ सकती है। सूंड की नोक पर नासा-द्वार होते हैं जिनसे हाथी श्वसन करता है। इस नोक पर एक छोटा और अत्यंत संवेदनशील अंगुली सदृश अवयव होता है।
सूंड की सहायता से हाथी पेड़ों की शाखाएं तोड़कर मुंह में डाल लेता है। इसी इंद्रिय से वह पानी खींचकर मुंह में या गरमियों के दिनों में अपनी पीठ पर डालता है। सूंड से वह बड़े बड़े पेड़ उखाड़ सकता है जबकि अंगुली सदृश अवयव उसे छोटी से छोटी चीजें उठाने में मदद देता है। शत्रुओं के हमलों का मुकाबिला भी वह सूंड ही से करता है। हाथी की गर्दन छोटी होती है और इसलिए उसकी सूंड का बड़ा महत्त्व है।
हाथी वनस्पति-भोजन खाता है। इसमें पेड़ की पत्तियां , शाखाएं और छालें शामिल हैं। भोजन वह बहुत बड़ी मात्रा में खाता है। मास्को के प्राणि-उद्यान में एक हाथी को हर रोज विभिन्न प्रकार का लगभग ६५ किलोग्राम भोजन खिलाया जाता है। पेड़ की शाखाएं वह इसके अलावा खाता है।
हाथी के दांत बड़ी खासियत रखते हैं। दो दीर्घ दंत मुंह से सामने की ओर ‘बाहर निकले हुए होते हैं । ये दीर्घ दंत सम्मुख दंतों का ही परिवर्तित रूप है।
भारतीय हाथियों में केवल नर के दीर्घ दंत सुविकसित होते हैं। अफ्रीकी हाथियों में मादा के भी नर जैसे दीर्घ दंत होते हैं। दीर्घ दंतों के सख्त पदार्थ को हाथीदांत कहते हैं। इससे बिलियर्ड के गेंद, कपड़े की पिनें इत्यादि चीजें बनायी जाती हैं। मुंह में पीछे, ऊपर और नीचे को दोनों ओर एक एक बड़ा चर्वण-दंत ( लगभग ७ सेंटीमीटर चैड़ा और २६ सेंटीमीटर तक लंबा) होता है। उसकी सपाट सतह पर इनैमल की बहत-सी चुनटें होती हैं। इन दांतों से हाथी वनस्पति-भोजन की सख्त से सख्त चीजें चबा सकता है। काफी ज्यादा उपयोग के बाद जब ये दांत नष्ट होते हैं तो उनकी जगह नये दांत लेते हैं। ये पुराने दांतों के पीछे की ओर से निकल आते हैं। हाथी के न सुबा-दांत होते हैं और न निचले सम्मुख दंत ही।
हाथी धीरे धीरे बच्चे देते हैं। कई वर्षों में वे एक बच्चा पैदा करते हैं। पाले गये हाथी आम तौर पर ६० से ८० वर्ष तक जीते हैं ।
भारत में हाथियों को साधकर लढे उठाने जैसे भारी कामों में लगाया जाता है। हाथी को बड़ी शीघ्रता से सिखाया जा सकता है।
हाथी के ही एक प्राचीन रिश्तेदार वृहत् गज या मैमथ (आकृति १६१) के दांत और हड्डियां सोवियत संघ में, विशेषकर साइबेरिया में, फौसिलीय रूप में अक्सर पायी जाती हैं।
प्रश्न – १. हाथी के लिए सूंड का क्या महत्त्व है ? २. हाथी की लंबी टांगों और छोटी गर्दन के कारण उत्पन्न होनेवाली असुविधा किस प्रकार दूर हुई है ? ३. हाथी के दांतों में कौनसी संरचनात्मक विशेषताएं पायी जाती हैं ?

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