प्राथमिक सेल और द्वितीयक सेल में क्या अंतर है difference between primary cell and secondary cell in hindi के उदाहरण कौन-कौन से हैं

difference between primary cell and secondary cell in hindi प्राथमिक सेल और द्वितीयक सेल में क्या अंतर है के उदाहरण कौन-कौन से हैं  ?

प्राथमिक तथा द्वितीयक सेल (Primary and Secondary Cell)
वैद्युत सेल (Electric Cell)
वैद्युत सेल एक ऐसी युक्ति है जो दो चलाकों को अलग-अलग धनावेशित तथा ऋणावेशित बनाये रखकर कि परिपथ में आवेश के प्रवाह (अर्थात् वैद्युत धारा) को लगातार बनाये रखती है। ये दो प्रकार की होती है।
(1) प्राथमिक सेल (Primary Cell),
(2) द्वितीयक सेल (Secondary Cell)

1. प्राथमिक सेल (Primary Cell) – इस सेल में रासायनिक ऊर्जा से वैद्युत ऊर्जा प्राप्त होती है। इस प्रकार एक सेल की रचना सर्वप्रथम सन् 1800 में वोल्टा ने की थी जिसे उसके नाप पर ही श्वोल्टीय-सेलश् (voltaic cell) हैं। इसे आजकल साधारण सेल के नाम से भी जाना जाता है।
(प) साधारण वोल्टीय सेल (Simple Voltaic Cell) – इसमें काँच का एक बर्तन होता है जिसमें हल्का गन्धक का अम्ल (H2SO4 ) भरा रहता है। इसे श्विद्युत अपघट्यश् (electrolyte) कहते हैं। बर्तन में एक ताँबे (Cu) की छड तथा उससे कुछ दूरी पर एक जस्ते (Zn) की छड रखी जाती है। इन्हें इलेक्ट्रोड (electrodes) कहते हैं। छड़ के सिरों पर सम्बन्धक पेंच (binding screw) लगे रहते हैं। जब इन सिरों को टार्च के बल्ब से जोड़ देते हैं तो बल्ब जलने लगता है। इससे यह पता चलता है कि तार में वैद्युत धारा बह रही है।
क्रिया – द्रवों के आयनिक सिद्धान्त के अनुसार, गन्धक के अम्ल ( H2SO4) में सदैव हाइड्रोजन के आयन (H़) तथा सल्फेट के आयन (SO4- – ) रहते हैं, जिन पर क्रमशः धन तथा ऋण आवेश होते हैं रू
H2SO4] ⟶ 2H़ ़ SO4- –
ताँबे तथा जस्ते की छड़ों में भी सदैव कुछ मुक्त इलेक्ट्रॉन रहते हैं जिनके फलस्वरूप ताँबे की छड़ में कुछ ताँबे के आयन (ब्ऩ़) तथा जस्ते की छड़ में कुछ जस्ते के आयन (र्द़़) होते हैं।
जब ताँबे व जस्ते की छड़ें गन्धक के अम्ल में रखी जाती हैं तो अम्ल से कुछ हाइड्रोजन आयन (H़) ताँबे की छड़ पर चले जाते हैं, जबकि जस्ते की छड़ से कुछ आयन (Zn) अम्ल में आ जाते हैं। ताँबे के कुछ मुक्त इलेक्ट्रॉन हाइड्रोजन आयनों (H़) से मिलकर उन्हें हाइड्रोजन परमाणुओं (H) में बदल देते हैं। अतः ताँबे की छड़ पर इलेक्ट्रॉनों की कमी हो जाती है अर्थात् यह धनावेशित हो जाती है तथा इसका विभव अम्ल की अपेक्षा ़़़ 0.46 वोल्ट ऊँचा हो जाता है। इसी प्रकार चूँकि जस्ते की छड़ से कुछ आयन (Zn) अम्ल में आ गये हैं, अतः इस छड़ पर कुछ अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन रह जाते हैं अर्थात् यह ऋणावेशित हो जाती है तथा इसका विभव अम्ल की अपेक्षा – 0.62 वोल्ट नीचा हो जाता है। इस प्रकार ताँबे की छड़ का विभव जस्ते की छड़ के विभव की अपेक्षा ़ 0.46 – (-0.62) = 1.08 वोल्ट ऊँचा हो जाता है। ताँबे की छड़ को धन इलेक्ट्रोड तथा जस्ते की छड़ को ऋण इलेक्ट्रोड कहते हैं।
जब इन छड़ों को तार द्वारा जोड़ हैं तो इलेक्ट्रॉन जस्ते की छड़ से (जहाँ इनकी अधिकता है) ताँबे की छड़ (जहाँ इनकी कमी है) जाने लगते हैं। अतः जस्ते की छड़ का ऋण आवेश तथा ताँबे की छड़ की धन आवेश कम होने लगता है। जस्ते की छड़ पर ऋण आवेश की पूर्ति करने के लिए अम्ल में से सल्फेट के आयन (SO4- -) तथा ताँबे की छड़ पर धन आवेश की पूर्ति करने के लिये हाइड्रोजन आयन (H़) आने लगते हैं। हाइड्रोजन के आयन ताँबे की छड़ को अपना धन आवेश देकर हाइड्रोजन के अणुओं (H2) में बदल जाते हैं। सल्फेट के आयन जस्ते की छड़ को ऋण आवेश देकर जस्ते से क्रिया करके जिंक-सल्फेट बनाते हैं –
Zn + SO4 → ZnSO4
यह क्रिया चलती रहती है। इस प्रकार जस्ता गन्धक के अम्ल में घलता रहता है तथा जिंक सल्फेट बनता रहता है। अतः सेल के भीतर होने वाली रासायनिक क्रिया को निम्न समीकरण से प्रदर्शित कर सकते हैं रू
Zn ़ H2SO4 → ZnSO4 ़ H2
जस्ते का अम्ल में घुलना ही वैद्युत ऊर्जा का स्रोत है।
इस वर्णन से यह स्पष्ट है कि सेल के बाहर तार में आवेश-प्रवाह केवल इलेक्ट्रॉनों के द्वारा होता है। वैधुत धारा की दिशा सदैव धन आवेश के प्रवाह की दिशा (अर्थात् इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के विपरीत) मानी जाती है। अतः वैद्युत धारा सेल के बाहर ताँबे से जस्ते की ओर, तथा सेल के भीतर जस्ते से ताँबे की ओर बहती है।