हिंदी माध्यम नोट्स
कीमत-लागत अंतर मूल्य निर्धारण पद्धति क्या है | price cost differential pricing method in hindi
price cost differential pricing method in hindi कीमत-लागत अंतर मूल्य निर्धारण पद्धति क्या है ?
व्यवहार में मूल्य निर्धारण
मूल्य निर्धारण व्यवहार के सैद्धान्तिक मॉडलों की गंभीर सीमाएँ हैं। उत्पादकों को सदैव ही अन्य पद्धतियों का सहारा लेना पड़ता है। इनमें से कुछ का विश्लेषण नीचे किया गया है:
लागतोपरि अथवा कीमत-लागत अंतर मूल्य निर्धारण
वास्तविक व्यावसायिक मूल्य निर्धारण के सर्वेक्षण से पता चलता है कि लागतोपरि मूल्य निर्धारण अथवा कीमत-लागत अंतर मूल्य निर्धारण, जैसा कि इसे कभी-कभी कहा जाता है, काफी हद तक व्यावसायिक फर्मों द्वारा प्रयुक्त सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मूल्य निर्धारण पद्धति है। लागतोपरि मूल्य निर्धारण के कई प्रकार हैं किंतु इनमें से सबसे विशिष्ट इस प्रकार है:
फर्म किसी उत्पाद के उत्पादन और विपणन के औसत परिवर्ती लागत का अनुमान लगाती है। वह इसमें उपरि व्ययों को जोड़ती है। इसमें, यह लाभ के लिए प्रतिशत कीमत-लागत अंतर, अथवा लाभ गुंजाइश जोड़ता है।
संक्षेप में,
उत्पाद का अंतिम मूल्य = औसत परिवर्ती लागत + उपरि व्यय + लागत पर कीमत अंतर
कुल परिवर्ती लागतों को कुल बिक्री से विभाजित करके औसत परिवर्ती लागत प्राप्त किया जाता है। सामान्यतया उपरि व्यय अथवा अप्रत्यक्ष लागतों का निर्धारण इन लागतों का फर्म के उत्पादों पर उनके औसत परिवर्ती लागतों के अनुसार विनियतन करके किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी वर्ष के लिए एक फर्म का कुल उपरि व्यय 1.3 मिलियन रु. होने का अनुमान किया गया था, और इसके नियोजित उत्पादन का अनुमानित कुल परिवर्ती लागत 1.0 मिलियन रु. था, तब उत्पादों पर उपरि लागत परिवर्ती लागत का 130 प्रतिशत की दर से विनियतन किया जाएगा। इस प्रकार, यदि किसी उत्पाद का औसत परिवर्ती लागत 1 रु. होने का अनुमान किया गया है, तो फर्म उस परिवर्ती लागत का 130 प्रतिशत प्रभार अथवा 1.30 रु. उपरि व्यय के लिए जोड़ेगा, जिससे 2.30 रु. का अनुमानित पूर्ण विनियतित औसत लागत प्राप्त होगा। इस संख्या में एक फर्म 30 प्रतिशत अथवा 0.69 पैसा मूल्य वृद्धि लाभ के लिए जोड़ेगा जिससे प्रति इकाई मूल्य 2.99 रु. हो जाएगा। सरल रूप में, कीमत-लागत अंतर सूत्र को इस तरह भी लिखा जा सकता है:
कीमत-लागत अंतर =
उपरोक्त अभिव्यक्ति में भाष्य (अर्थात्, मूल्य – लागत) को कीमत-लागत अंतर अथवा गुंजाइश कहा जाता है। उपरोक्त उदाहरण में, 30 प्रतिशत कीमत-लागत अंतर की गणना निम्नवत् की जाती हैः
कीमत-लागत अंतर =
=
= 0.30 अथवा 30 प्रतिशत
लागतोपरि मूल्य निर्धारण प्रणाली में मूल्य के निर्धारण का समीकरण निकालने के लिए हम उपरोक्त समीकरण का उपयोग कर सकते हैं। वांछित समीकरण इस प्रकार होगा:
लागतोपरि मूल्य = लागत (I ़ मूल्य वृद्धि)
हमारे उदाहरण में, यह समीकरण इस प्रकार प्रयोज्य होगा:
लागतोपरि मूल्य = लागत (1 ़ मूल्य वृद्धि)
= 2.30 रु. (1.30) .
= 2.99
लागतोपरि-मूल्य निर्धारण पद्धति के मुख्य लाभ इस प्रकार गिनाए जा सकते हैं:
प) यह इस सूत्र के यांत्रिक प्रयोग द्वारा मूल्य नियत करने का अपेक्षाकृत सरल और उपयुक्त पद्धति उपलब्ध कराता है।
पप) अल्पकालिक लाभों के नुकसान पर भी जनसम्पर्क प्रयोजनों के लिए वांछनीय है क्योंकि यह मूल्य वृद्धि ‘‘जिसे उपभोक्ता स्वीकार करेगा‘‘ का औचित्य प्रदान करता है।
लागतोपरि-मूल्य निर्धारण की मुख्य सीमाएँ निम्नलिखित हैं:
प) खरीदारों की इच्छा और क्रय-शक्ति की दृष्टि से यथा माप की गई माँग को हिसाब में नहीं लेता है।
पप) प्रतिस्पर्धी की प्रतिक्रियाओं और नए फर्मों की संभावनाओं की दृष्टि से लागतोपरि मूल्य निर्धारण प्रतिस्पर्धा को प्रतिबिम्बित नहीं करता है।
पपप) लागतोपरि-मूल्य निर्धारण महत्त्वपूर्ण अवधारणाओं जैसे परिहार्य लागत और विकल्प लागत की महत्त्वपूर्ण अवधारणाओं की भूमिका को मूल्य-निर्धारण निर्णयों के लिए पथ-प्रदर्शक के रूप में मान्यता प्रदान करने में विफल है।
पअ) लागतोपरि-मूल्य निर्धारण में, नियत लागत उत्पादन निर्णयों को प्रभावित करता है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।
वर्धमान लागत मूल्य निर्धारण
वास्तविक संसार में, माँग और लागत कार्यों को निश्चितता के साथ नहीं जाना जाता है अपितु, उनका अनुमान लगाया जाता है। इसके अलावा, इन कार्यों की ठीक-ठीक प्रकृति और उनके विभिन्न रूपों के संबंध में जानकारी एकत्र करना अत्यधिक खर्चीला हो सकता है। अधिक पूर्ण जानकारी से होने वाले लाभों और इन लागतों में तुलना अवश्य करनी चाहिए। ऐसी स्थिति में, विज्ञापन पर खर्च किए गए अंतिम रुपये के सीमान्त प्रभाव का अनुमान करना अथवा उत्पादित प्रत्येक इकाई की सीमान्त लागत की बिल्कुल ठीक-ठीक गणना करना और फिर उस बिन्दु का पता लगाना जहाँ यह अनुमानित सीमान्त राजस्व के बराबर हो जाता है, व्यावहारिक नहीं होगा।
इन सीमाओं को देखते हुए, अनेक निर्णय वर्धमान विश्लेषण पर आधारित होते हैं। व्यापक अर्थ में वर्धमानवाद में मूल्यों में परिवर्तन करने, किसी उत्पाद का उत्पादन बंद करने अथवा नया उत्पाद पेश करने, नया आदेश स्वीकार करने अथवा अस्वीकार करने या नया निवेश करने के निर्णय के परिणामस्वरूप संभावित रूप से कुल लागत में परिवर्तनों, कुल राजस्व में परिवर्तनों अथवा कुल लागत और राजस्व दोनों में होने वाले परिवर्तनों का अनुमान किए जाने की आवश्यकता पड़ती है। दूसरे शब्दों में, सीमान्त सिद्धान्त को लागू करना है।
वर्धमान तर्क की अवधारणा सरल है किंतु इसे सावधानी से लागू किए जाने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, फर्म की उत्पाद श्रृंखला से किसी उत्पाद का उत्पादन बंद करने के निर्णय से पूर्व ऐसा करने से होने वाली कुल वास्तविक लागत बचत के मद्देनजर राजस्व हानि का अनुमान लगाना अपेक्षित होगा। निम्नलिखित प्रश्नों का हल करना आवश्यक होगा:
ऽ यदि इस उत्पाद का उत्पादन बंद कर दिया जाता है तो फर्म की उत्पाद श्रृंखला में अन्य उत्पादों
की बिक्री में वृद्धि, यदि कोई है, कितनी होगी?
ऽ उपरि अथवा नियत लागतों में किस सीमा तक कमी आएगी?
ऽ क्या फर्म की उत्पादक क्षमता के उपयोग के लिए अधिक लाभप्रद विकल्प उपलब्ध है?
इस उत्पाद की अन्य विचाराधीन विकल्पों की तुलना में दीर्घकालीन बिक्री और लाभ परिदृश्य क्या है। वर्धमान विश्लेषण के सफल प्रयोग के लिए यह अपेक्षित है कि इन सभी कारकों पर कंपनी द्वारा प्राप्त कुल राजस्व और व्यय किए गए कुल लागत के संबंध में विचार करना चाहिए। सिर्फ तभी निर्णय लिया जा सकता है जिससे अधिकतम लाभ प्राप्त होगा।
इसके लिए दो बातें होनी चाहिए:
एक, यह आवश्यक है कि वर्धमान विश्लेषण पर पूरी तरह से आधारित निर्णय करने से पूर्व यह सुनिश्चित करने के लिए कि समग्र उद्देश्य पूरे किए जाएँ प्रबन्धन में किसी के पास समन्वयकारी प्राधिकार होना चाहिए।
दूसरा, किसी विशेष निर्णय से जुड़े वास्तविक वर्धमान लागत और/अथवा राजस्वों की पहचान के लिए सभी युक्तिसंगत प्रयास करना चाहिए।
एक बार, इसके पूरा हो जाने पर, वर्धमान विश्लेषण फर्म द्वारा सामना की जा रही बहुआयामी निर्णय समस्याओं पर विचार करने में उपयोगी और प्रबल साधन बन जाता है।
निर्धारित मानक प्रतिलाभ दर मूल्य निर्धारण
यह मूल्य निर्धारण तकनीक उत्पादन के लागत पर भी आधारित है। इस पद्धति का उपयोग करके
दो पद्धतियों के बीच सिर्फ एक अंतर कीमत-लागत अंतर निर्धारित करने का है।
निर्धारित मानक प्रतिलाभ दर मूल्य निर्धारण कीमत-लागत अंतर निर्धारित करने में फर्म द्वारा किए गए प्रारम्भिक निवेश पर वांछित प्रतिलाभ की दर पर विचार करता है।
मान लीजिए, K फर्म द्वारा किया गया निवेश है और ता पर नियोजित प्रतिलाभ की दर है। इस प्रकार फर्म के लिए वांछित लाभ ता होगा। पुनः यदि निर्गत के दिए गए स्तर के लिए ज्ब् उत्पादन की कुल लागत है और m मूल्य निर्धारण के लिए कीमत-लागत अंतर है, तब यह समीकरण होगा m (TC)=rk
इससे एक सरल सूत्र निकलता है जो कीमत-लागत अंतर को लागू करना सरल बना देता है और इससे निवेश पर वांछित प्रतिलाभ दर प्राप्त होती है, अर्थात्
कीमत-लागत अंतर (m) = नियोजित प्रतिलाभ दर (r)
मान लीजिए निवेश की गई पूँजी 10 करोड़ रु. है और निर्गत की दी गई मात्रा की कुल लागत 15 करोड़ रु. है। यदि निर्धारित मानक प्रतिलाभ दर 20 प्रतिशत है, तब उपर्युक्त सूत्र का उपयोग करने से फर्म का कीमत-लागत अंतर यह होगा:
× (20%) = 13.33%
यदि प्रति इकाई निर्गत कुल लागत 30 रु. है, तब उत्पाद का मूल्य 30 रु. + 30 रु. × 0.1333 = 33.99 रु. होना चाहिए जिससे कि 10 करोड़ रु. के पूँजी निवेश पर 20 प्रतिशत प्रतिलाभ सुनिश्चित किया जा सके।
निवेश पर नियोजित प्रतिलाभ दर कर की दर को भी हिसाब में लेगा अर्थात् निर्धारित मानक प्रतिलाभ दर पद्धति का उपयोग करके उत्पाद का मूल्य निर्धारित करते समय पूँजी पर सकारात्मक प्रतिलाभ सुनिश्चित करने के लिए यह सकल कारपोरेट आय कर दर होगा।
मूल्य निर्धारण की यह पद्धति अत्यन्त सफल हो सकती है यदि: (क) फर्म अपना मूल्य निर्धारित करने और उस पर नियंत्रण रखने में सक्षम है; (ख) यह बिक्री आँकड़ों का सफलतापूर्वक आकलन करने में सक्षम है, और (ग) यह अपने कार्य संचालन के प्रति दूर-दृष्टि रखने में सक्षम है, अर्थात् फर्म को सचेत होना चाहिए कि आवश्यकता से अधिक लाभ उद्योग में नए फर्मों के प्रवेश को प्रेरित करेगा, जो प्रतिस्पर्धा में वृद्धि करेगा और इस प्रकार दीर्घकाल में लाभ में कमी होगी। पुनः, यदि फर्म आवश्यकता से अधिक लाभ लेती है तो यह सार्वजनिक आलोचना का भी शिकार हो सकती है।
इस पद्धति की भी वही सीमाएँ हैं जो लागतोपरि मूल्यनिर्धारण तकनीक की है। यह अनुकूलतम मूल्य निर्धारण तकनीक नहीं है, किंतु उत्पाद बाजार की अपूर्णताओं के कारण उत्पादों के मूल्य निर्धारण के लिए यह उपयोगी अनुभव सिद्ध नियम है।
स्वीकृत मूल्य-निर्धारण
इस पद्धति का उस स्थिति में प्रयोग किया जाता है जब किसी मूल्य-नेतृत्व का प्रादुर्भाव हो चुका का अनुसरण मात्र करती हैं। इस मूल्य निर्धारण तकनीक का मुख्य उद्देश्य हानिप्रद कड़ी प्रतियोगिता से बचना है। जैसे-जैसे प्रतियोगिता बढ़ती है, एक-दूसरे के प्रति फर्म की सजगता भी बढ़ती है और इसका वांछित उद्देश्य हानिप्रद प्रतियोगिता को सीमित करना होता है। फर्मों के बीच प्रत्यक्ष सम्पर्क नहीं हो सकता है किंतु एक अनौपचारिक समझौता हो जाता है तथा नेता का प्रादुर्भाव होता है। यह आवश्यक नहीं है कि अग्रणी फर्म उद्योग में सबसे बड़ी हो। तथापि, मूल्य स्वीकार करने में मूल्य अनुसरणकर्ता को अपने दीर्घकालीन लाभप्रदता के बारे में सोचना पड़ता है। उसके लिए पर्याप्त लाभप्रदता होनी चाहिए जिससे कि फर्म में नया पूँजी निवेश किया जा सके तथा पहले निवेश की जा चुकी पूँजी को अक्षुण्ण बनाए रखा जा सके।
प्रचलित दर मूल्य निर्धारण
यह एक प्रकार का स्वीकृत मूल्य ही है जो प्रतियोगिता-उन्मुखी होता है। इस प्रणाली में, उद्योग द्वारा लिए जा रहे औसत मूल्य को फर्म स्वयं के लिए स्वीकार कर लेती है। पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत, वस्तु का मूल्य निर्धारण बाजार की माँग और बाजार की पूर्ति के संतुलन से निर्धारित होता है। इस प्रकार, नियत बाजार मूल्य फर्मों द्वारा स्वीकार किया जाता है। वे अकेले वस्तु के मूल्य में कोई भी परिवर्तन करने में सक्षम नहीं होंगे। इससे पता चलता है कि प्रचलित दर मूल्य के स्वीकार किए जाने की मुख्य शर्त यह है कि बाजार को अत्यधिक प्रतियोगी होना चाहिए तथा सजातीय वस्तुएँ होनी चाहिए। तथापि, कुछ अन्य परिस्थितियाँ भी हैं जिनमें मूल्य निर्धारण की इस तकनीक को स्वीकार किया जाता है। विशेषकर, यदि लागत की माप करना कठिन है और यह जानना भी कठिन है कि खरीदार तथा विक्रेता किस तरह से मूल्य विभेदों पर प्रतिक्रिया करते हैं, उत्पादक प्रचलित-दर मूल्य निर्धारण रीति का अनुसरण करने को बाध्य होगा।
बोध प्रश्न 4
1) कीमत-लागत अंतर मूल्य निर्धारण पद्धति का संक्षेप में वर्णन करें।
2) वर्धमान लागत मूल्य निर्धारण तकनीक का किस तरह से उपयोग किया जाता है?
3) प्रचलित-दर मूल्य निर्धारण का संक्षेप में वर्णन करें।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…