हिंदी माध्यम नोट्स
छत्तीसगढ़ का प्रयाग किसे कहते हैं , कहा जाता है which is called prayag of chhattisgarh in hindi
पढों छत्तीसगढ़ का प्रयाग किसे कहते हैं , कहा जाता है which is called prayag of chhattisgarh in hindi ?
राजिम (20°27‘ उत्तर, 81°52‘ पूर्व)
राजिम महानदी के दाहिने तट पर वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से दक्षिण-पश्चिम दिशा में 40 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह पायरी, महानदी एवं सोन्धु नामक तीन पवित्र नदियों के संगम पर स्थित है। इस स्थल को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि राजिम का प्राचीन नाम श्कमल क्षेत्रश् या ‘पद्मपुर‘ था। छठी शताब्दी ईस्वी के मध्य में, यहां तीवर नामक एक शासक का शासन था, जो स्वयं को कोशल या दक्षिण कोशल का स्वामी कहता था। बाद के एक अभिलेख से प्राप्त एक विवरण के अनुसार, यहां नल शासक विलासतुंग ने एक भव्य विष्णु मंदिर का निर्माण कराया था। इससे इस तथ्य का संकेत मिलता है कि यह स्थान वैष्णववाद का एक प्रमुख केंद्र था। यहां कई अन्य मंदिर, यथा-कालेश्वर महादेव मंदिर, राजीव लोचन तथा राजेश्वर मंदिर इत्यादि भी हैं। इन मंदिरों में कालेश्वर महादेव मंदिर एक द्वीप समूह पर स्थित है, जो महानदी एवं पायरी नदियों के संगम से निर्मित होता है। प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा के अवसर पर एक माह लंबा मेला भी आयोजित किया जाता है।
राखीगढ़ी (लगभग 29° उत्तर, 76° पूर्व)
राखीगढ़ी सिंधु घाटी सभ्यता का स्थल है जिसका उत्खनन हरियाणा के हिसार में किया गया। यह दिल्ली से लगभग 160 किमी. दूर स्थित है। जेन मेकिन्टोश के अनुसार, राखीगढ़ी प्रागैतिहासिक नदी दृष्टद्वीति की घाटी में स्थित है। यहां पर पहली बार उत्खनन 1960 के दशक में हुआ था। वर्ष 2014 में, 1997 से 2000 ई. के बीच हुए उत्खननों के 6 रेडियोकार्बन तिथि निर्धारणों को प्रकाशित किया गया। पुरातत्वविद् अमरेन्द्रनाथ के अनुसार ये तीन कालों-पूर्व गठनात्मक, प्रारम्भिक हड़प्पा तथा परिपक्व हड़प्पा-से संबंधित है।
हड़प्पा स्थल पर जनवरी 2014 में दो और टीलों की खोज के पश्चात् पुरातत्वविदों ने इसे सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल मानना आरम्भ कर दिया है। अभी तक विशेषज्ञों का मानना था कि भारत, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान में मिले लगभग 2000 हड़प्पा स्थलों में पाकिस्तान में स्थित मोहनजोदड़ो सबसे बड़ा स्थल था। हाल ही में मिले दो टीले राखीगढ़ी में पहले से ही खोजे गए सात टीलों के अतिरिक्त हैं। पुरातत्वविदों के अनुसार, राखीगढ़ी के अध्ययन से इस बात को बल मिलता है कि हड़प्पा सभ्यता का आरम्भ हरियाणा के घग्गर बेसिन में हुआ एवं यहां से ये धीरे-धीरे अन्य स्थानों पर फैली। यदि इस तथ्य की पुष्टि होती है तो यह जानना रोचक होगा कि इस सभ्यता की उत्पत्ति भारत में घग्गर बेसिन में हुई और यहां से ये सिंधु घाटी की ओर फैली। (हाल ही में कम से कम 5 ऐसे हड़प्पा स्थलों का उत्खनन हुआ है जहां से संकेत मिले हैं कि प्रारम्भिक हड़प्पा अवस्था 5000 ई.पू. भी जा सकती है। ये पांच स्थल हैं-कुनल, भिराना, फरमाना, गिरवाड़ तथा मिताथल।
पक्की सड़कें, जल-निकास व्यवस्था, वर्षा जल संग्रह, भंडारण व्यवस्था. मिट्टी की ईंटें. मर्ति उत्पादन, कांसे तथा मल्यवान धातओं पर की गई कारीगरी के साक्ष्य मिले हैं। गहने जिनमें टेराकोटा की चूड़ियां, शंख, सोने व अर्द्ध-मूल्यवान पत्थर आदि भी मिले हैं। सोने व चांदी द्वारा अलंकृत एक कांसे का बर्तन भी प्राप्त हुआ है। एक सोने का ढलाईघर और उसके समीप लगभग 3000 बिना पॉलिश किए हुए अर्द्ध-मूल्यवान पत्थर, इन पत्थरों को पॉलिश करने वाले औजार व साथ में एक भट्टी भी यहां मिली है। अग्निवेदियां एवं मेहराबदार संरचनाओं के भी साक्ष्य मिले हैं। शिकार करने के औजार जैसे तांबे के कुंदे व मछली पकड़ने के हुक भी यहां मिले हैं। विभिन्न खिलौने जैसे छोटे पहिए, छोटे ढक्कन, लटकने वाली गेंदे, जानवरों की आकृतियां आदि मिलने से पता चलता है कि खिलौनों का उपयोग यहां किया जाता था। उत्खनन में गहनें, मुहरें तथा चकमक पत्थर के तौलने के बाट मिलने से संकेत मिलता है कि यहां काफी फलता-फूलता व्यापार था। इस स्थल से ‘हाकरा मृदभांड‘ के काफी निक्षेप मिले हैं जो सिंधु घाटी की आरम्भिक अवस्थाओं एवं सरस्वती नदी के सूखने के पश्चात् की बस्तियों की विशेषता थी। परिपक्व हड़प्पाकालीन चरण (2600 ई.पू. से 2000 ई.पू.) से संबंधित एक अन्नागार भी मिला है।
एक कब्रगाह में 11 कंकाल मिले हैं जिनके सर उत्तर दिशा की ओर हैं। इन कंकालों की खोपड़ियों के पास रोजमर्रा काम में आने वाले बर्तन मिले हैं। वर्ष 2015 में यहां से कुछ कंकालों को उत्खनन द्वारा निकाला गया। चूंकि यहां पर उत्खनन बेहद वैज्ञानिक तरीके से किया गया है जिससे कंकालों को कोई क्षति न पहुंचे व न ही वे संदूषित हों, अतः पुरातत्वविदों का यह मानना है कि इन कंकालों व इनके डीएनए का आधुनिक तकनीक की सहायता से अध्ययन कर यह निर्धारण करना संभव होगा कि हड़प्पा के लोग 4500 वर्ष पहले कैसे दिखते थे।
राखीगढ़ी के हड़प्पा स्थल का अधिकांश भाग वर्तमान गांव के नीचे दबा है और इसके ऊपर सैकड़ों मकान निर्मित हो गए हैं।
तमिलनाडु में स्थित रामेश्वरम् को ‘दक्षिण की काशी‘ के नाम से भी जाना जाता है। यह वही स्थान है, जहां भगवान राम ने भगवान शंकर की उपासना की थी, फलतः यह शैव एवं वैष्णव दोनों धर्म के अनुयायियों का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। नगर के मध्य में प्रसिद्ध ‘रामनाथस्वामी मंदिर‘ अवस्थित है। यह दक्षिण भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। रामेश्वर मन्नार की खाड़ी में एक द्वीप पर स्थित है, जो मुख्य भूमि पर स्थित मंडपम नामक स्थान से, रेल एवं भारतीय अभियांत्रिकी के एक अद्भुत नमूने ‘इंदिरा गांधी सेतु‘ द्वारा जुड़ा हुआ है। रामनाथस्वामी मंदिर अपने भव्य एवं 1,220 मी. लंबे बरामदे के लिए प्रसिद्ध है। इसमें सुंदर संगमरमर के स्तंभ हैं। रामेश्वर की यात्रा करने वाले पर्यटक एवं तीर्थयात्री ‘अग्नितीर्थम‘ के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते। यह मंदिर के समीप ही अत्यंत सुंदर एवं शांत सरोवरनुमा स्थल है। रामनाथस्वामी मंदिर का निर्माण चोलों ने करवाया था किंतु इस मंदिर के सबसे मुख्य भागों का निर्माण नायकों (16वीं-17वीं शताब्दी) के समय हुआ। यह मंदिर द्रविड़ स्थापत्यकला का एक सुंदर उदाहरण है। इस मंदिर का बरामदा या प्रदक्षिणापथ भारत के मंदिरों का सबसे लंबा प्रदक्षिणा पथ है। रामेश्वरम् में अत्यंत मनोहारी समुद्री तट भी हैं, जो बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने यहां एक मंदिर का निर्माण भी कराया था। रामेश्वर से लगभग 21 किमी. दूर ऐरावदी नामक स्थल स्थित है, जो इब्राहीम सैय्यद औलिया के मकबरे के लिए प्रसिद्ध है।
रंगपुर (22°26‘ उत्तर, 71°55‘ पूर्व)
सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित रंगपुर नामक स्थल सिंधु सभ्यता का भारत में स्थित एक महत्वपूर्ण स्थल था। यहां से प्राप्त ऐतिहासिक महत्व की वस्तुओं में-तांबे की कुल्हाड़ी, स्टीयेटाइट के मनके, कार्नेलियन के मनके, बड़ी संख्या में मृदभांड एवं कई अन्य वस्तुएं सम्मिलित हैं। रंगपुर के उत्खनन से प्राप्त नालियां बिल्कुल हड़प्पा के समान हैं। ऐसा माना जाता हैं कि रंगपुर के उत्खनन से हड़प्पा संस्कृति एवं छठी शताब्दी ईसा पूर्व के बुद्ध काल के बीच जो अंतराल था, वह समाप्त हो गया। मोहनजोदड़ो से भिन्न रंगपुर की हड़प्पा संस्कृति, उत्तरवर्ती हड़प्पा संस्कृति में समाहित हो गई थी। जहां इस सभ्यता का अंत यकायक हो गया था।
रणथम्भौर (26°1‘ उत्तर, 76°27‘ पूर्व)
रणथम्भौर का प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक किला, रणथम्भौर के वनों के मध्य पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है। यह पहाड़ी समीप स्थित अरावली एवं विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं से संबंधित है। यह विशाल किला, भारत के सबसे प्राचीन किलों में से एक है तथा ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण एक चैहान शासक ने 944 ईस्वी में कराया था। किले का हम्मीर दरबार अत्यंत भव्य है। किले में स्थित हनुमान मंदिर में लंगूरों को बड़ी संख्या में देखा जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि यह किला देश के सबसे दुर्गम किलों में से एक है। कई महान शासकों यथा-अलाउद्दीन खिलजी, कुतुबुद्दीन, फिरोज तुलगक, गुजरात के बहादुर शाह इत्यादि के आक्रमणों का इस किले ने सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया। इस किले के सबसे प्रसिद्ध शासक राव हम्मीर थे, जिन्होंने 11वीं शताब्दी में शासन किया। कालांतर में यह किला अकबर के नियंत्रण में आ गया। 17वीं शताब्दी में मुगलों ने इस किले को उपहारस्वरूप जयपुर के शासकों को भेंट कर दिया।
इस किले में कई जलाशय, मंदिर एवं मस्जिद हैं। किले की आंतरिक सज्जा अत्यंत दर्शनीय है। इस किले के निर्माण में विज्ञान के जिन नियमों का पालन किया गया है, वे आज के समय के लिए भी अतुलनीय हैं।
इस किले के चारों ओर स्थित जंगल, अब रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में परिवर्तित हो गया है।
रत्नागिरि/पुष्पागिरि
(20.64° उत्तर, 86.33° पूर्व)
रत्नागिरि भुवनेश्वर से लगभग 90 किमी. दूर ओडिशा में स्थित है। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार यहां एक प्रसिद्ध बौद्ध विश्वविद्यालय स्थित था, जिसे ‘पुष्पगिरी‘ के नाम से जाना जाता था। बौद्ध विहारों के ध्वंसावशेष, प्रस्तर स्तंभ एवं बुद्ध की मूर्तियों इत्यादि की प्राप्ति से यह तथ्य पुष्ट होता है कि यह प्राचीन काल में एक समृद्ध बौद्ध स्थल था। यहां दो विशाल बौद्ध मठ भी थे, जो छठी शताब्दी ईस्वी से 12वीं शताब्दी ईस्वी तक फलते-फूलते रहे। उत्खननों से यहां पुरातात्विक महत्व की अनेक वस्तुएं पाई गई हैं। इसमें सम्मिलित हैं-बुद्ध के विभिन्न अवतारों की बड़ी संख्या में प्रस्तर प्रतिमाएं, लोहे की बनी वस्तुएं एवं पत्थर के बने चक्की के पाट। कांसे की कई मूर्तिर्यों एवं अन्य वस्तुओं की प्राप्ति से यह अनुमान लगाया गया है कि रत्नागिरि कांस्य निर्माण का एक प्रमुख केंद्र था। यहां से सेलखड़ी की बनी कई मुहरें एवं पकी हुई ईंटों से बनी कई वस्तुएं मिली हैं। टेराकोटा की इन वस्तुओं की प्राप्ति महत्वपूर्ण है। इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्तु ख्याति प्राप्त श्री रत्नागिरि-महाविहारआर्य-भिक्षु संघस्य के साथ टेराकोटा की मुहरें मिली हैं। यह भी सिद्ध हो चुका है कि नालंदा के समान रत्नागिरि भी बौद्ध शिक्षा का एक प्रसिद्ध केंद्र था, जो पूरे विश्व से हजारों छात्रों को अध्ययन हेतु यहां आकर्षित करता था।
यहां से एक विहार के सुंदर उत्कीर्ण द्वारों एवं अत्यंत सुघड़ बुद्ध की प्रतिमा की प्राप्ति से ये ऐसा अनुमान लगाया गया है रत्नागिरी उत्तरवर्ती गुप्तकाल में बौद्ध वास्तुकला का एक प्रमुख केंद्र था। यहां से प्राप्त स्तूप नवीं सदी का है किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इस स्तूप का निर्माण गुप्तकाल में निर्मित स्तूप के ध्वंसावशेषों पर पुनः किया गया था।
रोहतास (24°37‘ उत्तर, 83°55‘ पूर्व)
बिहार में स्थित रोहतास अपने किले के लिए प्रसिद्ध है। रोहतास का किला अत्यंत सशक्त एवं अभेद्य किला था तथा अपनी स्थिति के कारण इसे अत्यंत सुरक्षात्मक माना जाता था। इस किले के संबंध में एक रोचक तथ्य यह है कि जहां इसे बड़े-बड़े आक्रमणों द्वारा नहीं जीता जा सका, वहीं कपट द्वारा इस पर आसानी से अधिकार कर लिया गया। इस किले के अंदर बनी हुई विभिन्न इमारतें यहां समय-समय पर शासन करने वाले विभिन्न शासकों की सुंदर स्थापत्यकला का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। रोहतास का किला सैन्य स्थापत्यकला का भी एक सुंदर उदाहरण है। सामरिक दृष्टि से यह किला एक पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है तथा इसके चारों ओर दुर्गम खाईयां हैं।
काफी कठिन चढ़ाई के उपरांत ही इस किले तक पहुंचा जा सकता है। प्रवेश द्वारों द्वारा प्रतिषेधित एक दुर्जेय चारदीवारी का घेरा किले की रक्षा करता है। इस किले के अंदर निर्मित कुछ इमारतों में स्थापत्य का इस्लामी प्रभाव है, जो भारतीय-इस्लामी वास्तुकला शैली का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि अन्य इमारतें, जैसे-महल एवं दरबार पर स्थानीय प्रभाव है।
प्रसिद्ध अफगान शासक शेरशाह सूरी ने 1538 में छल द्वारा इस किले पर कब्जा कर लिया। इस समय इस पर एक हिन्दू राजा का अधिकार था। शेरशाह ने इस किले को स्वयं के लिए अत्यंत सौभाग्यशाली माना तथा यहीं से उसकी भारत के सम्राट बनने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। शेरशाह ने इसी नाम का एक अन्य किला भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा में बनवाया, जिससे वह हुमायूं के प्रभाव को रोक सके। कालांतर में मुगलों ने रोहतास को अपना पूर्ण मुख्यालय बनाया। 1621 में, जब शाहजहां अपने पिता के विरुद्ध किए गए विद्रोह में असफल हो गया तो उसने इसी किले में शरण ली। शाहजहां का पुत्र औरंगजेब भी इस किले का प्रयोग बंदियों को रखने के लिए करता था। 1763 ई. में बंगाल एवं बिहार के नवाब मीर कासिम ने भी अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी से पराजित होने के उपरांत इसी किले में प्रश्रय लिया था। यद्यपि अग्रेजी सेनाओं ने शीघ्र ही इस किले से मीर कासिम को गिरफ्तार कर लिया तथा इस किले का अधिकांश भाग नष्ट कर दिया। इसके पश्चात 1857 तक अर्थात लगभग 100 वर्षों तक यह किला इसी स्थिति में रहा। 1857 के विद्रोह में कुंवर सिंह के भाई उमेर सिंह ने इसी किले में शरण ली थी। अंग्रेजों से लंबी लड़ाई के उपरांत अंततः यह किला विद्रोहियों के हाथों से निकल गया। इस प्रकार इस अत्यन्त प्रसिद्ध किले की गाथा समाप्त हो गई।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…