JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: sociology

प्रकार्य की अवधारणा को समझाइए | प्रकार्य की परिभाषा विशेषता सिद्धांत क्या है prakaary kise kahte hai

prakaary kise kahte hai in hindi प्रकार्य की अवधारणा किसने प्रस्तुत की ? प्रकार्य की अवधारणा को समझाइए | प्रकार्य की परिभाषा विशेषता सिद्धांत क्या है ?

 प्रकार्य की अवधारणाएं
‘‘प्रकार्य‘‘ शब्द को समझाना शायद ज्यादा कठिन नहीं है। प्रायः हमें यह तो मालूम ही होता है कि हमारे समाज का काम-काज कैसे चलता है। हमने समाचार पत्र पढ़ा और इससे हमें दुनिया भर की जानकारी मिली। इसी तरह अपने विश्वविद्यालय या अपने कार्यालय जाने के काम हैं – आपको मालूम ही है कि विश्वविद्यालय आपको शिक्षा देता है, ज्ञान देता है और समाज में अपनी भूमिका के लिए आपको तैयार करता है। आपके काम करने की जगह का भी अपना संगठन और काम करने का तरीका है। चुनावों में हमारे मतों से प्रतिनिधि चुने जाते हैं जो हमारे विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे शब्दों में, यह आसानी से समझा जा सकता है कि समाज को बनाने वाले विविध घटक हमें समाज से सकारात्मक तथा रचनात्मक रूप से जोड़ते हैं, चाहे वह अखबार हो, विश्वविद्यालय हो, काम करने का स्थान हो या फिर हमारी लोकतांत्रिक संस्थाएं हों। इस तरह समाज के अंग और सक्रिय सदस्य के रूप में सामाजिक संस्थाएं आपके योगदान को बढ़ाती हैं। इससे समाज आपस में जुड़ा रहता है। सामाजिक संस्थाओं का यही प्रकार्य है कि समाज में एकात्मा बनी रहे।

रॉबर्ट मर्टन के प्रकार्यात्मक विश्लेषण को पढ़ने से पहले ही बिना किसी संशय के यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि समाजशास्त्र की भाषा में प्रकार्य से हमारा मतलब समाज के आपसी जुड़ाव में सामाजिक संस्थाओं अथवा सांस्कृतिक कार्यकलापों की भूमिका से है। दूसरे शब्दों में समाज इसीलिए काम कर पाता है क्योंकि इसको बनाने वाले तत्व यानि सामाजिक संस्थाएं और सांस्कृतिक रीति-रिवाज सामाजिक एकता को बनाए रखने में अपना-अपना योगदान देते हैं। इसी योगदान को प्रकार्य कहते हैं जिससे समाज में व्यवस्था, एकता और जुड़ाव उत्पन्न होते हैं।

कुछ प्रकार्यों के बारे में तो आपको जानकारी होती है और कुछ प्रकार्यों का आपको पता भी नहीं चल पाता। जरा सोचिए कि आपको हर वर्ष परीक्षा देने को क्यों कहा जाता है। आपको मालूम है कि परीक्षाएं आपके ज्ञान की परीक्षा लेने के लिए ली जाती हैं, इससे आपको परिश्रम करने की प्रेरणा मिलती है ताकि आप अपना कौशल और अपनी बुद्धिमता बढ़ाएं जिससे समाज का बेहतर सदस्य बनना सुगम हो। यह निश्चय ही परीक्षाओं का व्यक्त उद्देश्य है जिससे हम परिचित हैं।

लेकिन परीक्षाओं के मात्र यही प्रकार्य नहीं हैं। उनके एक और प्रकार्य से आप अवगत नहीं हैं परीक्षाएं इस तथ्य को पुष्ट करती हैं कि कुछ “अच्छे” और कुछ “कम अच्छे” विद्यार्थी होते हैं। इसका तात्पर्य है कि समाज में हर व्यक्ति समान नहीं है तथा योग्यता, बुद्धि और ज्ञान सब लोगों में बराबर-बराबर नहीं बांटा जा सकता। दूसरे शब्दों में परीक्षाएं आपको यह मानने को प्रेरित करती हैं कि लोकतंत्र में भी किसी न किसी प्रकार का पदक्रम अनिवार्य है। इस तथ्य की स्वीकृति से विवादों की आशंका कम हो जाती है। वास्तव में यह स्वीकृति समाज में सबसे निभाकर चलने का पाठ पढ़ाती है। बड़े-छोटे तथा ज्यादा और कम योग्य होने के इस तथ्य को मान लेने से समाज में अंतर्निहित असमानता और पदक्रम के बावजूद, व्यवस्था, एकता और जुड़ाव बने रहते हैं, यह परीक्षा प्रणाली का अव्यक्त प्रकार्य है। यह परीक्षा का गूढ़ अर्थ है, जिसका हमें हमेशा चेतन रूप से ध्यान नहीं रहता।

इस संक्षिप्त प्रस्तावना में संभवतः प्रकार्यों के व्यक्त तथा अव्यक्त रूप में आपकी रुचि जगी होगी। अब आपको यह जानने की उत्सुकता होगी कि मर्टन ने कैसे प्रकार्यात्मक विश्लेषण को नए तरीके से समझाया। लेकिन इससे पहले आपको प्रकार्य की अवधारणा की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। मर्टन की नजर में हमें इस अवधारणा को विभिन्न परिप्रेक्ष्य में जांचना परखना चाहिए ताकि हमें इसकी विश्लेषणात्मक महत्ता समझ में आ जाए। मर्टन ने 1949 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक सोशल थ्योरी एंड सोशल स्ट्रक्चर में इस अवधारणा को स्पष्ट किया है।

 प्रकार्य शब्द के विभिन्न अर्थ
समाजशास्त्र में ‘‘प्रकार्य‘‘ शब्द का इस्तेमाल करते समय हमें इसके विभिन्न अर्थों की पूरी जानकारी होनी चाहिए। मर्टन के अनुसार “प्रकार्य” अर्थात् “फंक्शन‘‘ शब्द पांच विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है। आइए, पाँचों अर्थों को क्रमशः देखें।

प) ‘‘फंक्शन‘‘ (function) शब्द का पहला अर्थ अंग्रेजी में किसी सार्वजनिक समारोह या खुशी के मौके से है, जिसे आमतौर से रस्म-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। मर्टन ने कहा है और आपको भी स्पष्ट होगा कि “फंक्शन‘‘ शब्द के इस अर्थ का समाजशास्त्रीय अवधारणा से कोई भी संबंध नहीं है।

पप) इस शब्द को अंग्रेजी में पेशे की तरह भी लिया जाता है। लेकिन समाजशास्त्र को इस अर्थ से भी कुछ लेना-देना नहीं है।
पपप) तीसरा “प्रकार्य‘‘ का अर्थ किसी पद पर कार्यरत व्यक्ति को सौंपे गए काम से है, उदाहरण के लिए छोटे बच्चों के स्कूल के किसी अध्यापक का काम बच्चों को पढ़ाना है, डॉक्टर का काम बीमारों का इलाज करना है इत्यादि । मर्टन के अनुसार यह परिभाषा पर्याप्त नहीं है। उनके अनुसार इस परिभाषा से इस बात से ध्यान हट जाता है कि “काम केवल किसी पद पर आसीन व्यक्ति द्वारा ही नहीं किया जाता, बल्कि अनेक सामाजिक काम-काज सामाजिक प्रक्रियाओं, सांस्कृतिक, विन्यासों और विश्वासों द्वारा भी सम्पन्न होते हैं।
पअ) चैथे ‘‘फंक्शन‘‘ शब्द का गणित में अर्थ एक और तरह से लिया जाता है। इसके अनुसार जब राशि ल् का राशि ग् से संबंध एक नियमानुसार निर्धारित हो तो राशि के एक मान के लिए ल् राशि का एक और केवल एक ही मान होता है।
अ) मर्टन का कहना है कि प्रकार्यात्मक विश्लेषण में “फंक्शन‘‘ या प्रकार्य का पांचवा अर्थ जीव-विज्ञान से लिया गया है। जहाँ इसका अर्थ “शरीर को बनाए रखने और उसकी देखरेख में किसी शारीरिक प्रक्रिया के योगदान‘‘ से होता है।
चित्रं 29.1ः जीव विज्ञान से अपनाई गई समाजशास्त्र में प्रकार्य की अवधारणा

सामाजिक नृशास्त्री रैडक्लिफ-ब्राउन ने “प्रकार्य‘‘ शब्द को इसी अर्थ में सामाजिक विज्ञानों में इस्तेमाल करते हुए लिखा है “किसी भी प्रक्रिया के प्रकार्य से हमारा आशय सामाजिक जीवन में उसकी सम्पूर्ण भूमिका से और सामाजिक संरचना को बनाए रखने में उसके योगदान से ह‘‘। नृशास्त्री मलिनॉस्की के अनुसार, सामाजिक और सांस्कृतिक इकाइयों के ‘‘प्रकार्य‘‘ से हमारा तात्पर्य है समग्र सांस्कृतिक प्रणाली में इन इकाइयों की एक दूसरे से संबंद्ध होकर निभायी गई भूमिका। समाजशास्त्र का विद्यार्थी होने के नाते, आपको “प्रकार्य‘‘ के इसी विशेष अर्थ पर विशेष ध्यान देना है और दो बातें याद रखनी हैं

– पहली बात यह है कि समाज अव्यवस्थित और बेतरतीब नहीं होता, इसकी अपनी व्यवस्था और संरचना है। दूसरे शब्दों में राजनीतिक प्रणाली अर्थव्यवस्था, धर्म, परिवार, शिक्षा जैसे समाज के अनेक घटकों को एक दूसरे से अलग करके नहीं देखा जा सकता। सभी घटक एक दूसरे से पूरी तरह जुड़े हैं। अपने विविध अंगों के बीच इसी अंतर्निहित संबंध से ही समाज टिका रहता है।
– दूसरे, इस अंतर्निहित संबंध को सही तरीके से समझने के लिए आपको यह जानना होगा कि किस प्रकार हर घटक इस अंतर्निहित व्यवस्था और संरचना को बनाए रखने में अपना योगदान देता है। यही योगदान या भूमिका उस घटक का “प्रकार्य‘‘ है। इस तरह यह कहा जा सकता है कि शिक्षा का अपना प्रकार्य है क्योंकि शिक्षा का योगदान ज्ञान और कौशल देना है, जिससे समाज प्रगति करता है।

 निष्पक्ष परिणाम (objective consequences) और स्वपरक मनोवृत्तियां (subjective dispositions)
अब मर्टन ने बताया हैः सामाजिक संस्था विशेष या सांस्कृतिक गतिविधि विशेष का क्या कार्य है, यह कौन निर्धारित करेगा – काम करने वाला या उसे देखने वाला? इस प्रश्न का अर्थ उदाहरण से समझें। यदि कोई लड़की विवाह कर रही है और आप पूछे कि वह विवाह क्यों कर रही है? इसका क्या प्रकार्य है? संभव है, वह बताए कि मानवीय आवश्यकताओं और प्रेम की आवश्यकता पूरी करने के लिए विवाह कर रही है। मर्टन के अनुसार इस उत्तर में कर्ता अपने निजी व्यक्तिगत उद्देश्य को विवाह के निष्पक्ष प्रकार्य से अलग करके नहीं समझ पा रही है क्योंकि विवाह अथवा परिवार का निष्पक्ष प्रकार्य प्रेम की पूर्ति नहीं, बल्कि बच्चे का समाजीकरण या उसे समाज के अनुरूप बनाना है।

इसलिए मर्टन के अनुसार, प्रकार्य की धारणा में प्रेक्षक का दृष्टिकोण शामिल है और जरूरी नहीं कि कर्ता का दृष्टिकोण भी उसमें शमिल ही हो। दूसरे शब्दों में सामाजिक प्रकार्य में देखे जा सकने वाले निष्पक्ष परिणामों को ध्यान में रखा जा सकता है, स्वपरक मनोवृत्तियों को नहीं । स्कूल जाने वाली बच्ची यह सोच सकती है कि वह स्कूल इसलिए जाती है कि उसे वहां मित्रों के साथ खेलना-कूदना मिलता है। पर स्कूल का कार्य तो कुछ और ही है। स्कूल का कार्य ज्ञान का विकास है जिसकी समाज को अपने स्थायित्व के लिए जरूरत होती है। इसी बात को इस तरह भी समझा जा सकता है कि सामाजिक संस्था विशेष अथवा सांस्कृतिक गतिविधि विशेष के प्रकार्य को समझने में समाजविज्ञानी के लिए मात्र कर्ता के निजी उद्देश्यों और स्वपरक मनोवृत्तियों से ही संतुष्ट हो जाना काफी नहीं है। समाजविज्ञानी को प्रकार्य के निष्पक्ष परिणामों का अध्ययन करना होगा अर्थात् यह देखना होगा कि इस संस्था विशेष का समाज को जोड़े रखने में क्या योगदान है।

 प्रकार्य, दुष्प्रकार्य (dysfunction), व्यक्त और अव्यक्त प्रकार्य
यह आपको स्पष्ट हो गया होगा कि प्रकार्य ऐसे देखे जा सकने वाले (observable) परिणाम हैं जिनसे व्यवस्था विशेष के अनुरूप ढलने में मदद मिलती है। लेकिन हर बार प्रकार्यों के ऐसे परिणाम नहीं होते। हर प्रकार्य से प्रणाली विशेष के अनुरूप ढलने में मदद नहीं मिलती। इसलिए मर्टन एक अन्य शब्द दुष्प्रकार्य (डिस्फंक्शन)का इस्तेमाल करता है। उसके अनुसार, दुष्प्रकार्य ऐसे देखे जा सकने वाले (observable) परिणाम हैं जो व्यवस्था के अनुरूप ढलने या उनके अनुकूल होने के बाधक होते हैं।

हम अपने समाज की ही कल्पना करें। हमें यह तो मान्य होगा ही कि आधुनिक भारत में गतिशील लोकतांत्रिक, सबकी भागीदारी वाली और समतामूलक व्यवस्था आए । लेकिन हमारे समाज में जाति व्यवस्था का प्रकार्य इन उद्देश्यों को बल देना नहीं है उल्टे इसका हमारे सामाजिक उद्देश्यों पर प्रतिकूल असर पड़ता है, जाति प्रणाली दुष्प्रकार्य पैदा करती है। क्योंकि लोकतांत्रिक आदर्शों को मजबूत बनाने के बजाए वह गतिशीलता, लोकतंत्रीकरण और भागीदारी को कम करती है। इसलिए जाति प्रणाली को दुष्प्रकार्यात्मक माना जाता है। (यही कारण है कि जाति के आधार पर भेद-भाव करना भारत में कानून की दृष्टि में अपराध है।)

आइए, अब हम व्यक्त तथा अव्यक्त प्रकार्यों की चर्चा करें। प्रकार्य चाहे. व्यक्त हो चाहे अव्यक्त, इसके निष्पक्ष और देखे जा सकने वाले (observable) परिणामों से ही व्यवस्था के अनुकूल ढलने में मदद मिलती हैं। दोनों तरह के प्रकार्यों के बीच केवल एक अंतर है जिसे मर्टन ने बड़े स्पष्ट तरीके से बताया कि व्यक्त प्रकार्य में कार्य करने वालों को यह पता होता है और अव्यक्त प्रकार्य में उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती। दूसरे शब्दों में, अव्यक्त प्रकार्य करने का न तो कर्ता का इरादा होता है, न इसके परिणाम का उसे पता चलता है।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कार्य कर रहे लोग ऐसे परिणामों को देख सकते हैं जो तुरंत नजर आएं। वे हमेशा अपने कार्यों के गहरे और छिपे हुए अर्थों को नहीं देख पाते लेकिन, आम लोगों को नजर आने वाले अर्थ से आगे बढ़कर सामाजिक कार्यकलापों के छिपे हुए अर्थ की समाज विज्ञानियों को तलाश होती है।

उदाहरण के लिए एमिल दर्खाइम का दंड के सामाजिक प्रकार्यों का विश्लेषण महत्वपूर्ण है। दंड का व्यक्त और सीधा प्रकार्य स्पष्ट है। हर व्यक्ति इसे जानता है। यह अपराधी को याद दिलाता है कि समाज उसे असामाजिक व्यवहार या विचलन (deviance) की इजाजत नहीं देगा। लेकिन इसका छिपा हुआ अव्यक्त प्रकार्य आमतौर से लोगों को पता नहीं चल पाता। दर्खाइम का कहना है कि अपराधी को दंड दिए जाने से कहीं गहरा अर्थ यह है कि दंड व्यवस्था से समाज की अपने सामूहिक विवेक पर आस्था मजबूत होती है। अपराधी को दंड दिए जाने से समाज की अपनी ताकत को सामूहिक एकता (collective conscience) का अहसास होता रहता है।

अगले भाग पर जाने से पहले बोध प्रश्न 1 को पूरा करें।

बोध प्रश्न 1
प) समाजशास्त्री ‘‘प्रकार्य‘‘ शब्द का किस अर्थ में इस्तेमाल करते हैं? लगभग आठ पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
पप) व्यक्त और अव्यक्त प्रकार्यों में क्या अंतर हैं? लगभग तीन पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
पपप) “दुष्प्रकार्य‘‘ का कोई सरल उदाहरण दीजिए। करीब तीन पंक्तियों में उत्तर दीजिए।

बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) समाजशास्त्री ‘‘फंक्शन‘‘ या ‘‘प्रकार्य‘‘ शब्द का इस्तेमाल किसी सामाजिक संस्था या सांस्कृतिक गतिविधि के सामाजिक व्यवस्था, एकता और जुड़ाव को बनाये रखने में योगदान के अर्थ में करते हैं। साथ ही व्यक्ति विशेष की सामाजिक संस्था विशेष के “प्रकार्य‘‘ के बारे में जो व्यक्तिगत राय है, उससे समाजशास्त्री भ्रमित नहीं होते। सामाजिक संस्था के “प्रकार्य‘‘ के देखे जा सकने वाले निष्पक्ष परिणामों के आधार पर उसके बारे में उनके द्वारा निर्णय लिये जाते हैं और देखा जाता है कि सामाजिक संस्था या प्रक्रिया विशेष समाज की व्यवस्था और जुड़ाव को बनाए रखने में वास्तव में क्या योगदान देती है।
पप) सामाजिक प्रक्रिया या संस्था से जुड़ा कर्ता इनके व्यक्त प्रकार्य को तो जानता है परं अव्यक्त प्रकार्य की उसे विशेष समझ नहीं होती। व्यक्त प्रकार्य तो तुरंत नजर आता है पर अव्यक्त प्रकार्य छिपा हुआ होता है, जिसका विश्लेषण समाजशास्त्री करते हैं।
पपप) दुष्प्रकार्य समाज में व्यवस्था और एकता लाने की बजाए, अव्यवस्था और अराजकता लाते हैं। जैसे, जाति-प्रथा का प्रकार्य है क्योंकि यह लोगों में परस्पर सहयोग बढ़ाने और समतामूलक लोकतंत्र बनाने में बाधक है।

Sbistudy

Recent Posts

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

2 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

4 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

7 days ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

7 days ago

elastic collision of two particles in hindi definition formula दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है

दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है elastic collision of two particles in hindi definition…

7 days ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now