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Categories: Biology

पिंजरा प्रणाली के द्वारा मुर्गी पालन (poultry cage system) , कुक्कुड आहार , मुर्गी पालन के रोग , मुर्गी प्रजातियाँ

(poultry cage system in hindi) पिंजरा प्रणाली के द्वारा मुर्गी पालन :

सामान्यतया व्यवसायिक स्तर पर मुर्गी पालन हेतु पिंजरा तथा deep litter system का उपयोग किया जाता है।

वर्तमान समय में मुर्गी पालन हेतु पिन्जरा प्रणाली का अधिक उपयोग किया जा रहा है क्योंकि इसके उपयोग से निम्न लाभ होते है –

  • उपरोक्त प्रणाली के अपनाए जाने पर एक स्थान पर अधिक संख्या में मुर्गियों को पाला जा सकता है जैसे यदि deep litter system के द्वारा एक स्थान पर एक हजार मुर्गियां पाली जा सकती है तो उसी स्थान पर पिंजरा प्रणाली के द्वारा 2 से 2.5 हजार मुर्गियां पाली जा सकती है।
  • इस प्रणाली के अपनाए जाने पर सामान्यत: मुर्गियां पिंजरे में रहती है जिसके कारण इन्हें कुछ विशिष्ट संक्रमित रोगों से बचाया जा सकता है।
  • मुर्गी पालन के अंतर्गत इस प्रणाली के द्वारा पाली जाने वाली मुर्गियाँ दूसरी प्रणाली के तुलना में कम मात्रा में आहार का उपयोग करती है जो आर्थिक रूप से लाभदायक है।
  • इस प्रणाली में मुर्गियों की देखभाल अन्य प्रणाली की तुलना में अधिक सुचारू रूप से की जा सकती है तथा एक निश्चित स्थान पर मुर्गियों के रहने के कारण उनके द्वारा अधिक संख्या में अंडे उत्पन्न किये जाते है।
  • मुर्गी पालन में इस प्रणाली को अपनाने पर एक व्यक्ति के द्वारा अधिक संख्या में मुर्गियों की देखभाल की जा सकती है जो पुनः आर्थिक रूप से लाभदायक होता है।

पिंजरा प्रणाली की प्रबंधन व्यवस्था

मुर्गी पालन हेतु पिंजरा प्रणाली अपनाये जाने पर निम्न व्यवस्थाओ को सुचारू रूप से व्यवस्थित किया जाना चाहिए।

1. आहार व्यवस्था : मुर्गी पालन के अन्तर्गत अपनाई जाने वाली पिंजरे प्रणाली में आहार की व्यवस्था सुचारू रूप से होनी चाहिए क्योंकि यदि आहार की व्यवस्था में एक घंटे की देरी भी हो तो इसके परिणाम स्वरूप अंडो का उत्पादन कम होता है अत: इस प्रणाली के अन्तर्गत कम से कम तीन समय मुर्गियों को आहार प्रदान किया जाना चाहिए।  [प्रात: , दोपहर तथा सायकाल]

नोट : पिंजरे प्रणाली के अंतर्गत मुर्गियों को आहार सप्लाई की जाने वाली आहार नलिका को नियमित रूप से साफ़ किया जाना चाहिए।

2. जल व्यवस्था : इस प्रणाली के अंतर्गत निरंतर ठण्डा , स्वच्छ जल मुर्गियों के लिए उपलब्ध होना चाहिए तथा जिस बर्तन या नाली में जल रखे उसकी नियमित साफ़ सफाई की जानी चाहिए।

3. मुर्गी खाद व्यवस्था : मुर्गी पालन की इस प्रणाली में बंद क्षेत्रफल तथा कम क्षेत्रफल होने के कारण अत्यधिक कम समय में मुर्गियों की बीट एकत्रित होने लगती है , इससे तीव्र गंध उत्पन्न होती है अत: मुर्गियों के पिंजरों में नियमित रूप से साफ़ सफाई की जानी चाहिए।

4. प्रकाश व्यवस्था : इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रकाश की सुचारू व्यवस्था होनी चाहिए ताकि मुर्गियों के द्वारा आहार सुगमता से ग्रहण किया जा सके तथा मुर्गियों के उत्पादन में प्रकाश का वांछनीय प्रभाव।

5. अंडा एकत्रण : इस प्रणाली के अन्तर्गत एक दिन में तीन बार अंडे एकत्रित किये जाने चाहिए।

6. भवन निर्माण : इस प्रणाली के अंतर्गत यदि पिंजरा व्यवस्था को दो मंजिला निर्मित किया जा रहा है तो भवन की ऊंचाई कम से कम 12 फीट हो वही तीन मंजिला निर्मित किये जाने पर भवन की ऊंचाई कम से कम 14 फीट होनी चाहिए।

यदि भवन को छोपड़ी नुमा निर्मित किया जा रहा है तो भवन की ऊँचाई औसतन 9 से 10 फीट होनी चाहिए।

नोट : पिंजरे प्रणाली को शुष्क स्थान पर निर्मित किया जाना चाहिए क्योंकि नमी वाले स्थान पर मुर्गियों का उत्सर्जी पदार्थ या बीट उपयुक्त समय पर नहीं सूखती है जिसके फलस्वरूप अधिक संख्या में कीड़े मकोड़े उत्पन्न होते है।

कुक्कुड आहार

कुक्कुट पालन के अंतर्गत पक्षियों को दिया जाने वाला भोजन कुक्कुट आहार के नाम से जाना जाता है।
कुक्कुट पालन के अन्तर्गत कुक्कुट आहार को निम्न बातो के ध्यान में रखते हुए बनाया जाना चाहिए –
(A) कुक्कुट आहार के द्वारा पूर्ण रूप से पोषण प्रदान किया जाना चाहिए।
(B) कुक्कुट आहार के उपयोग के फलस्वरूप मुर्गियों के शरीर की वृद्धि मोटापे तथा अन्डो के उत्पादन पर धनात्मक प्रभाव पड़ना चाहिए।
(C) कुक्कुट आहार के उपयोग से मुर्गियों को एच्छिक तथा अनैच्छिक कार्यो हेतु ऊर्जा प्रदान की जानी चाहिए।

कुक्कुट आहार के अन्तर्गत उपयोग किये जाने वाले विभिन्न स्रोत

1. कार्बोहाइड्रेट आहार : इस प्रकार के आहार के द्वारा कुक्कुट आहार के 70 से 80% भाग का निर्माण किया जाता है।
कार्बोहाइड्रेट आहार के द्वारा ऊर्जा तथा वसा प्रदान की जाती है।
इस प्रकार के आहार सुगमता से उपलब्ध होते है तथा सस्ते होते है।
कार्बोहाइड्रेट आहार के अंतर्गत उपयोग किये जाने वाले पदार्थ निम्न है –
(i) मक्का : कार्बोहाइड्रेट आहार के रूप में इसे सर्वाधिक मात्रा में उपयोग किया जाता है।
यह स्टार्च है तथा वसा का एक उत्तम स्रोत होता है।
(ii) गेहूँ : मक्का के पश्चात् दुसरे पदार्थ के रूप में गेहूं का उपयोग किया जाता है , इसमें कैल्सियम कम मात्रा में पायी जाती है परन्तु फास्फोरस अधिक मात्रा में पाई जाती है।
गेहुं विटामिन B तथा E का एक उत्तम स्रोत है।
मुर्गियों के लिए इसे विभिन्न रूप से आहार के रूप में उपयोग किया जाता है जैसे – गेहूँ की चपाती।
(iii) जई (Oat) : कार्बोहाइड्रेट आहार के रूप में इसे उपयोग किये जाने पर इसमें 12% प्रोटीन , 10.6% फाइबर तथा 4.7% फैट पाया जाता है। इसे मुर्गी के आहार हेतु दलिए के रूप में पीसकर उपयोग किया जाता है।
(iv) जौ : कार्बोहाइड्रेट आहार के रूप में जौ को जई की तरह ही उपयोग किया जाता है।
(v) ज्वार : ज्वार का दाना मक्का के समान होता है परन्तु इसे विटामिन A नहीं पाया जाता है तथा इसका उपयोग तभी प्रभावी है जब यह अनाज , मक्का , गेहूँ या जई से सस्ता हो।
(vi) चावल : अन्य अनाजो के समान इसे भी मुर्गी के आहार के रूप में उपयोग किया जा सकता है परन्तु उपरोक्त सभी अनाजो से महंगा होने के कारण इसे सामान्यत: उपयोग नहीं किया जाता है।
(vii) राब (Molases) : शर्करा के उत्पादन में शेष बचा हुआ गन्ने का भाग राब कहलाता है जिसे कुक्कुट आहार के रूप में 5% से 10% भाग में उपयोग किया जा सकता है।
(viii) आलू : आलू स्टार्च का एक उत्तम स्रोत है तथा ऐसे आलू जो मानव के लिए अनुपयोगी हो उन्हें उबालकर मुर्गी आहार के रूप में उपयोग किया जाता है।
2.  फैट आहार : fat ऊर्जा का एक मुख्य स्रोत है तथा मुर्गी पालन के अंतर्गत इसे 2 से 5% के रूप में उपयोग किया जाता है।
कुक्कुट आहार के रूप में फैट के उपयोग से मुर्गियों के आकार में सुधार होता है तथा भूख में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप मुर्गियों के द्वारा पर्याप्त मात्रा में आहार लिया जाता है तथा इसके फलस्वरूप अंडो व मांस उत्पादन में वृद्धि होती है।
फैट आहार के रूप में पाए जाने वाले मुख्य स्रोत निम्न है –
(A) सोयाबीन का तेल (B) मूंगफली का तेल
(C) बिनौली का तेल    (D) मक्का का तेल
(E) पशुओ की चर्बी    (F) जमाये गए तेल / वनस्पति तेल
(G) wheat germ oil
3.  प्रोटीन आहार : मुर्गी पालन के अंतर्गत उपयोग किये जाने वाले कुक्कुट आहार का सबसे अधिक मूल्यवान आहार प्रोटीन आहार है क्योंकि मुर्गियों के शरीर के विकास हेतु तथा अंडो के उत्पादन हेतु यह आहार अत्यंत आवश्यक है।
प्रोटीन आहार सामान्यत: दो रूपों में प्रयोग किया जा सकता है –
(A) जान्तव प्रोटीन आहार : इस प्रकार के प्रोटीन आहार के स्रोत के अंतर्गत दूध मांस के टुकड़े तथा मछली आदि का उपयोग किया जाता है।  इनमे प्रोटीन के अतिरिक्त खनिज तत्व तथा विटामिन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है।
(B) शाकीय प्रोटीन आहार : प्रोटीन आहार का ऐसा स्रोत पादपो से प्राप्त किया जाता है जैसे सोयाबीन का तेल , मूंगफली , अलसी तथा कपास की खली , इसके अतिरिक्त Cornglutin तेल भी उपयोग किया जा सकता है।
(C) दूध : यह प्रोटीन का एक उत्तम स्रोत है परन्तु महंगा होने के कारण इसका उपयोग नहीं किया जाता है।
(D) मीट के टुकड़े : मुर्गी पालन के अंतर्गत इन्हें खनिज तथा प्रोटीन के स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है।
(E) Feather meal : मुर्गी आहार के अन्तर्गत उपयोग किये जाने वाले इस स्रोत में 86% से 88% प्रोटीन पाया जाता है परन्तु इसमें आवश्यक एमिनो अम्ल अनुपस्थित होने के कारण इसे मुर्गी आहार में केवल 10-20% तक ही मिलाते है।
(F) Poiltry blood meal : इसमें सामान्यत: 65% तक प्रोटीन पाया जाता है अत: इसे प्रोटीन के अन्य स्रोत अनुपलब्ध होने पर उपयोग किया जाता है।
(G) सोयाबीन oil meal : प्रोटिन आहार के रूप में इसका उपयोग ऐसे स्थानों पर किया जाता है जहाँ सोयाबीन अत्यधिक मात्रा में उत्पन्न की जाती है परन्तु भारत में मुख्य रूप से प्रोटीन के स्रोत के रूप में मूंगफली की खली का उपयोग किया जाता है परन्तु वर्तमान समय में सोयाबीन का भी उपयोग किया जाता है।
4.  खनिज आहार : मुर्गी आहार के अंतर्गत सम्मिलित किये जाने वाले खनिज आहार निम्न प्रकार से है –
(i) कैल्सियम (Ca) : कैल्सियम हेतु मुख्यतः चूने का उपयोग किया जाता है जिसे रासायनिक रूप से कैल्सियम कार्बोनेट के नाम से जाना जाता है।  इसके अतिरिक्त Ca के स्रोत के रूप में मार्बल चिप्स , अन्डो का बाह्य आवरण तथा OOyster shell का उपयोग किया जा सकता है।
(ii) फास्फोरस (P) : सामान्यत: हड्डियों का चूर्ण या bone meal फास्फोरस के स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है जो रासायनिक रूप से ट्राई कैल्सियम फोस्फेट इससे फास्फोरस प्राप्त किया जाता है।
(iii) मैगनीज : कुक्कुट आहार में इसे 50 पीपीएम के रूप में उपयोग किया जाता है , यह मुख्यतः मुर्गियों की हड्डियों के बनावट हेतु तथा अंडो के स्फुटन हेतु आवश्यक होता है।
(iv) नमक (salt) : कुक्कुट आहार में इसे 0.5% के रूप में मिलाया जाता है।  रासायनिक रूप से इसे सोडियम क्लोराइड के नाम से जाना जाता है।  इसका उपयोग प्रमुखत: आहार का स्वाद बढ़ाने हेतु तथा आहार की पाचन शक्ति में वृद्धि करने हेतु उपयोग किया जाता है।
इसके उपयोग से मुर्गियों के शरीर में आयरन तथा आयोडीन की कमी की पूर्ती होती है।

मुर्गी पालन के अन्तर्गत मुर्गियों में पाए जाने वाले कुछ सामान्य रोग

(1) विषाणु जनित रोग : मुर्गी पालन के अंतर्गत मुर्गियों में पाए जाने वाले कुछ विषाणु जनित रोग निम्न प्रकार से है –
(a) चेचक (fowlpox)
(b) संक्रामक Bronchitis
(c) रानीखेत बीमारी
(d) leu kania leucosies
उपरोक्त विषाणु जनित रोगों में सबसे सामान्य रोग रानी खेत है।
इस रोग के अन्तर्गत अधिक संक्रमण होने पर कुक्कुट की चोच से अत्यधिक लार का स्त्रवण होता है।  इसके अतिरिक्त ऐसे कुक्कुटो में पंखो का लखवा तथा गोल गोल चक्कर काटने के लक्षण उत्पन्न होते है।
(2) जीवाणु जनित रोग : मुर्गी पालन के अंतर्गत मुर्गियों में उत्पन्न होने वाले कुछ जीवाणु जनित रोग निम्न प्रकार से है –
(a) foul cholera
(b) coryza
(c) पुलोरम
(d) Mucoplasmosis
(d) spirochaetosis
(3) कवक जनित रोग : मुर्गी पालन के अन्तर्गत मुर्गीयों में उत्पन्न होने वाले कुछ प्रमुख कवक जनित रोग निम्न है –
(a) Affltoxicosis
(b) Brooder’s pheumonia
(c) Aspergillosis
नोट : मुर्गी पालन के अन्तर्गत यदि अधिक उम्र का कुक्कुट किसी रोग से ग्रस्त होता है तो उसे मारकर जमीन के नीचे गाढ़ देना चाहिए ताकि अन्य कुक्कुटो को संक्रमण से बचाया जा सके।
कुक्कुट पालन के अंतर्गत इस व्यवसाय को अपनाने वाले व्यक्ति को उपरोक्त पालन का सम्पूर्ण ज्ञान होना चाहिए तथा कुक्कुटों में उत्पन्न होने वाले रोगों की जानकारी होनी चाहिए ताकि कुक्कुट व कुक्कुट उत्पाद को उपयोग करने वाले उपयोगकर्ताओं के स्वास्थ्य पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव न पड़े।

कुक्कुट पालन में उपयोग पक्षी

कुक्कुट पालन के अंतर्गत पक्षियों की कई प्रजातियों को पाला जाता है।  इनमे से कुछ प्रमुख प्रजातियाँ निम्न प्रकार से है –

(1) मुर्गी प्रजातियाँ

भारत में सामान्यत: घरेलु मुर्गी या Gallus domesticus को पाला जाता है।
व्यावसायिक स्तर पर सामान्यत: मुर्गियों की दो प्रजातियाँ पाली जाती है –
(i) पारम्परिक या देशी नस्ल : इसके अंतर्गत मुख्यतः निम्न नस्लों को पाला जाता है –
(A) असील   (B) ककरनाथ
(C) बह्मा      (d) बसरा
(E) chittgong
मुर्गो की लड़ाई के अन्तर्गत असील प्रजाति को गेम बर्ड के रूप में पाला जाता है।  इसके अतिरिक्त घैगस नामक नस्ल को मुख्य रूप से घरेलु कुक्कुट के रूप में पाला जाता है।
(ii) विदेशी नस्ले : विदेशी नस्लों के अन्तर्गत यूरोपियन नस्ले पाली जाती है , कुछ प्रमुख निम्न है –
(A) white leg-hom
(B) Plymoth rock
(C) Rhode island redle
(D) new nempshire

2. बतखों की प्रजातियाँ

कुक्कुट पालन के अंतर्गत लगभग 6% बतखे पाली जाती है जिनमे से पाली जाने वाली कुछ प्रमुख देशी नस्ले निम्न प्रकार से है –
(A) भारतीय रनर   (B) सिंह लेट मेटा
(C) नागेश्वरी
देशी नस्लों के अतिरिक्त पाली जाने वाली कुछ विदेशी नस्ल निम्न है –
(A) मस्कोरी   (B) Penkin
(C) Aylesbury  (D) Camp bell
नोट : बतख का zoological name – Anus platy ehyncus है।

3. टर्की

कुक्कुट पालन के अंतर्गत मुख्यतः मांस पालन हेतु उपरोक्त पक्षी को पाला जाता है तथा इस पक्षी को कुछ वर्षो पूर्व ही पालतू पक्षी के रूप में उपयोग किया जाने लगा है।
इसकी पाली जाने वाली कुछ प्रमुख प्रजातियाँ निम्न प्रकार से है –
(A) Meleagris  (B) Narfold
(C) british white   (D) broad Breasted Bronze
(E) Beltsville small white
नोट : turkey का zoological name – meleagris gallopavo है।
Sbistudy

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