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प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत क्या है , प्लेट विवर्तनिक का सिद्धान्त किसने दिया plate tectonics theory in hindi
plate tectonics theory in hindi , plate tectonics theory given by प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत क्या है , प्लेट विवर्तनिकी का सिद्धांत किसने दिया :-
पृथ्वी से सम्बन्धित सिद्धान्त (theories related to earth in hindi) :
1. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत : यह सिद्धांत सन 1912 में अल्फ्रेड वेगनर द्वारा दिया गया था।
वेगनर जर्मन मौसम वैज्ञानिक थे , जिन्होंने अध्ययन द्वारा यह प्रमाणित किया कि पहले सभी महाद्वीप एक बड़े भू-भाग का हिस्सा थे जिसे पेंजिया कहते है।
पेन्जिया एक विशाल महासागर से घिरा था जिसे पेंथालास कहते है।
कालांतर में पेंजिया दो भागो में विभक्त हो गया इसके उत्तरी भाग को अंगारालैण्ड या लोरेशिया कहा जाता है।
जिससे उत्तरी गोलार्द्ध के इस द्वीपों का निर्माण हुआ। इसके दक्षिणी भाग को गोंडवाना लैंड कहा जाता है। जिससे दक्षिणी गोलार्द्ध के महाद्वीपों का निर्माण हुआ , दोनों भू भागों के बीच टेथिस सागर था।
वेगनर महाद्वीपों के विस्थापन के पीछे प्रमुख कारण को समझा नहीं पाए इसलिए नए सिद्धांत दिए गए।
2. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त : यह सिद्धांत सन 1960 के दशक में दिया गया था , यह सिद्धांत प्लेटों के निर्माण , विकास तथा उनकी गति के कारण होने वाली भू आकृतिक परिघटनाओ को वैज्ञानिक रूप से समझाता है।
जैसे : भूकम्प , ज्वालामुखी , महाद्वीपों का विस्थापन तथा वलित पर्वत निर्माण आदि।
इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का स्थल मंडल विभिन्न भागों में बंटा है जिन्हें प्लेट कहा जाता है।
पृथ्वी पर सात प्रमुख तथा 20 लघु स्थल मंडलीय प्लेटे पाई जाती है।
प्रमुख प्लेटे :
1. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत : यह सिद्धांत सन 1912 में अल्फ्रेड वेगनर द्वारा दिया गया था।
वेगनर जर्मन मौसम वैज्ञानिक थे , जिन्होंने अध्ययन द्वारा यह प्रमाणित किया कि पहले सभी महाद्वीप एक बड़े भू-भाग का हिस्सा थे जिसे पेंजिया कहते है।
पेन्जिया एक विशाल महासागर से घिरा था जिसे पेंथालास कहते है।
कालांतर में पेंजिया दो भागो में विभक्त हो गया इसके उत्तरी भाग को अंगारालैण्ड या लोरेशिया कहा जाता है।
जिससे उत्तरी गोलार्द्ध के इस द्वीपों का निर्माण हुआ। इसके दक्षिणी भाग को गोंडवाना लैंड कहा जाता है। जिससे दक्षिणी गोलार्द्ध के महाद्वीपों का निर्माण हुआ , दोनों भू भागों के बीच टेथिस सागर था।
वेगनर महाद्वीपों के विस्थापन के पीछे प्रमुख कारण को समझा नहीं पाए इसलिए नए सिद्धांत दिए गए।
2. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त : यह सिद्धांत सन 1960 के दशक में दिया गया था , यह सिद्धांत प्लेटों के निर्माण , विकास तथा उनकी गति के कारण होने वाली भू आकृतिक परिघटनाओ को वैज्ञानिक रूप से समझाता है।
जैसे : भूकम्प , ज्वालामुखी , महाद्वीपों का विस्थापन तथा वलित पर्वत निर्माण आदि।
इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का स्थल मंडल विभिन्न भागों में बंटा है जिन्हें प्लेट कहा जाता है।
पृथ्वी पर सात प्रमुख तथा 20 लघु स्थल मंडलीय प्लेटे पाई जाती है।
प्रमुख प्लेटे :
- उत्तरी अमेरिकी प्लेट
- दक्षिण अमेरिकी प्लेट
- अफ्रीकन प्लेट
- यूरेशियन प्लेट
- इंडो ऑस्ट्रेलियन प्लेट
- अंटार्कटिक प्लेट
- प्रशांत महासागरीय प्लेट
लघु प्लेटे :
- जॉन डी फ्यूका प्लेट
- कोकोस प्लेट
- नाजका प्लेट
- सोमाली प्लेट
- अरब प्लेट
- बर्मा प्लेट
- सुंडा प्लेट
- फिलीपींस प्लेट
इन धाराओ के कारण प्लेटो पर बल लगता है तथा वे गति करती है। प्लेटों की गति के कारण प्लेट किनारों पर विभिन्न भू आकृतिक परिघटनाए घटती है अत: इस सिद्धांत के अंतर्गत मुख्यतः प्लेट किनारों का अध्ययन किया जाता है।
प्लेटों की गति के आधार पर प्लेट किनारे तीन प्रकार के होते है –
- अपसारी प्लेट किनारे
- अभिसारी प्लेट किनारे
- संरक्षित प्लेट किनारे
1. अभिसारी प्लेट किनारे (convergent plate boundary ) :
हल्की प्लेट – ग्रेनाईट से बनी महाद्वीपीय प्लेट
भारी प्लेट – बसाल्ट से बनी महासागरीय प्लेट
इन प्लेट किनारों पर दो प्लेटो का अभिसरण होता है। दोनों में से भारी प्लेट धँस जाती है जिस क्षेत्र में प्लेट धंसती है उसे बेनिओफ़ जोन कहते है।
धंसने वाली प्लेट पिघलकर नष्ट हो जाती है अत: इन प्लेट किनारों को विशानात्मक प्लेट किनारे कहते है।
इन प्लेट किनारों पर उच्च तीव्रता के भूकंप विस्फोटक ज्वालामुखी उद्भव तथा वलित पर्वत निर्माण आदि होता है , प्लेटो की प्रकृति के आधार पर अभिसारी प्लेट किनारे 3 प्रकार के होते है –
1. महाद्वीपीय-महाद्वीपीय प्लेट किनारे
2. महाद्वीपीय – महासागरीय प्लेट किनारे
3. महासागरीय – महासागरीय प्लेट किनारे
1. महाद्वीपीय-महाद्वीपीय प्लेट किनारे : इन प्लेट किनारों पर दो महाद्वीपीय प्लेटों का अभिसरण होता है , इससे इन प्लेट किनारों पर उच्च तीव्रता के भूकंप , विस्फोट ज्वालामुखी उद्भव व वलित पर्वत निर्माण होता है , परन्तु ज्वालामुखी उद्भव तभी होता है जब दोनों प्लेटों के बीच कोई जल स्रोत हो।
उदाहरण :
- यूरेशियन – इन्डो ऑस्ट्रेलियन
हिमालय पर्वत
- यूरेशियन – अफ्रीकन प्लेट
आल्पस पर्वत
ज्वालामुखी चोटियाँ : स्ट्रौम्बोली , विसुवियस , एटना
2. महाद्वीपीय – महासागरीय प्लेट किनारे : इन प्लेट किनारों पर एक महाद्वीपीय प्लेट का अभिसरण महासागरीय प्लेट से होता है। महासागरीय प्लेट भारी होने के कारण धँस जाती है। अत: इन प्लेट किनारों पर उच्च तीव्रता के भूकम्प , विस्फोटक ज्वालामुखी उद्भव तथा महासागरीय गर्त एवं वलय/वलित पर्वत का निर्माण होता है।
उदाहरण :
- उत्तरी अमेरिकी प्लेट – पेसिफिक (प्रशांत) महासागर प्लेट
- रॉकी पर्वत
- ज्वालामुखी : हुड , रेनियर , शास्ता
2. दक्षिणी अमेरिका प्लेट – नाजका प्लेट
- एंडीज पर्वत
- ज्वालामुखी : चोटियाँ – कोटोपैक्सी , चिम्बरोजी , अंकोका गुआ (दक्षिण अमेरिका की सबसे ऊँची चोटी)
3. महासागरीय – महासागरीय प्लेट किनारे : इन प्लेट किनारों पर दो महासागरीय प्लेटो का अभिसरण होता है अत: इन प्लेट किनारों पर उच्च तीव्रता के भूकंप , विस्फोटक ज्वालामुखी उद्भव तथा गहरी गर्त बनती है एवं द्वीपीय चापो का निर्माण होता है।
उदाहरण : प्रशांत महासागरीय प्लेट – फिलीपींस प्लेट
- गर्त – मरियाना गर्त
2. अपसारी प्लेट किनारे : इन प्लेट किनारों पर दो प्लेटे एक दुसरे की विपरीत दिशा में गति करती है। प्लेटों के अपसरण के कारण महाद्वीपीय क्षेत्रो में भ्रंश घाटी का निर्माण होता है।
उदाहरण : पूर्वी अफ़्रीकी भ्रंश घाटी।
इन प्लेट किनारों पर मध्यम से निम्न तीव्रता के भूकंप तथा ज्वालामुखी उद्भव होता है। ज्वालामुखी उद्भव से निकलने वाले लावा के जमने से इन प्लेटो के बीच नयी क्रस्ट का निर्माण होता है। इसलिए इन प्लेट किनारों को रचनात्मक प्लेट किनारे भी कहते है।
महासागरीय क्षेत्रो में इन प्लेट किनारों पर महासागरीय कटक का निर्माण होता है।
उदाहरण : मध्य अटलांटिक कटक
जो विश्व की सबसे लम्बी कटक है।
3. संरक्षित प्लेट किनारे : इन प्लेट किनारों पर दो प्लेटे एक दूसरे के समान्तर चलती है अत: इन प्लेट किनारों पर रूपान्तर भ्रंश का निर्माण होता है। इन प्लेट किनारों पर मध्यम से निम्न तीव्रता के भूकम्प आते है लेकिन कोई ज्वालामुखी उद्भव नहीं होते है।
उदाहरण : उत्तरी अमेरिकी प्लेट – जॉन डी फ्युका प्लेट
से सान एंड्रियास भ्रंश (कैलीफोर्निया)
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