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पिछवाईयाँ किसे कहते हैं | पिछवाई कला किससे संबंधित है | pichwai painting in hindi अर्थ मतलब
pichwai painting in hindi पिछवाईयाँ किसे कहते हैं | पिछवाई कला किससे संबंधित है | अर्थ मतलब क्या है ?
ललित कलाएं
अतिलघउत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: पिछवाइयाँ
उत्तर: वैष्णव मंदिरों में देवी-देवताओं की मूर्तियों विशेषकर श्रीनाथजी की पृष्ठभूमि में सज्जा हेतु बड़े आकार के पर्दे पर गया चित्रांकन पिछवाईयाँ कहलाती हैं। नाथद्वारा की पिछवाईयाँ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न: माण्डणा
उत्तर: माण्डणा राजस्थान की प्रसिद्ध लोक चित्रकला है जिसमें महिलाओं द्वारा घरों में खडिया, गेरू आदि रंगों से विभिन्न ज्यामितीय अलंकरण बनाये जाते हैं। यह राजस्थान की पहचान बनकर उभरा है।
प्रश्न: रंगमहल
उत्तर: बूंदी के महाराव छत्रशाल द्वारा निर्मित रंगमहल अपने भित्ति चित्रण के लिए जगत प्रसिद्ध है जिसमें राजस्थानी शैली का पूर्ण विकास स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।
प्रश्न: फड़ चित्रण
उत्तर: रेजी अथवा खादी के कपडे पर लोक देवी-देवताओं की पौराणिक, ऐतिहासिक कथाओं का चित्रण, फड चित्रण कहलाता हैं। शाहपुरा भीलवाडा इसका प्रमुख केन्द्र है तथा श्रीलाल जोशी ख्याति प्राप्त फड चितेरे हैं।
प्रश्न: बातिक शैली
उत्तर: राजस्थान में कपडे पर मोम की परत चढाकर लोकशैली में अलंकरण के लिए की जाने वाली चित्रांकित कृतियों की चित्रशैली को बातिक शैली कहा जाता है। खण्डेला की बातिक शैली प्रसिद्ध है।
प्रश्न: अरायशाध्आलागीलाध्फ्रेस्को बुनों
उत्तर: भित्ति चित्रों को चिरकाल तक जीवित रखने के लिए एक आलेखन पद्धति है जिसे अरायशा कहते हैं। जिसमें ताजी पलस्तर .की हुई नम भित्ति पर चित्रों को स्याही से बनाकर रंग भरा जाता है। शेखावाटी की स्कोपेंटिंग विश्व प्रसिद्ध है।
प्रश्न: रामगोपाल विजयवर्गीय
उत्तर: कलाविद एवं पद्मश्री से सम्मानित सवाई माधोपुर के परम्परावादी चित्रकार एवं साहित्यकार रामगोपाल विजयवर्गीय ने राजस्थान में एकल चित्र प्रदर्शनी एवं आधुनिक चित्रकला को प्रारम्भ किया। इनके चित्रण का सर्वाधिक प्रिय विषय नारी चित्रण रहा है।
प्रश्न: स्व. भूरसिंह शेखावत
उत्तर: शेखावाटी के भूरसिंह शेखावत मूलतः कला अध्यापक, नव यथार्थवादी व नव प्रभाववादी कला के संयुक्त चित्रकार थे। उनके वाटर कलर, टेम्परा, वाश एवं भित्तिचित्रों में मूलर का चित्रांकन एवं जनजीवन की बहुविधि झांकियां दृष्टिगत होती हैं।
प्रश्न: देवकीनन्दन शर्मा
उत्तर: अलवर के देवकीनन्दन शर्मा बंगाल शैली के चित्रांकन में सिद्धहस्त एवं कला शिक्षक हैं इन्होंने भारतीय संस्कृति के प्रतीक कमर व मोर को आधार बनाकर भित्ति चित्रण में ख्याति प्राप्त की।
प्रश्न: गोवर्धनलाल बाबा
उत्तर: कांकरोली के गोवर्धनलाल बाबा भीलों के चितेरे के रूप में प्रसिद्ध रहे। इन्होंने राजस्थान की लोक संस्कृति विशेषतः भील जीवन शैली को चित्रित किया। इनका प्रमुख चित्र बारात है।
प्रश्न: नाथद्वारा शैली
उत्तर: मेवाड में श्रीनाथद्वारा में श्रीनाथजी के प्राकट्य की छवियों में स्थानीय आधार के साथ राजस्थान तथा अन्य उत्तर भारत के भागों की शैलियों के सामंजस्य से विकसित चित्रकला शैली नाथद्वारा शैली कहलाती है।
प्रश्न: हस्तकला
उत्तर: हाथों द्वारा कलात्मक एवं आकर्षक वस्तुएं बनाना ही हस्तकला कहलाती है। राजस्थान की अनेक कलात्मक वस्तुएँ विश्व भर में लोकप्रिय है। मीनाकारी, ब्ल्यू पॉटरी, थेवा, वस्त्र छपाई आदि प्रसिद्ध हस्तकलायें है।
प्रश्न: मीनाकारी
उत्तर: स्वर्णाभूषणों में रंगभराई है मीनाकारी जिसे राजा मानसिंह लाहौर से आमेर लाये। वर्तमान में अन्य धातुओं व कांच पर भी मीनाकारी की जाती
है। जयपुर अपनी मीनाकारी में लिए देश विदेश में प्रसिद्ध है।
प्रश्न: थेवाकला
उत्तर: प्रतापगढ़ में रंगीन बेल्जियम कांच व स्वर्णाभूषणों पर सूक्ष्म हरे रंग का चित्रांकन (मीनाकारी) थेवा कला कहलाती है। सोनी परिवार इस कार्य के लिए जगत प्रसिद्ध है।
प्रश्न: बादला
उत्तर: पानी को ठंडा रखने के लिए फ्लास्कनुमा बडे जिंक तांबा निर्मित बर्तन जिन पर बहुत आकर्षण चित्रांकन (मीनाकारी) किया जाता है, बादला कहलाते हैं। जोधपुर के बादला जगत प्रसिद्ध है।
प्रश्न: कुन्दन
उत्तर: स्वर्ण, प्लेटिनम के आभूषणों में मूल्यवान व अर्द्धमूल्यवान रत्नों की जड़ावट कुन्दन कहलाती हैं। जयपुर अपने कुन्दन वक्र के लिए जाना जाता है।
प्रश्न: ब्ल्यू पॉटरी
उत्तर: क्वार्टज एवं चाइना क्ले के बर्तनों पर नीले रंग की आकर्षक चित्रकारी का नाम श्ब्ल्यू पॉटरीश् हैं। जयपुर की ब्ल्यू पॉटरी जगत प्रसिद्ध है। कृपालसिंह शेखावत ब्ल्यू पॉटरी के पर्याय रहे हैं।
प्रश्न: कृपालसिंह शेखावत
उत्तर: श्कलाविदश्, श्पदम्श्रीश् एवं श्पद्मभूषणश् से सम्मानित सीकर के कृपालसिंह शेखावत भारतीय पारम्परिक कला के युग पुरुष एवं ब्ल्यू पॉटरी के पर्याय थे। इन्होंने ब्ल्यू पॉटरी में 25 रंगों का प्रयोग कर श्कृपाल शैलीश् ईजाद की।
प्रश्न: टेराकोटा
उत्तर: मिट्टी की मूर्तियों, खिलौनों आदि को पकाकर तैयार करना टेराकोटा कहलाता है। नाथद्वारा का मोलेला गांव एवं अलवर का किशोरी गांव अपने टेराकोटा कला के लिए जगत प्रसिद्ध है।
प्रश्न: उस्ताकला
उत्तर: श्पदमश्रीश् से सम्मानित बीकानेर के हिस्सामुद्दीन उस्ता द्वारा ऊँट की खाल से हस्तनिर्मित कूपे-कूपियां आदि वस्तुओं पर सोने की कढ़ाई व कलात्मक चित्रांकन युक्त कार्य उस्ता कला के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न: सुनहरी कोठी
उत्तर: इब्राहीम खां ने टोंक में सुनहरी कोठी का निर्माण करवाया जो अपनी पच्चीकारी एवं मीनाकारी के लिए प्रसिद्ध है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: मास्टर कुन्दनलाल मिस्त्री
उत्तर: आधुनिक कही जाने वाली अन्तर्राष्ट्रीय चित्रकला की राजस्थान में शुरूआत उदयपुर के मास्टर कुन्दनलाल मिस्त्री ने की। उनके कला गुरु लन्दन वि. वि. के प्रो. ब्राउन थे। वे चित्रकला की नवप्रभाववादी जनजीवन की या जनभावना की चित्रांकन पद्धति को अपनाने वाले नवप्रभाववादी चित्रकारों में भारतीय चित्रकला के आधुनिक इतिहास में पहले नम्बर पर आते हैं। उन्हें 1889 में चित्रकला का सर्वश्रेष्ट अवार्ड -श्वेलिंग्ड्ग टन प्राइजश्, 1907 में भारत धर्म महामण्डल ने श्चित्रनिपुणश् एवं 1915 में सनातन धर्म मण्डल ने श्चित्रकला भूषणश् से अलंकृत किया। उनके प्रसिद्ध चित्र हैं – सीता स्वयंवर, भील सरदार, जोगिन, कुम्हारिन बाजार की ओर, क्षमादान, ग्राम्यबाला आदि।
प्रश्न: मेवाड़ शैली की चित्रकला
उत्तर: राजस्थानी चित्रकला का प्रमुख प्रारम्भिक और मौलिक स्वरूप जो जैन, अपभ्रंश एवं अजंता शैली से मिलकर बना उसे मेवाड शैली कहते हैं। गरूड नासिका, परवल की फांक से नेत्र, घुमावदार व लम्बी अंगुलियां, लाल-पीले रंग की प्रचुरता, अलंकार बाहल्य आदि इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं। रागमाला, बाहरमासा, पौराणिक ग्रंथ आदि इसका विषय रहा है। चावण्ड, देवगढ, नाथद्वारा आदि इसकी उपशैलियां हैं। महाराणा अमरसिंह के काल से इस पर मुगली प्रभाव उत्तरोत्तर बढ़ता गया।
प्रश्न: जयपुर शैली की चित्रकला
उत्तर: जयपुर शैली का युग 1600 ईसवी – 1900 ईसवी तक माना जाता है। अलंकरण का बाहल्य. लाल पीले रंग की प्रचुरता लम्बे केश, मृग के समान नयन, भित्ति चित्रण, पोथी चित्रण, आदमकद पोट्रेट, लघु चित्रण पर मुगली प्रभाव होते हा सा संस्कृति को नफासत और रंगों की लोक कलात्मकता का संतुलन इसकी विशेषताएं रही हैं। राधाकृष्ण की लीलाएं नायिका भेद, बारहमासा आदि इसका विषय रहा है। आमेर, अलवर, शेखावाटी, करौली, उणियारा आदि दर उपशैलियां रही हैं।
प्रश्न: चित्रशाला
उत्तर: बूँदी राजमहल में बनी श्चित्रशालाश् को भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहा जा सकता है। यहाँ पर ऋतुओं के आधार राग-रागिनियां, नायिका भेद, कृष्णलीला के साथ-साथ उत्सवों, पर्वो, जुलूस, शिकार एवं दरबारी दृश्यों का विविध चित्राकन अभिभूत करने वाला है। नारी चित्रांकन में कोमलता एवं सुन्दरता का अनोखा मेल है। पिछवाई शैली में रंगनाथजी, रासलीला, गोपियों से छेड़छाड़, रामायण के विविध विषयों पर चित्रांकन बूंदी चित्रशाला की विशेषता है।
प्रश्न: किशनगढ़ शैली की चित्रकला
उत्तर: किशनगढ़ शैली का समृद्ध काल राजा सांवत सिंह (1699 ईस्वी) के समय रहा जब उसके चित्रकार निहालचन्द ने बणी-ठणी बनाकर इसे सर्वोच्च एवं संसार प्रसिद्ध कर दिया। नारी आकृति में नुकीली चिबक, सराहीदार गर्दन, क्षीण कटि कर्णान्तक आंखे, दूर तक फैली झील में केलि करते हंस, सफेद, गुलाबी रंगों का उत्कृष्ट संयोजन आदि प्रमुख विशेषताएं हैं। ब्रजभाषा की कविता इसका मुख्य विषय रहा। कला, भक्ति और प्रेम का सर्वांगीण सामंजस्य तथा नारी चित्रण में जितनी सावधानी इस शैली में बरती गई वह अन्यत्र नहीं मिलती।
प्रश्न: बणी-ठणी
उत्तर: राजा सावन्तसिंह (भक्तवर नागरीदास,जन्म-1699 ई.) के समय में किशनगढ़ की चित्रकला में एक नवीन मोड़ आया। अपनी विमाता द्वारा दिल्ली के अन्तःपुर से लाई हुई सेविका उसके मन में समा गई। इस सुन्दरी का नाम बणी-ठणी था। शीघ्र ही यह उसकी पासवान (डपेजतमेे) बन गई। नागरीदास जी के काव्य प्रेम, गायन, बणी-ठणी के संगीत प्रेम और कलाकार मोरध्वज निहालचंद के चित्रांकन ने इससमय किशनगढ़ की चित्रकला को सर्वोच्च स्थान पर पहुँचा दिया। नागरीदास की प्रेमिका बणी-ठणी को राधा के रूप में अंकित किया जाता है।
प्रश्न: मारवाड़ शैली की चित्रकला
उत्तर: श्रृंगधर ने मारवाड़ शैली को स्थानीय एवं अजन्ता परम्परा के सामंजस्य से 7वीं सदी में जन्म दिया। मालदेव के समय में इसका स्वतंत्र विकास हुआ और मुगली प्रभाव बढ़ता गया। चित्रों में स्त्री-पुरुष के गठीले बदन, पुरुषों के राजसी वस्त्राभूषण एवं गुलमुच्छे, स्त्रियों की वेशभूषा ठेठ राजस्थानी, लाल, पीले, सुनहरे रंग की प्रचूरता इसके मुख्य विशेषताएं हैं। ढोला-मरवण, गीतगोविन्द, राग-रागिनी आदि इसके मुख्य विषय रहे हैं।
प्रश्न: बीकानेर शैली की चित्रकला
उत्तर: बीकानेर शैली का समृद्ध काल अनूपसिंह के समय से आरम्भ होता है जिस पर मुगली प्रभाव उतरोत्तर बढता गया। स्त्री पुरुष आकृतियों में मारवाड़ व मुगल शैली का प्रभाव, इकहरी तन्वंगी कोमल ललनाओं के अंकन में नीले, हरे, लाल रंगों का प्रयोग आदि इसकी मुख्य विशेषताएं हैं। हिन्दू कथाएं, संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी काव्य इसके मुख्य विषय रहे हैं। इस शैली के चित्र ठेठ राजस्थानी शैली के हैं। इस पर मुगल, पंजाबी और दक्षिण शैली का प्रभाव दिखाई देता है।
प्रश्न: बूंदी शैली की चित्रकला
उत्तर: राव उम्मेद सिंह के समय बूंदी शैली का समृद्ध स्वरूप उभरा। इस पर मेवाड़ तथा मुगल शैली का प्रभाव रहा है। आकृतियां लम्बी, पतले शरीर, स्त्रियों के अरूण अधर, पटोलाक्ष, नुकीली नाक, प्रकृति का सुरम्य सतरंगा चित्रण, श्वेत, गुलाबी, लाल हिंगल, हरा आदि रंगों का प्रयोग बूंदी कलम की विशेषता रही है। राग-रागिनी, नायिका भेद, ऋतु वर्णन, बारहमासा दरबार, शिकार आदि इस शैली के विषय रहे हैं। राजस्थानी शैली का पूर्ण विकास बूंदी शैली में दृष्टिगोचर होता है।
प्रश्न: कोटा शैली की चित्रकला
उत्तर: कोटा शैली का विकास राव रामसिंह एवं उसका चरमोत्कर्ष राव उम्मेद सिंह के समय आया हुआ। गहन जंगलों में शिकार की बहुलता के कारण यह कोटा शैली का प्रतीक बन गया। पुरुष चित्रण में मांसल देह, स्त्री चित्रण में सुन्दर कपोल, क्षीणकटि, लम्बी नासिका, हरे-पीले-नीले रंगों का समायोजन सामूहिक शिकार आदि इसकी मुख्य विशेषताएं हैं। लोक कथाएं, प्रेमाख्यान, पौराणिक, दरबारी एवं युद्ध व शिकार दृश्य आदि इसका मुख्य विषय रहा। इस शैली के चित्रों में भावों की गहनता, सौन्दर्य एवं लावण्य का योजनानुसार निरूपण पाया जाता है।
प्रश्न: भित्ति चित्रण
उत्तर: भित्ति पर सौन्दर्य और सृजन की दृष्टि से किया हुआ नानारूपी अलंकरण भित्ति चित्रण कहलाता है। राजस्थान में महलों, मंदिरों, हवेलियों आदि की भित्तियों पर पौराणिक, वीरोचित एवं श्रृंगार आदि विषयों का चित्रण हुआ। स्वर्ण एवं प्राकृतिक रंगों का प्रयोग तथा फ्रेस्कों, बुनो, फ्रेस्को सेको विधियों का चित्रण हेतु प्रयोग किया गया ताकि चित्र चिरकाल तक स्थायी रह सके। हाड़ौती अंचल इस दृष्टि से सर्वाधिक विकसित रहा तथा शेखावाटी के फ्रेस्को में लोकजीवन की झांकी सर्वाधिक देखने को मिलती है। रख-रखाव के अभाव में इस अमूल्य धरोहर का क्षरण हो रहा है।
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