हिंदी माध्यम नोट्स
फिजियोक्रेट्स किसे कहते हैं , Physiocrats in hindi definition फिजियोक्रेटस कौन थे
पढ़िए फिजियोक्रेट्स किसे कहते हैं , Physiocrats in hindi definition फिजियोक्रेटस कौन थे ?
प्रश्न: फिजियोक्रेटस
उत्तर: यह प्रबोधनकालीन फ्रांसीसी विचारकों का विशिष्ट समूह (अर्थशास्त्री वर्ग) था जिनका फ्रांसीसी क्रांति पर प्रभाव पड़ा। फ्रांसीसी विचारकों का वह समूह जिसने प्रकृति को धन मानकर अपने राजनैतिक, आर्थिक विचार व्यक्त किए, इन्हें फिजियोक्रेट्स कहा गया है। फ्रांस की क्रांति के समय फिजियोक्रेट्स का नेता क्वेस्ने था। फ्रांस के तीन प्रसिद्ध फिजियोक्रेटस थे – (1) फ्रांकाय क्वैस्ने, (2) जैक्स तुर्गो, (3) जीन द गर्ने तथा अन्य फिजियोक्रेट्स थे- छुपान्त द नेमर्स, मर्सियर द ला रेवियर आदि। ये विचारक आर्थिक क्रियाओं में सरकारी हस्तक्षेप के विरुद्ध थे। इन फ्रांसीसी विचारकों ने पुरातन-व्यवस्था के अनेक दोषों को उजागर कर फ्रांस की राज्य क्रांति का मार्ग जाने-अनजाने प्रशस्त किया।
प्रश्न: यूरोपीय ज्ञानोदय का परिचय दीजिए।
उत्तर: यूरोप में 1650 के दशक से लेकर 1780 के दशक तक की अवधि को प्रबोधन युग या ज्ञानोदय युग (Age of Enlightenment) कहते हैं। इस अवधि में पश्चिमी यूरोप के सांस्कृतिक एवं बौद्धिक वर्ग ने परम्परा से हटकर तर्क, विश्लेषण तथा वैयक्तिक स्वातंत्र्य पर जोर दिया। ज्ञानोदय ने कैथोलिक चर्च एवं समाज में गहरी पैठ बना चुकी अन्य संस्थाओं को चुनौती दी।
प्रश्न: प्रबोधन युग के प्रमुख विचारक कौन-कौन थे ?
उत्तर: प्रबोधन युग के प्रमुख विचारक निम्न थे-
1. जॉन लॉक, 2. मांटेस्क्यू, 3. वाल्टेयर, 4. इमैनुएल काण्ट, 5. रूसो, 6. दिदरो।
प्रश्न: जॉन लॉक के उदारवादी सिद्धांत क्या थे?
उत्तर: जॉन लॉक के विचारों में उदारवाद के निम्नलिखित सिद्धांत पाए जाते हैं –
(i) स्वतंत्रता
(ii) सहिष्णुता। (“A Letter Concerning Toleratin” (1689) नामक पुस्तक में सहिष्णुता पर विचार दिए)
(iii) सहमति का शासन।
(iv) संवैधानिक शासन।
प्रश्न: प्रबोधन युग के प्रमुख विचारक मॉन्टेस्क्यू का परिचय दीजिए।
उत्तर: मॉन्टेस्क्यू (18 जनवरी, 1689-10 फरवरी, 1755) फ्रांस के एक राजनैतिक विचारक, न्यायविद तथा उपन्यासकार थे। उन्होंने शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त दिया। वे फ्रांस में ज्ञानोदय के प्रभावी और प्रख्यात प्रतिनिधि माने जाते हैं। उन्होंने इंग्लैण्ड में दो वर्ष बिताए और जॉन लॉक और ब्रिटिश संविधान से काफी प्रभावित रहे। उन्होंने यहां रह कर चार निबंध लिखे। उनका ‘द स्पिरिट ऑफ लॉज‘ (The Spirit of the Laws/ कानून की आत्मा) नामक निबंध 1748 में छपा और संपूर्ण यूरोप में काफी चर्चित हुआ। उसकी व्याख्या करते उन्होंने व्यवहार्य और स्वतंत्र राजतंत्र में सत्ता विभाजन का सिद्धांत दिया जिसके लिए वे आज तक प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न: प्रबोधन काल में उदारवाद के उदय के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर: उदारवादी विचारधारा अत्यंत गतिशील व लचीली है। उदारवाद का प्रसार सर्वप्रथम पश्चिमी यूरोप में हुआ। 18वीं शताब्दी से इसका प्रभाव विद्यमान है तथा इसका निरंतर विकास हो रहा है। शास्त्रीय उदारवाद का आरंभ मध्यकालीन, सामंतवादी, राजतंत्रीय एवं पोपशाही व्यवस्था के विरोध में हुआ। उदारवाद का उदय मध्यम वर्ग की विचारधारा के रूप में हुआ। उदारवादी विचारधारा ‘वणिकवादश् के विरोध में आई। इसके उदय के निम्नलिखित कारण माने जाते हैं – (i) पुनर्जागरण आंदोलन, (ii) धर्म सुधार आंदोलन, (iii) वाणिज्यिक क्रांति, (iv) औद्योगिक क्रांति, (v) संचार साधनों का विकास, (vi) यूरोपीय समाज में मध्यम वर्ग का उदय।
प्रश्न: ‘‘प्रबोधन ने उदारवाद को पल्लवित किया।‘‘ कथन के संदर्भ में उदारवादी विचारधारा एवं इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: सामान्यतः उदारवाद का अर्थ मर्यादित स्वतंत्रता और समानता से है। ‘हैकर‘ के अनुसार, ‘‘उदारवाद, राजनीति के शब्दकोश में एक प्रचलित शब्दावली है। परंतु एक साहसी व्यक्ति ही इसकी स्पष्ट व सुनिश्चित परिभाषा करने का प्रयास करेगा।‘‘ उदारवाद, व्यक्ति व राज्य के संबंध में एक दृष्टिकोण है। लॉस्की के अनुसार, ‘‘उदारवाद, सिद्धांतों का समच्चय नहीं अपितु मन की एक आदत है।‘‘ रिचर्ड बेंहम के अनुसार, ‘‘व्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास ही उदारवाद है।‘‘ उदारवाद का लक्ष्य अधिकांश क्षेत्रों को नियंत्रण से मुक्त करना था। वे व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं, जैसे-भाषण, लेखन, सभा-संगठन तथा निजी सम्पत्ति की सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहते थे। वे यह भी चाहते थे कि निर्वाचित विधानमण्डलों वाली संवैधानिक सरकारों का निर्माण हो। वे मताधिकार को विस्तृत तो करना चाहते थे किन्तु सार्वजनिक नहीं। ‘बॉरबारा गुडविन‘ ने उदारवाद की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है-
(i) व्यक्ति स्वतंत्र, तार्किक और स्वायत्त है।
(ii) सरकार, व्यक्तियों की सहमति और समझौते पर आधारित है।
(iii) संवैधानिक व विधि का शासन।
(iv) चयन की स्वतंत्रता, जिसमें सरकार का चयन भी सम्मिलित है।
(v) अवसर की समानता, सामाजिक न्याय एवं सहिष्णुता।
प्रश्न: ‘‘प्रबोधन के युग में धर्मनिरपेक्षतावादी विचारों ने राष्ट्रवाद को जन्म दिया।‘‘ विवेचना कीजिए।
उत्तर: उदारवाद एवं राष्ट्रवाद का आदर्श धर्मनिरपेक्षता के आदर्श के बिना अधूरा प्रतीत होता है। फ्रांस की राज्य क्रांति के फलस्वरूप यूरोपीय देशों में धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो गया। ‘हॉलिआक‘ को पश्चिमी यूरोप में धर्मनिरपेक्षता का जनक माना जाता है। उसने धर्मनिरपेक्षता का अपना अभियान 1846 ई. के आस-पास प्रारम्भ किया था। उसने अपने विचार ‘प्रिंसिपल ऑफ सिक्यूलरिज्म‘ तथा ‘ओरिजिन एण्ड द नेचर ऑफ सिक्यूलरिज्म‘ में व्यक्त किये। उसने लिखा है, ‘धर्म-निरपेक्षता वह सिद्धांत है, जो जीवन के तत्काल कर्तव्य के रूप में सम्भावित उच्चतम बिन्दु तक यूरोपीय देशों में राष्ट्रीयता की भावना बलवती होने लगी। राष्ट्रीयता की भावना ने परम्परागत रूढ़िवादी शक्तियों को चुनौती देकर उदारवादी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन दिया।
प्रश्न: जॉन लॉक के प्रबुद्धवादी विचारों पर एक लेखं लिखिए।
उत्तर: राजनीतिक सिद्धांत के रूप में दार्शनिक उदारवाद का आरम्भ थामस हॉब्स (लेवियाथान 1651) से माना जा सकता है पर इसकी स्पष्ट अभिव्यक्ति ‘जॉन लॉक‘ की रचनाओं में मिलती है। उन्हें दुनियाभर में ‘फादर ऑव लिबरलिज्म‘ के नाम से जाना गया। सर फ्रांसिस बेकन के पदचिह्नों पर चलते हुए लॉक पहले ब्रिटिश अनुभववादी बने। उन्होंने तत्कालीन सामाजिक थ्योरी को बराबर अहमियत दी साथ ही उनका काम ज्ञानमीमांसा और राजनीतिक दर्शन के विकास से बेहद प्रभावित रहा। उनके लेखन पर वॉल्तेयर और रूसो का गहरा प्रभाव नजर आता है। अमेरिका के डिक्लियरेशन ऑफ इंडीपेंडेंस में क्लासिकल लोकतंत्रवाद और लिबरल थ्योरी के रूप में लॉक का योगदान अहम माना गया। वे तर्क देते थे कि हमारे सारे विचार अंततः अनुभवों से ही आते हैं। वे सोशल कॉन्ट्रैक्ट थ्योरी के प्रवर्तकों में से एक थे, अपने शानदार कामों की बदौलत वे फिलॉस्फर ऑव फ्रीडम कहे जाते हैं। लॉक ने स्वतंत्रता को महत्व देते हुए कहा कि ‘‘राज्य एक आवश्यक बुराई है।‘‘ उन्होंने ‘नकारात्मक पुलिस‘ या ‘प्रहरी राज्य‘ का समर्थन किया।
प्रश्न: प्रबोधन युग के प्रमुख विचारक रूसो का परिचय दीजिए तथा उनकी प्रमुख कृतियां कौन-कौनसी थी? बताइए।
उत्तर: जीन-जेकस रूसो (1712 – 78) की गणना पश्चिम के युगप्रवर्तक विचारकों में है। किंत अंतर्विरोध तथा विरोधाभासों से पूर्ण होने के कारण उनके दर्शन का स्वरूप विवादास्पद रहा है। अपने युग की उपज होते हए भी उन्होंने तत्कालीन मान्यताओं का विरोध किया, बद्धिवाद के युग में उन्होंने बुद्धि की निंदा की (विश्वकोश के प्रणेताओं (Encyclopaedists) से उनका विरोध इस बात पर था) और सहज मानवीय भावनाओं को अत्यधिक महत्व दिया।सामाजिक प्रसंविदा (सोशल काट्रैक्ट) की शब्दावली का अवलंबन करते हए भी उन्होंने इस सिद्धांत की अंतरात्मा में सर्वथा नवीन अर्थ का सन्निवेश किया। सामाजिक बंधन तथा राजनीतिक दासता की कट आलोचना करते हए भी उन्होंने राज्य को नैतिकता के लिए अनिवार्य बताया। आर्थिक असमानता और व्यक्तिगत संपत्ति को अवांछनीय मानते हुए भी रूसो साम्यवादी नहीं थे। घोर व्यक्तिवाद से प्रारंभ होकर उनके दर्शन की परिणति समष्टिवाद में होती है। स्वतंत्रता और जनतंत्र का पुजारी होते हुए भी वे रॉबस्पीयर जैसे निरंकुशतावादियों का आदर्श बन जाता है। उनकी मुख्य रचनाएँ ये हैं-
1. डिस्कोर्स ऑन दि आरिजिन ऑव इनईक्वैलिटी
2. इकोनामी पालिटिकस
3. दि सोशल काट्रैक्ट
4. ईमिली।
प्रश्न: पेरे बेली का प्रबोधन में क्या योगदान रहा?
उत्तर: लुई चैदहवें का समकालीन लेखक पेरे बेली (पिएर बेयल) एक सुधारवादी पादरी का पुत्र था। जो जिनेवा में दर्शनशास्त्र का प्रवक्ता नियुक्त हुआ। उसकी कृतियाँ तथ्यों एवं तर्कों से पूर्ण थी। उसने पण्डित-पंथ का विरोध किया। समयानुसार बेली के सामने जो भी समस्या आयी, उसी पर निर्भयता से उसने अपने विचार व्यक्त किये। उसकी पुस्तक को अशांति पैदा करने वाली घोषित करके पेरिस में खुलेआम जलाया गया। फ्रांस में इसे बेचने पर मृत्यु दण्ड घोषित किया गया। उसने 1688 ई. में एक अन्य पुस्तक लिखी, जिसका नाम था – ‘‘वाट होली कैथोलिक फ्रांस अन्डर दि रिजीम ऑफ लुई फोरटीन्थ रियली इज?‘‘ इसमें उसने लुई द्वारा नांत की घोषणा की आलोचना की। बेली के अनुसार धर्म के विषय में स्वयं व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य किसी को निर्णय करने का अधिकार नहीं है। 1697 ई. में बेली की ‘‘हिस्टॉरिकल एण्ड क्रिटिकल डिक्शनरी‘‘ प्रकाशित हुई।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…